Tuesday 23 July 2013

इन अलगाववादियों का मकसद साफ है अमरनाथ यात्रा में विघ्न डालना

प्रकाशित: 23 जुलाई 2013

 कश्मीर में हालात फिर बिगाड़ने का प्रयास हो रहा है। एक छोटी-सी घटना का बहाना लेकर स्थिति को 1990 के दशक में पहुंचाने की स्थिति पैदा की जा रही है। मामूली बात पर हुए बवाल के बाद बृहस्पतिवार को रामबन के गूल इलाके में बीएसएफ पर उग्र भीड़ ने धावा बोल दिया। भीड़ पर काबू पाने के लिए सुरक्षाबलों ने फायरिंग की जिसमें कम से कम चार लोगों की मौत हो गई। बीएसएफ ने आत्मरक्षा में मजबूरीवश उठाया, यह कदम बताया है। पूरी घटना पर अपना पक्ष रखते हुए बीएसएफ ने कहा कि सैकड़ों लोगों की भीड़ जब बेकाबू होकर कैम्प में घुसने लगी तब उसके पास बल प्रयोग करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा था। बीएसएफ ने कहा कि समझाने और मामले को शांत करने के सभी प्रयास असफल होने के बाद ही हिंसक भीड़ को नियंत्रित करने के लिए उसे मजबूरी में गोलियां चलानी पड़ीं। बयान में बीएसएफ ने घटना के कारणों का भी खुलासा किया। बृहस्पतिवार तड़के लगभग पांच बजे बीएसएफ के एक गश्ती दल ने 25 वर्षीय मोहम्मद लतीफ को रोका और उससे पहचान पत्र दिखाने के लिए कहा। वापसी के क्रम में उसी जगह पर लतीफ ने 15-20 लोगों को इकट्ठा कर गश्ती दल को रोक लिया। इस दौरान उक्त युवक ने गश्ती दल के सदस्यों पर बदतमीजी करने का आरोप लगाया। इसी बीच स्थानीय मस्जिद से गश्ती दल पर मुसलमानों के धर्मग्रंथ का अपमान करने की गलत घोषणा कर दी गई। बस फिर क्या था स्थानीय लोगों ने बीएसएफ कैम्प को घेरकर पत्थरबाजी करनी शुरू कर दी। जब भीड़ ने कैम्प के अन्दर घुसने का प्रयास किया तो बीएसएफ ने आत्म सुरक्षा के लिए फायरिंग की जिसमें छह लोगों की मौत होने का समाचार है। इस घटना से उनकी मौत पर कश्मीरी कट्टरपंथियों, अलगाववादियों को मानो एक अवसर मिल गया या यह  भी कहा जा सकता है यह सोची-समझी साजिश का परिणाम है। कट्टरपंथी नेता अली शाह गिलानी ने अपने हड़ताली कैलेंडर को थैले से बाहर निकालने में जरा भी देर नहीं लगाई। दरअसल वह अपने प्रतिद्वंद्वी अलगाववादी नेता मीरवाइज उमर फारुख से कुछ कदम आगे निकलकर अपनी अलग पहचान साबित करना चाहते हैं। यही कारण था कि अन्य अलगाववादियों ने शनिवार से तीन दिन की हड़ताल और विरोध प्रदर्शन की घोषणा करते हुए कहा कि सुरक्षा बल कश्मीरियों को खत्म करना चाहते हैं। उनकी घोषणा का अंत यहीं नहीं होता बल्कि वह कहते हैं कि तीन दिनों की हड़ताल और विरोध प्रदर्शनों के बाद आगे की रणनीति की घोषणा की जाएगी। ऐसे समय में जब कश्मीर में टूरिज्म उफान पर है और अमरनाथ यात्रा के कारण भी आम कश्मीरी अपनी रोटी-रोजी का जुगाड़ कर रहे हैं। सुरक्षाबलों के हाथों कई सालों के बाद इन मौतों को भुनाने की अलगाववादी चाहत ने सच में कश्मीर को 1990 के दशक में पहुंचा दिया है। इन अलगाववादियों और कट्टरपंथियों का एक और छिपा मकसद नजर आ रहा है। यह है अमरनाथ यात्रा में बाधा डालना। इस धरना, प्रदर्शन, अव्यवस्था के पीछे कट्टरपंथियों की साजिश की बू आ रही है। यह जानबूझकर फायरिंग पर दहशत फैला रहे हैं ताकि किसी तरह अमरनाथ यात्रा में विघ्न डाल सकें। हर वर्ष करोड़ों हिन्दुओं की आस्था का प्रतीक बर्फानी बाबा के दर्शन के लिए यात्रा का आयोजन होता है। हर वर्ष आतंकवादी और अलगाववादी ताकतें यात्रा में विघ्न डालने की नापाक कोशिश करते रहते हैं। आतंकवादियों द्वारा हिन्दुओं की आस्था से खिलवाड़ का यह सिलसिला  1993 से शुरू हुआ। 1993 में बाबरी मस्जिद प्रकरण के बाद यात्रा को रोकने के लिए हमला किया गया जिसमें तीन लोग मारे गए थे। इसके बाद 1994 में पुन हरकतुल अंसार ने यात्रा पर हमला किया जिसमें दो यात्रियों की मौत हो गई थी। इसी तरह 1995 में हरकतुल अंसार ने यात्रा पर फिर हमला किया  लेकिन इस बार आतंकवादी किसी की जान नहीं ले पाए। वर्ष 2000 में आतंकियों ने फिर बड़ा हमला कर पहलगांव के करीब  आरू पर 32 श्रद्धालुओं सहित 35 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। 2001 में तीन पुलिस अधिकारियों समेत 12 श्रद्धालुओं को निशाना बनाया गया। 2002 में भी दो अलग-अलग हमलों में कुल 10 श्रद्धालु मारे गए थे। आतंकवादियों द्वारा लगातार की जा रही दुस्साहसिक वारदातों के बाद भी हिन्दुओं का मनोबल अमरनाथ यात्रा के लिए और बढ़ा ही है और हर वर्ष अमरनाथ यात्रा के लिए पंजीकरण कराने वालों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। हर-हर महादेव। बर्फानी बाबा की जय।

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