प्रकाशित: 21 जुलाई 2013
अगर मुंबई बिल्डरों, माफियाओं, राजनीतिक दबंगों, बॉलीवुड, झोपड़पट्टियों का शहर बना तो मुंबई बार बालाओं के लिए भी मशहूर हुआ। कई फिल्मों में बार बालाओं के सीन दिखाए गए। मुंबई के डांस बार का गजब का आकर्षण था। दुनियाभर में यह लोकप्रिय था। बार में घूमने आने वाले लोगों के लिए शान और पर्यटन की बात होती थी। यहां की फिल्मों को डांस बार का सेट लगाकर फिल्माया जाता रहा है। लेकिन मधुर भंडारकर के लिए यह एक सबजैक्ट बन गया। सब्जैक्ट में बार की असलियत और आकर्षण दोनों को उकेरा गया। एक लड़की तब्बू कैसे बार डांसर बनती है। इसकी कहानी दर्शाई गई जो काफी संवेदनशील थी। फिल्म अपने लिमिटेड क्षेत्र में हिट हुई। बार डांसर शगुफ्ता रफीक एक मिसाल हैं जिसने मुंबई और दुबई के बारों में काम करने से लेकर फिल्में लिखने तक का सफर तय किया है। शगुफ्ता इस समय महेश भट्ट की विशेष फिल्म्स की प्रमुख क्रिप्ट राइटर है। शगुफ्ता `वो लम्हे' 2006 से लेकर हाल में आई आशिकी-2 तक करीब एक दर्जन फिल्में लिख चुकी है। कई बार डांसरों की कहानी माफिया डॉन तक से भी जुड़ी है। दरअसल डॉन इनकी खूबसूरती पर फिदा हो जाते थे। कहते हैं कि सपना नाम की एक डांसर पर दाउद फिदा हो गया था। उसके बाद पुलिस की डायरी में आरजू नाम की डांसर का भी रिकार्ड तैयार हुआ। मगर सबसे ज्यादा नाम तरन्नुम का हुआ। जुहू के दीपा बार में डांस करने वाली तरन्नुम को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते थे। 2005 में पुलिस ने उसे क्रिकेट सट्टेबाजी की घटना में गिरफ्तार किया था। उसके पास काफी सम्पत्ति पाई गई थी। पुलिस का कहना था कि डांस बार एक संगठित उद्योग बन चुका था। इसमें काला और सफेद दोनों तरह से पैसे आते थे। अंडरवर्ल्ड उन बारों का इस्तेमाल अपने हितों के लिए करता था। मुंबई में करीब 43 साल पहले डांस बार का चलन शुरू हुआ था। 1970 के करीब महाराष्ट्र के गरीब खेतिहर इलाकों से आने वाली युवतियों पर बार मालिकों की नजर पड़ी। उन्होंने इन युवतियों को अपने बार में शराब परोसने के काम पर रख लिया। बाद में संगीत भी जुड़ गया और डांस भी। 1984 में महाराष्ट्र में पंजीकृत बारों की संख्या मात्र 24 थी जो 2005 में जब महाराष्ट्र में डांस बार पर रोक लगी तो प्रदेश में करीब 2500 डांस बारों में एक लाख बार बालाएं काम कर रही थीं। पाबंदी लगने से यह एक लाख बार डांसर बेरोजगार हो गईं। महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि डांस बार की आड़ में वेश्यावृत्ति की शिकायतें बढ़ीं। पूरे प्रदेश में अश्लीलता का माहौल बन गया। इसका युवाओं पर खासतौर पर बुरा प्रभाव पड़ रहा था। मात्र 347 डांस बारों के पास लाइसेंस थे जबकि चल रहे थे 2500। इन डांस बारों की वजह से कानून व्यवस्था प्रभावित हो रही थी। दूसरी ओर डांसरों का कहना है कि मनोरंजन के लिए नृत्य करना अपराध नहीं है। नृत्य एक तरह से व्यक्ति की आजादी है, इससे किसी को वंचित करना गैर कानूनी है। अपने तरीके से जीवकोपार्जन का अधिकार सबको है। अगर डांस बारों से अश्लीलता फैल रही थी तो प्रतिबंध के बाद सूबे में अश्लीलता और अन्य अपराधों में कमी क्यों नहीं आई? करीब 68 फीसदी बार बालाएं ऐसी थीं जो पूरे परिवार का आर्थिक बोझ उठा रही थीं। बेरोजगारी के कारण कई बार बालाओं ने खुदकुशी तक कर ली। राज्य में एक लाख के करीब बार डांसरों के पुनर्वास के लिए सरकार के पास कोई वैकल्पिक समाधान नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने डांस बारों पर पाबंदी हटाते हुए अपने फैसले में यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की जो मायने रखती है कि भला आप किसी की रोटी-रोजी का अधिकार कैसे छीन सकते हैं? अगर बार डांसर गलत हैं तो इन्हें स्टार होटलों में चलाने की इजाजत किस आधार पर दी गई। संविधान ने तो सबको बराबर का अधिकार दिया है। अदालत ने कहा कि पुलिस एक्ट में बदलाव कर डांस बारों पर प्रतिबंध लगाना सरकार का गलत फैसला था। बेहतर हो कि सरकार कानून और व्यवस्था की स्थिति ठीक रखने का उपाय करे। अश्लीलता पर रोक के लिए सरकार हर क्षेत्र में अलग से पहल करे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से डांस बारों की बालाओं में खुशी की लहर दौड़ गई है। वह खुशी मना रही हैं, मिठाइयां बांट रही हैं पर महाराष्ट्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की सोच रही है। देखें, मुंबई के डांस बार क्या फिर गुलजार होंगे?
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