Saturday 12 April 2014

क्या चुनाव वोट फॉर चेंज होगा ः कम से कम दिल्ली से तो ऐसा लगता है

दिल्ली में लोकसभा सीटों पर बृहस्पतिवार को हुए मतदान के लिए सुबह से ही मतदाताओं में जबरदस्त उत्साह नजर आया। आलम यह था कि बहुत से मतदान केंद्रों पर सुबह से ही मतदाता पहुंच गए थे जिनमें पहला वोट डालने की होड़ भी लगी हुई थी। पिछले 2009 के लोकसभा चुनाव में मतदान 52 फीसदी ही हुआ था और कांग्रेस सातों सीटें जीत गई थी तो भाजपा सातों सीटें हार गई थी। लेकिन 2013 की विधानसभा में मतदान 65 फीसदी होने पर कांग्रेस दौड़ से ही बाहर होकर 70 में से 8 सीटें ही ले पाई। इसके चलते बढ़े मतदान को लेकर 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा उत्साहित है। दिल्ली में 64 फीसदी मतदान हुआ है। दिल्ली के सट्टा बाजार में छह सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार फेवरेट माने जा रहे हैं। बुकीज के रेट में महज नई दिल्ली सीट पर कांग्रेस के अजय माकन भाजपा प्रत्याशी मीनाक्षी लेखी से कुछ आगे हैं। दरअसल अजय माकन न केवल एक मजबूत उम्मीदवार हैं बल्कि उन्होंने क्षेत्र के लिए काम भी किया है और अपने मतदाताओं से जुड़े रहे हैं। वहीं हमें यह समझ नहीं आया कि भाजपा ने नई दिल्ली जैसी प्रतिष्ठित सीट जिस पर अटल जी लड़े, आडवाणी जी लड़े जो कुछ मायनों में देश की सर्वाधिक प्रतिष्ठित सीट है उस पर मीनाक्षी लेखी को क्यों उम्मीदवार बनाया? यहां से सुषमा स्वराज या अरुण जेटली सरीखे कद्दावर नेता को उतारना चाहिए था। अब तो इस सीट पर मीनाक्षी को मोदी लहर का सहारा है और अगर वह जीतती हैं तो मोदी लहर की वजह से। चांदनी चौक सीट पर केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल, डॉ. हर्षवर्धन और पत्रकार से नेता बने आशुतोष के बीच कड़ा मुकाबला रहा। बेशक कपिल सिब्बल न केवल एक सम्पन्न, काबिल उम्मीदवार हैं बल्कि अपने संसदीय क्षेत्र को ध्यान में रखा और मतदाताओं से जुड़े रहे पर एंटी इन्कम्बेंसी फेक्टर की काट करना उनके लिए मुश्किल रहा। जिस कांग्रेस वोट पर शाही इमाम के फतवे व शोएब इकबाल के समर्थन की घोषणा पर सिब्बल साहब उम्मीद लगाए बैठे थे वह शायद मतदान में नहीं चला। चांदनी चौक में अल्पसंख्यक वोटरों ने लगता है कि आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार आशुतोष को वोट दिया है और उसका कारण सिम्पल है। उन्हें लगा कि कपिल सिब्बल इस स्थिति में नहीं हैं कि वह नरेन्द्र मोदी और भाजपा के बढ़ते कदमों को रोक सकें, इसलिए ऐसे उम्मीदवार या पार्टी को वोट दें जो यह काम करता दिख रहा है। वैसे मानना पड़ेगा कि अरविन्द केजरीवाल एक बड़े शातिर राजनेता व प्लानर हैं या जो भी  उनके लिए रणनीति बनाता है वह बहुत ही चतुर है। केजरीवाल ने मोदी को टारगेट बनाया। वह वाराणसी से इसलिए चुनाव लड़ने गए ताकि देश में यह मैसेज जाए कि केवल वही अकेले ऐसे शख्स हैं जो मोदी को रोक सकते हैं। मुझे लगता है कि वह अपनी इस रणनीति में कामयाब होते भी दिख रहे हैं। दिल्ली के अधिकतर अल्पसंख्यकों ने उनकी पार्टी के उम्मीदवारों को वोट दिया लगता है। अगर ऐसा होता है तो दिल्ली में मुकाबला भाजपा बनाम आप के बीच हो जाएगा और कांग्रेस तीसरे नम्बर पर चली जाएगी। यहां चूंकि हम चांदनी चौक संसदीय क्षेत्र की बात कर रहे हैं मुझे यह समझ नहीं आया कि भाजपा ने डॉ. हर्षवर्धन को यहां से क्यों चुनाव लड़वाया? अव्वल