भय, कोलाहल, गड़बड़ी....महाराष्ट्र में शिव सेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में टूट के बाद कई लोगों में यही शब्द सुनाई पड़े। महाराष्ट्र में 2024 लोकसभा चुनाव राज्य की दो प्रमुख पार्टियों में टूट के साए में हो रहे हैं। भाजपा, कांग्रेस के अलावा अब यहां दो सेना और पवार वाली पार्टियां हैं। पुणे के सम्पन्न नादेड़ सिटी इलाके के एक वोटर कहते हैं, जहां पैसा होता है, नेता वहीं जाते हैं। लोग इतने परेशान हैं कि उनका वोटिंग के लिए जाने का मन नहीं है। इसी शहर में एक अन्य वोटर ने कहा, घोटाले वालों को तुम क्यों ले रहे हो? घोटाले वाले उधर गए और सब मंत्री बन गए। ये कैसे चलता है, लोग सब समझ रहे हैं। मुंबई के मशहूर शिवाजी पार्क के बाहर अपने दोस्तों के साथ बैठे रिटायर्ड एक एसपी के मुताबिक लोग पार्टियां तोड़ने के खिलाफ हैं। उनके नजदीक ही खड़े एक आदमी ने पलटवार कर कहा, भाजपा तोड़ रही है, इसका मतलब तुम में कुछ तो कमियां हैं, इस वजह से वो लोग तोड़ रहे हैं। लोकतंत्र खतरे में है, के विपक्षी दावों पर वह पूछते हैं किसका लोकतंत्र खतरे में हैं? हिन्दू का लोकतंत्र खतरे में हैं? आम आदमी का लोकतंत्र खतरे में है? साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कुल 48 सीटों में से 23 तो वहीं शिव सेना ने 18 सीटें जीती थीं। साल 2024 के चुनाव में एनडीए के लिए 400 पार का लक्ष्य रखने वाली भाजपा क्या महाराष्ट्र में इस बार भी 2019 जैसी सफलता दोहरा पाएगी? 2019 में शिव सेना की पूरी ताकत भाजपा के साथ थी। आज शिव सेना और एनसीपी के एक हिस्से उसके साथ हैं और राज्य में शरद पवार और उद्धव ठाकरे के प्रति सहानुभूति की लहर की बात कही जा रही है। महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में आरक्षण आंदोलन भी चल रहा है। देश के दूसरे हिस्सों की तरह भाजपा शासित महाराष्ट्र में भी बेरोजगारी, महंगाई, किसानों की समस्या आदि चुनौतियों मुंह बाए खड़ी हैं। लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जोर उनकी नाव पार लगा देगा। महाराष्ट्र में 48 लोकसभा सीटें दांव पर हैं। विश्लेषकों का कहना है कि विभिन्न कारणों से भाजपा गठबंधन की सीटें इस बार घट सकती हैं। एक ओपिनियन पोल ने इस गठबंधन को 37-41 सीटें जीतने की बात कही है जबकि एक अन्य पोल ने महाविकास अघाड़ी (एमबीए) गठबंधन के 28 सीटों पर जीतने की उम्मीद जताई है। महाराष्ट्र कांग्रेस का गढ़ रहा था लेकिन आपसी कलह कांग्रेस के लिए चुनौती रही है। एनडीए के लिए 2019 की सफलता दोहराना मुश्किल हैं। लोग भाजपा से ज्यादा एकनाथ शिंदे और अजीत पवार से नाराज हैं कि उन्होंने टूट में हिस्सा लिया। उनके मुताबिक घटनाक्रम ने भाजपा को लंबे समय के लिए नुकसान पहुंचाया है। विश्लेषक के मुताबिक एनसीपी और शिव सेना के कई वोटर असमंजस में है कि किसको वोट करें। वो मानते हैं कि एक तरफ जहां भाजपा पीएम मोदी के नाम पर निर्भर होगी। वहीं शरद पवार और उद्धव ठाकरे को लेकर सहानुभूति है। ये सहानुभूति कितनी गहरी है, ये साफ नहीं है लेकिन एकनाथ शिंदे का हाथ थामने वाले इससे इंकार करते हैं। विश्लेषकों के अनुसार पार्टियों में टूट के कारण कई लोगों में छवि बनी है कि भाजपा पार्टी और परिवार तोड़ने वाली है और ये छवि भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है। कुछ लोग इसे महाराष्ट्र बनाम गुजरात के रूप में भी देख रहे हैं और मराठा अस्मिता का प्रश्न भी बना रहे हैं।
-अनिल नरेन्द्र
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