Tuesday 9 July 2013

मामा-भांजे की फूलती दुकान ः सीबीआई ने मुख्य आरोपी को गवाह बना लिया


 Published on 9 July, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
रेल रिश्वत घोटाले में नाम आने के बाद तत्कालीन रेल मंत्री पवन कुमार बंसल को इस्तीफा देना पड़ा था। जांच एजेंसी कांग्रेस ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन यानि सीबीआई ने न सिर्प बंसल को क्लीन चिट ही दे दी बल्कि उन्हें बचाने के लिए सरकारी गवाह बना लिया है। पवन बंसल को सरकारी गवाह बनाने की सीबीआई की चाल का जमकर विरोध हो रहा है। जिस तरह अश्विनी कुमार ने प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय को बचाने के लिए सीबीआई के हल्फनामे में बदलाव किया था, ठीक उसी तरह कथित तौर पर धन के बदले रेलवे बोर्ड के सदस्य को प्रोन्नति मामले में पीएमओ की भूमिका छिपाने के लिए बंसल को बचाने के लिए सीबीआई ने पहले क्लीन चिट दी और बाद में   उन्हें सरकारी गवाह बना लिया। बंसल के जिस आरोपी भांजे विजय सिंघला ने उनके ही बंगले, फोन और नाम का इस्तेमाल कर रेलवे बोर्ड में मनचाहा पद दिलाने के लिए 10 करोड़ की डील की, वही बंसल अब पाक-साफ हैं। यह पचाना आसान नहीं कि सीबीआई की स्वायत्तता संबंधी सवाल ऐसी ही घटनाओं से ज्यादा प्रासंगिक बन जाते हैं,  इसीलिए सीबीआई के रवैये पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। आरोपियों ने भी इस पर सख्त एतराज उठाया है। आरोपियों की तरफ से पेश वकील ने कहा कि जिसे आरोपी बनना चाहिए था, वह गवाह बनकर बाहर आजाद घूम रहा है। 10 करोड़ के रेलवे रिश्वत कांड में आरोपी राहुल यादव, समीर सधीर और सुशील डगा की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान उनके वकील ने कहा कि सीबीआई ने इस केस में जिस दिन गवाह बनाया अदालत को उसी दिन सारे आरोपियों को बरी कर देना चाहिए था। अधिवक्ता एसके शर्मा ने विशेष सीबीआई अदालत के न्यायाधीश स्वर्ण कांत शर्मा से कहा कि सीबीआई ने बंसल को गवाह बनाया है और इन्हें (यादव, सधीर और डगा) को फंसा रही है और जिस व्यक्ति को आरोपी बनाया जाना था उसे मुक्त कर दिया। रिश्वत कांड का मामला सामने आते ही मनमोहन सरकार के कुछ मंत्रियों ने पवन बंसल को निर्दोष घोषित कर दिया था। यहां तक कि तब संसद भी उनके कारण नहीं चल पाई थी, इसलिए सीबीआई का कदम समझ में आता है। वह मंत्री धन्य है जहां उसका घर और कार्यालय भ्रष्टाचार की दुकान बन जाए और उसे पता तक न चले। इस तथ्य से तो कोई इंकार नहीं कर सकता कि मंत्री का सगा भांजा उनके निवास से, उनके फोन का इस्तेमाल कर डीलों को अंजाम देता था। सीबीआई प्रथम दृष्टया इस तथ्य को कैसे खारिज कर सकती है कि मंत्री के समर्थन के बिना इतने बड़े पद पर किसी का प्रमोशन नहीं हो सकता। वैसे भी बंसल का रोल तय करने का काम अदालत का है सीबीआई का नहीं पर अगर बंसल कठघरे में खड़े होते तो सारा भांडा फूट जाता,  इसीलिए उन्हें व उनके आकाओं को बचाने के लिए सीबीआई ने मुख्य आरोपी को ही सरकारी गवाह बना लिया पर अदालतें अब भ्रष्टाचार के मामलों में सक्रिय हो चुकी हैं और देश को इस सरकार, इसकी इन्वेस्टीगेटिंग एजेंसी से भरोसा उठ चुका है। सुप्रीम कोर्ट और अन्य अदालतें ही अब भ्रष्टाचार के मामलों में अंतिम हथियार बची हैं।

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