Saturday 20 July 2013

गरीब की थाली से गायब होतीं सब्जियां, बच्चों के लिए दूध सब महंगा

प्रकाशित: 20 जुलाई 2013
पिछले दिनों में कुछ ताबड़तोड़ आर्थिक फैसले लेकर बेशक केंद्र सरकार ने 2014 के चुनाव में वोटों की राजनीति करनी शुरू कर दी हो पर इन कदमों से पहले से ही मरी पड़ी जनता पर महंगाई की नई डोज मिलना तय है। महंगाई की नई सुनामी की शुरुआत हो चुकी है। पेट्रोल के दाम 1.55 पैसे प्रति लीटर बढ़ चुके हैं। पिछले 6 सप्ताह में पेट्रोल के दाम में चौथी बार वृद्धि की गई है। इससे पहले तेल कम्पनियों ने एक जून को 75 पैसे, 16 जून को 2 रुपए प्रति लीटर, 29 जून को 1.82 पैसे प्रति लीटर की वृद्धि की थी। पूरी आशंका है कि बिजली, यूरिया, स्टील, सीमेंट, सीएनजी और पीएनजी व डीजल की कीमतों में भी व्यापक वृद्धि होगी। इन सबकी सर्वाधिक मार पहले से ही महंगाई से झुलस रही जनता को झेलनी होगी। कुछ दिन पहले सरकार ने बिजली उत्पादकों को आयातित कोयले से बढ़ी लागत को भी उपभोक्ताओं से वसूल करने की इजाजत दी थी। यह निर्णय भी आम जनता को आने वाले समय में तगड़ा झटका देने वाला है। कहने को सरकार ने फसलों के समर्थन मूल्य में इजाफा करके किसान हितौषी दिखने की कोशिश की है, लेकिन बिजली और खाद की कीमतों से निश्चित बढ़ोतरी और लगातार महंगे होते डीजल के चलते यह किसानों को एक हाथ से देने और दूसरे हाथ से लेने का उपक्रम लगता है। साथ ही इससे खाद्यान्न के दाम भी बढ़ेंगे। राजधानी में जरूरी वस्तुओं के महंगे होने से आम आदमी का तो बजट ही चरमरा गया है। जिस परिवार का मासिक बजट पहले 10 हजार होता था, वह अब 15 हजार रुपए तक पहुंच गया है। आम उपभोक्ता सब्जी और परचून वाले के पास जाकर सबसे पहले कम दामों वाली चीजों के बारे में जानकारी लेता है और फिर कम से कम कीमत वाला सामान खरीदता है। आम लोगों में दूध का मुख्य उपयोग होता है। परिवार में पांच लोग हैं तो परिवार में अमूमन 2 किलो दूध खरीदा जाता है। पिछले डेढ़ साल में दूध के दाम चार बार बढ़े हैं। करीब तीन साल पहले दूध के दाम 20 रुपए लीटर होता था, वही अब थैली वाला दूध 42 रुपए लीटर और मदर डेयरी वाला दूध 50 से 55 रुपए प्रति लीटर पर पहुंच गया है। नाश्ते में इस्तेमाल होने वाली डबल रोटी जो पहले 16 रुपए प्रति पैकेट  होती थी, वह अब 22 रुपए पैकेट प्रति हो गई है। चीनी करीब चार साल पहले 12 से 14 रुपए प्रति किलो थी, वह अब 42 रुपए की खुली और पैकेट वाली 52 रुपए तक पहुंच गई है। बाजार में दालों के दाम आसमान छू रहे हैं। मध्यमवर्गीय ज्यादातर परिवारों में रोजाना इस पर चर्चा होती है कि दाल बनाएं या सब्जी। जिन घरों में बच्चे हैं वहां पर राजमा की खपत ज्यादा है, बच्चे राजमा पसंद करते हैं। राजमा की कीमत 120 रुपए प्रति किलो से कहीं कम नहीं है, अरहर की दाल 80 रुपए प्रति किलो से कम नहीं है। उड़द भी इतनी ही है। मूंग की दाल 85, मसूर की 75 रुपए और मटर के दाम 50 रुपए प्रति किलो हैं। दुखद पहलू तो यह है कि महंगाई कम नहीं होगी। रुपया कमजोर होता जा रहा है। कमजोर होते रुपए की कीमत आम आदमी को चुकानी पड़ेगी। महंगाई और बढ़ सकती है। साफ है कि अर्थव्यवस्था के लिए आगे और कठिन समय है और इसके लिए सर्वाधिक जिम्मेदार आर्थिक कुप्रबंधन है। इस सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक से ज्यादा उम्मीदें नहीं हैं। आम जनता पर और बोझ बढ़ेगा और वह इसके तले और पिसेगी।
-अनिल नरेन्द्र

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