Tuesday, 30 July 2013

गरीब और गरीबी का मजाक उड़ाने से बाज आए

प्रकाशित: 30 जुलाई 2013
 बेचारे गरीब की औकात क्या है कि सामर्थ्यवानों के खिलाफ मुंह खोले। गरीबों से मजाक का एक तरीका इस संप्रग सरकार ने ऐसी कमेटियों में ढूंढ निकाला है जो गरीबी रेखा तलाशने की बाजीगरी में नित नए आंकड़े उछालती रहती है। ताजा उदाहरण है योजना आयोग का जिसने गरीबी रेखा को 27 से 33 रुपए के फेरे में डालकर ऐसी ही बाजीगरी की है जिस पर बवाल मचना स्वाभाविक ही था। गरीब और गरीबी के प्रति असंवेदनशील मजाक पर पूरे देश में ऐसी प्रतिक्रिया हुई जिसका संप्रग सरकार व कांग्रेस को शायद अंदाजा नहीं था। अंतर्राष्ट्रीय मापदंड जो 2005 में तय किया गया था वह 1.25 डॉलर (लगभग 75 रुपए) प्रतिदिन प्रति व्यक्ति खर्च करने वाले व्यक्ति को गरीब माना गया है। भारत में 27 रुपए गांव और 33 रुपए शहर में रोजाना खर्च करने वाले व्यक्ति गरीबों की श्रेणी में आता है योजना आयोग के आंकड़ों के मुताबिक। चौंकाने वाली बात तो यह है कि कांग्रेस के कुछ सांसद नेता इस आंकड़े को जस्टिफाई कर रहे हैं कि पांच रुपए में जामा मस्जिद में पेटभर खाना खाया जा सकता है। एक नेता ने तो यहां तक कह दिया कि खाना तो एक रुपए में भी खाया जा सकता है। इन नेताओं को राजस्थान के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उसी अंदाज में जवाब दिया है। श्रीगंगानगर जिले के सामाजिक कार्यकर्ता ने पीएम, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नाम 33-33 रुपए एवं कांग्रेस सांसद राज बब्बर के नाम 12 रुपए और रशीद मसूद के नाम पांच रुपए के मनी आर्डर भेजे हैं। ऐसे ही मनी आर्डर दिल्ली भाजपा अध्यक्ष विजय गोयल भी भेज चुके हैं। मनी आर्डर के साथ भेजे पत्र में कहा गया है कि वह 33-33 रुपए में भरपेट खाना खाकर दिखाएं। यदि वह इन राशियों में भरपेट भोजन स्वयं कर सकते हैं या फिर अन्य के लिए व्यवस्था कर सकते हैं तो चन्दा एकत्रित कर और थालियों के आर्डर भेजे जाएंगे। योजना आयोग के आकलन और नेताओं के बेतुके बयानों से हुई प्रतिक्रियाओं के बाद अब कांग्रेस पार्टी नुकसान की भरपाई में जुट गई है। खाद्य सुरक्षा विधेयक से पूरा सियासी माहौल पलटने की तैयारी कर रहे कांग्रेस नेतृत्व के अरमानों पर बब्बर और मसूद थाली न जो पानी फेरा है उसके बाद अब सरकार और पार्टी ने प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली योजना आयोग के खिलाफ जोरदार हल्ला बोल दिया है। केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल के बाद कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने योजना आयोग के गरीबी रेखा के निर्माण पर ही गम्भीर सवाल उठा दिए हैं। वहीं योजना मंत्री राजीव शुक्ला ने तो गरीबी के इस पैमाने को सरकारी आंकड़ा ही मानने से इंकार कर दिया है। इन आंकड़ों का राजनीतिक निहितार्थ यह बताना है कि शायद पिछली एनडीए सरकार के मुकाबले यूपीए की सत्ता गरीबों की बड़ी हिमायती रही है। लेकिन यह आंकड़े और दावे यह पोल खोल रहे हैं कि आज की सत्ता और राजनीति देश की वास्तविक हालात से किरकरी कर गई है। पेट की आग बुझाने में आज देश के गरीब की तमाम जिन्दगी गुजर जाती है इस प्रकार के भद्दे मजाक से बेहतर है कि गरीब की थाली का सही प्रबंध हो और उसकी गरीबी का मजाक न उड़ाया जाए।
-अनिल नरेन्द्र

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