Wednesday, 30 August 2017

कश्मीर में आतंकवाद की कीमत ः 46 हजार मौतें-सवा लाख हमले

उच्चतम न्यायालय ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में साफ कहा कि जम्मू-कश्मीर में उस समय तक सार्थक बातचीत संभव नहीं है जब तक घाटी में हिंसा नहीं थमती। प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर और न्यायमूर्ति डीवाई चन्द्रचूड़ की पीठ ने कहाöकिससे बातचीत की जाए? शीर्ष अदालत जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ बार एसोसिएशन कार्यकारी सदस्य की अपील पर सुनवाई कर रही थी। उच्च न्यायालय ने बार निकाय की उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें इस आधार पर पैलेट गन के उपयोग पर रोक लगाने की मांग की गई थी कि केंद्र में पैलेट गन का विकल्प तलाशने के लिए पहले ही विशेषज्ञों की एक समिति गठित की है। न्यायालय ने कहा कि मामले पर फैसले के दो तरीके हैं। या तो पार्टियां एक साथ बैठें और कोई समाधान निकालें या फिर अदालत इस मामले में फैसला करे। न्यायालय ने कहा कि बार एक जिम्मेदार और सम्मानित निकाय है तथा उसे कोई समाधान ढूंढने में मदद करनी चाहिए। जम्मू-कश्मीर ने आतंकवाद के कारण बहुत भारी नुकसान उठाया है। कश्मीर में फैले आतंकवाद की कीमत है 46 हजार लाशें। बकौल गैर-सरकारी कीमत के सवा लाख लाशें। इनमें सभी की लाशें शामिल हैं। आतंकवाद मरने वालों में मतभेद नहीं करता। नतीजतन सवा लाख हमलों को सहन करने वाली कश्मीर घाटी इन 29 सालों में सवा लाख लोगों का लहू बहता देख चुकी है। अगर आधिकारिक आंकड़ों को ही लें तो मरने वाले 46 हजार लोगों में से जितने आतंकी मारे गए हैं उनमें से कुछेक ही कम आम नागरिक भी थे तो मरने वालों में सबसे अधिक वे ही मुसलमान मारे गए जिन्होंने जेहाद की खातिर कश्मीर में आतंकवाद को छेड़ रखा है। बकौल आधिकारिक आंकड़ों के इस महीने 21 तारीख तक कश्मीर में 29 सालों का अंतराल 46 हजार लोगों को लील गया। इनमें 24 हजार आतंकी भी शामिल हैं जिन्हें विभिन्न मुठभेड़ों में सुरक्षा बलों ने इसलिए मार गिराया क्योंकि उन्होंने उन्हें मजबूर किया कि वे उनकी जानें लें। हालांकि इन मरने वाले आतंकियों में से एक अच्छी-खासी संख्या सीमाओं पर ही मारी गई। एक रोचक तथ्य यह भी है कि कश्मीर में तथाकथित जेहाद और आजादी की लड़ाई को आरंभ करने वाले ये कश्मीरी नागरिक और बाद में जो मुठभेड़ों में मरने लगे वे हैं पाकिस्तानी और अफगानी नागरिक। यह कश्मीर में आतंकवाद को आगे बढ़ाने के लिए ठेका लेकर आए हुए हैं। 24 हजार आतंकियों में 11 हजार विदेशी आतंकवादी शामिल हैं। हमारे सुरक्षा बलों को भी बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ी है। आंकड़े बताते हैं कि 29 साल का अरसा सात हजार सुरक्षाकर्मियों को लील गया। अर्थात अगर पांच आतंकी मारे गए तो उनके बदले में एक सुरक्षाकर्मी की जान कश्मीर में गई। आप ताजा हमले को ही ले लीजिए। शनिवार को तड़के पुलवामा में तीन आतंकियों ने पुलिस लाइंस पर जबरदस्त हमला किया। अंदर घुसे आतंकियों को निकालने के लिए चले आपरेशन में हमारे आठ जवान शहीद हो गए जबकि पांच घायल हैं। करीब 15 घंटे चली मुठभेड़ में तीनों आतंकियों को मार गिराया गया। सीआरपीएफ के अनुसार तड़के पौने चार बजे जिला पुलिस कॉम्प्लेक्स पर ग्रेनेड फेंकते हुए आतंकी अंदर घुस गए। वहां से यह लोग पुलिस लाइन के तीन ब्लॉक्स में घुसे। छिपकर फायरिंग शुरू कर दी। यहां बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों के परिवार रहते हैं। इन्हें सुरक्षित तरीके से निकालते हुए सेना, पुलिस और सीआरपीएफ ने आतंकियों को निकालने का ज्वाइंट आपरेशन शुरू कर दिया। हमले में शहीद हुए दो एसपीओ एक घर में फंसे रह गए थे। जेहाद छेड़ने वाले मुस्लिम आतंकवादियों ने ऐसा नहीं कि सिर्फ हिन्दुओं और सिखों को मौत के घाट उतारा हो, चौंकाने वाली बात यह है कि मारे गए 16 हजार नागरिकों में 14 हजार से अधिक की संख्या उन मुसलमानों की है जिन्हें आजादी दिलवाने की बात आज भी आतंकी करते हैं और जो जेहाद छेड़े हुए हैं। शायद उनकी आजादी के मायने यही रहे होंगे।

-अनिल नरेन्द्र

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