Saturday, 28 June 2025

इजरायल-ईरान युद्ध के क्या निकले नतीजे

इजरायल और ईरान के बीच 12 दिनों की जंग के क्या नतीजे निकले? इस जंग में तीन प्रमुख देश शामिल थेö इजरायल, ईरान व अमेरिका। इसके तीन ही प्रमुख किरदार थे... अयातुल्ला अली खामेनेई, बेंजामिन नेतान्याहू और डोनाल्ड ट्रंप। अगर हम किरदारों की बातें करें तो सबसे बड़े हीरो रहे अयातुल्ला खामेनेई। न सिर्फ उन्होंने इजरायल को उनके इतिहास में पहली बार ऐसी मार मारी की उसे अपने असितत्व को बचाने के लिए ट्रंप के आगे भीख मांगनी पड़ी। बता दें कि इजरायल ने 12 दिन के इस युद्ध को दो उद्देश्यों से शुरू किया था। पहला ः ईरान के परमाणु कार्पाम को खत्म करा जाए। दूसरा उद्देश्य था कि ईरान से अयातुल्ला रेजीम को खत्म करके अपने पिठ्ठओं को बैठाना। इजरायल दोनों मामलों में नाकाम रहा। ईरान ने इजरायल सेना पर तबाड़तोड़ जवाबी हमला किया कि उसके अस्तित्व पर ही खतरा हो गया और अपने अस्तित्व को बचाने के लिए ट्रंप की शरण में जाना पड़ा। रहा सवाल सत्ता परिवर्तन का तो ईरान पहले से कहीं ज्यादा एकजुट हो गया और मजबूत हो गया। इजरायल की मध्य पूर्व में बादशाहत हमेशा के लिए खत्म हो गई। और जहां तक परमाणु कार्पाम रोकने का सवाल है बेशक अमेरिका ने ईरान के कुछ परमाणु संयंत्रों पर जबरदस्त हमले किए पर वह ईरान के परमाणु कार्पाम को खत्म नहीं कर सके। ज्यादा से ज्यादा कुछ महीने पीछे धकेल दिया है। अमेरिकी पेंटागन से जो रिपोर्ट आ रही है, उससे पता चलता है अमेरिका और इजरायल के हमले से ईरान का परमाणु कार्पाम पूरी तरह से नष्ट नहीं हो पाया है। हालांकि ट्रंप इसे फेक न्यूज कहते हैं। अब बात करते हैं इजरायल और नेतान्याहू की। नेतान्याहू ने इजरायल को इतना भारी नुकसान पहुंचाया है जितना उसको 70-75 वर्षों के इतिहास में किसी ने नहीं पहुंचाया। इसने इजरायल के मध्य पूर्व में न केवल धौंस को ही खत्म कर दिया बल्कि दुनिया को यह साबित कर दिया कि वह अभेद देश नहीं, उस पर भी हमले हो सकते हैं। इजरायल की चौधराहट हमेशा के लिए खत्म हो गई है। नेतान्याहू चले तो खामेनेई को हटाने कहीं खुद को न हटना पड़ जाए? अब बात करते हैं अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की। वह बार-बार झूठे साबित हो चुके हैं पर उनके सीज फायरों (युद्ध विराम) की घोषणाएं भी मजाक बनकर रह गई हैं। उल्लेखनीय है कि संघर्ष के 12वें दिन ट्रंप के सीजफायर ऐलान के कुछ ही घंटों में इजरायल और ईरान ने फिर से हमले करने शुरू कर दिए। यह खुशी की बात है कि फिलहाल युद्ध विराम लागू है, कितने दिनों तक रहता है यह कहना मुश्किल है। जहां तक ट्रंप के सीजफायर की बात है तो आपरेशन सिंदूर संघर्ष को रुकवाने का श्रेय वह अब तक 17 बार ले चुके हैं जबकि यह सत्य नहीं है। ऐसे ही ट्रंप ने रूस-पोन के युद्ध विराम की झूठी घोषणा की थी किन्तु यह संकेत मिलता है कि ट्रंप अपनी सीजफायर घोषणाओं को भी नोबेल पुरस्कार के लिए मजबूत दावेदारी के रूप में पेश करना चाहते हैं। हालांकि तथ्य यह है कि नोबेल पुरस्कार तत्कालिक उपलब्धियों के लिए नहीं, बल्कि दीर्घकालिक शांति प्रयासों के लिए दिए जाते हैं। कुल मिलाकर ईरान और अयातुल्ला का पलड़ा सबसे भारी रहा। मैंने लिखा था कि ईरान बड़ी शक्ति बनकर उभरेगा यह सत्य होता जा रहा है। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 26 June 2025

