Thursday 3 April 2014

अगर नरेंद्र मोदी नहीं तो कौन?

सोलहवीं लोकसभा का चुनावी सीन फिलहाल धुंधला है। इस चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच अधिकतर सीटों पर सीधी टक्कर है पर क्षेत्रीय दल दीवार बनकर बीच में खड़े हैं। जबकि केजरीवाल दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के विजय अभियान की गति मंद करने में लगे हैं और वोट कटवा भूमिका में नजर आ रहे हैं। चुनावी हवा का मिजाज भांपकर ही अब भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केजरीवाल पर सीधे हमले शुरू कर दिए हैं। अभी तक नरेंद्र मोदी कांग्रेस को ही निशाना बनाते रहे और कांग्रेस उन्हें पर आप के बढ़ते पभाव को देखते हुए उन्होंने अपनी रणनीति में यह बदलाव किया है। उन्हें हिंदी भाषी क्षेत्रों में आप से राजनीतिक नुकसान होने का खतरा लग रहा है। इन विषम राजनीतिक परिस्तिथियों के चलते एनडीए और यूपीए का बहुमत के जादुई आंकड़े तक पहुंचना एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। चुनाव के पहले चरण के लिए मतदान सात अपैल को है। जैसे-जैसे मतदान की तिथि करीब आती जा रही है वैसे-वैसे चुनाव पचार अपने शबाब पर पहुंचता जा रहा है। सवाल यह उठता है कि 81 करोड़ मतदाताओं की पाथमिकताएं क्या होंगी? वर्ष 1989 के चुनाव से अब तक किसी भी राष्ट्रीय दल को बहुमत नहीं मिल सका है। लगभग 26 साल के इस राजनीतिक कालखंड में दो बार गैर-कांग्रेस, गैर भाजपा सरकारें बनीं जरूर थीं जो या तो कांगेस या भाजपा की बैशाखी पर टिकी थीं। उनका कार्यकाल मुश्किल से दो-दो साल चला और उस दौरान देश कई सालों पीछे चला गया। आज देश के सामने मेरी राय में सबसे बड़ी चुनौती देश में एक स्थिर केंद्र सरकार की है। देश के सामने दर्जनों चुनौतियां मुंह फाड़े खड़ी हैं। सवाल यह उठता है कि मौजूदा सियासी परिदृश्य में एक स्थिर सरकार कौन दे सकता है? या तो कांग्रेस दे सकती है या फिर भाजपा। दुर्भाग्य से कांगेस इस स्थिति में नहीं लग रही कि वह 100 से ज्यादा सीटें ले सकेगी। रही भाजपा तो वह इस समय सबसे मजबूत विकल्प उभर कर आ रही है। उसके पधानमंत्री  पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी पूरे देश में एक स्वीकार्य नेता के रूप में अपने आपको स्थापित करने में कामयाब रहे हैं। आज वह इस स्थिति में हैं कि देश को जिस मजबूत नेतृत्व की आवश्यकता है, जिस अनुशासन, स्पष्ट दृष्टि, विकास, सही पाथमिकता की जरूरत है, वह दे सकते हैं। एक मिनट के लिए कल्पना कीजिए कि मोदी व भाजपा या उनके नेतृत्व में गठबंधन सत्ता में नहीं आया तो क्या? कौन आगे आएगा? यह सूबेदार? यह सूबेदार जो कभी अपने राज्य से बाहर नहीं निकले, क्या यह देश चलाएंगे या फिर वह अरविंद केजरीवाल जो 49 दिनों में ही भाग खड़े हुए? ऐसे कई तजुर्बे हम पहले भी कर चुके हैं। श्री एच.डी. देवगौड़ा बेशक देश के पधानमंत्री बने थे पर वह कभी भी कर्नाटक से बाहर नहीं निकल सके और नतीजा सबके सामने है। कांग्रेस का कमजोर होना और भाजपा का पूरे देश में सही से स्थापित न हो पाना हमारा दुर्भाग्य ही माना जाएगा। कांग्रेस के कमजोर होने से यह क्षेत्रीय दलों को उभरने का मौका मिलेगा। जो वोट बैंक सियासत कांग्रेस और भाजपा ने चलाई वही इन सूबेदारों ने अपना ली। नतीजा यह हुआ कि अपने-अपने सूबे में यह ताकतवर हो गए और देश की सत्ता की चाबी इनके हाथ में आ गई इस बार बहुत दिनों के बाद ऐसा मौका आया है कि नरेंद्र मोदी ऐसे नेता के रूप में आ सकते हैं जिनकी देश को एकता व अखंडता के लिए सख्त जरूरत है।

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