Tuesday, 8 August 2017

सुषमा स्वराज का तर्कसंगत, प्रभावी जवाब

बहुत दिनों बाद संसद में भारत की विदेश नीति को लेकर इतनी विस्तृत और सार्थक चर्चा सुनने को मिली। राज्यसभा में दोनों सत्तापक्ष और विपक्ष पूरी तैयारी के साथ आए थे। विपक्ष ने जमकर सरकार पर हमला किया। पर सुषमा स्वराज ने तर्कों, तथ्यों के साथ जो जवाब दिए वह लाजवाब थे, सुनने वाले थे। सुषमा जी अपनी पूरी लौ में थीं। इतना अच्छा भाषण कई वर्षों के बाद मैंने किसी भी विदेश मंत्री का सुना है। सुषमा जी ने कहा कि भारत आज ग्लोबल एजेंडा तय करने वाला देश है। भारतीय प्रधानमंत्री जब विदेश जाते हैं तो वे आतंकवाद, पर्यावरण, काले धन और विकास पर ग्लोबल एजेंडा तय कर रहे होते हैं। हम अब अमेरिका के सामने हरिया-रमुआ नहीं हैं, पीएम मोदी में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को चुनौती देने का मादा है। राज्यसभा में बृहस्पतिवार को मोदी सरकार की विदेश नीति पर अल्पकालिक चर्चा के दौरान सुषमा ने जवाब देते हुए न सिर्फ विपक्ष पर करारा पलटवार किया बल्कि डोकलाम विवाद पर भी साफ किया, डोकलाम पर 2012 का समझौता अभी कायम है, जिसके तहत भारत-चीन-भूटान मिलकर विवाद सुलझाएंगे। युद्ध नहीं, हम बातचीत से इसे हल करेंगे। सीमा विवाद, न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप और संयुक्त राष्ट्र के जैश मुखिया मसूद अजहर को आतंकी घोषित करने पर चीनी आपत्ति पर भी बात जारी है। सीपीईसी पीओके से गुजर रहा है, यह हमारी संप्रभुता का सवाल है। उन्होंने कहाöचीन के साथ हमारा कारोबार मई 2014 से 116 अरब डॉलर था, जो अब 160 अरब डॉलर हो गया है। सुषमा ने कहा कि पाकिस्तान पर हमारा रोडमैप सरकार के शपथ लेने से पहले ही साफ था। शपथ समारोह में नवाज शरीफ आए, द्विपक्षीय बातचीत भी हुई। पाक पीएम से हमारे रिश्तों की गहराई यह थी कि उनके जन्मदिन पर हमारे पीएम खुद चले गए थे। पठानकोट हमले के बाद भी दोस्ती बदरंग नहीं हुई। चीजें बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद बिगड़ी जब नवाज ने उसे शहीद बता दिया। रोडमैप एकतरफा नहीं चल सकता। आतंक और बातचीत साथ नहीं चल सकती। सुषमा बोलींöइजरायल हमारा दोस्त जरूर है लेकिन फिलिस्तीन का साथ हम नहीं छोड़ेंगे। फिलिस्तीन से हमारे रिश्ते बेहतर हैं। फिलिस्तीन के पीएम यहां आए, बाद में मोदी इजरायल गए। मेरे फिलिस्तीन दौरे में वहां के राष्ट्रपति अब्बास ने इजरायल के साथ विवाद को सुलझाने में मदद मांगी, मोदी ने भी फिलिस्तीन के पीएम से यही कहा। सुषमा ने कहा कि दोनों हमारे दोस्त हैं। हमारी विदेश नीति का नतीजा है कि परस्पर विरोधी अमेरिका और रूस, इजरायल-फिलिस्तीन, सऊदी अरब-यमन हमारे आज दोस्त हैं। चीनी धमकियों के बावजूद सुषमा का यह कहना था कि सेना है ही युद्ध के लिए, लेकिन युद्ध से समाधान नहीं होता... युद्ध के बाद भी अंतत बातचीत के लिए बैठना पड़ता है। तो भारत की कोशिश बातचीत से मसला सुलझाने पर है। उन्होंने जिन तीन शब्दोंöधैर्य, वाणी संयम और कूटनीतिक चैनल का प्रयोग किया, उससे हर कोई सहमत होगा। वास्तव में चीन के आक्रामक बयानों के बावजूद भारत ने अभी तक पूरा संयम बरता है। हालांकि इसका मतलब यह नहीं कि भारत ने डोकलाम के मामले पर अपना पक्ष हल्का किया है। राज्यसभा में कांग्रेस की अगुवाई में विपक्ष ने विदेश नीति पर कई सवाल खड़े किए। कांग्रेस की ओर से आनंद शर्मा ने कहा कि प्रधानमंत्री की अच्छी डिप्लोमेसी का देश को क्या फायदा हो रहा है? यह किसी को मालूम नहीं। चीन के साथ तनातनी और अमेरिकी वीजा के मसले पर स्थिति साफ नहीं है। प्रधानमंत्री ने अपने विदेशी दौरों की सदन को कोई जानकारी नहीं दी। शर्मा ने नेपाल, श्रीलंका, मॉरीशस और बांग्लादेश के साथ रवैये पर भी सवाल खड़े किए। शर्मा ने कहा कि सरकार ने शी जिनपिंग और ट्रंप से पीएम की मुलाकात पर सदन को नहीं बताया। सरकार एच1बी वीजा पर अमेरिका से ठोस वादा नहीं करवा सकी। ब्रिक्स एनएसए सम्मेलन में भारतीय एनएसए डोभाल की चीनी नेता से मुलाकात के नतीजे के बारे में भी कुछ नहीं बताया गया। आनंद ने कहा कि चीन-पाक पर विपक्ष हमेशा सरकार के साथ खड़ा रहा, लेकिन विपक्ष को विश्वास में सरकार ने नहीं रखा। चीन लगातार धमकी दे रहा है। चीनी प्रीमियर और पीएम मोदी की मुलाकात के बाद डोकलाम पर सकारात्मक बातचीत से चीन के इंकार की वजह पर भी सवाल उठाए गए। कुल मिलाकर मैं समझता हूं कि सुषमा स्वराज ने हर प्रश्न का संतोषजनक जवाब दिया और उनकी तारीफ और तो और समाजवादी पार्टी के नेता प्रो. रामगोपाल यादव ने भी की। प्रो. रामगोपाल ने कहा कि जिस तरह से सरकार ने भारतीयों को युद्धग्रस्त यमन से निकाला और मदद की वह सराहनीय है। इतना ही नहीं, विदेश मंत्री जनरल वीके सिंह मदद के लिए खुद यमन गए और वह एक बहुत ही साहसिक कदम था। यादव ने कहा कि स्वराज का विदेशों में बहुत सम्मान है। उन्होंने सिर्फ ट्वीट पर ही एक पाकिस्तानी बीमार बच्चे को वीजा दिलवा दिया। रामगोपाल के यह कहने पर सदन में पक्ष और विपक्ष दोनों ने उनकी बात का समर्थन किया। बहुत दिनों बाद किसी भी भारतीय विदेश मंत्री का इतना प्रभावी, तर्कसंगत जवाब देखने को मिला।

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