ईरान के पास पलटवार के विकल्प

रविवार सुबह इजरायल-ईरान संघर्ष में अमेरिका के सीधे कूदने से पूरे विश्व में चिन्ता की लहर दौड़ गई। घोषित रूप से अमेरिका ने ईरान के परमाणु उपामों को निशाना बनाया और इसकी आशंका संघर्ष की शुरुआत से ही जताई जा रही थी। अमेरिका ने अपने सबसे दूसरे बड़े बम कल्संटर बम जो कि बी-2 बॉम्बर से फेंका गया या इस्तेमाल करके अब ईरान के लिए जवाबी कार्रवाई अपनी पूरी ताकत के साथ करने का रास्ता खोल दिया। इजरायल और अमेरिका दो प्रमुख लक्ष्य के साथ इस संघर्ष में उतरे थे। ईरान का परमाणु कार्पाम का पूरी तरह से खात्मा और ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई के शासन का अंत। हमें नहीं लगता कि अमेरिकी बमबारी के बाद भी वह अपने इन लक्ष्यों में से कोई भी लक्ष्य पूरा होने के करीब पहुंचा। आज ईरान को अमेरिका को भी मुहंतोड़ जवाब देने का मौका मिल गया। जब से इजरायल ने ईरान के सैन्य और परमाणु स्थलों पर बम फेंके हैं और युद्ध शुरू किया है। तब से ईरान के सर्वोच्च नेता से लेकर कई अधिकारियों ने अमेरिका को इस युद्ध से दूर रहने के कहा था। अब देखना है कि ईरान के पास जवाबी कार्रवाई करने के विकल्प क्या हैं? ईरान होर्मूज जलडमरूमध्य को को निशाना बना सकता है। ईरान फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी से जोड़ने वाले दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण तेल गलियारे होर्मूज जलडमरूमध्य को बंद कर सकता है। बता दें कि वैश्विक स्तर पर होने वाले कुल तेल व्यापार का लगभग 20 प्रतिशत इसी होर्मूज के जरिए ही होता है। इसका दुनिया पर क्या परिणाम होगा कल्पना भी करना मुश्किल है। दूसरा ः अमेरिकी ठिकानों और सहयोगियों पर हमला कर सकता है ईरान। अमेरिका ने इस क्षेत्र में हजारों सैनिक तैनात कर रखे हैं। इनमें कुवैत, बहरीन, कतर और संयुक्त अरब अमीरात में स्थायी अड्डे शामिल हैं। इन ठिकाने पर इजरायल जैसे ही अत्याधुनिक सुरक्षा व्यवस्था है। लेकिन मिसाइलों की बौछार या सशस्त्र ड्रोनों के झुंडों से पहले अलर्ट के लिए बहुत कम समय होगा। ईरान उन देशों में प्रमुख तेल और गैस संयंत्रों पर भी हमला कर सकता है। ऐसा करके ईरान युद्ध में अमेरिका की भागीदारी के लिए इन देशों को सबक सिखाना चाहेगा। इजरायल अपनी प्रवासियों-हिजबुल्ला, हमास, हूती से भी अमेरिका और इजरायल पर हमले करवा सकता है। ईरान ने अमेरिकी हमलों की कड़ी निन्दा की है और इसे अपमानजनक बताया है। ईरान ने दूरगामी नतीजों की चेतावनी भी दी है। ईरान को अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत जवाब देने का हक है और वह इजरायल के साथ अमेरिका को भी निशाना बना सकता है। अव्वल तो ट्रंप के संघर्ष में कूदने की अमेरिका में ही निन्दा हो रही है। विपक्षी दल युद्ध भड़काने वाले इस एकतरफा कदम की तीखी आलोचना कर रहे हैं। आने वाले दिनों में इजरायल में नेतान्याहू की और अमेरिका में ट्रंप की सत्ता को ही चुनौती मिल सकती है। रहा सवाल ईरान का और अयातुल्ला अली खामेनेई को सत्ता से हटाने के लक्ष्य का। सवाल है आज ईरान एकजुट हो गया है और पूरी ताकत से अयातुल्ला खामेनेई के पीछे खड़ा है। एक के बाद एक महामारी और युद्धों से जूझती जा रही दुनिया का सबसे ज्यादा स्थायित्व और शांति की जरूरत थी लेकिन डर है कि अमेरिकी हमले ने ऐसी किसी उम्मीद पर पानी फेर दिया है। यही नहीं पूरे विश्व को तीसरे महायुद्ध के दरवाजे पर ला खड़ा कर दिया है। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 19 June 2025

