Thursday 4 January 2018

सबको मिले स्वास्थ्य का अधिकार

डाक्टरों को धरती का भगवान कहा जाता है। सही भी है, जीवन की आशा छोड़ चुके तमाम लोगें में प्राण-प्रतिष्ठा उन्हीं के दम पर संभव हो पाती है। असाध्य रोगों के मौत के जबड़े से हर साल लाखों लोगों को यही जीवनदान दिलाते हैं। मानवता की सेवा के लिए इस पेशे की निष्ठा पर कोई संदेह नहीं कर सकता, लेकिन हाल में दिल्ली और गुड़गांव के दो अस्पतालों में घटी घटनाएं निजी चिकित्सा सेवा की कार्य पद्धति पर गंभीर सवाल जरूर खड़ा करती हैं। मुश्किल यह है कि सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं हैं नहीं, जो हैं भाग्य भरोसे। निजी क्षेत्र में निवेश तेजी से जारी है लेकिन मुनाफाखोरी और अपारदर्शिता ने इस क्षेत्र में जैसे इसका मूल मकसद ही छीन लिया है। लोगों को यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि जो इलाज उन्हें निजी अस्पताल से मिला, क्या वह वाजिब कीमत वाला और गुणवत्तापरक था। हाल ही में भारतीय चिकित्सा परिषद को खत्म करके राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग बनाना सरकार का सराहनीय कदम है, लेकिन चुनौतियां बहुत हैं। ऐसे में निजी अस्पतालों के प्रति लोगों की विश्वास बहाली की पड़ताल बड़ा मुद्दा बन गई है। यह मंथन करने का समय है कि स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में देश कहां खड़ा है? किसी निजी अस्पताल को कुछ दिन के लिए बंद करना समस्या का हल नहीं है। अस्पताल बंद कर देने और डाक्टरों को गाली देने से स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार नहीं होने वाला। सही मायने में तो केंद्र व राज्य सरकारों ने स्वास्थ्य क्षेत्र को अब तक नजरअंदाज ही किया है। जो मरीजों को निजी अस्पतालों में भारी भरकम बिल व सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए महीनों इंतजार के रूप में चुकाना पड़ रहा है। देश की इस बिगड़ी हुई सेहत का व्यापक स्वास्थ्य बीमा से ही सुधार किया जा सकता है। सिर्फ सरकार के भरोसे बीमारियों से जंग संभव नहीं है। निजी क्षेत्र के अस्पताल 80 फीसदी व सार्वजनिक क्षेत्र के अस्पताल 20 फीसद सुविधाएं ही उपलब्ध करा रहे हैं। जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के अस्पतालों पर देश की 70-80 फीसदी आबादी निर्भर है। एक सुझाव यह है कि ऐसी नीति तैयार हो, जिससे लोगों को बेहतर किफायती चिकित्सा मिल सके। सरकार चाहे तो शिक्षा के अधिकार, खाद्य सुरक्षा अधिकार  की तरह स्वास्थ्य का अधिकार कानून भी ला सकती है। लेकिन क्या इससे समस्या का समाधान हो पाएगा? देश के 130 करोड़ लोग यदि रोज के एक-एक रुपए स्वास्थ्य बीमा के लिए निकालें तो प्रतिदिन 130 करोड़ रुपए जमा हो सकते हैं। इस  तरह इलाज के लिए बड़ी रकम जुटाई जा सकती है।   

-अनिल नरेन्द्र

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