Friday 18 April 2014

उत्तराखंड में नरेन्द्र मोदी लहर और हरीश रावत सरकार में कांटे की टक्कर

उत्तराखंड के सीमांत इलाके की इसे जागरुकता कहें या फिर सैन्य बहुल क्षेत्र की स्वाभाविक प्रकृति, राजनीतिक रूप से इस राज्य के जनमानस ने लगभग हर चुनाव में स्वयं को राष्ट्रीय धारा के साथ ही जोड़े रखा। वर्ष 1957 के पहले चुनाव से लेकर 2009 में 15वें लोकसभा चुनाव तक यहां के वोटरों ने उन्हीं पार्टियों के प्रत्याशियों पर भरोसा जताया जो बहुमत या बहुमत के करीब रहीं। वर्तमान में उत्तराखंड में लोकसभा की कुल पांच सीटें हैंöटिहरी, पौड़ी गढ़वाल, अल्मोड़ा, नैनीताल और हरिद्वार। पांचवीं लोकसभा तक देश की सियासत में कांग्रेस का ही वर्चस्व रहा तो उत्तराखंड में कांग्रेस को एकतरफा जीत मिली। आपातकाल के बाद वर्ष 1977 में छठवीं लोकसभा के चुनाव में केंद्र में सत्ता परिवर्तन हुआ तो उत्तराखंड की सभी सीटों पर जनता पार्टी का कब्जा हो गया। तब से लेकर अब तक उत्तराखंड में कांग्रेस का ही वर्चस्व रहा है। 1998 में भाजपा ने कांग्रेस का पूरी तरह से सफाया किया तो अगले साल 1999 के लोकसभा चुनाव में राजग की सरकार बनी तो भाजपा को चार व कांग्रेस को एक सीट मिली। हरिद्वार की महत्वपूर्ण सीट पर तस्वीर अब साफ हो गई है। इस बार यहां मोदी लहर और हरीश रावत सरकार के बीच जंग है। हरिद्वार सीट पर मुख्यमंत्री हरीश रावत की पत्नी रेणुका रावत चुनाव लड़ रही हैं जबकि टिहरी सीट से पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के पुत्र सांकेत बहुगुणा, पौड़ी गढ़वाल सीट से राज्य के कृषि मंत्री हरक सिंह रावत मैदान में हैं। रेणुका हरिद्वार सीट से लड़ रही हैं जिसका प्रतिनिधित्व उनके पति हरीश रावत कर चुके हैं। 2009 में हरीश रावत यहां से विजयी हुए थे। भाजपा की ओर से हरिद्वार से पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक उम्मीदवार हैं। वैसे तो और भी उम्मीदवार हैं पर मुख्य मुकाबला मुख्यमंत्री की पत्नी और निशंक के बीच ही माना जा रहा है। पिछले वर्ष आई बाढ़ की तबाही और फिर केदारनाथ घाटी व राज्य के अन्य भागों में प्रभावित रिलीफ वर्प सत्तारूढ़ दल को भारी पड़ सकता है। हरिद्वार में असल मुकाबला वर्तमान मुख्यमंत्री बनाम पूर्व मुख्यमंत्री ही है। टिहरी सीट पर मुकाबला दो राजनीतिक घरानों का है। एक तरफ टिहरी राजघराने की साख तो दूसरी तरफ हेमवती नंदन बहुगुणा परिवार की तीसरी पीढ़ी का भविष्य दांव पर है। यहां राजघराने की माला राज्यलक्ष्मी शाह भाजपा की टक्कर पूर्व सीएम विजय बहुगुणा के बेटे साकेत बहुगुणा जो कांग्रेस से लड़ रहे हैं के बीच है। उपचुनाव में मिली हार की कसक झेल रहे साकेत का राजनीतिक भविष्य काफी हद तक इस चुनाव पर टिका हुआ है। 2012 के उपचुनाव में साकेत को मात दे चुकीं माला राज्यलक्ष्मी के लिए अपनी जीत दोहराना आसान नहीं होगा। भाजपा-कांग्रेस के अलावा टिहरी से आम आदमी पार्टी, बसपा और उक्रांद के भी उम्मीदवार ताल ठोंक रहे हैं। सियासी विरासत के मामले में दोनों परिवार एक-दूसरे से कम नहीं हैं। टिहरी में शाही परिवार की पैठ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अब तक 16 लोकसभा चुनावों (उपचुनाव समेत) में 10 मर्तबा जनता ने राजपरिवार पर भरोसा जताया है। उधर बहुगुणा परिवार  की यूपी से दिल्ली तक दबदबा रखने वाले हेमवती नंदन बहुगुणा की मजबूत सियासी नींव जगजाहिर है। दोनों परिवारों में सियासी जंग भी पुरानी है। टिहरी सीट पर जीत-हार तय करता है मैदानी क्षेत्र। टिहरी लोकसभा  क्षेत्र में उत्तरकाशी जिले के तीन विधानसभा क्षेत्रों में महज पौने दो लाख वोटर हैं। टिहरी जिले के चार विधानसभा क्षेत्रों में लगभग तीन लाख मतदाता हैं और शेष सात लाख मतदाता देहरादून जिले के सात विधानसभा क्षेत्रों में हैं। 2012 के उपचुनाव में भाजपा को देहरादून के मैदानी क्षेत्रों की पांच विधानसभा सीटों पर भारी बढ़त मिली थी। कांग्रेस के लिए मैदानी क्षेत्र बड़ी चुनौती है।

-अनिल नरेन्द्र

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