प्रकाशित: 17 जुलाई 2013
मंदाकिनी में आई बाढ़ और प्रलय से केदारनाथ घाटी को तबाह हुए पूरा एक महीना हो गया है। ठीक 16-17 जून को केदारनाथ में तबाही हुई थी। एक महीने बाद केदारनाथ एक वीरान बस्ती बन चुका है। उत्तराखंड के एडवोकेट जनरल ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में यह स्वीकार किया और कहा कि चेतावनियों पर ध्यान दिया जाता तो हालात ऐसे न होते। जस्टिस एके पटनायक की पीठ शुक्रवार को बाढ़ राहत कार्यों पर राज्य की रिपोर्ट पर विचार कर रही थी। जस्टिस पटनायक ने उनकी बात से सहमति जताई और कहा कि यात्रा जून माह में होनी ही नहीं चाहिए। इसे यदि मई में ही रोक दिया जाता तो इस तरह की जानमाल की हानि नहीं होती। राज्य के एडवोकेट जनरल उमेश उनियाल ने कहा कि यात्रियों को निकालने के कार्य पूरे कर लिए गए हैं। स्थिति नियंत्रण में है लेकिन केदारनाथ एक भुतहा स्थल बना हुआ है। कहा कि गत वर्ष एक मामले में कहा गया था कि पहाड़ों में निर्माण नहीं रोका गया तो तबाही हो सकती है। आज वह भविष्यवाणी सही साबित हुई है। हालांकि राज्य सरकार ने यह नहीं बताया कि बाढ़ में कितने लोगों की मौत हुई है। लेकिन एक अनुमान के अनुसार केदार घाटी में अब भी सैकड़ों यात्रियों के शव मिट्टी में दबे हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट जनरल की बातें सुनकर जस्टिस एके पटनायक भी भाव-विह्ल हो गए। कहा कि गत वर्ष वह केदारनाथ की यात्रा पर गए थे और भगवान से उन्होंने जो मांगा था वह मिल गया। यात्रा से लौटने के बाद घर में एक पौत्र ने जन्म लिया और वह दादा बन गए। केदारनाथ में आपदा के चलते कितने लोग मारे गए इस रहस्य से पर्दा शायद ही कभी उठे। उत्तराखंड सरकार इस त्रासदी में पांच हजार से अधिक लोगों के लापता होने की बात स्वीकार कर चुकी है। लेकिन अब तक कुल 127 शवों का ही दाह-संस्कार हो पाया है। शवों की संख्या को लेकर भी प्रशासन स्थिति स्पष्ट नहीं कर पा रही है। बचाव कार्य के दौरान केदारनाथ में ही 250 से अधिक शवों की बात प्रशासन की ओर से की गई थी लेकिन वर्तमान में रह रहे राहत एवं बचाव दल ने वहां शवों के न होने की बात कही है। त्रासदी में लापता हुए लोगों के परिजन इस पीड़ा को भूल पाएं यह सम्भव नहीं। मेरे एक मित्र तेजेन्द्र मान जो करनाल रहते हैं की पत्नी अपने भाई और भाभी के साथ 16-17 जून को केदारनाथ में फंस गई और आज तक पता नहीं चला कि क्या हुआ। शनिवार को उनकी याद में दिल्ली के चिनमय मिशन में एक प्रार्थना सभा की। श्री मान से मैं मिला भी और तसल्ली भी दी पर सदमा उन्हें इतना गहरा लगा था कि सोमवार को खबर आई कि तेजेन्द्र मान भी चल बसे। ऐसे दर्जनों केस होंगे, जहां पर लापता लोगों के परिजनों को गहरी चोट लगी होगी। केदारनाथ में अब तक कुल 50 शवों का दाह-संस्कार हुआ है, गौरीपुंड व जंगलपट्टी में 43 व हरिद्वार में 34 शवों का दाह-संस्कार किया गया। हालांकि तबाही के बाद ढाई सौ से अधिक शव केवल केदारनाथ में देखे जाने की बात पुलिस की ओर से भी कही गई थी। यहां तक कि केदारनाथ से बच निकलने में सफल रहे प्रत्यक्षदर्शियों ने भी सैकड़ों की संख्या में शव पड़े होने की बात पुलिस व प्रशासन को बताई थी। लेकिन अब वह शव कहां गए यह रहस्य ही है। राष्ट्रीय सहारा में राजेश सेमवाल मृदुल/मोहित डिमरी की एक आंखों देखी रिपोर्ट छपी है। प्रस्तुत है रिपोर्ट के कुछ अंश। मंदाकिनी, क्षीर गंगा व मधु गंगा के मुहाने से केदारनाथ में हुई