डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह साध्वियों
से दुष्कर्म के मामले में दोषी ठहराए गए।
15 साल पुराने केस में पंचकूला की सीबीआई अदालत ने शुक्रवार को फैसला
सुनाया। 15 मिनट बाद ही पंजाब-हरियाणा सहित
छह राज्यों में डेरा अनुयायी हिंसक हो गए। सबसे ज्यादा नुकसान पंचकूला में हुआ। शहर
में जमे डेढ़ लाख डेरा समर्थकों ने तीन घंटे तक पंचकूला की सड़कों पर उत्पात मचाया।
अब तक भड़की हिंसा में 36 लोग मारे गए हैं और 250 से अधिक लोग घायल हैं। यह सब क्यों हुआ? कौन है यह राम
रहीम? इन पर चर्चा करते हैं। उत्तर-पश्चिमी
भारत में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह एक बड़ी ताकत हैं।
1948 में बने डेरा सच्चा सौदा की स्थापना करने वाले शाह सतनाम सिंह मस्ताना की विरासत को राम रहीम ने अपने कार्यकाल में कई गुना बढ़ा
दिया। 1990 में डेरे की गद्दी संभालने वाले गुरमीत राम रहीम सिंह
आज फिल्म स्टार हैं, कारों के शौकीन, सफल
उद्यमी और देश-विदेश में सम्पत्तियों के मालिक हैं। डेरा सच्चा
सौदा को नाम और बदनामी दोनों मिलती रही हैं। गुरमीत राम रहीम पर साध्वी के यौन शोषण
और दो मर्डर के अलावा 400 साधुओं को नपुंसक बनाने के भी आरोप
लगे हैं। वहीं सामाजिक सेवा के मोर्चे पर डेरे ने काफी काम किया है। सतनाम जी ग्रीन
एंड वेलफेयर फोर्स डेरा की एक ऐसी फौज है जो आपदा और दुर्घटना होने पर मदद को हाजिर
रहती है। डेरा समर्थक लाखों में बताए जाते हैं। पंजाब 70 लाख,
हरियाणा 80 लाख, राजस्थान
50 लाख, उत्तर प्रदेश 35 लाख और दिल्ली में 20 लाख अनुयायी बताए जाते हैं। आखिर
क्या वजह है कि बलात्कार जैसे गंभीर अपराध में अदालत द्वारा दोषी करार देने के बाद
भी उनके समर्थक यह मानने को तैयार नहीं होते कि उनके गुरु ने कुछ गलत किया है?
पहली बात तो यह है कि लोगों की जो उम्मीदें समाज में पूरी नहीं होतीं
उनके मन में बात आती है कि यह तो बहुत अच्छी व्यवस्था है। दूसरी बात यह कि डेरे संचालक
या प्रमुख को वे सुपरमैन या सुपर ह्यूमन बीइंग मानते हैं। उन्हें लगता है कि वे तो
गलती कर ही नहीं सकते। लोगों को लगता है कि उनके बाबा पर जो आरोप लगे हैं वे सिर्फ
बाबा के खिलाफ नहीं बल्कि हमारे समाज पर लगे हैं। उन्हें लगता है कि इन आरोपों से अपने
समाज, अपने डेरे को बचाना है। लोगों की डेरे पर जो आस्था होती
है, वह विचारधारा में बदल जाती है। उन्हें लगता है कि हम जो कर
रहे हैं, सच्चाई के लिए कर रहे हैं। जब लोगों की समस्याएं सही
ढंग से हल नहीं होतीं तो वे धार्मिक या आध्यात्मिक रास्ता अपनाते हैं। उन्हें लगता
है कि डेरे का प्रमुख मसीहा है। डेरा सच्चा सौदा ऐसा है जिसका हरियाणा व पंजाब की राजनीति
में सीधा हस्तक्षेप रहता है। डेरा सच्चा सौदा ने बाकायदा अपना राजनीतिक विंग भी बना
रखा है। हरियाणा के नौ जिलों की तीन दर्जन विधानसभा सीटों पर डेरा अनुयायी काफी हद
तक किसी भी दल की हार-जीत में निर्णायक भूमिका निभाने का माद्दा
रखते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में करीब दो दर्जन सीटों पर डेरे की कृपा से ही भाजपा
को जीत नसीब हुई थी। चुनाव के बाद हरियाणा के खेलकूद मंत्री अनिल विज और शिक्षामंत्री
रामविलास शर्मा द्वारा डेरा सच्चा सौदा को दिया गया अनुदान भी चर्चा में रहा है। उधर
पंजाब में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भी डेरा सच्चा सौदा ने खुलेआम भाजपा-अकाली गठबंधन का समर्थन किया। जिस राम रहीम के सामने सरकारें और सियासी दल
झुके रहते थे उसे तीन लोगों के संघर्ष के चलते आज राम रहीम का नया नामकरण हुआ,
कैदी नम्बर 1997। साल 2002 में पहली बार महिला ने 1999 में राम रहीम पर दुष्कर्म
का आरोप लगाते हुए पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के नाम तीन पेज की चिट्ठी लिखी। बहन के
साथ ज्यादती से खफा होकर डेरा प्रबंध समिति के सदस्य रणजीत सिंह ने राम रहीम की करतूतों
को उठाया। कुरुक्षेत्र के गांव खानपुर कोलियां में रहने वाले रणजीत सिंह ने अपनी ही
बहन से पत्र लिखवाया। उसे प्रधानमंत्री और हाई कोर्ट को भेजा। पूरा सच नाम का अखबार
