Tuesday 23 April 2024

राज वापस लाने की लड़ाई लड़ रहे हैं दिग्गी राजा


दिग्विजय सिंह देश के उन गिने-चुने नेताओं में हैं जो सियासत में पांच दशक से ज्यादा वक्त गुजार चुके हैं। राजनीति में दिग्गी राजा के नाम से मशहूर दिग्विजय सिंह की उम्र 77 वर्ष है। इस आयु में भी राजगढ़ लोकसभा सीट से बतौर कांग्रेsस उम्मीदवार पैदल गांव-गांव प्रचार कर रहे हैं। उनकी फिटनेस की सिर्फ समर्थक ही नहीं, बल्कि विरोधी भी तारीफ करते हैं। 2014 से यह सीट भाजपा के पास है। राघोगढ़ राजपरिवार में जन्मे दिग्विजय सिंह के पिता राजा बलभद्र सिंह को हिन्दु महासभा का करीबी माना जाता था कि दिग्विजय सिंह जनसंघ में अपनी राजनीति पारी शुरू करेंगे पर उन्होंने कांग्रेस का चुनाव किया। सिर्फ 22 साल की उम्र में राघोगढ़ नगर परिषद के अध्यक्ष पद से सियासत की शुरुआत करने वाले दिग्विजय सिंह को जनसंघ में शामिल होने के कई ऑफर मिले पर वह हमेशा जनसंघ के इन ऑफर को ठुकराते रहे। दिग्विजय सिंह के पिता की प्रदेश कांग्रेsस के नेता गोविंद नारायण से दोस्ती थी। शायद इसलिए दिग्विजय सिंह का रुझान कांग्रेस की तरफ गया और वह 1977 में पहली बार जीतकर विधानसभा पहुंचे। इसके बाद वह लगातार चार बार विधायक रहे। इस बीच उन्हें युवा कांग्रेsस अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई। वर्ष 1980 में चुनाव जीतने के बाद वह अर्जुन सिंह मंत्रिमंडल में मंत्री बने। 1984 और 1991 में राजगढ़ सीट से चुनाव जीतकर लोकसभा भी पहुंचे। अपने बयानों की वजह से अमूमन सुर्खियों में रहने वाले दिग्गी राजा 1993 से 2003 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद पार्टी को प्रदेश में सत्ता तक पहुंचाने में पूरे 15 साल इंतजार करना पड़ा। वर्ष 2018 के चुनाव में कमलनाथ मुख्यमंत्री बनने पर पार्टी में बगावत के कारण 2020 में सत्ता एक बार फिर भाजपा के हाथ लग गई। इस बीच दिग्विजय सिंह कांग्रेस संगठन में कई जिम्मेदारी संभालते रहे। 2014 में पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया। राजगढ़ सीट पर दिग्विजय सिंह का मुकाबला 2014 और 2019 में जीत दर्ज कर चुके रोडमल नागर से है। 2019 में नागर को 65 फीसदी वोट मिले थे। जबकि कांग्रेsस की मोना सुस्तानी सिर्फ 31 फीसदी वोट हासिल कर पाई थीं। दिग्विजय सिंह इससे पहले इस सीट से 1984, 1989 और 1991 में चुनाव लड़ चुके हैं। 1989 का चुनाव वह भाजपा के प्यारे लाल खंडेलवाल से हार गए थे। वर्ष 1993 में मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने त्यागपत्र दे दिया था और उसके बाद उप चुनाव में दिग्विजय सिंह के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। पूरे 33 साल बाद राजगढ़ से लोकसभा चुनाव लड़ने की दिग्विजय सिंह की कहानी भी दिलचस्प है। वह इस बार चुनाव लड़ने के हक में नहीं थे पर जब पार्टी ने तय किया कि सभी वरिष्ठ नेताओं को चुनाव मैदान में उतरना होगा तो दिग्विजय ने पार्टी का निर्णय स्वीकार करने में देरी नहीं की। मध्य प्रदेश कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने चुनाव में हार के डर से अपने हथियार डाल दिए हैं।

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