Published on 11 July,
2013
अनिल नरेन्द्र
एक तरफ जहां विपक्षी दलों के बीच प्रधानमंत्री पद के
लिए अफरातफरी मची है वहीं दूसरी ओर कांग्रेस लगातार तीसरी बार सत्ता में आने के लिए
खामोशी के साथ अपनी चुनावी तैयारियों को अंतिम रूप दे रही है। इसके लिए पार्टी ने यूपीए-3
के लिए एक ब्लूप्रिंट भी तैयार कर लिया है। झारखंड में पार्टी सरकार बनाने जा रही है।
दरअसल झारखंड में कांग्रेस सिर्प सरकार नहीं बना रही बल्कि यह आगामी लोकसभा चुनाव की
जमीन तैयार कर रही है। एक तो हेमंत सोरेन को सीएम बनाने के बदले कांग्रेस ने झारखंड
की कुल 14 सीटों में से 10 अपने लिए झटक ली हैं जिसमें वह दो सीटें लालू प्रसाद यादव
की राजद के लिए छोड़ेगी। यह तीनों दलों ने 2004 में मिलकर चुनाव लड़ा था और 19 में
से 13 सीटें जीती थीं। बिहार में कांग्रेस दो नावों की सवारी कर रही है। यदि चारा घोटाले
में अदालत लालू को जेल भेज देती है तो फिर वह नीतीश कुमार की जद (यू) के साथ चुनावी
समझौता कर सकती है यदि बात नहीं बनी तो लालू-पासवान तो हैं ही। तमिलनाडु में द्रमुक
और तृणमूल के साथ फिर पींगें बढ़ाने की हर सम्भव कोशिश हो रही है। हाल ही में कांग्रेस
ने द्रमुक सुप्रीमो करुणानिधि की बेटी कनिमोझी को राज्यसभा में लाने के लिए अपने चार
विधायकों का समर्थन दिया। बदले में द्रमुक ने भी नरमी का संकेत देते हुए कांग्रेस को
खाद्य सुरक्षा अध्यादेश पर संसद में समर्थन देने का वचन दिया है। कांग्रेसी ब्लूप्रिंट
के अनुसार यूपीए-3 के दो भाग होंगे। पहला कांग्रेस कुछ दलों के साथ चुनाव पूर्व गठजोड़
करेगी और उनके साथ मिलकर ही चुनाव लड़ेगी। इन दलों में एनसीपी, राष्ट्रीय लोकदल, लोक
जनशक्ति पार्टी, राजद और अगर नीतीश से बात बन गई तो जेडीयू के साथ चुनाव लड़ेगी। झारखंड
में झारखंड मुक्ति मोर्चा, जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस, केरल में यूडीएफ और तमिलनाडु
में द्रमुक उसका चुनाव पूर्व गठबंधन हो सकता है। इसके बाद चुनाव बाद जो दल उसके साथ
आ सकते हैं उनमें वामदलों या तृणमूल में से एक, राजद या जद (यू) में से एक हो सकता
है। तीसरा मोर्चा न बनने की स्थिति में वामदल, सपा और बसपा जैसे दलों का उसे बाहरी
समर्थन भी मिल सकता है जैसा कि अभी मिल रहा है। ऐसे में कांग्रेस के सहयोगी और समर्थक
दलों की अच्छी-खासी फौज तैयार हो सकती है जो चुनाव में उसके खराब प्रदर्शन के बावजूद
भी कांग्रेस को फिर से सत्ता तक लाने में मदद कर सकते हैं। कांग्रेस की रणनीति के दो
बड़े मुद्दे हैं नरेन्द्र मोदी और खाद्य सुरक्षा कार्ड। नरेन्द्र मोदी को न्यूट्रलाइज
करने के लिए कांग्रेस का उद्देश्य मुस्लिम वोटों का अपने पक्ष में ध्रुवीकरण कराना
है। मोदी के डर से कांग्रेस को उम्मीद है कि मुस्लिम वोटें अपने आप उसकी झोली में आ
जाएंगी। जिस जल्दबाजी में खाद्य सुरक्षा अध्यादेश
कांग्रेस लाई है उससे ज्यादा तेजी से इसे भुनाने के लिए सरकार और संगठन के स्तर
पर अब तक का सबसे बड़ा प्रचार अभियान छेड़ने की तैयारी है। इन तैयारियों से लोकसभा
चुनाव इसी साल के आखिर में कराने के आसार बढ़ गए हैं। सूत्रों के मुताबिक सूचना प्रसारण
मंत्रालय जल्दी खाद्य सुरक्षा अभियान पर बड़ा अभियान छेड़ेगा। इसी तरह पार्टी के प्रवक्ताओं
को खाद्य मंत्री केवी थॉमस इस कानून की बारीकियों
और आम आदमी को मिलने वाले फायदे गिनवाएंगे। इसके बाद प्रदेश, जिला और ब्लॉक स्तर पर
खाद्य सुरक्षा कानून के बारे में कांग्रेस नेताओं को बताया जाएगा। अनुमान है कि देश
की लगभग 67 फीसदी आबादी को खाद्य सुरक्षा का लाभ पहुंच सकता है। दरअसल कांग्रेस मान
रही है कि भाजपा ने जिस तरह से कट्टर हिन्दुत्व का कार्ड खेल मोदी को आगे किया है।
उससे देश में मुस्लिम मतदाताओं को अपनी तरफ किया जा सकता है। कांग्रेस और सरकार इस
मोर्चे पर पहले से ही सक्रिय है। लेकिन महंगाई व भ्रष्टाचार जैसी असफलताओं की काट और
समाज के सबसे निचले तबके को अपने साथ जोड़ने के लिए मनरेगा और किसान कर्ज माफी जैसे
किसी ट्रंप कार्ड की जरूरत भी सरकार शिद्दत से महसूस कर रही थी। इसीलिए संसद सत्र सिर
पर होने के बावजूद सरकार अध्यादेश के जरिए खाद्य सुरक्षा कानून लाई। मकसद साफ था कि
इसका श्रेय किसी और को न लेने दिया जाए। विपक्ष अब अगर इसका विरोध करता है तो उसे कांग्रेस
गरीब तक पहुंचाएगी। सरकार ने हालांकि स्पष्ट
कर दिया है कि इसे लागू करने में वक्त लगेगा। इसे छह महीने से ज्यादा का समय लग सकता
है। पार्टी खाद्य सुरक्षा की झलक गरीब तबके को दिखाकर उसे इस बात के लिए भी तैयार कर
सकती है कि अगली सरकार भी संप्रग की बने तभी यह ठीक से लागू हो सकेगा। इसके लिए निचले
स्तर पर कार्यकर्ताओं को गरीबों तक खासतौर से यह
बात पहुंचानी होगी कि यदि संप्रग सरकार नहीं बनी तो उनकी खाद्य सुरक्षा गारंटी
को खतरा है।
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