निकालने वाले पत्रकार राम चन्द्र छत्रपति ने इस चिट्ठी को छापा। कुछ ही दिनों में पांच
गोलियां मारकर उनकी हत्या कर दी गई। इसके बाद जब यह पता चला कि यह चिट्ठी भाई रणजीत
ने लिखवाई थी तो डेरा समर्थकों ने 10 जुलाई 2002 को उनकी हत्या कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में सीबीआई
को जांच सौंपी। 2005 से 2006 के बीच सीबीआई
के कई जांच अधिकारी बदले। सतीश डागर को केस मिला। डागर ही वो अफसर थे जिन्होंने पीड़ित
महिलाओं को ढूंढा। उन्हें गवाही के लिए तैयार किया। वो किसी भी दबाव के आगे नहीं झुके।
सुनवाई के दौरान राम रहीम के समर्थक इन लोगों को डराते-धमकाते
थे। जिस दिन राम रहीम की पेशी होती थी उस दिन एसपी ऑफिस में अस्थायी कोर्ट लगाई जाती
थी। छावनी के बाहर समर्थकों का हुजूम होता था। ऐसे में डागर के भरोसे ही दो साध्वियों
ने गवाही दी और डटी रहीं। हरियाणा के पंचकूला में सीबीआई अदालत में जज जगदीप सिंह ने
राम रहीम को दुष्कर्म मामले में दोषी करार देने वाला फैसला सुनाया। जब वो फैसला पढ़
रहे थे तब राम रहीम हाथ जोड़े खड़ा रहा। जैसे ही दोषी साबित हुआ रोने लगा। फैसले की
संवेदनशीलता को देखते हुए कोर्ट ने परिसर में फोन बंद करने के निर्देश दिए। बिना आधिकारिक
प्रेस रिलीज के कोई भी चैनल खबर ब्रेक नहीं करेगा ताकि कोई अफवाह और गलत खबर न फैले।
सिंह सितम्बर 2016 में सुर्खियों में आए, जब हादसे में घायल चार लोगों की जिन्दगी उन्होंने बचाई थी। हम उन साध्वियों
को भी नहीं नजरंदाज कर सकते जिन्होंने तमाम तरह के दबावों के बावजूद गवाही दी और डटी
रहीं। उत्पाती डेरा समर्थकों को काबू में रखने में ढिलाई बरतने पर हरियाणा की मनोहर
खट्टर सरकार पर आज अंगुलियां उठ रही हैं। पंचकूला हिंसा ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
इस पूरे मामले का बारीकी से विश्लेषण करना जरूरी है। पंचकूला समेत कई जिलों में धारा
144 को लागू करने पर इसका असर न दिखाई देना। इस मामले में सबसे बड़ा
सवाल खड़ा होता है कि जब सरकार को मामले की गंभीरता का पता था तो उन्होंने इतनी बड़ी
संख्या में डेरा समर्थकों को पंचकूला में इकट्ठा क्यों होने दिया? डेरा प्रेमियों द्वारा लगातार कई पत्रकारों को दिए आक्रामक बयानों के बाद भी
सरकार ने इन्हें गंभीरता से क्यों नहीं लिया? 2016 के दौरान रोहतक
से जाट आरक्षण आंदोलन ने भी लगभग यही रूप लिया था। महज चार घंटे के भीतर इस हिंसा ने
न सिर्फ रोहतक, बल्कि पूरे हरियाणा प्रदेश को आग के हवाले कर
दिया। इस दौरान न पुलिस दिखी और न ही लॉ एंड ऑर्डर। सीबीआई कोर्ट के बार-बार कहने के बाद भी हरियाणा सरकार ने सबक नहीं लिया और डेरा समर्थकों को पंचकूला
में अपनी संख्या को बढ़ाने का अवसर और समय दिया। खुफिया विभाग बुरी तरह विफल रहा। इतनी
संख्या में समर्थकों का आना, अपने साथ हथियार, डंडे, पेट्रोल बम लाना यह खुफिया नाकामी नहीं तो क्या?
दंगों से पहले और बाद में सेना का इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया?
धारा 144 लगने के बाद भी लोग पार्कों और सड़कों
पर क्यों डटे रहे? राम रहीम को दोषी ठहराए जाने के बाद भड़की
हिंसा पर पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार को दोषी ठहराते
हुए दूसरे दिन भी कड़ी फटकार लगाई। आगजनी व तोड़फोड़ से नाराज कोर्ट ने कहा कि सरकार
ने सियासी फायदे, वोट बैंक के लिए डेरा समर्थकों के आगे सरेंडर
कर सूबे को जलने के लिए छोड़ दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि मामले में जिम्मेदारी लेने
के स्थान पर पंचकूला के पुलिस कमिश्नर को बलि का बकरा बनाकर उनको सस्पेंड कर दिया गया।
पंचकूला में धारा 144 लागू करने के फैसले को गलत तरीके से ड्राफ्ट
किया गया, यह गलती नहीं जानबूझ कर किया गया काम प्रतीत हो रहा
है। बिना राजनीतिक दबाव के ऐसा नहीं होता। यदि हम इस मामले की गहराई में जाएंगे तो
कितने चेहरे बेनकाब होंगे, इसका अंदाजा हमें है। हमें यह पता
है कि राजनीतिक निर्णय ने प्रशासनिक निर्णय को पैरालाइज कर दिया था, जिसका नतीजा शहर ने ही नहीं बल्कि पूरे हरियाणा ने भुगता।
-अनिल नरेन्द्र
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