Saturday, 23 November 2024
मणिपुर में राजग विधायकों का अल्टीमेटम
गौतम अडाणी पर धोखाधड़ी, रिश्वत का केस
Thursday, 21 November 2024
लाभ के पद से जुड़े सांसदों की अयोग्यता
समय से पहले हो सकते हैं दिल्ली विधानसभा चुनाव
Tuesday, 19 November 2024
झारखंड में ज्यादा मतदान किसको फायदा मिलेगा
महाराष्ट्र की सत्ता किसके हाथ में?
23 नवम्बर को महाराष्ट्र की सत्ता में कौन आएगा ये सवाल महाराष्ट्र और राजनीतिक दिलचस्पी रखने वाला हर शख्स जानना चाहता है। विधानसभा चुनाव में क्या चर्चा चल रही है और चुनाव में कौन-सा फैक्टर काम करेगा, किन जातीय समीकरणों का गणित चलेगा? मराठवाड़ों में क्या होगा, दौड़ में कौन आगे है इत्यादि-इत्यादि सवाल पूछे जा रहे हैं। कुछ ही महीने पहले लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी को मिली जीत का टैम्पो वह बरकरार रख सकेगा। दूसरी और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महायुति सरकार ने राज्यभर में विभिन्न योजनाओं को लागू करके चुनाव में वापसी करने की कोशिश की है। विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा 2014 के बाद महाराष्ट्र में एक प्रमुख पार्टी बनकर उभरी है। इसलिए वह इस चुनाव मे भी प्रमुख पार्टी के रूप में उभरने की कोशिश करेगी। राज्य में कई छोटी पार्टियां भी मैदान में है, कई बागी भी मैदान में हैं। यह दोनों ही गठबंधनों का समीकरण बदल सकती हैं। महाराष्ट्र में महायुति (भाजपा गठबंधन) में विचारों की भिन्नता की दरार भी खुलकर सामने आ रही है। महायुति के साथी अजित दादा पवार और उनकी पार्टी एनसीपी खुलकर भाजपा नेताओं के बयानों का विरोध कर रही है। शिंदे और देवेन्द्र फण्डनवीस में आपसी खींचतान है। ऐसे में सवाल उठता है कि वोटिंग के दिन क्या गठबंधन के कार्यकर्ता एक-दूसरे की पार्टी को वोट ट्रांसफर करा पाएंगे? चुनाव के दौरान गौतम अडानी का मुद्दा भी बीच में आ गया है। महाविकास अघाड़ी पार्टी जहां एक तरफ यह प्रचार कर रही है कि अब उद्योगपति मेज पर बैठकर सरकारें बना रहे हैं, तोड़ रहे हैं, वहीं महाराष्ट्र में लगने वाले कई उद्योग (प्रोजेक्ट्स) गुजरात ले जाए जा रहे हैं, जिससे महाराष्ट्र की अस्मिता को धक्का लगा है। शरद पवार और उद्धव ठाकरे की पार्टियों को तोड़ने से भी जनता की सहानुभूति महाविकास अघाड़ी के साथ है। दूसरी ओर एकनाथ शिंदे की कल्याणकारी योजनाएं, थोक भाव में धन-बल का प्रयोग करना भी एक चुनावी फैक्टर है। फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चूंकि महाराष्ट्र में उनका मुख्यालय है कई क्षेत्रों खासकर कि धर्म में महत्व रखता है और संघ खुलकर भाजपा के लिए बैटिंग कर रहा है। हालांकि विदर्भ की बात करे तो नितिन गडकरी को पूरी तरह से नजरअंदाज करना महायुति को भारी पड़ सकता है। हमें लगता है कि भाजपा का प्रयास यह भी होगा कि वह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरे ताकि राज्यपाल उन्हें सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करें। अगर एक बार सरकार बन गई तो फिर खेल खेलने में भाजपा माहिर है। दूसरी ओर विश्लेषकों का यह भी मानना है कि महाविकास अघाड़ी का पोस्ट पोल एलायंस है और राज्यपाल को पहले सबसे बड़े पोस्ट एलायंस को मौका देना चाहिए। हवा का रुख महाविकास अघाड़ी की ओर लग रहा है पर हमारे सामने हरियाणा का परिणाम है जहां दावा तो कांग्रेस की जीत का किया जा रहा था और परिणाम भाजपा की रिकार्ड जीत के सामने आए। इसलिए चुनाव में किसी की भविष्यवाणी करना ठीक नहीं होता। देखें कि ईवीएम में किसकी किस्मत खुलती है।
Saturday, 16 November 2024
उपचुनाव में दिग्गजों की यूपी में अग्नि परीक्षा
भाजपा और अजित पवार में बढ़ती दूरी
Thursday, 14 November 2024
मैं व्यवसाय नहीं, एकाधिकार के खिलाफ हूं
चुनाव नतीजे तय करेंगे कि असली कौन है और नकली कौन है
Tuesday, 12 November 2024
क्या राष्ट्रपति रहते भी जेल का खतरा बना रहेगा?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का क्या असर होगा?
