भाजपा के अध्यक्ष अमित
शाह का तीन दिन के लिए लखनऊ पहुंचना और समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के तीन
विधान परिषद सदस्यों का त्यागपत्र देना न तो संयोग है और न ही आश्चर्यजनक। भले ही घटनाक्रम
अचानक क्यों न घटा हो पर इसकी तैयारी काफी पहले से चल रही थी। भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति
में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के आक्रामक शैली में विरोधियों पर हमला करने वाले इन
सियासी धुरंधरों के लिए खास मौकों पर दूसरे दलों में भगदड़ मचने का रणनीतिक संदेश दिलाना, नई बात नहीं है। लोकसभा चुनाव 2014 में प्रदेश की लोकसभा
की गौतम बुद्धनगर सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे रमेश तोमर द्वारा नामांकन
के बाद त्यागपत्र देकर भाजपा में शामिल होने की घटना से इसकी शुरुआत हुई थी जिससे कांग्रेस
में भगदड़ का संदेश गया। साफ है कि शाह के लखनऊ में मिशन 2019 की रूपरेखा तय करने के लिए आने के साथ इन तीन विधान परिषद सदस्यों का सदन और
अपनी पार्टी से इस्तीफा भी उसी रणनीति की एक कड़ी है। भले ही भाजपा नेता इन दोनों पार्टियों
के अंदरूनी मामले बताकर पल्ला झाड़ रहे हों। भले ही लखनऊ में घटनाक्रम अचानक घटा हो,
पर जिस तरह से शाह का तीन दिन का लखनऊ प्रवास शुरू होने से पहले ही शनिवार
सुबह से ही इस्तीफे शुरू हुए, उससे साफ पता चलता है कि इनकी डोर
शाह के लखनऊ दौरे और मिशन 2019 के आगाज से जुड़ी है। पटकथा भी
सोच-समझकर उतने ही कौशल से लिखी गई थी जैसी बिहार में थी ताकि
विरोधी दलों में भगदड़ का संदेश जाए। राष्ट्रपति पद पर रामनाथ कोविंद की शपथ के अगले
दिन बिहार के सीएम नीतीश का इस्तीफा और लालू यादव से रिश्ता तोड़कर भाजपा के साथ सरकार
बनाकर राजग में वापसी। उत्तर प्रदेश से पहले अमित शाह के गुजरात प्रवास के दौरान वहां
कांग्रेस के छह विधायकों का विधानसभा से इस्तीफा। अब शाह के उत्तर प्रदेश प्रवास शुरू
होने के साथ ही सपा के दो एमएलसी यशवंत सिंह व बुक्कल नवाब तथा बसपा के एक एमएलसी ठाकुर
जयवीर सिंह का विधान परिषद सदन की सदस्यता और अपनी-अपनी पार्टियों
से इस्तीफा यह बताता है कि भगवा रणनीति के तहत प्रदेश में आपरेशन विरोधी शुरू हो गया
है। इसमें कहीं न कहीं किसी रूप में अखिलेश यादव से नाराज और खुद को अपमानित महसूस
कर रहे सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव का भी समर्थन भाजपा के रणनीतिकारों को किसी न
किसी रूप में प्राप्त है। पार्टी सूत्रों के अनुसार विधान परिषद के कई सदस्यों पर भाजपा
के वरिष्ठ नेताओं की निगाहें महीनों से थी और इसे इतने गुपचुप ढंग से अंजाम दिया गया
कि सपा और बसपा के बड़े नेता भनक तक नहीं पा सके। भाजपा विरोधी दलों में शुरू हुई उथल-पुथल यहीं थमने वाली नहीं है यह आगे और बढ़ेगी।
-अनिल नरेन्द्र
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