Friday 12 July 2013

उत्तराखंड में तबाही का आंकलन करना मुश्किल है, पुनर्निर्माण में तो सालों लगेंगे

प्रकाशित: 12 जुलाई 2013
चार धाम यात्रा के तहत केदारनाथ धाम के दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं को अब लम्बा इंतजार करना पड़ेगा। उत्तराखंड में जल प्रलय से तबाह हुए केदारनाथ मंदिर के पुनरुद्धार में कम से कम तीन-चार साल का समय लग सकता है। केंद्रीय संस्कृति मंत्री चन्द्रsश कुमारी कटोच ने कहा कि मंदिर को हुई क्षति का आंकलन करने के लिए भारतीय पुरातत्व विभाग सर्वेक्षण के लिए जल्द उत्तराखंड का दौरा करेगा। हालांकि यह टीम कुछ दिन पूर्व वहां गई थी लेकिन खराब मौसम के कारण वह मंदिर तक नहीं पहुंच पाई। उन्होंने भरोसा दिलाया कि मंदिर को पुराने स्वरूप में लाने के लिए पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग हर सम्भव कोशिश करेगा। केदारनाथ धाम में आई तबाही के चलते जान-माल का कितना नुकसान हुआ है इसका आंकलन करना अभी सम्भव नहीं। अभी तक यह भी सही पता नहीं चल सका कि कितने लोग गायब हैं, लापता हैं? खबर आई है कि सरकार ने फैसला किया है कि अकस्मात  भक्त केदारनाथ मंदिर परिसर में यूं ही सोते रहेंगे क्योंकि सरकार अभी मलबे के भीतर दबे शवों को निकालने की जल्दबाजी में नहीं है। वैज्ञानिकों से विचार-विमर्श करने के बाद ही यहां से मलबा हटाने पर विचार किया जाएगा। सतह पर मिलने वाले शवों का दाह-संस्कार करने के बाद अब दूसरे चरण में क्षतिग्रस्त भवनों में फंसे शवों को निकालकर उनका दाह-संस्कार किया जाएगा। इसके लिए स्लैब व लोहा काटने की मशीनों का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके बाद उन शवों को निकाला जाना है जो मलबे में गहरे दबे हैं। बाबा केदार की यात्रा के भरोसे सैकड़ों घरों के चूल्हे जलते थे। अब आपदा ने यह भरोसा तोड़ दिया है। कई घरों में खाने के लाले पड़ गए हैं। 16 और 17 जून को बाबा केदारनाथ के परिसर सहित रामबाड़ा और गौरीपुंड में आई आपदा ने गुप्तकाशी और कालीमठ घाटी के जहां सैकड़ों लोगों को अपनों से छीन लिया वहीं जिन्दा लोगों की जीने की उम्मीदें भी छीन लीं। आजीविका के साधन तबाह हो गए हैं। कई लोगों के सपने पलक झपकते ही खत्म हो गए। गुप्तकाशी व कालीमठ क्षेत्र के अधिकांश गांवों की आजीविका केदारनाथ धाम पर निर्भर थी। पंडिताई से लेकर दुकान और खच्चर के काम में यहां के सैकड़ों लोग वर्षों से जुड़े हुए थे। लेकिन सैलाब ने सब कुछ तबाह कर दिया। तबाही में सैकड़ों की संख्या में बोझ ढोने वाले कुलियों तथा उनके लगभग 2000 खच्चर अभी भी लापता हैं। कुछ गैर सरकारी संगठनों का दावा है कि उनमें से कुछ बाढ़ में बह गए तथा कुछ अभी भी फंसे हुए हैं तथा बचाव करने वाले अधिकारियों की बाट जोह रहे हैं। खच्चरों के जरिये बोझा ढोने वाले समुदाय राज्य सरकार के अंतर्गत पंजीकृत नहीं हैं। मोटे अनुमान के आधार पर राज्य में बोझा ढोने वाले लगभग 20,000 लोग हैं जो पर्यटकों को या तो खच्चरों पर या अपनी पीठ पर ढोकर तीर्थस्थलों तक पहुंचाते हैं। 