क्या ईरान मध्य-पूर्व एशिया का नया सुपर पावर बनेगा

शुक्रवार को इजरायल ने ईरान के खिलाफ यह कहते हुए बड़े हमलों को अंजाम दिया कि ईरान उनके लिए और दुनिया के लिए अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। इसी उद्देश्य को बताते हुए इजरायल ने तेहरान पर ताबड़तोड़ हमला किया। इजरायल और उसके समर्थक देशों ने सोचा था कि इस हमले के बाद जिसमें उसने ईरान की टॉप मिलिट्री लीडरशीप व परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या कर दी थी सोचा कि ईरान अब घबराकर चुप बैठ जाएगा पर इतनी बर्बादी के 24 घंटे के अंदर-अंदर ईरान ने इजरायल पर इतना जबरदस्त जवाबी हमला किया कि इजरायल-अमेरिका तमाम साथी तिलमिला गए। इजरायल के शुक्रवार को किए गए हमले के जवाब में ईरान ने शनिवार को ही जवाबी हमला कर दिया। इजरायली डिफेंस फोर्स (आईडीएफ) के मुताबिक ईरान ने शनिवार देर रात करीब 24 घंटे में 150 से ज्यादा इजरायली ठिकानों को निशाना बनाया और तब से लेकर इस लेख लिखने तक ईरान इजरायल पर अपनी बैलिस्टिक मिसाइलों और ड्रोनों के जरिए ताबड़तोड़ हमले कर रहा है। ईरान ने इजरायल के कई महत्वपूर्ण सैन्य ठिकानों को सीधा निशाना बनाया है, इनमें सेना का हेडक्वार्टर से लेकर वाइजमैन सेंटर जहां से इजरायल सारी सैनिक कार्रवाईयां तय करता है। प्रधानमंत्री नेतन्याहू के निवास तक को नहीं छोड़ा। दरअसल ईरानी मिसाइलें इजरायल के एयर डिफेंस सिस्टम को गच्चा देकर अपने निशाने पर पहुंच गई। इससे सारी दुनिया चौंक गई। ईरान ने साबित कर दिया कि उसकी टेक्नोलॉजी अमेरिका, रूस और चीन के लगभग बराबर पहुंच गई है। इसी से इजरायल और अमेरिका में घबराहट पैदा हो गई है। यही नहीं अन्य अरब देशों में भी दहशत पैदा हो गई है। ईरान दरअसल पिछले बीस-पच्चीस साल से इस लम्हे की तैयारी कर रहा था। इजरायल का ईरान पर हमला करने के पीछे कई उद्देश्य थे। दरअसल वो चाहते हैं कि ईरान में इन आयतुल्ला रैजीम का तख्ता पलट करवा दें और अपनी मनपसंद, हमदर्द सरकार को सत्ता सौंप दे। इस मकसद में ईरान के अंदर से भी उसको मदद मिल रही है। मौसाद ने ईरान के अंदर कई स्लीपर सेल तैयार कर लिए हैं जो आयतुल्ला खामेनेई सरकार के खिलाफ इजरायल के लिए काम करते हैं। फिर शाह रजा पल्लवी के समर्थक अभी भी ईरान में मौजूद हैं। शुक्रवार को जब इजरायल ने पहली बार ईरान पर हमला किया था तो उसमें ईरान के अंदर ड्रोनों से हमला किया गया था। इसका मतलब है कि मौसाद ने ईरान के अंदर ही ड्रोन फैक्ट्री तैयार कर ली थी। ईरान की टॉप मिलिट्री लीडरशिप की पुख्ता जानकारी भी रही। ईरानी मौसाद एजेंटों ने इजरायल को जानकारी दी होगी तभी तो मौसद ने ठीक ठिकानों पर हमला किया। इस बीच इजरायल सरकार ने ईरानी लोगों से खामेनेई को सत्ता के विरोध का आ"ान किया है। इसके लिए इजरायल की ओर से फारसी भाषा में संदेश जारी किए जा रहे हैं। इस बीच यह भी संकेत मिला है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई की हत्या करने की इजरायल की योजना पर रोक लगा दी है। कुल मिलाकर जिस तरीके से ईरान इजरायल पर ताबड़तोड़ हमले कर रहा जो रूकने के नाम नहीं ले रहे हैं, उससे तो यही साबित होता है कि मिडल ईस्ट में एक नया पावर सेंटर ईरान बनने जा रहा है। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 17 June 2025

अगर जंग बढ़ी तो क्या होगा?