प्रलय को एक माह पूरा होने को है। इस एक महीने में आपदा से तबाह हो चुके छोटे-बड़े कस्बों में जिन्दगी पटरी पर कब लौटेगी और बसावट भी कब होगी? यह प्रश्न हर किसी के मन को कचोट रहा है। केदारनाथ घाटी के कोपागार के रूप में जाने-आने वाले शिव तीर्थ केदारनाथ पर हरिद्वार से केदारनाथ तक लाखों लोगों की आजीविका जुड़ी थी। फिलहाल यहां पथरीली जमीन व बार-बार हो रहे भूस्खलन के सिवाय कुछ नहीं दिख रहा है। श्रीनगर से लेकर केदार घाटी तक सड़कें सुनसान हैं। बाजार वीरान हैं और सड़कों से सटे गांवों में भी दिनचर्या ठहरी हुई है। दूरस्थ-दुर्गम गांवों का कोई सुधलेवा नहीं है। ऐसे सैकड़ों गांवों में आज भी बच्चे रोते हुए, महिलाएं सिसकती हुईं और बुजुर्ग स्तब्ध दिखते हैं। श्रीनगर से रुद्रप्रयाग तक आ-जा रहे वाहनों में सवारियां नहीं हैं। धारी देवी मंदिर पूर्व में जिस शिला पर स्थित था, वह अलकनंदा के आगोश में है। ऋषिकेश-बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग रुद्रप्रयाग तक छोटे-बड़े वाहनों की आवाजाही के लिए हालांकि खुला हुआ है मगर सड़क पर मजदूरों के सिवाय और कोई नहीं दिख रहा। रुद्रप्रयाग का बाजार सुना पड़ा है। ढाबे व होटल वालों का कहना है कि 20 दिन से उन्होंने हजार रुपए का नोट नहीं देखा। समूचे केदार घाटी में लोग सहमे हुए हैं। नदी का जलस्तर बढ़ते ही लोग घरों को छोड़ने पर मजबूर हैं। आसमान से बरस रही आफत दुखदायी है। इस एक माह में सड़क की स्थिति पर बीआरओ तो असफल साबित हो रही है। सही एलाइन्मेंट का अभाव व अत्याधिक विस्फोटों के कारण तबाह हुई सड़क कब खुलेगी, कोई बता पाने की स्थिति में नहीं। तिलवाड़ा के आगे तबाही के सिवाय और कुछ नजर नहीं आता। रामपुर का बाजार सूना है। आगे सिल्ली को देखकर ऐसा भी महसूस नहीं होता कि कभी यहां बेंजी से लेकर बड़या पट्टी के सैकड़ों लोग प्रतिदिन आते-जाते होंगे। इससे आगे संचार विद्युत, पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं तो बीते जमाने की बात हो गई। अगस्त मुनी के इंटर कॉलेज के नीचे खेतों में जहां फुलबारियां और अमरूद का बाग था, वहां रेगिस्तान नजर आता है। विजय नगर से आगे गंगानगर का बुरा हाल है। डिग्री कॉलेज के भवनों को भी क्षति हुई है। यहां बन रहा छात्रावास तबाह हो गया है। बीएड में अध्ययनरत छात्र अब कॉलेज नहीं आ रहे हैं। जहां कभी दर्जनों मकान थे वे अपने मकान व सामान सब गंवा चुके हैं। लोग वहां तिरपालों के सहारे मोमबत्ती में रातें काट रहे हैं। चन्द्रापुरी में तबाही को देखकर ऐसा नहीं लगता कि यहां पर चार-पांच मंजिला भवन रहे होंगे। एक माह बाद भी केदार घाटी की स्थिति ज्यों की त्यों है। खराब मौसम के चलते केदार घाटी में राहत कार्य बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। बारिश के कारण सभी गतिविधियां ठप हैं। रविवार को केदार घाटी के लिए गुप्तकाशी और फाटा से हेलीकॉप्टर उड़ान नहीं भर सके। जिला प्रशासन के अनुसार केदार नाथ में इस वक्त 58 लोगों की टीम है। मलबा हटाने का कार्य शुरू नहीं हो सका। हालांकि उपकरण पहुंच चुके हैं। गुप्तकाशी में नोडल अधिकारी हरक सिंह रावत ने बताया कि 31 लोगों की एक टीम और गौरीपुंड भेजी गई है। यह टीम सोमवार को रामबाड़ा रवाना होगी और वहां शवों की तलाश करेगी। बारिश के कारण मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही है।
-अनिल नरेन्द्र
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