Friday, 25 April 2014

लोकसभा 2014 चुनाव और मुस्लिम मतदाता?

लोकसभा चुनाव 2014 में एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि देश के मुसलमानों ने किसको वोट दिया और किसको नहीं देने का फैसला किया है? मुंबई के एक अंग्रेजी समाचार पत्र ने चार अप्रैल के अपने अंक में भाजपा नेता किरीट सोमैया का यह बयान छापा है कि मैंने बहुत कोशिश की मगर मुस्लिम मतदाताओं को राजी करने में मुझे अब तक सफलता नहीं मिल सकी है। याद रहे कि किरीट सोमैया सिर्प एक बार 13वीं लोकसभा के लिए मुंबई नॉर्थ ईस्ट से चुने गए थे। कोई दूसरा मौका उन्हें नहीं मिला जिसका एक बड़ा कारण मुस्लिम समुदाय की उनसे दूरी है। इस सन्दर्भ में कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि जो हाल मुंबई नॉर्थ ईस्ट लोकसभा क्षेत्र में किरीट सोमैया का है, लगभग वही हाल देशभर के उन भाजपा प्रत्याशियों का होगा जो 16वीं लोकसभा की सदस्यता के लिए अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि नरेन्द्र मोदी के नामांकन से भाजपा और मुस्लिम समुदाय की दूरी जो पहले भी कम नहीं थी और भी बढ़ गई है। रही-सही कसर गिरिराज सिंह, प्रवीण तोगड़िया सरीखे के नेता पूरी कर रहे हैं। कट्टर विचारधारा के मुस्लिमों में आज इमरान मसूद सरीखे के लोग हीरो बन गए हैं। मोदी को कोई तो गाड़ रहा है तो कोई उनकी बोटी-बोटी करने की धमकी दे रहा है। इसमें शायद ही किसी को अब सन्देह हो कि मुस्लिम समुदाय के सारे लोग चाहे वे पढ़े-लिखे हों या थोड़ा-बहुत लिखना-पढ़ना जानते हों, अमीर हों या गरीब, निजी कारोबार करते हों या नौकरशाह हों सब कांग्रेस से नाराज हैं। यह नाराजगी इतनी ज्यादा है कि कोई भी व्यक्ति बहुत आसानी से कांग्रेस के कारनामे गिना सकता है। हाल ही में सम्पन्न हुए चुनाव पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर क्षेत्र की 10 सीटों पर जो मतदान हुआ उसमें मुस्लिम मतदाताओं ने बढ़चढ़ कर भाग लिया। यहां वोट प्रतिशत बढ़ने का एक कारण यह भी रहा। मुसलमानों में समाजवादी पार्टी से मुजफ्फरनगर दंगों को लेकर इस बार नाराजगी है कि उन्होंने न तो कांग्रेस को वोट दिया और न ही सपा को। उन्होंने बसपा और आम आदमी पार्टी को अपना वोट देना ही बेहतर समझा। हालांकि मेरा मानना यह भी है कि मुसलमानों के एक तबके ने नरेन्द्र मोदी को भी वोट दिया है। मुसलमानों का एक पढ़ा-लिखा तबका मोदी को एक मौका देने के पक्ष में मुझे दिखता है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रतिष्ठित शिया उलेमा मौलाना कल्बे जव्वाद व मदनी के बयान भी इस ओर इशारा करते हैं। आम आदमी पार्टी में दूसरे समुदायों के लोगों की तरह मुस्लिम समुदाय की भी रुचि बढ़ी मगर अपनी जल्दबाजी में उसने बहुत से लोगों को मायूस किया है। अगर आप धैर्य से काम लेती, दिल्ली की सरकार को ठीक ढंग से चलाती, अच्छे शासन की मिसाल देती और 2019 के चुनावी दंगल में पूरी तत्परता से उतरती तो बात दूसरी होती। लेकिन उसने सात सीटों वाली दिल्ली को छोड़कर 543 सीटों वाली लोकसभा की तरफ उड़ान भरी और यह नहीं देखा कि जान कितनी छोटी, पंख कितने कमजोर और चुनावी आसमान कितना विशाल है। मुस्लिम वोटर यह सब देख रहा है। यही कारण है कि मुसलमान अब भी असमंजस में हैं और उसके पास रणनीतिक वोटिंग को छोड़कर कोई दूसरा विकल्प नहीं है अर्थात मुस्लिम वोट सपा, बसपा, तृणमूल, आप और कांग्रेस (सोनिया-इमाम बुखारी मुलाकात के कारण नहीं) आदि पार्टियों के खाते में जाएगा। इस वक्त मुस्लिम तेवर साफ गवाही दे रहे हैं कि वे इस चुनाव में बड़ी संख्या में मतदान के लिए अपने घरों से निकलेंगे और दिल से ज्यादा दिमाग से वोट देने की नीति अपनाएंगे। अधिकतर जगहों पर उनका टारगेट एक ही होगा...भाजपा।

-अनिल नरेन्द्र

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