Tuesday, 31 December 2024

मनमोहन के सात फैसले जिसने देश की दिशा बदल दी


गुरुवार शाम को पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निधन के बाद देश-दुनिया भर में लोग उनके योगदान की बात कर रहे हैं। वर्ष 2004 से लेकर 2014 तक भारत के प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालने वाले मनमोहन सिंह को आर्थिक उदारीकरण के नायक के तौर पर देखा जाता है। 1991 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी की सरकार में मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाया गया था। उनकी बनाई नीतियों ने देश में लाइसेंस राज खत्म कर उदारीकरण के ऐसे दरवाजे खोले जिससे भारत को न सिर्फ गंभीर आर्थिक संकट से बचाया बल्कि देश की दशा और दिशा दोनों बदल डाली। दस साल के उनके कार्यकाल में कई ऐसे बड़े फैसले लिए गए, जो मील के पत्थर साबित हुए। सूचना का अधिकार यानि आरटीआई डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में 12 अक्तूबर 2005 को लागू हुआ। यह कानून भारतीय नागरिकों को सरकारी अधिकारियों और संस्थानों से सूचना मांगने का अधिकार देता है। यह वो अधिकार है जिससे नागरिकों को जानकारी के आधार पर फैसले करने का मौका और इच्छा मुताबिक सत्ता का इस्तेमाल करने वालों से सवाल करने का मौका मिला। इससे न सिर्फ लालफीता शाही बल्कि अफसरशाही के टालमटोल भरे रवैये को दूर करने में मदद मिली। मनमोहन सिंह की सरकार ने 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) बनाया, जिसे 2 फरवरी 2006 से लागू किया गया। इस योजना के तहत ग्रामीण इलाकों में रहने वाले हर परिवार को साल में कम से कम 100 दिन मजदूरी की गारंटी दी गई। इस योजना ने न सिर्फ ग्रामीण इलाकों में गरीबी बल्कि शहरों की तरफ पलायन भी कम हुआ। पहले ही साल इस योजना के तहत 2.10 करोड़ परिवारों को रोजगार दिया गया। तब प्रतिदिन रोजगार पाने वाले व्यक्ति को 65 रुपए दिए जाते थे। साल 2008 में कांग्रेस का नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने देशभर की किसानों का कर्ज माफ करने का फैसला लिया। उससे सीएजी के मुताबिक अनुमानित 3.69 करोड़ छोटो और सीमांत किसानों को राहत मिली। कांग्रेsस ने 2009 के आम चुनावों में भी इसे खूब भुनाया। नतीजा यह हुआ कि एक बार फिर कांग्रेस की सरकार बनी। साल 2008 में भारत और अमेरिका के बीच परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। शीत युद्ध के बाद से अमेरिका का झुकाव पाकिस्तान की तरफ था लेकिन इस समझौते के बाद अमेरिका और भारत के रिश्तों ने एक ऐतिहासिक मोड़ ले लिया। इस मुश्किल घड़ी में राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और सपा के सहयोग से मनमोहन सरकार अपने मकसद में कामयाब रही। साल 2008 में दुनिया भर में आर्थिक तबाही मची हुई थी। पर हर कोने से शेयर बाजारों के गर्त होने की खबरे आ रही थीं, निवेशकों के लाखों, करोड़ों रुपए हर रोज हवा हो रहे थे। जब लगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी। तभी मनमोहन सरकार की सूझबूझ ने हालात संभालने शुरू कर दिए और ये सिलसिला ऐसा चला कि भारत इस आर्थिक मंदी की चपेट में आने से बच गया। साल 2010 में मनमोहन सिंह की सरकार ने देश में शिक्षा का अधिकार लागू किया। इसके तहत 6 से 14 साल तक के सभी बच्चों को शिक्षा मुहैया कराना संवैधानिक अधिकार बना दिया गया। इस कानून में शिक्षा की गुणवत्ता, सामाजिक दायित्व, निजी स्कूलों में आरक्षण और स्कूलों में बच्चों के प्रवेश को नौकरशाही से मुक्त कराने का प्रावधान भी है। साल 2013 में देश के गरीब लोगों के खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मनमोहन सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम लागू किया। यह अधिनियम देश में 81.35 करोड़ आबादी को कवर करता है। आज भी मोदी सरकार इसी योजना का नाम बदलकर चला रही है। मनमोहन सिंह ने जब कहा था कि इतिहास उनके मूल्यांकन में वर्तमान के मुकाबले ज्यादा उदार होगा तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं थी। मनमोहन सिंह के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। इतिहास में उनका योगदान दर्ज हो गया है, हम इस महान आत्मा को श्रद्धांजलि देते हैं।

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