प्रकाशित: 21 जुलाई 2013
कुछ दिन पहले मुझे फेसबुक पर एक अत्यंत दुखी पिता की एक पिटीशन आई थी जिसमें उन्होंने अपनी बेटी के मुंह पर किसी बदमाश द्वारा तेजाब फेंकने की दास्तान लिखी थी और उन्होंने मुझे उनकी एक पिटीशन पर हस्ताक्षर करने को कहा था कि तेजाब की इस तरह खुली बिक्री पर पाबंदी लगनी चाहिए। मैंने इस पिटीशन पर न केवल हस्ताक्षर ही किए बल्कि अपने दर्जनों मित्रों से भी फेसबुक पर इस पिटीशन पर साइन करने को कहा। लड़की के पिता की जीत हुई, हम सबकी जीत हुई। उस पिटीशन पर हजारों हस्ताक्षर हुए और वह अभागी लड़की के पिता ने राष्ट्रपति को भेज दी और महामहिम ने सरकार को। इस पिटीशन और दर्जनों ऐसे ही केसों के कारण सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में तेजाब बेचने और खरीदने से जुड़े सभी नियम-कायदे गुरुवार से ही लागू कर दिए। महिलाओं पर तेजाबी हमले की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर स्पष्ट और सख्त कानून बनाने की मांग कई बार पहले भी हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार को इस बारे में हिदायत दी थी। मगर टालमटोल का यह आलम है कि सुप्रीम कोर्ट को एक बार फिर सरकार को फटकार लगाते हुए यह कहना पड़ा कि वह तेजाब की खुली बिक्री रोकने के मामले में कभी गम्भीर नहीं रही है। देशभर में रोजाना लड़कियों पर तेजाबी हमले हो रहे हैं और वह मर रही हैं। मगर केंद्र सरकार ने अब भी इस संबंध में कोई कारगार कदम नहीं उठाया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि बिना पहचान पत्र देखे तेजाब बिका तो पायजन एक्ट 1919 के तहत केस चलेगा, सजा होगी। अब खुले बाजार में वही तेजाब बेचा जाएगा जो त्वचा पर बेअसर हो। दरअसल हो यह रहा है कि प्रयोगशालाओं और औद्योगिक ईकाइयों में रासायनिक तौर पर इस्तेमाल होने वाला तेजाब काफी समय से महिलाओं पर हमले का हथियार बन चुका है। किसी लड़की या स्त्राr के चेहरे को कुरूप कर देने से उसका जीवन बर्बाद हो जाएगा, इसी मंशा से तेजाब फेंका जाता है। इस लिहाज से किसी महिला पर तेजाब डालना बलात्कार जैसा ही संगीन अपराध है और इसे रोकने के लिए सख्त कानून निहायत जरूरी हैं। आसान उपलब्धता के चलते तेजाब पीकर खुदकुशी करने की भी खबरें आती रहती हैं। मगर इतने घातक असर के बावजूद इसके उत्पादन और वितरण पर निगरानी की कोई सुचारू व्यवस्था नहीं है। जस्टिस आरएम लोढा और जस्टिस फकीर मोहम्मद की बेंच ने राज्य सरकारों को आदेश दिया कि वह तेजाब हमलों को गैर जमानती अपराध बनाएं। कोर्ट ने सरकारों को तीन महीने के भीतर इस बारे में स्पष्ट नीति लाने के निर्देश दिए। याचिका की अगली सुनवाई चार महीने बाद होगी, जब राज्य सरकारें तेजाब पर नियंत्रण और पीड़ितों के पुनर्वास को लेकर पूरी नीति लाकर कोर्ट पहुंचाएंगी। तेजाब हमले की शिकार लक्ष्मी की 2006 में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि अंतरिम आदेश एक हफ्ते के भीतर सभी राज्यों तक पहुंच जाए। जहां हमें खुशी है कि हम सबकी मुहिम रंग लाई है और सरकारें अब तेजाब की खुली बिक्री पर रोक लगाने के लिए कदम उठाएंगी वहीं यह भी कहना चाहेंगे कि बहुत कुछ इन पाबंदियों के क्रियान्वयन पर निर्भर होगा। देखना यह होगा कि सरकारें कितनी ईमानदारी से पाबंदियां लागू करती हैं और सरकारी मशीनरी कितने प्रभावी ढंग से पाबंदियों को लागू कर पाती है।
-अनिल नरेन्द्र
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