Tuesday 8 April 2014

सांपदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता की बहस में दबते असल महत्वपूर्ण मुद्दे

जामा मस्जिद के शाही इमाम का फतवा, वेब पोर्टल कोबरा पोस्ट का स्टिंग ऑपरेशन, इमरान मसूद का विवादास्पद बयान और अमित शाह की धमकी सभी पथम चरण के मतदान से ठीक पहले ध्रुवीकरण की राजनीति को हवा दे रहे हैं। इन सबकी शुरुआत कांग्रेस उम्मीदवार इमरान मसूद ने की जब उन्होंने सहारनपुर क्षेत्र में एक जनसभा में कह दिया यह गुजरात नहीं, यह सहारनपुर है जहां 44 फीसदी मुसलमान हैं और यहां अगर मोदी आए तो उनकी बोटी-बोटी काट दी जाएगी। कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक दलों ने इसका विरोध किया और मसूद को जेल तक जाना पड़ा। इसका जवाब शनिवार को अमित शाह और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने दिया। अमित शाह ने मुजफ्फरनगर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जिस तरह से मुजफ्फरनगर दंगों में अखिलेश सरकार ने एक तरफा कार्रवाई करके हिंदुओं का अपमान किया है उसका बदला लेना चाहिए। उन्होंने आश्वासन दिया कि केंद्र की सत्ता में मोदी की सरकार आएगी तो एक दिन में ही अखिलेश सरकार गिर जाएगी। उधर वसुंधरा ने एक सभा में कहा कि वह कहते हैं कि मोदी को काट देंगे, चुनाव बाद देखेंगे कि कौन किसको काटेगा। अब बात करते हैं कोबरा पोस्ट के स्टिंग ऑपरेशन की। लोकसभा चुनाव के लिए मतदान शुरू होने के छह दिन पहले अयोध्या के विवादित ढांचे को ढहाने के 22 साल पुराने मामले को लेकर आए इस स्टिंग ऑपरेशन पर सवाल खड़े होते हैं। गढ़े मुर्दे उखाड़ने की तर्ज पर कोबरा पोस्ट ने स्टिंग ऑपरेशन के जरिए दावा किया है कि छह दिसंबर 1992 का घटनाकम अयोध्या में पहुंचे, कारसेवकों के बेकाबू होने या भीड़ के उन्माद का नतीजा नहीं था बल्कि इसके पीछे संघ और भाजपा की सुनियोजित साजिश थी और इसमें भाजपा के शीर्ष नेताओं के साथ ही तत्कालीन कांग्रेसी पधानमंत्री नरसिंह राव तक की संदिग्ध भूमिका थी। ऐसे वक्त में जब देश के सामने विकास और सुशासन तथा भ्रष्टाचार से निपटने की चुनौती है, इस तरह के स्टिंग का आना समझ में नहीं आता। हां, यह जरूर कहा जा सकता है कि इसके पीछे ध्रुवीकरण करना और सियासत करना जरूर उद्देश्य नजर आता है। इस स्टिंग ऑपरेशन को तो सीबीआई ने भी खारिज कर दिया है। सीबीआई ने साफ कह दिया कि इस स्टिंग का सबूत के तौर पर कोई महत्व नहीं हैं। सीबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पूरे मामले की जांच के बाद सभी अपराधियों के खिलाफ जांच एजेंसी दो दशक पहले ही चार्जशीट दाखिल कर चुकी है। अदालत में ट्रायल भी चल रहा है। ऐसे में इस स्टिंग को नए सबूत के तौर पर अदालत के सामने पेश करना संभव नहीं है। यही नहीं, सीबीआई ने काफी गहराई में जाकर अपराधियों के खिलाफ सबूत जुटाए थे। स्टिंग के पीछे राजनीतिक मंशा होने का संदेह जताते हुए उन्होंने कहा कि सीबीआई खुद को राजनीतिक विवाद में फंसाना नहीं चाहती। इसके पीछे राजनीतिक ध्रुवीकरण की कोशिशें देखी जा सकती हैं। जामा मस्जिद के शाही इमाम की सार्वजनिक तौर पर कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के पक्ष में मुस्लिमों के वोट डालने के लिए की गई अपील को भी इसी राजनीति के रूप में ही देखना चाहिए। दूसरी ओर भाजपा चाहे लाख दावा करे लेकिन उसके नेता अपनी कट्टर छवि से बाहर नहीं निकलते दिखते, लिहाजा उनके विरोधियों को सांपदायिक आधार पर हमले करने से सियासी फायदे दिखते हैं। भाजपा बेशक स्टिंग ऑपरेशन के पीछे एक बड़ी साजिश देख रही है मगर 80 सीटों वाले उत्तर पदेश से दिल्ली जाने की तैयारी कर रहे उसके रणनीतिकार भी जानते हैं कि यदि वाकई ध्रुवीकरण होता है तो इसका सर्वाधिक लाभ भाजपा को हो सकता है। दूसरी ओर सबसे चुनौतीपूर्ण चुनाव का सामना कर रही कांगेस को भी शायद लग रहा हो कि धुवीकरण से सपा और बसपा से दूर रहे मुस्लिम मतदाता उसकी ओर लौट आएं। इसे देश की विडंबना ही मानें कि सांपदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता की इस बहस में देश की जनता के असल मुद्दे पर दरकिनार हो रहे हैं। महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, उच्च शिक्षा, विकास व सुरक्षा जैसे मुद्दे जो इस चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण होने चाहिए थे, इस बेकार की बहस में कहीं दब गए हैं।

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