Saturday, 6 July 2013

मुठभेड़ तो फर्जी पर इशरत क्या लश्कर आतंकी थी, मारने का मकसद क्या था?


 Published on 6 July, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
इशरत जहाँ एनकाउंटर मामले में पूरे देश की नजर टिकी हुई है। इस मुठभेड़ के नौ साल बाद बुधवार को अहमदाबाद के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एचएस खुटवड़ की अदालत में सीबीआई ने 179 गवाहों के बयानों सहित 1500 से ज्यादा पन्नों का आरोप पत्र पेश किया जिसमें कहा गया है कि इशरत और उसके तीन साथियों जावेद शेख उर्प प्रणेश पिल्लई, अमजद अली और जाशीन जौहर की अगवा कर सोची-समझी साजिश के तहत हत्या की गई। सीबीआई ने 15 जून 2004 की सुबह हुए इस फर्जी एनकाउंटर के लिए निलंबित डीआईजी डीजी बंजारा सहित गुजरात पुलिस के सात अधिकारियों को अपहरण और हत्या का आरोपी बनाया है। चार्जशीट में इस फर्जी मुठभेड़ को गुजरात पुलिस और सब्सिडयरी इंटेलीजेंस ब्यूरो (एसआईबी) की मिलीभगत का परिणाम बताया गया है। सीबीआई की इस चार्जशीट को गुजरात की नरेन्द्र मोदी सरकार को असहज करने वाला माना जा रहा है। इस केस के तीन-चार महत्वपूर्ण पहलू हैं। यह दुर्भाग्य की  बात है कि राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए देश की दो प्रमुख एजेंसियों आईबी और सीबीआई को आमने-सामने खड़ा करने का प्रयास किया गया। यह मामला सीधा देश की सुरक्षा से जुड़ता है। अगर आईबी के इनपुट पर जांच होनी शुरू हो गई तो हमारे पास गुप्त सूचनाएं आएंगी कैसे? हमें अपनी गुप्तचर संस्थाओं की सूचनाओं पर विश्वास करना होगा नहीं तो काम चलाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। इस दिशा से हर पुलिस वाले का मनोबल गिरेगा जिसका सीधा असर कानून-व्यवस्था पर पड़ेगा। केंद्र सरकार और गृह मंत्रालय या जिस किसी ने भी इसे राजनीतिक रूप देने का जबरन प्रयास किया है उसने देश को भारी नुकसान पहुंचाया है। दूसरा पहलू यह है कि एनकाउंटर क्या फर्जी था ? अभी तक के प्राप्त संकेतों और जांच रिपोर्टों, गवाहों के बयानों इत्यादि से लगता तो यही है कि एनकाउंटर फर्जी था और इसमें गुजरात पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे। सीबीआई ने चार्जशीट में सारी साजिश का खुलासा किया है। इस बात पर भी हमेशा विवाद रहा है कि अगर एक नामी आतंकवादी है तो क्या उसका एनकाउंटर जायज है? तीसरा महत्वपूर्ण पहलू जो सबसे ज्यादा अहमियत रखता है वह है कि क्या इशरत जहाँ आतंकवादी थी या नहीं? उसके साथी आतंकवादी थे या नहीं? अहमदाबाद की विशेष अदालत में दायर चार्जशीट में विवादास्पद आईबी अधिकारी राजेन्द्र कुमार का नाम आरोपी के तौर पर शामिल नहीं किया गया है। चार्जशीट के मुताबिक राजेन्द्र कुमार की इस फर्जी एनकाउंटर की साजिश में भूमिका की जांच चल रही है। चार्जशीट में इशरत जहाँ और उसके साथियों के आतंकवादी होने या नहीं होने पर कोई टिप्पणी नहीं की गई है। इस पहली चार्जशीट में हत्या के पीछे के मकसद यानि मोटिव की चर्चा भी नहीं की गई है। साथ ही इसमें किसी राजनेता का नाम भी शामिल नहीं किया गया है। खास बात यह है कि सीबीआई ने चार्जशीट में गुजरात पुलिस के इन अधिकारियों के साथ आईबी की भूमिका पर भी गम्भीर उंगुली उठाई है। इस आधी-अधूरी चार्जशीट में न तो यह बताया गया है कि मारे जाने वाले चारों का आतंकवाद से कोई संबंध था या नहीं और न ही बताया गया कि फर्जी मुठभेड़ का मकसद क्या था? हर हत्या के पीछे पहला सवाल होता है मोटिव। यहां मोटिव का कोई जिक्र तक नहीं किया गया। सीबीआई ने चार्जशीट में मुंबई के पास मुंब्रा की रहने वाली इशरत जहाँ और उसके साथियों के आतंकी होने या नहीं होने पर कुछ भी नहीं कहा है। सीबीआई अधिकारी ने सफाई यह दी कि हाई कोर्ट ने उसे सिर्प यह जांच करने का आदेश दिया है कि मुठभेड़ फर्जी थी या असली? इस दायरे से आगे जाकर जांच करने का अधिकार उसके पास नहीं है। इशरत जहाँ मामले में तो इस सरकार ने ऐसा नमूना पेश किया है जो सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा को ही आहत करने के लिए पर्याप्त है। पहले तो इशरत मामले में कुख्यात आतंकियों से मुठभेड़ पर विवाद खड़ा करवाया फिर इशरत की पृष्ठभूमि पर सवालिया निशान लगाया गया। फिर सीबीआई की जांच को सियासी फायदे के लिए एक ऐसी