Wednesday, 28 April 2021
ऐसे विद्वान कम आते हैं
इस्लाम धर्म के जानकार तो बहुत हैं मगर ऐसे शायद कम ही लोग होंगे जिनके लिखे को कई देशों की कई पीढ़ियों ने पढ़ा और संहारा। हम बात कर रहे हैं इस्लाम के जानकार आध्यात्मिक नेता और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति पाए लेखक पद्मविभूषण मौलाना वहीदुद्दीन खान की। 97 साल की उम्र में कोरोना से उभरी दिक्कतों के कारण गत बुधवार को दिल्ली में उनका निधन हो गया। मौलाना वहीदुद्दीन आपसी भाईचारे और सह-अस्तित्व के पैरोकार रहे। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक राम जन्मभूमि विवाद पर उनका तीन सूत्री फार्मूला चर्चित हुआ था। मौलाना वहीदुद्दीन खान को आध्यात्मिक क्षेत्र में योगदान के लिए पद्मविभूषण मिला था। 200 से अधिक किताबें लिख चुके मौलाना खान ने पवित्र कुरान का अंग्रेजी, हिन्दी और उर्दू में अनुवाद किया था। 1955 में उनकी लिखी पहली किताब नए अहद के दरवाजे पर आई जिसके बाद उन्होंने इस्लाम और उसकी आधुनिक चुनौतियों पर किताब लिखी। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक मौलाना वहीदुद्दीन खान की लिखी किताब गॉड अराइजेज छह से ज्यादा अरब देशों की यूनिवर्सिटी का हिस्सा है। इसे हिन्दी, अंग्रेजी, तुर्की, मलयालम और अन्य कई भाषाओं में अनुवाद भी किया गया। 1970 में उन्होंने दिल्ली में इस्लामिक सेंटर बनाया। वह मुसलमानों की शिक्षा पर जोर देते थे। राम जन्मभूमि विवाद पर उनका तीन सूत्री फार्मूला चर्चा में आया। इसमें मुख्य तौर पर यह बात कही गई थी कि हिन्दू समाज अपना आंदोलन अयोध्या तक ही रोक दे। मस्जिद विध्वंस के बाद मुस्लिम समाज के लिए इस मसले पर बहुत कुछ बचा नहीं, इसलिए वह इस मुद्दे को देश के विवेक पर छोड़ दें और इस मुद्दे से खुद को अलग कर लें। साथ ही सरकार कानून बनाकर गारंटी दे कि देश में जहां कहीं भी इस्लामिक इमारतें हैं, उनकी रक्षा की जाएगी, बिना इस पड़ताल में गए कि उस जगह पर पहले क्या था। न ही हिन्दू समाज उनके अस्तित्व पर सवाल करेगा। अयोध्या में मस्जिद विध्वंस के बाद वह महाराष्ट्र में आचार्य सुशील कुमार और स्वामी नित्यनंद के साथ शांति यात्रा पर भी गए थे। 1976 में अल रसाला नाम से खुद की पत्रिका शुरू की। मौलाना वहीदुद्दीन का जाना पूरी मानव जाति के लिए भारी क्षति है। ऐसे विद्वान कम आते हैं।
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