Tuesday, 8 July 2025
पाकिस्तान तो महज चेहरा, सीमा पर कई दुश्मन थे
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सेना को किस-किस मुश्किलों का सामना करना पड़ा। यह रहस्य अभी धीरे-धीरे खुल रहे हैं। आपरेशन सिंदूर की परतें खुलने लगी हैं। ऑपरेशन सिंदूर भारत की सैन्य रणनीति में एक मील का पत्थर बनकर उभरा है। जो खुफिया जानकारी से संचालित युद्ध, वृद्धि पर नियंत्रण और तकनीकी तत्परता के बारे में बहुमूल्य सबक प्रदान करता है, यह बात डिप्टी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह ने कही हैं। पावार को न्यू एज मिलिट्री टेक्नोलॉजी पर फिक्की के एक कार्पाम में बोलते हुए जनरल सिंह ने इस ऑपरेशन को भारत की एकीकृत सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करते हुए सही समय पर संघर्ष को रोकने के लिए तैयार किया गया एक मास्टरली स्ट्रोक बताया। पूर्ण पैमाने पर युद्ध के बिना रणनीतिक वृद्धि युद्ध शुरू करना आसान है, लेकिन इसे नियंत्रण करना बहुत मुश्किल है। फिक्की के कार्पाम को संबोधित करते हुए भारत और पाकिस्तान संघर्ष के दौरान चीन की भूमिका पर बात की। साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि पिछले 5 साल में पाकिस्तान को मिलने वाला 81 फीसदी सैन्य हार्डवेयर चीन से ही आया है। सिंह का कहना है कि हालिया संघर्ष में पाकिस्तान के साथ चीन की तो बड़ी भूमिका थी ही पर इस दौरान तुर्कीये की पाकिस्तान को दी गई सैन्य मदद का भी पा किया। उन्होंने कहा कि युद्ध के दौरान पाकिस्तान की ओर से कई ड्रोन इस्तेमाल किए गए। जो तुर्किये से आए थे। वो कहते हैं ऑपरेशन सिंदूर के बारे में कुछ सबक है जो मैं जरूरी समझता हूं बताना। सबसे पहले एक सीमा पर दो दुश्मन नहीं थे। हमने सिर्फ पाकिस्तान को तो सामने देखा, लेकिन दुश्मन असल में दो थे, बल्कि अगर कहें तो तीन या चार भी थे। पाकिस्तान तो सिर्फ सामने दिखने वाला चेहरा था। हमें चीन से (पाकिस्तान को) हर तरह की मदद मिलती दिखी और ये कोई हैरानी की बात नहीं है, क्योंकि चीन पिछले पांच सालों से पाकिस्तान की हर क्षेत्र में मदद करता रहा है। उनका कहना है एक बात जो चीन ने शायद देखी है वो ये कि वो अपने हथियारों को अलग-अलग सिस्टम के खिलाफ आजमा सकता है। जैसे एक तरह की लाइव लैब उसे मिल गई हो। इसके अलावा तुर्कीये ने भी बहुत अहम भूमिका निभाई, जो पाकिस्तान को हर तरह से समर्थन दे रहा था। हमने देखा कि युद्ध के दौरान कई तरह के ड्रोन भी वहां पहुंचे और उनके साथ उनके प्रशिक्षित लोग भी थे। जनरल सिंह ने कहा कि एक और बड़ा सबक ये है कि कम्युनिकेशन निगरानी और सेना नागरिक तालमेल। इसका उदाहरण देते हुए कहते हैं, जब डीजीएमओ लेवल की बातचीत हो रही थी, तब पाकिस्तान कह रहा था कि हमें मालूम है कि आपकी एक यूनिट पूरी तरह तैयार है। कृपा इसे पीछे कर लें। यानि चीन उन्हें लाइव इनपुट दे रहा था। इस मामले में हमें बहुत तेजी से काम करना होगा। मैंने इलेक्ट्रानिक वार फेयर की बात की और मजबूत एयर डिफेंस सिस्टम की जरूरत भी बताई। लेकिन हमारे आबादी वाले इलाकों की रक्षा भी जरूरी है। जहां तक बाकी बात है, हमारे पास वो सहूलियते नहीं है जो इजरायल के पास है। वहां आयरन डोम जैसा सिस्टम है और कई एयर डिफेंस फीचर हैं। हमारे देश का दायरा बहुत बड़ा है तो इस तरह की चीजों पर बहुत पैसा लगता है इसलिए हमें सैंसेटिव हल ढूंढने होंगे। जनरल सिंह ने कहा कि एक और बड़ा सबक मिला कि हमारे पास मजबूत और सुरक्षित सप्लाई चेन होनी चाहिए। उन्होंने इसे सोच के नजरिए से समझाते हुए कहा कि जो उपकरण हमें इस साल जनवरी या पिछले साल अक्टूबर-नवम्बर तक मिलने चाहिए थे, वो वक्त पर नहीं पहुंच सके। मैंने ड्रोन बनाने वाली कंपनियों को बुलाया था और पूछा था कि कितने लोग तय समय पर उपकरण दे सकते हैं। तो कई लोगों ने हाथ उठाए। लेकिन एक हफ्ते बाद जब फिर से बात की, तब कुछ भी सामने नहीं आया। इस बीच कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा है कि डिप्टी चीफ आर्मी स्टॉफ लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह ने सार्वजनिक मंच से वही बात साफ कर दी है जो लम्बे वक्त से चर्चा में थी। उन्हेंने एक्स पर लिखा और बताया कि किस तरह चीन ने पाकिस्तान एयरफोर्स की असाधारण तरीके से मदद की। यह वही चीन है जिसने पांच साल पहले लद्दाख में यथास्थिति पूरी तरह बदल दी थी। जनरल सिंह ने देश को चेता दिया है कि अगले संघर्ष में भारत को फिर किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा। जिसके लिए हमें तैयारी आज से ही शुरू करनी होगी।
-अनिल नरेन्द्र
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