जो यह उम्मीद कर रहे थे कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के माइनॉरिटी स्टेटस को लेकर लंबे समय से चले आ रहे विवाद पर हां या न में स्पष्ट जवाब मिल जाएगा। उन्हें सुप्रीम कोर्ट के शुक्रवार को आए फैसले से थोड़ी राहत भी मिली होगी और थोड़ी निराशा भी। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की एहमीयत इस मायने में है कि इस मसले को देखने समझने के तरीकों में निहित कमियों पर रोशनी डालता और उन्हें दूर करता है। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने शुक्रवार को 1967 के अपने फैसले को पलट दिया है जिसमें कहा गया था कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी जैसे केंद्रीय विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा हासिल नहीं हो सकता था। सात जजों की संवैधानिक पीठ को बहुमत के फैसले में एस अजीज बाशा बनाम केंद्र सरकार मामले के फैसले को पलटा है। हालांकि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा प्राप्त होगा या नहीं इसका फैसला शीर्ष अदालत की एक रेगुलर बेंच करेगी। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, सूर्यकांत, जेबी पारदीवाला, दीपांकर दत्ता, मनोज मिश्रा और एससी शर्मा सात जजों की बेंच में शामिल थे। इस कानूनी विवाद की जटिलता को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि यह आधी सदी से भी ज्यादा पुराना है, इसकी शुरुआत 1967 में अजीज बाशा के आए सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले से मानी जाती है जिसमें कहा गया था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है क्योंकि यह एक कानून अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक्ट 1920 के जरिए अस्तित्व में आया था। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने इसी फैसले को पलटते हुए कुछ परीक्षण भी निर्धारित किए हैं। अब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे पर अगली सुनवाई का फैसला इन्हीं परीक्षणों को ध्यान में रखते हुए किया जाएगा। व्यापक तौर पर परीक्षण यह है कि संस्थान की स्थापना किसने की, क्या संस्थान का चरित्र अल्पसंख्यक है और क्या यह अल्पसंख्यकों के हित में काम करता है? माइनारिटी स्टेटस का सवाल यूनिवर्सिटी प्रबंधन के विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं से तो जुड़ा है ही, यहां लागू होने वाली आरक्षण व्यवस्था पर भी निर्णायक प्रभाव डालने वाला है। यूनिवर्सिटी में मुस्लिमों का कितना आरक्षण रहेगा और एससी एसटी ओबीसी आरक्षण मिलेगा या नहीं, यह भी इस सवाल के जवाब में निर्भर करता है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक स्वरूप की बहाली बेशक हो गई है हालांकि अभी तीन सदस्यीय पीठ को इस स्वरूप से जुड़े मानदंड तय करने होंगे। एएमयू इंतेजामिया और अलीगढ़ बिरादरी इसे अपनी बड़ी जीत और रास्ता खुलना मान रहे हैं। इस फैसले के साथ ही सवाल खड़ा हो रहा है कि अब एएमयू के संचालन और व्यवस्थाओं में क्या बदलाव हो सकें। जिस पर एक ही जवाब है कि अभी आदेश के कानूनी पहलुओं की समीक्षा और बारीकियों पर कानूनी राय लेने के बाद ही कुछ कहा जाएगा। और फिर तय होगी। एएमयू के संचालन में अगर गौर करें तो अब तक एएमयू अपने एक्ट, यूजीसी और शिक्षा मंत्रालय के नियमों से संचालित होता है। इसके तहत एएमयू में 50 फीसदी छात्रों को आंतरिक कोटे का लाभ मिलता है। हालांकि अगर अल्पसंख्यक स्वरूप हटता है तो शायद आरक्षण व्यवस्था लागू होगी। जानकार कहते हैं कि अब स्थितियां यथावत रहेंगी।