Sunday 28 July 2013

बटला हाउस फैसला ः तर्पसंगत, न्यायसंगत आधार पर इंसाफ है

प्रकाशित: 28 जुलाई 2013
 बहुचर्चित बटला हाउस एनकाउंटर की असलीयत सामने आ गई है। साकेत कोर्ट के एडिशनल सेशन जज राजेन्द्र कुमार शास्त्र ने इस केस को लेकर एक ऐसा महत्वपूर्ण फैसला दिया है जिसकी चर्चा बहुत दिनों तक होती रहेगी। एक कठिन, राजनीति से प्रेरित केस में किसी प्रकार का फैसला देना आसान काम नहीं था पर मानना पड़ेगा कि जज साहब ने एक बैलेंस्ड और न्यायसंगत फैसला दिया है। इस फैसले पर राजनीति तो होगी ही पर मुझे नहीं लगता कि इसके तथ्यों और निष्पक्षता पर कोई विवाद हो। सबसे पहले आपको बताएं कि बटला हाउस मुठभेड़ थी क्या? 13 सितम्बर, 2008 को दिल्ली के करोलबाग, कनॉट प्लेस, इंडिया  गेट व ग्रेटर कैलाश में सीरियल बम धमाके हुए थे। इन बम धमाकों में 26 लोग मारे गए थे जबकि 13 घायल हुए थे। दिल्ली पुलिस ने जांच में पाया कि बम ब्लास्ट को आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन ने अंजाम दिया। घटना के छह दिन बाद 19 सितम्बर को दिल्ली पुलिस को सूचना मिली कि इंडियन मुजाहिद्दीन के पांच आतंकवादी बटला हाउस स्थित मकान एल-18 में छिपे हुए हैं। सूचना के आधार पर इंस्पेक्टर मोहन चन्द शर्मा की अगुवाई में सात सदस्यीय टीम जब छापा मारने पहुंची तो मकान के प्रथम तल पर बने फ्लैट में मौजूद पांच आतंकियों ने पुलिसकर्मियों पर गोली चलानी शुरू कर दी। एनकाउंटर में इंस्पेक्टर मोहन चन्द शर्मा सहित दो पुलिसकर्मी घायल हो गए। जवाबी फायरिंग में पुलिस ने दो आतंकी आतिफ अमीन और मोहम्मद साजिद को मार दिया जबकि दो आतंकी मोहम्मद सैफ और जशीन को गिरफ्तार कर लिया गया था लेकिन एक आतंकी भागने में सफल रहा। एनकाउंटर में घायल मोहन चन्द शर्मा को होली फैमिली अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। पुलिस के अनुसार एनकाउंटर के बाद शहजाद उस फ्लैट से बचकर भाग गया था। पुलिस को शहजाद का पता आतंकी मोहम्मद सैफ से चला और उसे गिरफ्तार कर लिया गया। इस मामले में एक अन्य आरोपी जुनैद को पकड़ा नहीं जा सका और उसे भगौड़ा अपराधी घोषित कर दिया गया। शहजाद को एक जनवरी 2010 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले से गिरफ्तार किया जा सका और यहीं से आरम्भ हुई इस केस में राजनीति। चूंकि मामला अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़ा था और एक बार फिर आजमगढ़ का नाम इस कांड से जुड़ा, इसलिए दिग्विजय सिंह सहित कांग्रेसी नेताओं ने सभाओं में इसे फर्जी करार देने के साथ-साथ यहां तक कह दिया कि इंस्पेक्टर मोहन चन्द शर्मा को उनके साथियों (पुलिस) ने ही मारा है। चुनावी सभाओं में भी इस मसले को उठाते रहे, एक वर्तमान मंत्री सलमान खुर्शीद ने तो एक सभा में यहां तक कहा कि इस फर्जी मुठभेड़ की तस्वीरें देखकर सोनिया गांधी की आंखों में आंसू तक आ गए। माननीय जज शास्त्राr ने अपने फैसले में एक तरह से बिना कहे इस पर सियासत करने वालों को करारा जवाब दिया है। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने 2009 के लोकसभा और 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले मुठभेड़ को फर्जी करार दिया था। सपा के पूर्व नेता अमर सिंह पार्टी के मौजूदा महासचिव रामगोपाल यादव के साथ बटला हाउस गए थे। उन्होंने भी मुठभेड़ को फर्जी बताया। बटला हाउस पर पार्टी नेताओं की सियासत से कांग्रेस किनारा तो करती है पर कभी भी उनके मुंह पर ताला लगाने की कोशिश भी नहीं की। दिग्विजय सिंह तो फैसले के बाद भी कह रहे हैं कि मैं आज