पहले से युद्धरत इजरायल ने ईरान के परमाणु व सैन्य ठिकानों पर हमला किया, जिसमें कई शीर्ष ईरानी सैन्य कमांडर मारे गए हैं। अपने लिए युद्ध का न केवल एक मोर्चा खोल दिया है बल्कि यूं कहें कि न केवल पश्चिम एशिया को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को एक खतरनाक मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। दरअसल, इजरायल का कहना है कि यह ऑपरेशन राइजिंग लायन ईरान की कथित परमाणु हथियार महत्वाकांक्षाओं को विफल करने के लिए किया गया है। इजरायल के हमले के जवाब में पावार रात ईरान ने अपना जवाबी ऑपरेशन लांच किया। इजरायल में राजधानी तेल अवीव, यरूशलम में कई जगहों पर कई बैलिस्टिक मिसाइलें दागी गईं और ड्रोन से हमला किया। सोशल मीडिया में इजरायल ईरान के हमले से हुई बर्बादी की कई तस्वीरें आई हैं। ईरान ने दावा किया है कि उसने इजरायल के मिलिट्री कमांड सेंटर जहां से इजरायल के सारे हमले आपरेशन तय किए जाते हैं उसको भी नष्ट कर दिया है। इजरायल का शक्तिशाली एयर डिफेंस सिस्टम कई मिसाइलों और ड्रोन को गिरा सका पर बहुत से मिसाइलें और ड्रोन सटीक अपने निशाने पर लगे। अब इजरायल की बारी है और फिर ईरान उसका जवाब देगा। ईरान बेशक यह कहता आया है कि उसका परमाणु कार्पाम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है लेकिन उस पर गुप्त ढंग से परमाणु कार्पाम चलाने के जो आरोप लगते रहे हैं, वे आशंकाएं भी पैदा करता है। इसके अतिरिक्त ईरान की ओर से बार-बार यरूशलम को नष्ट करने की धमकियां और उसके द्वारा समर्पित हमास, हिजबुल्ला व हुती जैसे आतंकी संगठनों की गतिविधियां इजरायल की चिंताओं को और ठोस करती है। फिर सवाल केवल इजरायल की सुरक्षा का नहीं है, एक परमाणु संपन्न ईरान पूरे पश्चिम एशिया में शक्ति संतुलन को बिगाड़ने का बताया जा रहा है। फिर सवाल यह भी किया जा सकता है कि पाकिस्तान भी तो एक इस्लामी परमाणु संपन्न देश है तो उससे न तो अमेरिका को कोई चिंता है और न ही इजरायल को। क्या हम यह मानकर चलें कि पाकिस्तान गुप्त रूप से अमेरिका और इजरायल के साथ है। सोशल मीडिया में तो यहां तक दावा किया जा रहा है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के करीबी संबंध हैं और सूचनाओं के आदान-प्रदान में साझे हैं। जब पाकिस्तान से कोई खतरा नहीं तो ईरान से क्यों? विगत दशकों में हमने पश्चिम एशिया में बहुत खून-खराबा देखा है। लाखों बेगुनाह मारे जा चुके हैं। ऐसे में अगर इजरायल और ईरान के बीच युद्ध और बढ़ता है तो बड़ी संख्या में लोग मारे जाएंगे। इराक व अफगानिस्तान की तबाही लोग भूले नहीं हैं और बीच में बसे इजरायल और ईरान की तबाही कोई नहीं चाहेगा। अगर सोशल मीडिया पर भरोसा किया जाए तो कुछ मध्य एशिया विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका ईरान में अयातुल्लाह रेजीम को खत्म करके अपने हित वाली सरकार बनाना चाहता है। ईरान को बम बनाने की जल्दी है, जबकि अमेरिका के सहयोगी देश ऐसा नहीं चाहते। ईरान की इस कोशिश पर इजरायल को सख्त आपत्ति है और उसका मानना है कि अगर ईरान का परमाणु कार्पाम अभी न रोका गया तो बहुत देर हो जाएगी और ईरान एक परमाणु संपन्न देश बन जाएगा। जो इजरायल के अस्तित्व के लिए बहुत बड़ा खतरा बन जाएगा। इसलिए वह जल्दी में है। आज युद्ध और युद्ध का माहौल दोनों से बचने की जरूरत है। कुछ लोगों के अहंकार की वजह से आम लोगों का खून नहीं बहना चाहिए। इसके साथ ही यह मुस्लिम देशों के लिए भी अमन-चैन से सोचने का समय है। उन्हें मजहब की बुनियाद पर किसी भी गुटबाजी या जंग की हिमायत से बचना होगा। रही बात इजरायल की तो अमेरिका ऐसे हर मोर्चे पर पल्ला झाड़कर खड़ा हो जाता है। यह किसी से छिपा नहीं कि इस लड़ाई में अमेरिका पूरी ताकत से इजरायल के साथ खड़ा है। बल्कि हम यह कहें कि यहां सारी खुराफात के पीछे अमेरिका और उसके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का हाथ है। उसका पिट्ठू नेतान्याहू बगैर अमेरिका के एक कदम नहीं उठाता है। ट्रंप को लगता है कि इस बात की भी कतई चिंता नहीं कि ईरान-इजरायल युद्ध तीसरे विश्व युद्ध में न बदल जाए, जिसकी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। ऊपर वाला सभी पक्षों को सद्बुद्धि दे और जंग रोकने में मदद करे। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 14 June 2025

