Friday 11 April 2014

मुजफ्फरनगर के दंगों की टीस क्या सियासी गुल खिलाती है

गुड़ और शक्कर की मिठास परोसने वाले मुजफ्फरनगर संसदीय सीट की सितम्बर 2013 में एकाएक अंतर्राष्ट्रीय फलक पर दंगाग्रस्त इलाके की पहचान बन गई है। किसान राजनीति का यह महत्वपूर्ण क्षेत्र साम्पदायिक सौहार्द के लिए जाना जाता था पर सितम्बर में ऐसे भयानक साम्पदायिक दंगे हुए कि आज भी दहशत और तनाव के कारण 700 से ज्यादा परिवारों के लिए गांवों की माटी बेगानी हो गई। इस संसदीय क्षेत्र के मुख्य मार्गों की जर्जरता दर्शाती है यहां बरबादी की दासतान। इस बार सारे देश की नजर इस मुजफ्फरनगर संसदीय सीट पर टिकी हुई है। चुनाव के इस महासंग्राम के अखाड़े में भाजपा, कांग्रेस, सपा और बसपा के पत्याशी मतदाताओं का रुझान अपने पक्ष में करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। वह मतदाताओं को क्षेत्र के पिछड़ेपन को दूर करने के सब्जबाग दिखा रहे हैं। भाजपा ने संजीव बालियान को उम्मीदवार बनाया है। बसपा ने 2009 में हाथी पर सवार होकर संसद पहुंचे कादिर राणा को फिर मौका दिया है। कांग्रेस ने यहां रालोद से गठबंधन के बूते पंकज अग्रवाल पर दांव लगाया है जबकि सपा ने वीरेन्द्र गुर्जर को चुनाव अखाड़े में साइकिल की सवारी का मौका दिया है। हर बार पत्याशी चयन और वोटों के धुवीकरण में नीतिगत समीकरण हावी होने का एहसास हुआ। इस बार को हालात बदले होने का एहसास हो रहा है। मुजफ्फरनगर शहर के अलावा कस्बों की समस्याओं के अंबार लगे हैं। मतदाता सितम्बर में हुए दंगों की टीस का इजहार करने से नहीं हिचक रहे हैं। पत्याशी और उनके समर्थक भी इसी टीस से वोटों के ध्रुवीकरण करने का कोई मौका भी नहीं चूक रहे हैं। कांगेस ने मुजफ्फरनगर से नगरपालिका के चेयरमैन युवा नेता पंकज अग्रवाल को बेशक उतारा तो है पर पंकज के चेयरमैन बनने के बाद लोकसभा चुनाव लड़ने का  उनका यह पहला अनुभव है। पंकज ने नगरपालिका के अलावा अन्य कोई चुनाव नहीं लड़ा है। कांग्रेस ने यहां युवा कार्ड खेलते हुए उन पर भरोसा जताया है और इसके लिए उसने पूर्व घोषित उम्मीदवार सूरत सिंह वर्मा का टिकट काट दिया। भाजपा ने भी युवा नेता डॉ. संजीव बालियान को टिकट देकर यहां ध्रुवीकरण को आगे कर मुजफ्फरनगर  के दंगे के बाद हुए हालातों का राजनीतिक फायदा उठाने का पयास किया है। पिछले कई चुनाव में भाजपा यहां से हारती आ रही है। बसपा ने यहां निवर्तमान सांसद कादिर राणा को दोबारा मैदान में उतारा है।  पिछली बार वे भाजपा-आरएलडी गठबंधन की उम्मीदवार अनुराधा चौधरी को चुनाव हराकर पहली बार लोकसभा में पहुंचे थे। इस चुनाव में राणा परिवार की पतिष्ठा दांव पर लगी है। कादिर राणा के भाई नूर सलीम राणा, चरथावल से बसपा विधायक हैं। वहां से उनके भतीजे शाहनवाज राणा बिजनौर से सपा के लोकसभा उम्मीदवार हैं। इस संसदीय क्षेत्र में 18 लाख से ज्यादा मतदाता हैं। इनमें सबसे ज्यादा लगभग 32 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं। दूसरे पायदान पर माने जाने वाले जाट मतदाताओं का रुझान चुनाव समीकरण में उलटफेर करने की हैसियत में रहा है। बसपा का समीकरण दलित-मुस्लिम पर टिका है। वहीं सपा के अलम्बरदार मुस्लिम मतदाताओं को साइकिल की सवारी कराकर चुनाव जिताना चाहते हैं। भाजपा के राजनीतिकारों को जाट, वैश्य, ब्राह्मण, त्यागी, ठाकुर, सैनी सहित अन्य बिरादरियों के लामबंद होने की आस लगी है। वहीं मुस्लिम मतों के बंटवारे से उन्हें चुनाव में सियासी संजीवनी मिलने की आस लगी है। मगर क्षेत्र के दंगों की टीस क्या सियासी गुल खिलाती है इस पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं।

öअनिल नरेन्द्र

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