Tuesday, 25 November 2025

बिहार में गृह विभाग सम्राट चौधरी को मिलना

सम्राट चौधरी को मिलना नीतीश सरकार के मंत्रियों के विभागों के बंटवारे के साथ ही शुक्रवार को बिहार की सत्ता में बड़ा परिवर्तन दिखा। 2005 के बाद से लगातार गृह विभाग मुख्यमंत्री नीतीश कुमार संभाल रहे थे, जो आमतौर पर सभी मुख्यमंत्री अपने पास ही रखते हैं पर ताजा दायित्व बंटवारे में यह महत्वपूर्ण विभाग उनसे छीना गया है और गृहमंत्री अमित शाह के विश्वास पात्र सम्राट चौधरी को दिया गया है। इससे इन अटकलों को जोर मिला है कि बिहार पर भाजपा का पूरा नियंत्रण हो चुका है और नीतीश कुमार महज रिमोट मुख्यमंत्री बन गए हैं। भाजपा की वर्षो से यही कोशिश रही कि बिहार का वंट्रोल उसके हाथ में आ जाए। इसी उद्देश्य से चुनाव से पहले भाजपा ने यह घोषणा नहीं की थी कि नीतीश ही अगले मुख्यमंत्री होंगे। भाजपा के इस उद्देश्य की प्राप्ति में अभी पूरी सफलता नहीं मिली है। चुनाव नतीजों ने साबित कर दिया कि बिहार में नीतीश आज भी सबसे कद्दावर नेता हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस मजबूरी के चलते नीतीश को भाजपा की यह शर्त माननी पड़ी कि गृह विभाग उनके पास नहीं होगा, भाजपा अपने पास रखेगी और नीतीश को झुकना पड़ा। इस तरह अमित शाह के विश्वासपात्र सम्राट चौधरी को उपमुख्यमंत्री पद के साथ-साथ गृह मंत्रालय भी मिल गया। अगर यह कहा जाए कि अब नीतीश रिमोट मुख्यमंत्री हैं तो गलत शायद न हो। असल कंट्रोल तो दिल्ली से ही होगा। अब तमाम प्राशासन, पुलिस, कानून व्यवस्था इत्यादि सम्राट चौधरी के हाथ में होगी। बिहार में लालू राज समाप्त होने के बाद नीतीश कुमार नवम्बर 2005 में सत्ता में आए। उसके बाद लगातार 20 साल से गृह विभाग उनके पास था। लालू राज के जिस जंगलराज की बात इस चुनाव में कानून व्यवस्था स्थापित कर दहशत के उस दौर को समाप्त किया और शांति व्यवस्था लागू करवाने में नीतीश का विशेष योगदान रहा। अपराध पर नकेल कसी, फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए, पुलिस को खुली छूट दी। सख्त कानून व्यवस्था के जरिए यह अवधारणा बनी कि अपराधी चाहे जितना भी बड़ा क्यों न हो, सियासी दबदबा भी रखता हो, कानून की नजर से कोईं नहीं बच सकता। सुशासन का प्रादेश में ऐसा माहौल बना कि नीतीश कुमार सुशासन बाबू ही कहलाने लग गए। दो दशक के दौरान बिहार में कोईं बड़ा दंगा भी नहीं हुआ। नीतीश कुमार को इस बार गृह विभाग न मिलना चौंकाने वाला जरूर है। लोग इसका मतलब तलाश रहे हैं। क्या भाजपा यह संकेत दे रही है कि मजबूरी के चलते नीतीश को मुख्यमंत्री तो बना दिया पर कितने दिन तक वह इस पद पर टिके रहेंगे इस पर अटकलों का बाजार गर्म है। पर शपथ ग्राहण से पहले नीतीश को यह समझा दिया गया था कि चूंकि भाजपा की सीटें जद(यू) से ज्यादा हैं इसलिए गृह विभाग तो हमारे पास ही रहेगा। नीतीश कुमार ने अपने पैरों पर पहले ही वुल्हाड़ी मार ली थी इसलिए इसे स्वीकार करने के अलावा उनके पास शायद कोईं और विकल्प नहीं रहा होगा। पर नीतीश मंझे हुए खिलाड़ी हैं वह इतनी आसानी से हार मानने वाले नहीं हैं। क्या निकट भविष्य में बिहार में कोईं नया खेला भी देखने को मिल सकता है। वैसे भाजपा को गृह मंत्रालय मिलने से राज्य में अपराधियों पर तो नकेल कसेगी ही लेकिन यदि वैसा नहीं हुआ तो उसका असर भी उल्टा हो सकता है। गृह विभाग भाजपा को मिलने से पार्टी विरोधियों खासकर आरजेडी और कांग्रोस में बेचैनी बढ़नी स्वाभाविक है। अंत में जन सुराज पार्टीा के संस्थापक प्राशांत किशोर ने आरोप लगाया कि बिहार में नीतीश वुमार सरकार की नईं कैबिनेट भ्रष्ट और अपराधियों से भरी है। यह मंत्रिपरिषद बिहार के लोगों के मुंह पर एक तमाचा है। ——अनिल नरेन्द्र

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