डिप्लोमेसी या डबल गेम?

अमेरिका ने न सिर्फ आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान की खुलकर तारीफ की है, बल्कि पाकिस्तान सेना प्रमुख असीम मुनीर को अमेरिका आमंत्रित किया है। इससे ठीक पहले असीम मुनीर ने एक ऐसा बयान दिया था, जिसे भारत ने जम्मू-कश्मीर में हुए 22 अप्रैल के आतंकी हमले से जोड़कर देखा। दरअसल ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत के साथ ही यह देखा जा रहा है कि पाकिस्तान को लेकर अमेरिका का ट्रंप प्रशासन का रुख कुछ बदला हुआ है। गत बुधवार को यह काफी स्पष्ट भी हो गया कि सीमापार आतंकवाद के मुद्दे पर अमेरिका का रवैया बदला हुआ है। पिछले कुछ घंटों में अमेरिकी सरकार ने तीन स्तरों पर ऐसे संकेत दिए हैं जो भारत की चिंताओं को बढ़ाते हैं। पहलाöअमेरिकी सेना के केंद्रीय कमांड (यूएस सेंटकॉम) के प्रमुख माइकल कुरिल्ला ने कहा कि आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में पाकिस्तान एक जबरदस्त साझीदार है। दूसराö14 जून को अमेरिकी सेना दिवस की परेड में पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर को बतौर मेहमान आमंत्रित किया गया है। तीसरा-व्हाइट हाउस ने संकेत दिए है कि कश्मीर को लेकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हस्तक्षेप कर सकते हैं। अमेरिकी सेंटकॉम के प्रमुख जनरल माइकल कुरिल्ला ने अमेरिकी सरकार के कानूनी बाडी हाउस कमेटी आन आर्मड सर्विसेज की एक सुनवाई में कई बातें कही। हमें भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ रिश्ते बनाकर रखने की जरूरत है। हम ऐसा विचार नहीं रख सकते कि अगर भारत के साथ संबंध रखना है तो हम पाकिस्तान के साथ नहीं रख सकते। पाकिस्तान के साथ हमारी काफी जबरदस्त साझेदारी है। पाकिस्तान ने आईएसआईएस-खोरासान के आतंकियों के खिलाफ काफी कार्रवाई की है, दर्जनों आतंकवादियों को मारा है। अमेरिका के साथ सूचनाएं साझा की है और बड़े आतंकियों को पकड़ने में मदद की है। सेंटकॉम चीफ ने असीम मुनीर का भी जिक्र करते हुए तारीफ की है कि कैसे सबसे पहले उन्होंने सरीफुल्लाह की गिरफ्तारी की सूचना उनको दी। सेंटकॉम प्रमुख ने पाकिस्तान सरकार के इस तर्क पर भी मुहर लगाई कि आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई तो लंबे समय से लड़ी जा रही है। उसमें भी वह प्रभावित हुए हैं। उक्त बयान के कुछ घंटों के बाद ही सूचना आई कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर को अमेरिकी सैन्य समारोह में आमंत्रित किया गया है। यह समारोह 14 जून को है। ये वही मुनीर हैं जिन्होंने 16 अप्रैल को इस्लामाबाद में एक भाषण में कश्मीर को पाकिस्तान को अपनी अपनी जीवन रेखा बताया था। उन्होंने टू नेशन थ्योरी का समर्थन करते हुए कहा कि मुस्लिमों को अपने बच्चों को यह सिखाना चाहिए कि वे हिंदुओं से अलग हैं। मुनीर के इस भड़काऊ बयान के बाद ही 22 अप्रैल को बारीसरन, पहलगाम में आतंकी हमला हुआ जिसमें 26 निर्दोष पर्यटक शहीद हो गए। आखिर अमेरिका क्या कहना चाहता है? असीम मुनीर जैसे विवादित व्यक्ति को बुलाना भारत के लिए एक बड़ा कूटनीतिक झटका है। हालांकि आज भारत वैश्विक मंचों पर बहुत ऊंचे स्थान पर है। एक विचार है कि अमेरिका का असीम मुनीर को बुलाना और पाकिस्तान को अभूतपूर्व साझेदार कहना भले ही रणनीतिक हो लेकिन भारत के लिए ये साफ संकेत है कि वाशिंगटन अब इस क्षेत्र में बैलेंस बनाकर चलना चाहता है। इससे भारत की नई थर्ड पार्टी पॉलिसी को चुनौती मिलती है। हालांकि दोनों देशों से संबंध बनाएं रखने में अमेरिका की पुरानी नीति रही है, फिर भी यह कदम कूटनीतिक रूप से भारत के लिए असहज जरूर हैं। टैंशन नहीं, लेकिन सतर्कता जरूरी है। अमेरिका की मंशा और सोच पर कई सवाल खड़े होते हैं। फील्ड मार्शल मुनीर के बयान पहलगाम आतंकी हमले से जुड़े हैं। इसलिए प्रश्न यह उठता है कि अमेरिका की यह डिप्लोमेसी है या डबल गेम? -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 12 June 2025

