Tuesday 30 July 2013

ओबामा को पत्र ः मोदी से नफरत की इंतहा

प्रकाशित: 30 जुलाई 2013
नरेन्द्र मोदी क्या सचमुच इतने बड़े खलनायक हैं कि उन्हें हटाने के लिए देश की इज्जत, सप्रभुता और अस्तित्व तक को कुछ सांसदों ने दाव पर लगा दिया जब उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को पत्र लिख डाला कि मोदी को अमेरिका का वीजा न दिया जाए। इस बहस में नहीं जाना चाहता कि इस पत्र के कितने फर्जी हस्ताक्षर किए गए पर यह पत्र राजनीतिक क्षुद्रता का परिचायक जरूर है। अमेरिका तक में हैरानी जताई गई है कि भारतीय सांसदों ने अपने यहां के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप की अपील अमेरिकी सरकार से क्यों की? एक निर्दलीय सांसद ने मोदी को वीजा न देने संबंधी अपील पर विभिन्न पार्टियों के सांसदों से हस्ताक्षर कराए थे जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को फैक्स के जरिए भेज दिया गया। अब कुछ सांसदों का कहना है कि उन्होंने इस पत्र पर हस्ताक्षर ही नहीं किए। किसी व्यक्ति को वीजा देना या न देना यह फैसला अमेरिका को करना है इस प्रकार से दबाव डालने से देश की ही बेइज्जती होती है। यह तथ्य सामने आना तो और भी शर्मनाक है कि मोदी के खिलाफ लिखे ओबामा के इस पत्र में फर्जीवाड़ा करने से भी भेजने वालों ने गुरेज नहीं किया। जिस तरह से करीब 10 सांसदों ने साफ इंकार किया है कि उन्होंने हस्ताक्षर नहीं किए उससे तो यही पता चलता है कि मोदी विरोधियों ने छल-कपट का सहारा लेने से भी संकोच नहीं किया। इस छल-कपट से संसद के साथ-साथ भारतीय लोकतंत्र का भी अपमान हुआ है। यह कितना दयनीय है कि अमेरिका और साथ ही दुनिया को यह संदेश चला गया कि भारत में ऐसे भी सांसद हैं जो अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करने के लिए धोखाधड़ी से भी बाज नहीं आते। नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं या नहीं यह तो दूर की कौड़ी है लेकिन इसकी आड़ में क्या देश के माननीय सांसदों को ऐसे आचरण की इजाजत दी जा सकती है? खुद अमेरिकी अखबार `वाशिंगटन पोस्ट' इस पत्र पर हैरत जाहिर कर रहा है कि लम्बे अरसे तक अमेरिका से शीतयुद्ध की तपिश झेल चुके भारतीय सांसद ओबामा को ऐसे आग्रह का मन कैसे बना पाए होंगे। तब यह पत्र क्या अमेरिका में बसे हिन्दुओं और मुसलमानों की राजनीतिक होड़ का नतीजा है जिसमें हमारे सांसदों ने भी अपनी रोटी सेंकने का मौका तलाश लिया है। इस पत्र को लीक करने के पीछे इंडियन-अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल का नाम आ रहा है जिसने अमेरिका में मौजूद भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के मोदी अभियान की टक्कर में यह हथियार चलाया है। इस पत्र को दूसरी एक और घटना से भी जोड़ा जा रहा है जिसमें 27 अमेरिकी सांसदों ने अपने विदेश मंत्री जॉन केरी को पत्र लिखकर पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अमानवीय अत्याचारों पर गम्भीर चिन्ता जाहिर की है। माकपा नेता सीताराम येचुरी की प्रतिक्रिया सही थी। उन्होंने पत्र पर खुद हस्ताक्षर न करने का तर्प देते हुए कहा कि मैं नहीं चाहता कि कोई देश के अंदरुनी मामले में हस्तक्षेप करे। इन सांसदों ने मानवाधिकारों की दुहाई देते हुए अमेरिका से मोदी को वीजा न देने की अपील की है। यही पत्र पिछले साल के अंत में भी सांसद अमेरिका को लिख चुके हैं। लेकिन राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में वह यह शायद भूल गए कि ऐसा करके वह भारत के आंतरिक मामले में अमेरिका को चौधरी बनाने का मौका दे रहे हैं। अमेरिका की फितरत जानने वाले समझ सकते हैं कि सिलसिला फिर यहीं तक रुकने वाला नहीं है।

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