Wednesday 9 August 2017

पहली बार चारों शीर्ष पदों पर भाजपा के नेता

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एम. वेंकैया नायडू के उपराष्ट्रपति चुने जाने के बाद पहली बार देश के चार टॉप पदों पर भाजपा और आरएसएस से जुड़े नेता काबिज होंगे। हालांकि नायडू के उपराष्ट्रपति बनने से राज्यसभा में संख्या बल पर कोई असर नहीं होगा, लेकिन इससे पार्टी न सिर्फ राज्यसभा में और मजबूत होगी, बल्कि इन नतीजों से पार्टी नेताओं का हौसला और रुतबा भी बढ़ेगा, जिसका असर आने वाले विधानसभा चुनाव पर ही नहीं बल्कि भाजपा के मिशन 2019 पर भी नजर आएगा। दरअसल इससे पहले जब भी संयुक्त सरकारें बनी हैं, तक कुछ पद सहयोगी दलों को जाते रहे हैं, लेकिन इस बार मोदी-शाह की जोड़ी ने जानबूझ कर सभी पदों पर अपनी पार्टी के ही नेताओं को देने का फैसला करके अपनी पार्टी का मनोबल और ऊंचा करने और विपक्ष का हौसला तोड़ने का काम किया। नायडू के उपराष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा स्पीकर एक ही दल से हैं। कांग्रेस पार्टी पहली बार इन चारों महत्वपूर्ण पदों से वंचित होकर दूसरे नम्बर पर चली गई है। नायडू के राज्यसभा के सभापति बनने से भले ही संख्या बल सरकार के पक्ष में न हो, लेकिन इसके बावजूद वहां के हालात को नियंत्रित तो किया ही जा सकता है। इसकी वजह यह है कि नायडू काफी अनुभवी हैं, जिससे उन्हें विपक्ष को साधने में ही मदद नहीं मिलेगी, बल्कि वह भाजपा के सदन से गायब रहने वाले सांसदों को भी काबू में रख पाएंगे। नायडू को यह पद देने का फायदा दक्षिण भारत में भाजपा के पांव पसारने के रूप में भी मिलेगा। इसके अलावा दूसरा बड़ा फायदा यह होगा कि उपराष्ट्रपति चुनाव के नतीजों का आने वाले विधानसभा चुनाव पर भी असर पड़ेगा। पार्टी यह मान रही है कि जिस तरह से यूपी और उत्तराखंड के नतीजों ने दिल्ली नगर निगम चुनाव में भाजपा की राह आसान की, वैसे ही उपराष्ट्रपति चुनाव के बाद अब हिमाचल प्रदेश, गुजरात और फिर कर्नाटक में भी पार्टी को बहुमत मिलने में कोई अड़चन आती नहीं दिख रही है। अगर इन विधानसभाओं के नतीजे यही रहे तो इसका सीधा संकेत जाएगा कि मोदी-शाह नेतृत्व में भाजपा अजेय होती जा रही है। इससे भाजपा पर कोई असर हो या नहीं लेकिन विपक्ष का मनोबल जरूर टूटेगा। जिसका अंतत भाजपा और मोदी को ही फायदा मिलेगा और 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजे भी चुनाव से पहले तय होते नजर आ जाएंगे। लेकिन वह सचेत करते हैं कि सत्ता के इस केंद्रीकरण से और विपक्ष के विलुप्त होने से भारतीय लोकतंत्र के संतुलन पर सवाल उठते हैं। मोदी और शाह जैसे दो नेताओं के हाथों में केंद्रित होती सत्ता पार्टी के लोकतंत्र को भी प्रभावित करेगी। इस चेतावनी के बावजूद भाजपा का सूर्य अपने ताप के साथ चमक रहा है और भारतीय राजनीति और लोकतंत्र पर अपना असर उत्तरोत्तर बढ़ रहा है।

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