Wednesday 31 July 2013

गलती हुड़दंगी बाइकर्स की, बदनामी पुलिस की

प्रकाशित: 31 जुलाई 2013
राष्ट्रीय राजधानी के अति सुरक्षित इलाके में शनिवार देर रात बाइकर्स के हुड़दंग व पथराव के बाद पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी। इससे बाइक पर स्टंट करने वाले एक बाइकर करण पांडे की मौत हो गई जबकि उसका दोस्त पुनीत शर्मा जख्मी हो गया। नई दिल्ली जिला पुलिस आयुक्त एबीएस त्यागी का कहना है कि शनिवार रात करीब 2.07 बजे विंडसर प्लेस के पास तैनात पीसीआर ने नई दिल्ली जिला कंट्रोल रूम को शंग्रीला होटल के पास 30-35 बाइकर्स के हुड़दंग मचाने की सूचना दी। सूचना मिलते ही दूसरी पीसीआर में तैनात नई दिल्ली जिला के पीसीआर सुपरवाइजर रजनीश कुमार वहां पहुंच गए। पुलिस ने बाइकर्स को स्टंट करने से रोका जवाब में उन लोगों ने पथराव शुरू कर दिया। इंस्पेक्टर परमार ने माइक से बाइकर्स को समझाने का प्रयास किया लेकिन बाइकर्स नहीं माने। इसके बाद इंस्पेक्टर ने अपने सर्विस रिवाल्वर से हवा में दो फायर किए। इस पर भी जब बाइकर्स का हुड़दंग नहीं थमा तो इंस्पेक्टर ने एक बाइक के पिछले टायर को लक्ष्य बनाकर गोली चलाई। तभी बाइक चला रहे पुनीत शर्मा (19) ने स्टंट करते हुए बाइक को ऊपर हवा में उठा दिया। इससे गोली बाइक पर पीछे बैठे करण पांडे (18) की कमर में जा लगी और शरीर से पार होकर पुनीत की पीठ से रगड़ खाकर निकल गई। दोनों युवकों को आरएमएल अस्पताल में लाया गया, जहां डाक्टरों ने करण को मृत घोषित कर दिया। पुनीत की हालत खतरे से बाहर बताई गई। करण घर का इकलौता बेटा था। वह मालवीय नगर में रहता था। एक प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार शनिवार रात को वह स्मोकिंग करने बाहर निकला था और ली मैरिडियन होटल के सामने खड़ा था। कुछ बाइकर्स वहीं गोल चक्कर पर स्टंट कर रहे थे। मैंने उनसे कुछ नहीं कहा, क्योंकि ऐसा अकसर होता था। मगर कुछ ही देर बाद मैंने देखा कि बाइकर्स के पीछे पीसीआर दौड़ रही है। कुछ बाइकर्स पुलिस पर पथराव कर रहे थे। मामला गम्भीर होते देख मैं अपने घर वापस आ गया। आखिरकार वही हुआ जो नहीं होना चाहिए था। पहले कई बार दी गई चेतावनी, चालान और बाइक जब्ती के बाद भी कानून व्यवस्था का मखौल उड़ाते हुए एक बाइकर करण पांडे पुलिस की गोली का शिकार हो गया। महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि फायरिंग सही थी या गलत और क्या पुलिस एक्शन गलत था? सुप्रीम कोर्ट के वकील डीबी गोस्वामी का कहना है कि पुलिस का एक्शन कानून की नजर में सही है। ट्रैफिक के बीच यदि कोई बाइकर इस तरह के खतरनाक स्टंट दिखाता है तो वह दूसरे लोगों की जान को भी खतरे में डालता है। वह उस वक्त पर तैनात पुलिस वालों की ड्यूटी बनती है कि वह उन्हें रोके। अगर इस कार्रवाई में किसी की जान चली जाती है तो क्राइम के दायरे में नहीं आती। क्रिमिनल मामलों के एक अन्य वकील पूज्य कुमार सिंह के मुताबिक, यह सही है कि पब्लिक प्लेस पर स्टंट दिखाने पर उसके खिलाफ मोटर व्हीकल एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत एक्शन  लिया जा सकता है। इस घटना में पुलिस फायरिंग सही नहीं है। कई टीवी चैनलों पर `दिल्ली पुलिस ने मार डाला' बाइकर्स पर फायरिंग क्यों जैसी हेड लाइंस चलीं, गलती किसकी है यह तो एसडीएम की जांच के बाद ही पता चलेगा लेकिन क्या किसी को कानून व्यवस्था से खिलवाड़ करने की छूट दी जा सकती है? कई बार चेतावनी देने के बावजूद भी यह बाइकर्स नहीं माने। पिछली घटनाओं में हल्का लाठीचार्ज भी किया गया लेकिन फिर भी यह बाइकर्स बाज नहीं आए। कहा जा रहा है कि इनसे निपटने के और भी तरीके थे। चेतावनी, आंसूगैस, वॉटर कैनन और लाठीचार्ज के विकल्प पुलिस के पास मौजूद थे। यह सभी विकल्प भीड़ प्रदर्शन को तितर-बितर करने के लिए होते हैं। यह बाइकर्स किसी राजनीतिक या सामाजिक प्रदर्शन के लिए वहां एकत्रित नहीं हुए थे बल्कि वो तो इधर से उधर एक कोने से उस कोने तक पुलिसकर्मियों को छकाते फिर रहे थे। अंत में पुलिस ने इन्हें काबू करने के लिए एक बाइक के टायर पर गोली चलाई। स्टंट की वजह से वह गोली पीछे बैठे करण पांडे को गलती से जा लगी जिससे उसकी मौत हो गई। यह घटना बच्चों की कारस्तानी से बेपरवाह मां-बाप की कमियों को भी उजागर करती है। मां-बाप को पता तक नहीं होता कि उनका बच्चा इतनी रात को कहां जा रहा है? क्या कर रहा है? दिल्ली पुलिस इस घटना से डिफेंसिंग नहीं है। पुलिस डिपार्टमेंट अब एक्शन के मूड में आ चुका है। शनिवार की घटना के बाद पुलिस ने संसद मार्ग थाने में विभिन्न धाराओं के तहत केस रजिस्टर कर कार्रवाई शुरू कर दी है। हालांकि जिस इंस्पेक्टर की पिस्टल से गोली चली, उसके खिलाफ अभी किसी तरह की कार्रवाई नहीं की गई है। पुलिस अफसरों का कहना है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट और जांच रिपोर्ट आने के बाद ही इंस्पेक्टर के खिलाफ क्या कार्रवाई करनी है तब तय होगा।
-अनिल नरेन्द्र

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