Friday 26 July 2013

मुलायम पर सीबीआई फंदा हटाने की सरकारी तैयारी

प्रकाशित: 26 जुलाई 2013
कांग्रेस के लिए खाद्य सुरक्षा मुद्दा इतना अहम बन गया है कि इसे पास करवाने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार है। चाहे इस चक्कर में क्यों न इस मामले में पहले से लगते सीबीआई पर सरकारी तोता होने के आरोप सिद्ध हो जाएं? प्राप्त संकेतों से लगता है कि संप्रग सरकार समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव पर मेहरबानी की तैयारी कर रही है। संकेत आ रहे हैं कि मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति की सीबीआई जांच बन्द की जा सकती है। यही नहीं द्रमुक की राज्यसभा सदस्य और 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में आरोपी कनिमोझी के खिलाफ भी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की पकड़ ढीली होने जा रही है। दरअसल खाद्य सुरक्षा जैसे अहम अध्यादेशों को मानसून सत्र में संसद में पास कराने के लिए सरकार को सपा और द्रमुक जैसे दलों के सहयोग की जरूरत है। ऐसे में जांच एजेंसियों के इन दोनों के खिलाफ ढीले होते शिकंजे को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। सूत्रों की मानें तो मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार को आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में मानसून सत्र शुरू होने से पहले ही क्लीन चिट मिल सकती है। दिसम्बर में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को यह फैसला लेने के लिए स्वतंत्र कर दिया था कि मुलायम के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए या नहीं। साथ ही अदालत ने मुलायम की बहू और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिम्पल यादव की सम्पत्ति को इसमें जोड़ने से मना कर दिया था। सीबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि डिम्पल यादव की सम्पत्ति को बाहर निकालने के बाद सपा प्रमुख के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति का केस नहीं  बनता है। पर्याप्त सबूत न मिलने के चलते सीबीआई मुलायम व परिवार के खिलाफ जांच की फाइल बन्द करने की तैयारी में है। सूत्रों का कहना है कि शुरुआती रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है कि मुलायम और अखिलेश की सम्पत्ति में वृद्धि रिश्तेदारों से लिए गए लोन के चलते हुई है, जिसे बाद में गिफ्ट के रूप में दिखाया गया है। इसके अलावा एजेंसी ने पिता-पुत्र की सम्पत्तियों में कोई ऐसा इजाफा नहीं पाया जिसका स्पष्टीकरण नहीं हो सके। यह भी पता चला है कि 1993 से 2005 के दौरान मुलायम और अखिलेश के निवेश में कई गुना इजाफा हुआ, जिससे कथित तौर पर आय से अधिक सम्पत्ति का निर्धारण करना मुश्किल हो गया। मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2007 में अधिवक्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी की जनहित याचिका पर मुलायम और अखिलेश के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में जांच के आदेश दिए थे। इस बीच याचिकाकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी ने आरोप लगाया है कि यूपीए सरकार खाद्य सुरक्षा बिल पर समर्थन हासिल करने के लिए जानबूझ कर सपा प्रमुख को बचा रही है। उन्होंने बिना नाम लिए एक मंत्री पर धमकी देने का आरोप भी लगाया। उन्होंने कहा कि जब मैंने केस की फाइल बन्द करने का विरोध किया तो एक मंत्री ने मुझे फोन किया और धमकी दी कि जो काम मैंने 2008 में किया था वह दोबारा न करें। चतुर्वेदी ने कहा कि कांग्रेस की मुलायम के साथ डील हो गई है और एजेंसी सरकार के कहने पर काम कर रही है। मुलायम से हुई डील किसी तरह से मीडिया में लीक हो गई। इससे सीबीआई में हड़कम्प मच गया। सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा ने संवेदनशील जांच की जानकारी मीडिया में लीक करने वाले अपने अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का फैसला किया है। उन्होंने लीक करने वाले अधिकारी को खोज निकालने का आदेश दे दिया। साथ ही उन्होंने इसके लिए एक आंतरिक जांच टीम का गठन कर दिया है। सिन्हा ने कहा कि दोषी पाए जाने पर अधिकारी को तुरन्त निलंबित कर दिया जाएगा। सिन्हा के मुताबिक अखिलेश-मुलायम डीए केस में उन्होंने अब तक कोई फैसला नहीं लिया है। इनके खिलाफ इकट्ठा सबूतों का विश्लेषण होना बाकी है, लेकिन अखबारों में गलत खबर देकर जांच को प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है। सिन्हा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेश के मुताबिक अखिलेश की पत्नी डिम्पल यादव का नाम केस से हटा लेने के बाद जांच की प्रवृत्ति बदल गई है। डिम्पल का नाम इसलिए हटाया गया क्योंकि वह एक गैर-सरकारी व्यक्ति हैं। सिन्हा के मुताबिक इस परिवार की ज्यादातर सम्पत्ति डिम्पल के नाम पर है। लिहाजा उनके हटने के बाद पिता-पुत्र के खिलाफ सबूतों में फर्प आ गया है।

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