दिशा दे दी गई कि इशरत की पृष्ठभूमि कोई मायने ही नहीं रखती। अब पूरी तरह से आतंकी गतिविधियों की जानकारी देने वाले और आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने वाली दोनों एजेंसियों के संबंधित अधिकारी ही फंस गए। इशरत जहाँ मुठभेड़ के बाद दूसरे आतंकियों के परिवार मानवाधिकार आयोग जाते हैं उसी तरह इशरत के परिवार वाले भी गए थे। इसके बाद एक मजिस्ट्रेट ने जांच करके मुठभेड़ को विवादास्पद बता दिया। मामला हाई कोर्ट में गया और मुठभेड़ मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की गई। गुजरात सरकार ने हाई कोर्ट में दिए अपने जवाब में कहा कि इशरत एक आतंकी थी और उसके साथी भी आतंकी थे। गुजरात पुलिस के इंटेलीजेंस ब्यूरो ने सूचना दी कि वह लश्कर-ए-तैयबा के निर्देश पर नरेन्द्र मोदी और लाल कृष्ण आडवाणी की हत्या की साजिश को अंजाम देने वाले हैं। 6 अगस्त 2009 को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने गुजरात सरकार के पक्ष का समर्थन करते हुए हाई कोर्ट में शपथ पत्र दाखिल कर दिया। गुजरात सरकार और केंद्रीय गृह मंत्रालय दोनों ही इस मामले को बन्द करना चाहते थे किन्तु दो महीने बाद ही तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिदम्बरम ने इशरत मामले को सियासी रंग दे दिया और हाई कोर्ट में दूसरा शपथ पत्र देकर यह कहा कि इशरत और उसके साथियों के आतंकी होने का कोई सबूत नहीं है। सीबीआई की जांच आगे बढ़ी तो केंद्र सरकार को लगा कि इसमें नरेन्द्र मोदी  और अमित शाह को भी लपेटा जा सकता है। इसके मद्देनजर सीबीआई की जांच की दिशा ही बदलनी पड़ी और वह यह साबित करने में जुट गई कि इशरत और उसके साथी आतंकी नहीं बल्कि इत्र के व्यापारी थे जिन्हें गुजरात पुलिस ने मार डाला। मजे की बात यह है कि अब सीबीआई गृह मंत्रालय से उन दस्तावेजों की  मांग कर रही है जिनमें इशरत व साथियों का जिक्र है। दस्तावेज के मुताबिक 15 जून 2004 को एक मुठभेड़ में गुजरात पुलिस की अपराध शाखा ने जिन चार व्यक्तियों को मार गिराया था उनके नाम थे जाशीन जौहर उर्प अब्दुल नशीद, अमजद अली उर्प सलीम,  जावेद गुलाम शेख उर्प प्रणेश कुमार पिल्लई और इशरत जहाँ पुत्री शमीमा कौसर। मारे गए  लोगों में से दो जाशीन जौहर और अमजद अली पाकिस्तानी नागरिक थे। जाशीन के बारे में कहा जाता है कि वह गुलाम कश्मीर से जम्मू-कश्मीर में घुसा और उधमपुर में फर्जी पहचान पत्र बनवा लिया था। अमजद अली को लश्कर ने महाराष्ट्र व गुजरात में आतंकी गतिविधियों का दायित्व सौंपा था। गुलाम शेख जो 1994 में दुबई गया जहां प्रलोभन देकर उसका धर्म परिवर्तन  किया और लश्कर ने उसे अपने संरक्षण में लिया। दस्तावेजी सबूत इस बात के भी हैं कि लश्कर ने जावेद और इशरत को एक साथ कर दिया था और इन दोनों को पति-पत्नी की तरह देश के विभिन्न स्थानों का दौरा भी करवाया। अपने दौरे के दौरान यह लोग इत्र का व्यापारी होने का बहाना बनाते थे। इन दोनों के लखनऊ, फैजाबाद और अहमदाबाद साथ-साथ दौरा करने के प्रमाण हैं। गृह मंत्रालय ने 2009 में अपनी इन्हीं दस्तावेजों के प्रमाणों के आधार पर गुजरात हाई कोर्ट में कहा था कि इशरत और जावेद दोनों लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी थे। बहरहाल मुठभेड़ के बाद ही लाहौर से प्रकाशित `गजवा टाइम्स' जो लश्कर का समचार पत्र है ने इस बात को स्वीकार किया कि इशरत जहाँ लश्कर की कार्यकर्ता थी, जिसे भारतीय पुलिस ने मार गिराया। अमेरिकी सरकार ने डेविड हैडली से पूछताछ के बाद भारत सरकार को एक औपचारिक पत्र भेजा था जिसमें स्पष्ट रूप से लिखा था कि इशरत जहां एक महिला सुसाइड बाम्बर थी, जिसे मुजल्लिम ने भर्ती किया था। अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई ने यह भी स्पष्ट किया कि लश्कर के इस दस्ते की योजना थी कि सोमनाथ मंदिर, अक्षरधाम और विनायक मंदिर पर हमले किए जाएं। वह सारे प्रमाण दस्तावेजी हैं किन्तु गृह मंत्रालय ने इसके बावजूद गुजरात हाई कोर्ट में गलत बयान दिया सिर्प इसलिए कि जांच सीबीआई को मिल जाए और जांच की सारी दिशा ही बदल जाए। अब जब सीबीआई की जांच टीम केंद्रीय गृह मंत्रालय से वही दस्तावेज मांग रही है तो गृह मंत्रालय के होश उड़ गए हैं।

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