Tuesday 19 July 2016

ब्रिटेन की दूसरी महिला प्रधानमंत्री टेरेसा मे

ऐसा विरला ही होता है कि कार्यकाल के बीच में एक प्रधानमंत्री अपनी कुर्सी छोड़ दे और दूसरे को सौंप दे। इस तरह असाधारण परिस्थितियों में टेरेसा मे ने ब्रिटेन की प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाल  लिया। बर्किंघम पैलेस के अंत पुर में डेविड कैमरन जब प्रधानमंत्री के तौर पर घुसे, उसके एक घंटे के भीतर ही टेरेसा उनकी उत्तराधिकारी बनकर वहां से बाहर निकलीं। बेशक चेहरा और नाम नया है। मगर जिन समस्याओं से डेविड कैमरन पिछले छह साल से जूझते रहे, उनसे नई प्रधानमंत्री टेरेसा को भी जूझना पड़ेगा, खासतौर पर वित्तीय तंगी, कमजोर बहुमत और सबसे बड़ी सिरदर्दी ब्रेग्जिट। टेरेसा मे इस पद पर आने वाली दूसरी महिला हैं। इनसे पहले लौह महिला के रूप में चर्चित मारग्रेट थैचर देश का नेतृत्व कर चुकी हैं। लेकिन जिन हालात में टेरेसा मे को देश की कमान मिली है वह एक कांटों भरा ताज है। दिलचस्प यह है कि कैबिनेट गठन के साथ ही उनकी आलोचना भी शुरू हो गई है। सबसे ज्यादा सवाल बोरिस जॉनसन को विदेश मंत्री बनाने को लेकर उठाए जा रहे हैं। जॉनसन ब्रेग्जिट के पक्ष में अभियान चलाने वाले नेता रहे हैं और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा सहित कई अन्य राष्ट्राध्यक्षों के खिलाफ दिए गए उनके बयान खासे चर्चित रहे हैं। ऐसे व्यक्ति को विदेश नीति का जिम्मा सौंपने पर सवाल उठने स्वाभाविक ही हैं। 10 डाउनिंग स्ट्रीट में अपनी पहली रात 59 वर्षीय टेरेसा को शायद ही नींद आई हो। प्रवक्ता ने कहाöसभी बधाई के फोन संवादों में प्रधानमंत्री ने यूरोपीय संघ से बाहर जाने संबंधी ब्रिटिश जनता की इच्छा को पूरा करने की प्रतिबद्धता जताई। टेरेसा के सामने एक चुनौती देश के आम मतदाताओं का विश्वास हासिल करने की होगी। गौर करने की बात है कि पिछले प्रधानमंत्री डेविड कैमरन की ही तरह खुद टेरेसा भी ब्रेग्जिट के खिलाफ थीं। ऐसे में अगर वह ब्रेग्जिट समर्थक खेमे के अग्रणी नेताओं को अपनी सरकार में अहम भूमिका नहीं देतीं तो इसे जनमत की अवहेलना समझा जाता। प्रधानमंत्री बनने के बाद दिए गए उनके बयानों में भी यह कोशिश साफ झलकती है। उन्होंने लोगों को साफ-साफ कहा है कि बड़े फैसले लेते वक्त हम ताकतवर लोगों के बारे में नहीं आपके बारे में सोचेंगे। नए कानून भी उनका नहीं आपका ध्यान रखते हुए बनाएंगे, टैक्स की बात होगी तो हमारी प्राथमिकता आप होंगे, वह नहीं। टेरेसा मे की कामयाबी पर न सिर्प यूरोपीय देशों की, बल्कि भारत समेत पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं। ऐसी चुनौतीपूर्ण स्थिति में यह सूचना भी दिलासा देने वाली है कि टेरेसा मे के शुरुआती कदमों में कोई हड़बड़ी नहीं दिखती और उनकी दिशा भी सही है। हम टेरेसा को उनके प्रधानमंत्री बनने पर बधाई देते हैं और उम्मीद करते हैं कि वह ब्रिटेन को इस चुनौतीपूर्ण समय से बाहर निकालने में सफल रहेंगी।

-अनिल नरेन्द्र

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