Sunday, 6 August 2017

अंतत बंजारा को मिला न्याय

जरा याद कीजिए, गुजरात में सोहराबुद्दीन व तुलसी प्रजापति मुठभेड़ मामला देश में कितने लंबे समय तक विवाद का विषय रहा। इस मामले में तो गुजरात की सरकार जिसके मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे तक को कठघरे में खड़ा किया गया था। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को भी इस लपेटे में लिया गया था। आरोप यह था कि सरकार की जानकारी में सोहराबुद्दीन, उसकी पत्नी और मामले के चश्मदीद गवाह को पुलिस ने पकड़ कर मार दिया और मुठभेड़ की कहानी बना दी थी। बता दें कि गुजरात पुलिस का मानना था कि गैंगस्टर सोहराबुद्दीन शेख का संबंध पाक आतंकी लश्कर--तैयबा से था। उसे गुजरात के गांधी नगर के नजदीक नवम्बर 2005 में मुठभेड़ में मार गिराया गया था। सीबीआई द्वारा दायर आरोप पत्र में कहा गया था कि गुजरात पुलिस के आतंकवाद निरोधक दस्ते ने सोहराबुद्दीन व उसकी पत्नी कौसर बी को हैदराबाद से अगवा किया था। मुठभेड़ के बाद कौसर बी गायब हो गई थी। सीबीआई का आरोप था डीजी बंजारा शुरू से ही सोहराबुद्दीन के फर्जी मुठभेड़ में शामिल थे। पुलिस ने कौसर बी को भी खत्म कर दिया था। सीबीआई के अनुसार सोहराबुद्दीन के एक साथी तुलसी प्रजापति इस मुठभेड़ के चश्मदीद गवाह थे। लेकिन दिसम्बर 2006 में उसे भी गुजरात के बनासकांठा जनपद में एक मुठभेड़ में मार दिया गया था। ध्यान रखिए, सीबीआई ने यह आशंका जाहिर की थी कि गुजरात में इस केस की निष्पक्ष जांच संभव नहीं है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने मामले को 2012 में मुंबई स्थानांतरित कर दिया। अब मुंबई की उसी सीबीआई अदालत ने मंगलवार को गुजरात के पूर्व डीआईजी डीजी बंजारा को सोहराबुद्दीन व तुलसी प्रजापति मुठभेड़ मामले में बरी कर दिया है। इसी मामले में उनके साथ गिरफ्तार किए गए राजस्थान कैडर के आईपीएस अफसर दिनेश एमएन को भी विशेष अदालत ने बरी कर दिया। बंजारा को 24 अप्रैल 2007 को गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद इशरत जहां मुठभेड़ मामले में भी उन्हें गिरफ्तार किया गया। बंजारा सात साल से अधिक जेल में रहे। सितम्बर 2014 में उन्हें सोहराबुद्दीन और प्रजापति मामलों में जमानत मिली। पिछली सात अप्रैल में अदालत ने उन्हें गुजरात प्रवेश करने की अनुमति देकर जमानत शर्तों में ढील दी थी। विशेष सीबीआई न्यायाधीश सुनील कुमार जे शर्मा ने अपने फैसले में कहा कि प्रथम दृष्टया इनके खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है। सोहराबुद्दीन शेख, उसकी बीवी कौसर बी और साथी तुलसी प्रजापति के अपहरण और एनकाउंटर की साजिश रचना तो दूर, इस केस से इनका दूर-दूर तक कोई लेनादेना नहीं है। कोर्ट ने कहा कि सीबीआई ने गवाहों के बयानों पर भरोसा किया लेकिन वे बयान अफवाहों पर आधारित थे। इस केस के दूसरे आरोपी के बयान से भी बंजारा के शामिल होने के प्रमाण नहीं मिलते हैं। अभियोजन पक्ष बंजारा के मुठभेड़ स्थल पर मौजूद होने का साक्ष्य भी नहीं पेश कर पाया। सिर्फ बंजारा व गुजरात के आईपीएस अधिकारी विपुल अग्रवाल व इंस्पेक्टर आशीष पांड्या के बीच बातचीत के आधार पर इसमें पूर्व आईपीएस अधिकारी की भूमिका साबित नहीं होती है। सोहराबुद्दीन की बीवी कौसर बी के मामले में कोर्ट ने कहाöकौसर बी को किसने मारा और कहां मारा इसके बारे में एक भी सबूत नहीं है। उसके शव को जलाया गया था, यह साबित करने के लिए घटनास्थल से बालू या राख जैसा नमूना इकट्ठा नहीं किया गया। सभी सबूतों के मद्देनजर स्पष्ट है कि बंजारा एवं दूसरे आरोपियों के बीच साठगांठ साबित नहीं होती। बंजारा को सात साल जेल में बिताने पड़े और अंत में वह निर्दोष साबित हुए। कम से कम इस फैसले के बाद तो हमें गुजरात पुलिस के बयान पर यकीन करना होगा कि मुठभेड़ फर्जी नहीं थी। उस समय भाजपा ने तत्कालीन कांग्रेस की केंद्र सरकार पर सीबीआई का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया था। क्या हम आज उस आरोप को सही मान लें?

-अनिल नरेन्द्र

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