Wednesday, 9 April 2014

असम, केरल व कर्नाटक का चुनावी दृश्य

आज के इस लेख में बात करूंगा कुछ राज्यों की। असम में 16वीं लोकसभा चुनावों के लिए मतदान का श्री गणेश सोमवार 7 अपैल को हो गया है। संयोग है कि इन चुनावों में पहला मत वहीं पड़ेगा जहां देश में सबसे पहले सूरज निकलता है, यानी पूर्वेत्तर में, जहां असम की 5 और त्रिपुरा की एक सीट पर वोट पड़ेंगे। कुल मिलाकर पूरे पूर्वेत्तर में लोकसभा की 25 सीटें हैं जिसमें अकेले असम से  14 सीटें आती हैं।  2009 में कांगेस को सात, भाजपा-असम गण परिषद गठबंधन को पांच, बोडो पीपुल्स पंट (बीपीएफ) को एक और आल राज्य यूनाइटेड डेमोकेटिक पंट को एक सीट मिली थी। सेवन सिस्टर्स के नाम से जाने जाने वाले सात राज्यों सिक्किम, अरुणाचल पदेश, नागालैंड, मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम, मेघालय और असम को जोड़कर बनने वाले इस क्षेत्र की विविधता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां ले-देकर 2000 के लगभग बोलियां और भाषाएं बोली जाती हैं। बांग्लादेशियों की घुसपैठ का सवाल यहां इस बार भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है। भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने भी अवैध रूप से घुसे बांग्लादेशियों के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया है। असम में कांग्रेस की सरकार है और तरुण गोगोई मुख्यमंत्री हैं। कांग्रेस, भाजपा और स्थानीय पार्टियों में कड़ा मुकाबला है। पिछले साल असम में राजनीतिक स्थिरता भी रही है क्योंकि 2001 से ही तरुण गोगोई की कांग्रेस सरकार का यहां शासन है। मौजूदा चुनाव में जहां भाजपा नरेंद्र मोदी की लोकपियता को भुनाने की कोशिश कर रही है वहीं कांग्रेस पिछले दिनों में अपने काम और मुख्यमंत्री तरुण गोगोई की सरकार के पदर्शन पर दांव खेल रही है। असम गण परिषद इस बार भाजपा से अलग चुनाव लड़ रही है और मुकाबले में पूरा जोर लगाए हुए है। वहीं इन पुराने खिलाड़ियों के मुकाबले नई पार्टियां आईयूडीएफ और वीपीएफ भी मैदान में हैं। देश के उत्तर के भाग में असम से चलते हैं दक्षिणी भाग केरल में। केरल में दो पमुख मोर्चे, यूनाइटेड डेमोपेटिक पंट (यूडीएफ) और लेफ्ट डेमोपेटिक पंट (एलडीएफ) के बीच मुकाबला बराबर का नजर आ रहा है। अल्पसंख्यकों के मोर्चे पर कई चेतावनियों के बावजूद स्थिति यूडीएफ के लिए अच्छी नजर आ सकती है। केरल के मुसलमान नई दिल्ली में नरेंद्र मोदी के सत्तासीन होने की आशंका से सजग आ रहे हैं। पचार के दौरान जो मुद्दे सामने आए हैं उन मुद्दांs से एलडीएफ को खोया जनाधार पाने में मदद मिली है और वह पतिद्वंद्वी मोर्चे को कड़ी चुनौती देता नजर आ रहा है। स्वाभाविक है कि भाजपा और अन्य छोटे दल इस चुनाव में भी इन दोनों मोर्चें से बहुत पीछे है। कन्नड़ क्षेत्र कर्नाटक में लोकसभा की 28 सीटों के लिए पतिपक्ष भारतीय जनता पाटी, सत्तारूढ़ कांग्रेस, जनता दल सेक्यूलर में तिकोना दंगल है। राज्य में कहीं-कहीं जनता दल (यू) व वाम मोर्चा मैदान में हैं। पदेश के 4.37 करोड़ मतदाताओं में हिंदू 83.90 पतिशत हैं, मुस्लिम 12.20 पतिशत, ईसाई 1.90, बौद्ध 0.70 और जैन 0.8 फीसदी हैं। कर्नाटक की जातीय-धार्मिक संरचना में लिंगायत 12 फीसदी, वोकलिंगा 11 फीसदी, पिछड़ी-मझौली किसान जातियां 39 फीसदी, दलित 16.2 फीसदी, बनवासी 6.3 पतिशत हैं। यद्यपि कर्नाटक की कुल आबादी वोट बैंक के 47 पतिशत का दावा किया गया है। 15वीं लोकसभा यानी 2009 के चुनाव में भाजपा को 19, कांग्रेस को 6 और जदसे को 3 सीट मिली थीं। सन 2013 के चुनाव में भाजपा द्वारा तीन बार मुख्यमंत्री बदलना और वीएस येदुयरप्पा का विद्रोह काल बना, वर्तमान में भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पुन पाटी में लौटे हैं। कर्नाटक में कांग्रेस भाजपा व जदसे में मुख्य मुकाबला है।

-अनिल नरेंद्र

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