Thursday, 24 July 2025

सारी हदें पार करता प्रवर्तन निदेशालय

ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय की कार्यप्रणाली को लेकर अपनी शक्तियों का दुरुपयोग, बिना पारदर्शिता अपनाए और राजनीतिक दुरुपयोग जैसे सवालों पर बार-बार सवाल आते रहे हैं और कई बार न्यायालय इसको चेतावनी भी दे चुका है। पर यह मानने को तैयार नहीं और बिना सोचे-समझे सही जांच करें, कहीं भी पहुंचे जाते हैं। ईडी पर विपक्षी दलों पर नाजायज दबाव डालकर यहां तक आरोप लगे हैं कि वह चुनी हुई सरकारों को भी गिराने में मदद करते हैं और एक बात ईडी का अदालत में केसों में आरोप साबित करने का ट्रैक रिकार्ड निहायत खराब है। दर्ज मामलों में दोष सिद्धी की दर कम होने पर भी सवाल उठता है। ये सवाल तब और गंभीर हो जाते हैं, जब कुछ मामलों में न्यायालय की ओर से भी जांच एजेंसी की कार्यप्रणाली को संदेह से देखा जाता है। ताजा उदाहरण वकीलों को तलब करने का मामला है। उच्चतम न्यायालय ने जांच के दौरान कानूनी सलाह देने या मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों को ईडी द्वारा तलब करने पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए सोमवार को कहा कि ईडी सारी हदें पार कर रहा है। प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायामूर्ति विनोद चंद्रन की पीठ विधिक पेशे की स्वतंत्रता पर इस तरह की कार्रवाईयों के प्रभावों पर ध्यान देने के लिए अदालत द्वारा स्वत संज्ञान लेते हुए शुरू की गई एक सुनवाई के दौरान की। गौरतलब है कि मद्रास हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान यह सख्त टिप्पणी की कि ईडी कोई ड्रोन नहीं जो आपराधिक गतिविधि का पता चलते ही हमला कर दे। साथ ही कहा कि जांच एजेंसी एक अत्याधिक दक्ष पुलिस अधिकारी (सुपर काप या सुपर मेन) की तरह नहीं है जो उनके संज्ञान में आने वाली हर चीज की जांच करे। हर जांच एजेंसी में बेशक कुछ न कुछ खामियां होती हैं, लेकिन जब सिलसिलेवार तरीके से सवाल उठने लगे तो यह दामन पर दाग लगने जैसा होता है। ईडी की शक्तियों से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि अगर जांच एजेंसी के पास मौलिक अधिकार है तो उसे लोगों के अधिकारों के बारे में भी सोचना चाहिए। जांच के दौरान कानूनी सलाह देने या मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व न करने वाले वकीलों को ईडी द्वारा तलब किए जाने पर जुड़े एक मामले में सोमवार को शीर्ष अदालत ने कहा कि ईडी सारी हदें पार कर रही है। इसके अलावा, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की पत्नी से संबंधित भूखंड आवंटन ममाले में अदालत ने चेताया है कि राजनीतिक लड़ाई मतदाताओं के सामने लड़ी जानी चाहिए, इसमें ईडी जैसी जांच एजेंसियों को हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। जाहिर है लगातार उठने वाले सवालों के बीच ईडी की अपनी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और निष्पक्षता के मानक सुनिश्चित कर राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर काम करना चाहिए ताकि उसकी साख पर कोई बट्टा न लगे। पीठ ने ईडी की भूमिका को खारिज कर दिया और कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा। याचिका में ईडी ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें हाई कोर्ट ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री की पत्नी पार्वती के खिलाफ एमयूडीए घोटाले में कार्रवाई करने पर रोक लगा दी थी। ईडी की तरफ से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू अदालत में पेश हुए। प्रधान न्यायाधीश ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि कृपया हमें अपना मुंह खोलने के लिए मजबूर न करें। वर्ना हमें ईडी के खिलाफ कुछ कड़े शब्दें का इस्तेमाल करना पड़ेगा। दुर्भाग्य से मुझे महाराष्ट्र में इसे लेकर कुछ अनुभव है। इसे पूरे देश में मत फैलाइए। राजनीतिक लड़ाई को मतदाताओं के सामने लड़ने देना चाहिए, उसमें आप क्यों इस्तेमाल हो रहे हैं। माननीय सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणियां साफ रेखांकित करती हैं कि किस तरह सत्तारूढ़ दल इन जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करते हैं और सियासी खेल खेलते हैं। इन जांच एजेसिंयों को चाहिए कि यह हर आदेश को आंख बंद करके अमल न करें बल्कि थोड़ी जांच पहले करें कि आरोपों में कोई दम है भी या नहीं ? या यह सिर्फ सियासी प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ षड्यंत्र का हिस्सा है? उम्मीद की जाती है कि ईडी समेत तमाम जांच एजेंसियों के लिए सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उनके विवेक को सोचने पर मजबूर करेगा। -अनिल नरेन्द्र

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