Tuesday, 20 April 2021

150 लाख करोड़ खर्च व 20 साल बाद अफगानिस्तान से निकलेगा अमेरिका

अमेरिकी सैनिक 20 साल बाद एक बेहद लंबे और महंगे युद्ध के बाद अफगानिस्तान से वापस अपने वतन लौटेंगे। 9/11 हमले की 20वीं बरसी यानि 11 सितम्बर तक सभी अमेरिकी सैनिक यहां से निकल जाएंगे। पहले यह समय सीमा एक मई थी लेकिन ढाई हजार से ज्यादा सैनिकों की वापसी को देखते हुए समय सीमा बढ़ा दी गई। अलकायदा के 9/11 हमले के बाद साल 2001 में अमेरिका ने अफगानिस्तान में सेना उतारी थी। इस युद्ध में अमेरिका ने 2400 सैनिकों को खोया है, साथ ही इस युद्ध पर अमेरिका ने दो ट्रिलियन यानि 150 लाख करोड़ रुपए के करीब खर्च किए हैं। मई 2011 में अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को मार गिराया लेकिन न तो तालिबान को खत्म कर पाया और न ही अफगानिस्तान में शांति स्थापित कर पाया है। बिडेन प्रशासन के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि लंबी बहस और कई रिपब्लिकन के विरोध के बावजूद राष्ट्रपति जो बिडेन ने यह निर्णय लिया है। राष्ट्रपति का कहना है कि अगर स्थितियों को आधार बनाकर देखें तो अमेरिकी सैनिक कभी वहां से वापस ही नहीं लौट पाएंगे। हालांकि इस निर्णय के बाद यह बहस अमेरिका में शुरू हो गई है कि अमेरिका की वापसी के बाद इस इलाके में फिर से युद्ध की स्थिति बन जाए? लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान अफगानियों का हुआ है। उनके 60 हजार से अधिक सुरक्षाकर्मी इस दौरान मारे गए और इससे दोगुनी संख्या में नागरिकों की जान गई, तो यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि क्या यह सब वाजिब था? इसका जवाब इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसे कैसे मापते हैं? एक पल के लिए पीछे चलते हैं और सोचते हैं कि पश्चिमी ताकतें आखिर वहां गई क्यों? क्या हासिल करना चाहती थीं? 1996-2001 तक पांच सालों में चरमपंथी समूह अलकायदा अपने नेता ओसामा बिन लादेन के नेतृत्व में अफगानिस्तान में खुद को स्थापित करने में कामयाब हो गया। इसके बाद दुनियाभर से करीब 20 हजार जेहादियों की भर्ती की गई और उन्हें प्रशिक्षण दिया गया। उन्होंने ही 1998 में कीनिया और तंजानिया में अमेरिकी दूतावासों पर हमले किए, जिसमें 224 लोग मारे गए। अलकायदा अफगानिस्तान में आसानी से काम करने में सक्षम था क्योंकि उस समय तालिबानी सरकार उसे संरक्षण देती थी। सोवियत रेड आर्मी के वापस लौटने और बाद में विनाशकारी गृहयुद्ध के बाद के वर्षों में तालिबान ने 1996 में पूरे देश पर नियंत्रण कर लिया था। सितम्बर 2001 में 9/11 के हमलों के बाद अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने तालिबान को हमले के लिए जिम्मेदार लोगों को सौंपने के लिए कहा, लेकिन फिर से तालिबान ने इंकार कर दिया। अमेरिका और ब्रिटिश सेना ने तालिबान को सत्ता से हटाकर अलकायदा को पाक सीमा पर जाने के लिए मजबूर कर दिया। इसलिए अंतर्राष्ट्रीय चरमपंथी की दृष्टि से पश्चिमी सैन्य उपस्थिति अपने उद्देश्यों में सफल रही है। लेकिन निश्चित रूप से इसे सिर्फ इस तरीके से मापना बहुत साधारण प्रक्रिया होगी और यह अफगानिस्तान के सैनिक और आम जनता जो अपनी जान गंवा चुके हैं, अभी भी गंवा रहे हैं, उसे नजरंदाज करना होगा। अमेरिकी सेना के हटने के बाद निश्चित रूप से तालिबान मजबूत होकर उभरेगा। वह अभी से कह रहे हैं कि हमने अमेरिका को हटा दिया है। इसके अलावा अमेरिका के हटने से जो शून्य बनेगा, उसे चीन और रूस मिलकर पाकिस्तान के साथ भरने की कोशिश कर सकते हैं। निश्चित ही भारत की वहां अहम भूमिका है। जैसा कि बिडेन ने भी कहा है। अच्छा तो यह होता कि कुछ दिन पहले अमेरिका ने सुझाव दिया था कि अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता के लिए संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई में सम्मेलन हो। निश्चय ही अगले चार महीने चुनौतीपूर्ण हैं, जिसमें भारत को अपनी भूमिका तय करनी होगी, ताकि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रास्ते से उसके खिलाफ आतंकी गतिविधियों को अंजाम दें।

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