तो अगर उन्हें लोकसभा का चुनाव लड़वाना ही था तो पूर्वी दिल्ली से लड़वाती जहां से वह विधानसभा चुनाव जीते थे और उनका वह क्षेत्र भी है। वैसे तो दिल्ली के विधानसभा चुनाव फिर से होने हैं और डॉ. साहब को उसके लिए रखना चाहिए था। अब अगर किसी भी कारण भाजपा की चाल चांदनी चौक में सफल नहीं होती और चुनाव परिणाम विपरीत आते हैं तो डॉ. हर्षवर्धन कहां के रहेंगे? लोकसभा की 91 सीटों पर हुए तीसरे चरण के मतदान के बाद सत्ताधारी कांग्रेस को जो आंतरिक रिपोर्ट मिली है उसके मुताबकि दिल्ली से कांग्रेस का सूपड़ा साफ होने की पूरी सम्भावना है जबकि दिल्ली से लगे हरियाणा में उसे तीन तथा यूपी-बिहार में एक-एक सीट पर जीत मिलने की बात कही जा रही है। दिल्ली की सभी सात सीटों में से कांग्रेस मतदान की शुरुआत तक सिर्प नई दिल्ली और चांदनी चौक सीट पर ही मुकाबले में दिखती थी लेकिन मतदान पूरा होते-होते यह दोनों सीटें भी कांग्रेस के हाथ से निकलती दिख रही हैं। बाकी बचीं पांच सीटों पर तो कांग्रेस मुकाबले में ही नहीं है। यहां भाजपा का मुकाबला आम आदमी पार्टी से रहा। दिल्ली से जुड़ी कांग्रेस के एक बड़े नेता के मुताबिक दिल्ली में भाजपा सभी सातों सीटें जीत जाए तो ताज्जुब की बात नहीं होगी क्योंकि लोगों ने भाजपा के उम्मीदवार के नाम पर नहीं बल्कि नरेन्द्र मोदी के नाम पर उसके पक्ष में भारी मतदान किया है। पार्टी का यह भी आंकलन है कि आम आदमी पार्टी भी एक-दो सीट निकाल सकती है। दिल्ली लोकसभा चुनाव में मुस्लिम वर्ग इस बार पूरी तरह चुप रहा है। पुरानी दिल्ली के मुस्लिम वोटरों का रुझान आम आदमी पार्टी पर ज्यादा दूसरा रुझान कांग्रेस पर था। कुछ दिन पहले जामा मस्जिद के शाही इमाम और विधायक शोएब इकबाल का ऐलान भी लगता है कि कांग्रेस के काम न आएं। उनका कहना था कि सबकी सोच अलग होती है। दोनों ने अपने फायदे के लिए हमको कठपुतली की तरह नचाने की कोशिश की है। उनका कहना था कि कांग्रेस ने आजादी के बाद जो राज किया उससे लोगों की जिन्दगी में बदलाव तो आया मगर भ्रष्टाचार व महंगाई इस कदर बढ़ी कि हमारा कांग्रेस से मोहभंग हो गया है। पहाड़ वाली गली की हिना (31) ने कहा कि उसने कांग्रेस को वोट नहीं दिया। आम आदमी पार्टी के आशुतोष को वोट दिया है। क्योंकि वह ईमानदार हैं। उनको एक बार मौका मिलना चाहिए। विधानसभा में उनकी पार्टी का काम मिलाजुला रहा है। अगर केजरीवाल सत्ता छोड़कर नहीं भागते तो इस लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी को तीन सीट मिलनी पक्की हो जातीं। उनको इसका हर्जाना लोकसभा चुनाव में जरूर भुगतना होगा। प्रवीण खान ने कहा कि उन्होंने नोटा बटन दबाया है। वह मोदी को वोट देना चाहती थीं मगर इस बार भाजपा ने नहीं, मोदी को सामने रखकर चुनाव लड़ा है। उन्होंने जिस तरह से अपने भाषणों में, घोषणा पत्र में मुस्लिम वर्ग को लेकर वादे किए हैं, देखना होगा कि वादे कब तक पूरे करते हैं। वोट प्रतिशत से उत्साहित भाजपा का कहना है कि युवा वर्ग ने बढ़चढ़ कर इस मतदान में भाग लिया है। पहली बार वोट डालने वाले युवाओं का कहना था कि उन्होंने वोट फॉर चेंज को अपना मत दिया है। साफ है कि चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा नरेन्द्र मोदी हैं और इससे यह भी साबित होता है कि चुनाव मोदी बनाम सारे होगा।

-अनिल नरेन्द्र

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