पिछले कुछ वर्षों से उत्तराखंड में पर्यावरण से छेड़छाड़
की वजह से प्राकृतिक आपदाओं की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। हाल ही में पिथौरागढ़-चमोली में बादल फटने की घटना हुई। उससे
पहले केदारनाथ त्रासदी को कौन भूल सकता है। अभी गत सप्ताह गौमुख ग्लेशियर के एक हिस्से
के टूटने की खबर आई। गौमुख ग्लेशियर के बाईं तरफ का हिस्सा टूट गया और उसके टुकड़े
भागीरथी के प्रवाह के साथ गंगोत्री तक पहुंच गए। भागीरथी के उद्गम स्थल यानि गौमुख
तक जाने पर फिलहाल पाबंदी लगा दी गई है। यहां जाने वालों को योजबासा से तीन किलोमीटर
आगे तक ही जाने की अनुमति होगी। सुरक्षा पहलुओं के मद्देनजर पर्वतारोहियों और तीर्थयात्रियों
के लिए गंगोत्री नेशनल पार्प प्रशासन ने नए दिशानिर्देश जारी किए हैं। इधर ग्लेशियर
की असली स्थिति पता करने के लिए वहां अध्ययन के लिए मौजूद वैज्ञानिकों के दल अपनी रिपोर्ट
तैयार कर रहे हैं। गौमुख ग्लेशियर के टूटने के पता चलने के बाद से गंगोत्री नेशनल पार्प
प्रशासन में हलचल मच गई। गत रविवार को गंगोत्री में भागीरथी के प्रवाह के साथ बर्प
के टुकड़े पहुंचने से ग्लेशियर टूटने की बात सामने आई थी। हालांकि ग्लेशियर के टूटने
को वैज्ञानिक सामान्य घटना बता रहे हैं, फिर भी पार्प प्रशासन
ने सोमवार को मौजूदा व्यवस्था में बदलाव कर दिए हैं। पार्प के एक अधिकारी ने बताया
कि गर्मी के कारण गौमुख ग्लेशियर पर काफी दरारें पड़ गई हैं। ऐसे में ग्लेशियर के हिस्से
किस समय और कहां से टूट जाएं, कुछ नहीं कहा जा सकता। यद्यपि गौमुख
में चेतावनी बोर्ड पहले भी टांग दिए गए थे पर तब ग्लेशियर टूटने का खतरा कम लग रहा
था। 2012 में भी गौमुख ग्लेशियर का एक बड़ा हिस्सा टूट गया था।
उस समय गौमुख से आधा किलोमीटर पहले लगाया गया गेज स्टेशन भी बह गया था। इससे पूर्व
25 जुलाई 2010 में दो कांवड़ियों की ग्लेशियर के
टुकड़ों के नीचे दब जाने से मौत हो गई थी। कांवड़िए उद्गम स्थल पर जल भर रहे थे। रूड़की
स्थित राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएस) के अनुसार ग्लेशियरों का टूटना सामान्य घटना है तो पर इस बार कुछ जल्दी घटित
हो गई है। वह बताते हैं कि 15 साल पहले साढ़े छह फुट बर्प देखने
को मिलती थी, लेकिन अब बर्प की यह परत घटकर साढ़े चार फुट ही
रह गई है। जब ताजी बर्प की परत पतली होगी तो मूल ग्लेशियर पिघलना शुरू हो जाएगा। इस
प्रक्रिया को वैज्ञानिक नेगेटिव माप बैलेंस कहते हैं। इसका साधारण शब्दों में अर्थ
हैं कि ग्लेशियर बढ़ने की बजाय सिकुड़ रहा है। एनआईएस के निदेशक बारिश और बर्पबारी
के पैटर्न में आए बदलाव को हालांकि स्थायी नहीं मानते। वह कहते हैं कि यह स्थिति कभी
भी बदल सकती है। तब ग्लेशियर नेगेटिव मास बैलेंस से पॉजिटिव मास बैलेंस (ग्लेशियर के बढ़ने की प्रक्रिया) में आ जाएंगे।
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