बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों ने यह तो साबित कर ही दिया है कि 20 साल शासन के बाद भी नीतीश कुमार की विश्वसनीयता अभी भी बनी हुई है। आज भी नीतीश बिहार के सबसे कद्दावर नेता हैं। विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान नीतीश कुमार की सेहत और सक्रियता पर सवाल छाए रहे। मीडिया से उनकी दूरी कुछ मंचों से उनके दिए बयान और हाव-भाव पर लोग सवाल उठा रहे थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मंच पर उनकी अनुपस्थिति और रोड शो में बराबर न खड़ा होना विवाद का विषय बना हुआ था। बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव नीतीश को अचेत मुख्यमंत्री कहते थे। लेकिन इन सबके बावजूद बिहार की जनता कहती रही कि नीतीश कुमार की पार्टी इस बार 2020 की तुलना में बढ़िया प्रदर्शन करेगी। जेडीयू ने अप्रत्याशित जीत दर्ज की। पार्टी कार्यालय से लेकर मुख्यमंत्री आवास तक पोस्टर लगे ...टाइगर अभी जिंदा है। जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा पहले से ही कई इंटरव्यू में यह कह चुके थे कि नीतीश कुमार को जब-जब कम आंका जाता है। तब-तब वह अपने प्रदर्शन से लोगों को चौंकाते रहे हैं। इस बार बिहार में 67.13 प्रतिशत मतदान हुआ जो पिछले विधानसभा चुनाव से 9.6 प्रतिशत ज्यादा है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं का मतदान 8.15 प्रतिशत ज्यादा रहा है। आमतौर पर यह माना गया था कि नीतीश कुमार को इस बार महिलाओं का भारी समर्थन मिल रहा है और ये चुनाव के परिणामों में भी नजर आया। मुमकिन है कि महागठबंधन को भी इसका आभास था, इसलिए पहले चरण के मतदान से महज पंद्रह दिन पहले तेजस्वी यादव ने जीविका दीदियों के लिए स्थायी नौकरी, तीस हजार के वेतन, कर्ज माफी, दो सालों तक ब्याज मुक्त क्रैडिट , दो हजार का अतिरिक्त भत्ता और 5 लाख तक का बीमा कवरेज देने का लंबा-चौड़ा वादा किया। इसके बावजूद नतीजे उनके पक्ष में नहीं आए। महागठबंधन चुनाव से लगभग एक महीने पहले नीतीश सरकार की तरफ से जीविका दीदियों के खाते में 10-10 हजार कैश बेनेफिट ट्रांसफर करने को वोट खरीदने से जोड़ती हो पर परिणाम बताते हैं कि इनका सीधा फायदा एनडीए को हुआ। ऐसा नहीं कि अपने लंबे कार्यकाल में नीतीश ने जनकल्याण योजनाएं नहीं चलाई। साल 2007 में ही नीतीश ने इस योजना की शुरुआत कर दी थी। नीतीश कुमार ने अपने पहले कार्यकाल में ही स्कूल जाने वाली लड़कियों के लिए साइकिल, पोशाक और मैट्रिक की परीक्षा पहली डिवीजन से पास करने वाली छात्राओं को दस हजार रुपए की राशि दी। बाद में 12वीं की परीक्षा फर्स्ट डिवीजन से पास करने पर 25000 रुपए और ग्रेजुएशन में 50,000 रुपए की प्रोत्साहन राशि दी जाने लगी। अपने पहले कार्यकाल में नीतीश ने महिलाओं को पंचायत चुनाव में 50 प्रतिशत आरक्षण दिया। पुलिस भर्ती में महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण की सुविधा दी और इस बार के चुनाव में भी वादा किया कि अगर उनकी सरकार बनी तो राज्य सरकार की नौकरियों में भी महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा। नीतीश कुमार को इस बार अति पिछड़ा वर्ग का भी भरपूर समर्थन मिला है। प्रभुत्व वाली नीतियों के खिलाफ ईबीसीवी जातियां एकजुट नजर आईं और उन्होंने एनडीए को वोट दिया। नीतीश कुमार जिस सामाजिक वर्ग से आते हैं, वह बिहार की आबादी का सिर्फ 2.91 प्रतिशत है। इसके बावजूद वह इतने बड़े गठबंधन के नेता बने। आमतौर पर माना जा रहा है कि तेजस्वी के लिए अब भी पिता लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल की जंगलराज वाली छवि को भेदना मुश्किल हो गया था और चुनाव में यह एक मुद्दा जरूर बना। दूसरी तरफ नीतीश कुमार सुशासन बाबू की अपनी छवि को अब भी बनाए हुए हैं। 20 साल सत्ता में रहने के बावजूद नीतीश कुमार की साफ-सुथरी छवि है, उन पर आज तक भ्रष्टाचार का कोई दाग नहीं लगा। पर आलोचक यह भी कहते हैं कि नीतीश के नेतृत्व में डबल इंजन की सरकार होते हुए भी बिहार देश के सबसे गरीब राज्यों में है। पलायन आज भी एक बहुत बड़ी वास्तविकता है। नीतीश ने इन मुद्दों को गंभीरता से अड्रैस नहीं किया और इन पर काम करना अब एनडीए की सरकार के लिए एक चुनौती है। एक विश्लेषक का मानना है कि नीतीश कुमार को सहानुभूति वोट भी मिलें क्योंकि कुछ लोगों का मानना था कि यह इलेक्शन नीतीश कुमार का फेयरवेल इलेक्शन था और बिहार के वोटरों ने वोट के जरिए अपने नेता को एक अच्छा फेयरवेल दिया है। लोगों में एक संदेश था कि ये शायद नीतीश कुमार का आखिरी चुनाव है।
-अनिल नरेन्द्र
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