Sunday, 20 April 2014

मेधा पाटेकर बनाम किरीट सोमैया, करुणा शुक्ल बनाम लखन साहू

उत्तर-पूर्व मुंबई लोकसभा सीट से कई दिग्गज मैदान में हैं। यहां सबसे रोचक पक्ष है आम आदमी पार्टी की ओर से मेधा पाटेकर का चुनाव मैदान में कूदना। मुंबई में आम आदमी पार्टी से बड़ा ब्रांड मेधा पाटेकर हैं। जिस इलाके से आप चुनाव लड़ रही है, वहां इस पार्टी को जानने वाले बहुत कम हैं। लेकिन पाटेकर उनके लिए अनजाना नाम नहीं है। हालांकि इसमें भी विरोधाभास है। उत्तर-पूर्व लोकसभा क्षेत्र में मध्य वर्ग की कॉलोनियों के लोग देशभर में किए उनके कार्य के कारण उन्हें जानते हैं लेकिन झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों को इनके बारे में उतना पता नहीं है। इस लोकसभा सीट से उनका मुकाबला एनसीपी (कांग्रेस समर्थित) के मौजूदा सांसद संजय दीना पाटिल और भाजपा के दिग्गज नेता किरीट सोमैया से है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पाटेकर कांग्रेस के मतदाताओं को अपनी ओर ज्यादा खींचेंगी बजाय भाजपा के वोटरों के। सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में लम्बी लड़ाई लड़ने वाली मेधा की राजनीतिक तौर पर यह पहली लड़ाई है। वहीं उनके प्रतिद्वंद्वी अनुभवी राजनीतिक खिलाड़ी हैं संजय पाटिल। संजय पाटिल ने पिछली बार किरीट सोमैया को तीन हजार से कम वोटों से हराया था। यह परिणाम एनसीपी के पक्ष में इसलिए भी गया था क्योंकि तब शिवसेना से टूट कर अलग हुए दल एमएनएस ने अपना प्रत्याशी खड़ा किया था। लिहाजा भाजपा के वोट बंट गए थे। सोमैया की छवि भी एक राजनीतिक संघर्ष के योद्धा की है। उन्होंने भ्रष्टाचार के कई मामले उठाए। पाटेकर और पाटिल के बीच वोट कटने से सोमैया निकल सकते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी पूर्व भाजपा सांसद करुणा शुक्ल बिलासपुर सीट से इस बार कांग्रेस की उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं। करुणा अटल जी के बड़े भाई की बेटी हैं। नवम्बर में करुणा ने भाजपा के साथ अपना करीब तीन दशक पुराना संबंध समाप्त करके कांग्रेस का हाथ थाम लिया था और अब वह इस मुद्दे के साथ मतदाताओं से रूबरू हैं कि भाजपा के अटल युग का समापन हो चुका है। अब वह जीवनपर्यंत कांग्रेस संगठन को मजबूत करने का प्रयास करेंगी। बड़ा विचित्र है कि कांग्रेस की करुणा शुक्ल और भाजपा के लखन साहू दोनों ही उम्मीदवार अटल का नाम जप कर वोट मांग रहे हैं। करुणा की तकरीर में अटल जी का जिक्र जरूर होता है जबकि भाजपा के प्रचार में भी अटल जी के होर्डिंग लगे हैं। भाजपा उम्मीदवार लखन साहू स्वयं भाजपा के दिग्गज नेता स्वर्गीय निरंजन केसरवानी के बेटे के खिलाफ जिला पंचायत का चुनाव लड़ चुके हैं। कांग्रेस में करुणा का बाहरी होने का मुद्दा है तो लखन साहू के बारे में कहा जाता है कि बड़े नेताओं को परे कर उनको टिकट दिया गया है क्योंकि उनका ज्यादा रसूख नहीं माना जाता और दिग्गजों के झगड़े में उनकी लॉटरी लग गई। करुणा शुक्ल कहती हैं कि वह मायके से ससुराल आ गई हैं। अटल बिहारी वाजपेयी उनके चाचा हैं, इसलिए भाजपा उनका घर है। शादी के बाद वह शुक्ल परिवार में आईं जो कांग्रेस से जुड़ा है, इसलिए कांग्रेस प्रवेश के बाद वह अपनी ससुराल आ गई हैं। भाजपा में अब अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी का युग समाप्त हो चुका है। भाजपा अब नरेन्द्र मोदी, राजनाथ सिंह और कुछ अन्य विशेष लोगों के समूह द्वारा संचालित होती है। 17 लाख मतदाता वाले बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र में भाजपा का वर्चस्व रहा है मगर अगला वर्चस्व किसका होगा, 24 अप्रैल को पता चल जाएगा।
-अनिल नरेन्द्र


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