भी अपने बयान पर कायम हूं। हैरानी की बात तो यह है कि संप्रग सरकार के वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम ने फैसले के बाद कहा कि बटला हाउस एनकाउंटर फर्जी नहीं था। बतौर गृहमंत्री इस मामले की समीक्षा करने वाले चिदम्बरम के मुताबिक एनकाउंटर की असलियत पर सवाल नहीं खड़ा किया जा सकता। जज शास्त्राr ने साफ कहा कि एनकाउंटर फर्जी नहीं था। सीरियल ब्लास्ट के बाद 19 सितम्बर 2008 को बटला हाउस एनकाउंटर को जज साहब ने सही बताया है। करीब 70 गवाहों और सबूतों को देखते हुए कोर्ट ने इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकी शहजाद उर्प पप्पू को इंस्पेक्टर मोहन चन्द शर्मा की हत्या का दोषी माना। अब 29 जुलाई को सजा पर बहस होगी। कोर्ट ने आईपीसी की धारा 302, 307, 186 और 120बी के तहत दोषी करार देते हुए कहा कि शहजाद ने गोली मारकर इंस्पेक्टर मोहन चन्द शर्मा की हत्या की, यही नहीं उसने बाकी पुलिस वालों पर भी गोलियां चलाईं और हैड कांस्टेबल बलवंत सिंह की हत्या की भी कोशिश की थी। शहजाद को दोषी करार देते हुए अदालत ने कहा कि वह इंडियन मुजाहिद्दीन का सदस्य था या नहीं, इससे मामले पर कोई फर्प नहीं पड़ता है। वह इस मामले का दोषी है और यही हकीकत है। जज साहब ने कहा कि अदालत के सामने इस बात का कोई सबूत नहीं है जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि वह आईएम का सदस्य है। जज साहब ने दिल्ली पुलिस को भी नहीं बख्शा। फैसले में अदालत ने कहा कि इंस्पेक्टर मोहन चन्द शर्मा ने रेड करने के समय बुलैट प्रूफ जैकेट क्यों नहीं पहन रखी थी? यह अचरज का विषय है। उन्हें इसका अंजाम पता था, फिर ऐसी क्या मजबूरी थी कि उन्होंने सुरक्षा जैकेट पहनी ही नहीं। यह और कुछ नहीं बल्कि गैर-पेशेवर रवैया था। जज शास्त्राr ने कहा कि पुलिस के पास पहले से सूचना थी कि अमुक जगह पर कुछ आतंकी छिपे हुए हैं। ऐसे में वहां जाने से पहले योजना बनाई गई होगी पर यह कैसी योजना बनी कि सात पुलिस की टीम में दो के पास कोई हथियार ही नहीं थे, हालांकि अदालत ने कहा कि पुलिस हथियार के साथ जाए या खाली हाथ जाए, लोगों को उनकी मदद करनी चाहिए, लेकिन यहां पर गोली चला दी गई। इसे कभी भी सही नहीं ठहराया जा सकता है। ऐसे बहुचर्चित, सियासी बनाए गए केस में ऐसा कोई फैसला देना जो न्यायसंगत, तर्पसंगत हो, सभी पक्षों को स्वीकार्य हो आसान काम नहीं था पर जज शास्त्राr के फैसले से जहां दिल्ली पुलिस ने राहत की सांस ली है वहीं शहजाद के गांव वाले दुखी तो नजर आए लेकिन किसी ने फैसले पर टिप्पणी नहीं की। गांव वालों ने आमतौर पर कोर्ट पर भरोसा जताया। जहां तक मुस्लिम समुदाय की राय की बात है तो इसमें भी मिलाजुला रिएक्शन आया है। जामिया इलाके में खासतौर से बटला हाउस के आसपास लोग सुबह से ही टीवी से चिपके रहे। जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के शिक्षक और धर्मगुरुओं ने जहां इस फैसले में दिल्ली पुलिस की मनगढ़ंत दलील की झलक करार दिया वहीं कई लोगों का कहना है कि इस फैसले का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि किसी व्यक्ति को अगर निचली अदालत से इंसाफ नहीं मिला तो वह ऊपरी अदालतों में जा सकता है। कोर्ट के इस फैसले के बाद फिर आतंकवाद और आजमगढ़ का नाम जुड़ गया है। साकेत कोर्ट के एडिशनल सेशन जज राजेन्द्र कुमार शास्त्राr मेरी राय में तो बधाई के पात्र हैं कि इतने मुश्किल केस में उन्होंने सभी से इंसाफ करने का प्रयास किया है।
-अनिल नरेन्द्र

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