Sunday 7 January 2018

आम आदमी पार्टी के राज्यसभा उम्मीदवार?

आम आदमी पार्टी ने अपने नेता संजय सिंह, व्यापारी सुशील गुप्ता और चार्टर्ड एकाउंटेंट एनडी गुप्ता को दिल्ली की तीन राज्यसभा सीटों के लिए अपना उम्मीदवार घोषित किया है। राज्यसभा में भेजने के लिए जिन व्यक्तियों का चयन किया है उससे न केवल सियासी हलकों में हैरानी हुई है बल्कि पार्टी में बगावती स्वर भी उठ रहे हैं। कुछ समय से उम्मीदवारी के लिए जो नाम सबसे ज्यादा चर्चा में थे, उनमें से संजय सिंह को छोड़कर बाकी सबको किनारे कर दिया गया। कोई पार्टी राज्यसभा या किसी सदन के लिए किसे अपना प्रत्याशी बनाती है, यह उसका आंतरिक मामला हो सकता है। आमतौर पर सभी दल यही दलील पेश करते हैं। लेकिन आप की ओर से जो दो नए नाम सामने आए हैं, उनके चुनाव पर न केवल दूसरे दलों को पार्टी पर अंगुली उठाने का मौका मिला है, बल्कि शुरुआती दिनों से पार्टी के साथ रहे और अब किसी न किसी वजह से बाहर हो गए इन लोगों ने भी हैरानी जताई है। माना जा रहा था कि पार्टी नेता आशुतोष के अलावा मतभेद की तमाम खबरों के बावजूद कुमार विश्वास को राज्यसभा के लिए उम्मीदवार बनाया जा सकता है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और इनकी जगह एक उद्योगपति और एक चार्टर्ड एकाउंटेंट को चुना गया। इन दो व्यक्तियों के चयन से न केवल राजनीतिक जानकारों को अचरज हुआ बल्कि यह भी सुनिश्चित हो गया कि इस देश में वैकल्पिक राजनीति के लिए कोई जमीन नहीं बची है। आम आदमी का, आम आदमी के लिए और आम आदमी द्वारा शासन संचालित करने का आकर्षक और लोक-लुभावन नारा गढ़ने वाले अरविन्द केजरीवाल की पार्टी आप और अन्य राजनीतिक पार्टियों की प्रकृति और कार्यशैली में कोई बुनियादी फर्क नहीं है। दरअसल यह केजरीवाल की मजबूरी है क्योंकि आज भारतीय लोकतंत्र और भारत की चुनावी राजनीति जिस तरह धन और बाहुबल की चेरी बन गई है, उसमें सादगी, ईमानदारी और सच्चे लोक सेवकों के लिए कोई जगह ही नहीं रही है और यह भी सच है कि जो इस कोठरी में रहेगा, उसकी कमीज पर कालिख लगनी ही है। हालांकि अनेक पार्टियों पर ऐसे आरोप लगते रहे हैं कि किसी को मोटी रकम के बदले टिकट दिया गया या फिर उनकी आर्थिक हैसियत का ख्याल रखा गया, लेकिन आम आदमी पार्टी ने भी अगर देश की राजनीति में घर कर रही एक घातक प्रवृत्ति से बचने की कोशिश नहीं की तो उस पर सवाल ज्यादा तीखे होंगे। आखिर आप के गठन के समय या उससे पहले ही इसके नेता अरविन्द केजरीवाल का सबसे बड़ा दावा क्या रहा है? भारतीय राजनीति में पसरे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के साथ ही उन्होंने लोगों के बीच एक नई राजनीति की शुरुआत के लिए उम्मीद जताई थी। उसके उलट आज अगर वे पैसे लेकर टिकट बांटने के अलावा अपनी पार्टी के ही कई नेताओं पर लगने वाले भ्रष्टाचार के आरोपों की विश्वसनीय काट नहीं कर पा रहे हैं तो इसकी क्या वजह हो सकती है? सुशील गुप्ता कांग्रेस के टिकट पर मोतीनगर सीट से 2013 का विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं और आम आदमी पार्टी के प्रखर विरोधी रहे हैं। पार्टी का उच्च नेतृत्व दावा कर रहा है कि वह उच्च सदन में प्रख्यात लोगों को भेजना चाहता था। 18 लोगों की सूची भी तैयार की गई थी, लेकिन उनसे सम्पर्क करने के लिए कोई भी इसके लिए राजी नहीं हुआ। यह गंभीर सवाल है कि क्या उनकी विश्वसनीयता और साख इतनी गिर गई है कि कोई नामचीन व्यक्ति उनके साथ जुड़ना नहीं चाहता था या कोई दूसरा मसला है। ऐसा लगता है कि वक्त गुजरने के साथ-साथ आप और उनके नेताओं को अपनी साख की कोई फिक्र नहीं रह गई है और आम आदमी पार्टी ंभी भारतीय राजनीति की उन्हीं बीमारियों से दिनोंदिन और भी ग्रसित होती जा रही है जिन्हें दूर करने का उसने दावा किया था।

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