मालेगांव विस्फोट के बहुचर्चित मामले में आरोपी
ले. कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित को सर्वोच्च
न्यायालय से जमानत मिलना बड़ी घटना इसलिए है कि वह नौ वर्षों से जमानत के लिए संघ्एार्ष
कर रहे थे लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी। उन्हें महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते ने
कथित हिंदू आतंकवाद का मुख्य सूत्रधार साबित करने की पुरजोर कोशिश की थी। मालेगांव
ब्लास्ट में ले. कर्नल पुरोहित और पूर्व मेजर रमेश उपाध्याय,
स्वामी दयानंद की गिरफ्तारी के बाद से ही भगवा आतंकवाद शब्द प्रचलन में
आया गया। केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने हिंदूवादी संगठनों पर आतंकी घटनाओं
में शामिल होने का आरोप लगाया था। तब गृहमंत्री रहे पी. चिदंबरम
ने तो 2010 में राज्य पुलिस प्रमुखों की बैठक में भगवा आतंकवाद
से सावधान रहने की सलाह तक दी थी। कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई तो उसके खिलाफ विरोधी स्वर उठने लगे। यही
नहीं कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने तो मुंबई में 26 नवंबर
2008 को आतंकी हमले में पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे की मौत के पीछे भी
हिंदूवादी संगठनों की साजिश बता डाला क्योंकि एटीएस प्रमुख के तौर पर वे मालेगांव विस्फोट
की जांच कर रहे थे। सारी दुनिया जानती है कि हेमंत करकरे कसाब एंड पार्टी के शिकार
हुए थे। अप्रैल में इसी मालेगांव ब्लास्ट केस में कांड की प्रमुख अभियुक्त साध्वी प्रज्ञा
सिंह ठाकुर को भी जमानत मिल गई थी। कर्नल पुरोहित को सशर्त जमानत देते हुए सुप्रीम
कोर्ट की ओर से की गई टिप्पणी की अनदेखी करना कठिन है कि किसी की जमानत की मांग सिर्फ
इस आधार पर खारिज नहीं की जा सकती, क्योकि एक समुदाय की भावनाएं
अभियुक्त के खिलाफ हैं। क्या पुरोहित अभी तक इसी आधार पर जमानत से वंचित रहे?
हालांकि जमानत मिलना निर्दोष साबित नहीं होता, किंतु पुरोहित की जमानत पर बॉम्बे हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में जो बहस
हुई, राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने जो दलीलें दीं तथा अदालतों ने
जो टिप्पणियां की हैं, उससे तत्काल लगता है कि जैसे आरोपितों
पर अभी तक कायदे से मामला नहीं चला है। एनआईए के विरोध के बावजूद सोमवार को शीर्ष अदालत
ने इस संबंध में बॉम्बे होई कोर्ट का फैसला रद्द करते हुए 45 वर्षीय पुरोहित को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया। जस्टिस आरके अग्रवाल व
जस्टिस एएम सप्रे की पीठ ने अपने आदेश में कहा-जमानत से सिर्फ
इसलिए इंकार नहीं किया जा सकता कि समुदाय की भावना आरोपी के खिलाफ हैं। मुंबई एटीएस
और एनआईए द्वारा दायर चार्जशीट में अंतर
है। ट्रायल के स्तर पर दोनों चार्जशीट का परीक्षण किया जाएगा।
कोर्ट किसी एक चार्जशीट पर गौर नहीं कर सकती। पुरोहित ने इसी मामले में आरोपी प्रज्ञा
ठाकुर को बाम्बे हाई कोर्ट में जमानत दिए जाने को आधार बनाते हुए अपनी याचिका दायर
की थी। इस मामले में जो संगठन कठघरे में खड़ा हुआ और जिसकी मदद करने के आरोप में श्रीकांत
पुरोहित को गिरफ्तार किया गया वह अभिनव भारत है। इस संगठन का साथ देने वालों में एक
अन्य नाम प्रज्ञा सिंह ठाकुर का भी था। लेकिन विस्फोट कराने के आरोप सिद्ध न होने पर
उन्हें जमानत मिल गई। जाहिर है कि इसमें श्रीकांत पुरोहित पर सैन्य ठिकाने से आरडीएक्स
विस्फोटक जुटाकर प्रज्ञा ठाकुर और उनके साथियों को देने का आरोप अपने आप खारिज हो गया।
यह भी पुरोहित के पक्ष में गया कि प्रारंभ में इस मामले की जांच करने वाले महाराष्ट्र
आतंकवाद निरोधक दस्ते और फिर जांच हाथ में लेने वाली राष्ट्रीय जांच एजेंसी के निष्कर्ष
विरोधाभासी हैं। मालेगांव विस्फोट एक ऐसा कांड था जिसका पूरा सच हम अभी भी नहीं जानते,
लेकिन एक बात तो साफ है कि शुरुआत से ही इस मामले का सियासी इस्तेमाल
हो रहा था। एक तरफ इसके लिए भगवा आतंकवाद जैसे शब्द गढ़े गए थे, तो दूसरी तरफ जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के तर्क भी दिए गए। सच जो भी हो,
लेकिन आतंकवाद जैसी संवेदनशील समस्या पर इस तरह की राजनीति हो इससे केवल
आतंकियों को फायदा होता है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में न तो मजहब आना चाहिए न ही राजनीति
आनी चाहिए। इसके लिए बनी जांच एजेंसियों को पूरी तरह स्वतंत्र और स्वायता से जांच करनी
चाहिए। इसी के साथ यह भी जरूरी है कि आतंकवाद से जुड़े जो भी अन्य मामले हैं उनमें
भी जांच और अदालती कार्रवाई आगे बढ़ाने का काम प्राथमिकता के आधार पर हो।
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