16-17 जून को आए जल प्रलय ने उत्तराखंड को फौरी तौर पर साढे आठ हजार करोड़ रुपए की चपत लगा दी। भारी बारिश व भूस्खलन से चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी व पिथौरागढ़ में जान-माल की भारी क्षति हुई है। आपदा के बाद इन जनपदों में न तो आवागमन के लिए सड़क मार्ग व पैदल रास्ते बचे हैं और न ही पीने के लिए पानी व उजाले के लिए बिजली। सीढ़ीनुमा खेत-खलिहान में लहरा रही फसलें भी बर्बाद हो गईं। देश-विदेश के श्रद्धालुओं से गुलजार रहने वाले चार धाम यात्रा मार्ग पर दिखाई दे रहा है तो सिर्प तबाही का मंजर व वीरानगी। मरघट में तब्दील हो चुके केदारनाथ धाम, गौरीपुंड व रामबाड़ा में चौतरफा बिखरे पड़े शव महामारी की आशंका बढ़ा रहे हैं। आवागमन के रास्ते बन्द होने व छोटे-बड़े पुल टूटने से अलग-थलग पड़े गांव-कस्बों में भुखमरी जैसे हालात पैदा हो रहे हैं। चार धाम की यात्रा रुकने से लाखों लोगों की रोटी-रोजी पर संकट आ गया है। चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी के जिलों में तो आर्थिक गतिविधि ठप हुई ही, ऋषिकेश, हरिद्वार और अन्य मैदानी जिलों में भी लोग प्रभावित हुए हैं। ठेली लगाने वाले दुकानदार, ट्रेवल एजेंटों, मंदिरों के पुरोहित, वाहन चालकों, होटल, लांज, धर्मशालाओं, रेस्टोरेंट के संचालकों तक की सालभर की कमाई इसी चार धाम यात्रा पर निर्भर रहती है। एक सर्वे के मुताबिक उत्तराखंड को पर्यटन से होने वाली आय में से अकेले चार धाम यात्रा का हिस्सा करीब 16 हजार करोड़ का है। अब तक भले ही यात्री सीजन में चार हजार करोड़ की कमाई मान भी ली जाए तो यात्रा रुकने से करीब 12 हजार करोड़ की आर्थिक गतिविधियां ठप होकर रह गई हैं। अगले साल भी अगर यात्रा एक-तिहाई रह जाती है तो नुकसान 20,000 करोड़ तक पहुंच जाएगा। ऐसे में कुछ नुकसान करीब 32,000 करोड़ के आसपास पहुंच सकता है। पीएचडी चैम्बर ऑफ कॉमर्स के सर्वे के मुताबिक करीब छह लाख लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से चार धाम यात्रा मार्ग पर किसी न किसी रोजगार से जुड़े हैं। केदारनाथ और बद्रीनाथ का दो हजार से ज्यादा पंडा-पुरोहित समाज, 12 हजार से ज्यादा कंडी, घोड़े-खच्चर से जुड़ा तबका, एक हजार से ज्यादा महिला स्वयं सहायता समूह (मंदिर के लिए प्रसाद और यात्रियों के लिए सोविनियर बनाने वाले) इससे प्रभावित हैं। एक बड़ा वर्ग ट्रेवल एजेंटों और लांज, होटल, रेस्तरां से जुड़ा है। यात्रा पर आने वाले सबसे अधिक इसी पर खर्च करते हैं। चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी और पिथौरागढ़ में करीब ढाई हजार लोग पारिवारिक उद्योगों से जुड़े हैं। इन उद्योगों में आटा चक्की से लेकर बुरांस का जूस बनाने का काम होता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार यात्रा रुट पर करीब पांच हजार होटल, रिसोर्ट और धर्मशालाएं हैं। इसमें हरिद्वार और ऋषिकेश के होटल आदि शामिल नहीं हैं। चिन्तनीय पहलू यह है कि छह माह तक चार धाम मार्ग पर पर्यटन व्यवसाय से जुड़कर रोजी-रोटी कमाने वाले एक लाख 80 हजार लोग बेरोजगार हो गए हैं। तबाही ने सड़क मार्ग, पेयजल लाइनें, विद्युत ट्रांसफार्मर व खम्भों को भी तबाह कर दिया है। 950 करोड़ रुपए की लागत के क्षतिग्रस्त हो चुके राजमार्ग व अन्य सड़कों का पुनर्निर्माण होना है। तीनों जनपदों में एक हजार 418 पेयजल लाइन आपदा से  प्रभावित हुई हैं जिनकी मरम्मत के लिए 284 करोड़ रुपए की दरकार है। कुल 8188 हेक्टेयर कृषि भूमि में से 30 फीसदी खेत-खलिहानों से फसल चौपट हो चुकी है। पशुपालन को भी काफी नुकसान पहुंचा है। तबाही इतनी भयानक हुई कि इसका सही आंकलन शायद ही हो सके। जिस तबाही के आंकलन में इतनी मुश्किलें आ रही हों उसके पुनर्निर्माण में कितना समय और पैसा लगेगा, अनुमान लगाना भी मुश्किल है। उत्तराखंड को सालों-साल लगेंगे इस  प्रलय से उभरने के लिए।
-अनिल नरेन्द्र

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