Wednesday, 30 August 2017

अगस्त का महीना बीजेपी पर भारी रहा

सवा तीन साल में अगस्त 2017 शायद पहला महीना होगा जब टीवी चैनलों पर भाजपा के प्रवक्ता ठंडे-मीठे दिखे, तो कई बार तो दिखे ही नहीं। नरेन्द्र मोदी के पीएम बनने के बाद से अब तक के वाकये में सिर्फ दो महीने सत्ता पक्ष के लिए अशुभ रहे हैं। फरवरी 2015 और नवंबर 2015 में जब पार्टी दिल्ली और बिहार के विधानसभा चुनाव बुरी तरह हारी। मगर जल्द ही इन दोनों पराजयों को बुरे सपने की तरह भुलाकर बीजेपी तेज गति से आगे बढ़ी। पहली नजर में अलोकप्रिय दिखने वाले नोटबंदी के फैसले को मोदी के करिश्मे में बदल दिया गया और सर्जिकल स्ट्राइक का सीमा पार न जाने क्या असर हुआ, लेकिन देश के भीतर पाटी  का आत्मविश्वास जरूर बढ़ा। यह अलग बात है कि नोटबंदी का ब्यौरा देश को आजतक नहीं दिया गया। 2017 में यूपी, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर में पाटी सत्ता में आई और 2019 की जीत पक्की मानकर 2024 के चुनाव की चर्चा होने लगी। फिर आया अगस्त का महीना। पहला झटका पाटी को हरियाणा में लगा जब पार्टी के अध्यक्ष सुभाष बराला के पुत्र विकास बराला ने खासी किरकिरी कराई, आखिर उनकी गिरफ्तारी हुई लेकिन छवि का जितना नुकसान होना था हो गया। अभी मुश्किल से दो दिन बीते होंगे कि गोरखपुर के सरकारी अस्पताल में बच्चों की भयावह मौत की खबर आ गई और इसके बाद सरकार को काफी फजीहत का सामना करना पड़ा और बच्चों के मरने का सिलसिला अभी भी थमा नहीं है। गोरखपुर में बच्चों की मौत पहले भी होती रही है, लेकिन इस बार बीजेपी इन आरोपों को झुठला नहीं सकी कि उसका रवैया इस मामले में गैर-जिम्मेदाराना और असंवेदनशील था। बीजेपी को तीसरा बड़ा झटका अगस्त महीने में पहले दस दिन के भीतर ही लग गया जब पाटी ने गुजरात से कांग्रेस के नेता अहमद पटेल को राज्यसभा में जाने से रोकने के लिए असफल एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। ये बात किसी से छिपी नहीं थी कि बीजेपी अमित शाह और स्मृति ईरानी को जिताने से ज्यादा अहमद पटेल को हराने के लिए दम लगा रही थी। भारी हंगामे और देर रात चले नाटक के बाद चुनाव आयोग ने अहमद पटेल को विजेता घोfिषत कर दिया और बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी। अगस्त महीने ने न जाने क्यों बीजेपी की गाड़ी पटरी से उतारने की ठान ली थी। खतौली की रेल दुर्घटना और उसके बाद सामने आए तथ्यों ने पाटी प्रवक्ताओं को मुसीबत में डाल दिया, पता चला कि पटरी पर काम चल रहा था और ड्राइवर को इसकी सूचना नहीं दी गई थी। शिवसेना से बीजेपी में आए सुरेश प्रभु ने ट्विटर के जरिए कार्यकुशल रेल मंत्री की जो छवि बनाई थी वो पूरी तरह से धूमिल हो गई जब चार दिनों के भीतर उत्तर प्रदेश के औरैया में कैफियत एक्सप्रेस के 10 डिब्बे पटरी से उतर गए। रेलवे बोर्ड के चेयरमैन एके मित्तल के इस्तीफा दे देने के बाद  प्रभु को भी इस्तीफा देने की पेशकश करनी पड़ी। उन्होंने इस्तीफा तो नहीं दिया, लेकिन लंबी चौड़ी भूमिका के साथ इस्तीफे की पेशकश की जिस पर पीएम मोदी ने कहा कि अभी इंतजार करिए। लेकिन बुलेट ट्रेन चलाने का दावा करने वाली सरकार की छवि पर जितना बड़ा धब्बा लगना था, वो तो लग ही गया। फिर आया राम रहीम का प्रकरण। राम रहीम को दोषी करार दिए जाने से पहले जमा हुई भीड़, उसके बाद भड़की हिंसा, मनोहर लाल खट्टर सरकार का रवैया और भारी दबाव के बावजूद कानून व्यवस्था बिगड़ने से बीजेपी की छवि को भारी धक्का लगा। बाबा का आशीर्वाद पाने के इच्छुक लगभग सभी राजनीतिक दल रहे हैं लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में बाबा ने बीजेपी को घोfिषत तौर पर समर्थन दिया था, इसलिए बीजेपी आसानी से पिंड नहीं छुड़ा पा रही है। अंत होते-होते सियासी तौर पर पटना के गांधी मैदान में 18 विपक्षी दलों की महारैली एक ऐसी घटना है जिसने बीजेपी को थोड़ा चिंतित जरूर किया होगा। इतना ही नहीं दिल्ली में अगले चुनाव में केजरीवाल के सफाए का दावा करने वाली बीजेपी को विधानसभा उपचुनाव में बवाना सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा है। इस महीने कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जिनसे बीजेपी की छवि को गहरा धक्का पहुंचा है।

-अनिल नरेन्द्र

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