पाक को अलग-थलग करने में हम विफल रहे


ऑपरेशन सिंदूर के दौरान बीते 9 मई को, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने पाकिस्तान को बेलआउट पैकेज के रूप में एक अरब डॉलर की किश्त की मंज़ूरी दे दी। ऑपरेशन सिंदूर के ठीक बाद वर्ल्ड बैंक ने पाकिस्तान को 40 बिलियन डॉलर देने का निर्णय लिया... फिर एशियन डेवलपमेंट बैंक ने पाकिस्तान को 800 बिलियन डॉलर दिए और कुछ दिन पहले 4 जून को पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की तालिबान प्रतिबंध समिति का अध्यक्ष और आतंकवाद-रोधी समिति का उपाध्यक्ष चुना गया। पाकिस्तान के संदर्भ में हुई इन सभी डेवलपमेंट्स को कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने सामने रखा है और भारत की विदेश नीति के पतन से जोड़कर देखा है। साथ ही उन्होंने वैश्विक समुदाय पर भी सवाल खड़े किए हैं। 
पाकिस्तान इन नियुक्तियों को एक बड़ी जीत के रूप में पेश कर रहा है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा है यह उनके देश के लिए बहुत गर्व की बात है। उन्होंने एक्स पर किए एक पोस्ट में लिखा है, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में महत्वपूर्ण नियुक्तियां प्रमाणित करती हैं कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को पाकिस्तान की आतंकवाद-रोधी कोशिशों पर पूरा भरोसा है। शरीफ ने कहा पाकिस्तान उन देशों में से एक है जो आतंकवाद से सबसे अधिक पीड़ित है। आतंकवाद के कारण अब तक देश में 90,000 लोगों की जान जा चुकी है। देश को 150 बिलियन डॉलर से ज़्यादा का आर्थिक नुकसान हो चुका है। पर भारत ने इसे लेकर खासी आपत्ति जताई है। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में बीते 22 अप्रैल को निर्दोष, निहत्थे पर्यटकों पर हुए हमले के लिए भारत ने पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराया है। इससे पहले भी अलग-अलग म़ौकों पर, मसलन साल 2016 में उरी में भारतीय सैनिकों पर हमला, साल 2019 में पुलवामा में हुआ विस्फ़ोट या फिर साल 2008 में मुंबई के होटलों पर हुए हमले .साबित करते हैं कि इन हमलों के पीछे पाकिस्तान है। उनकी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ है। ऑपरेशन सिंदूर भारत को मजबूरी में करना पड़ा। तीन-चार दिन के संघर्ष के बाद भारतीय सांसदों के सात अलग-अलग शिष्टमंडलों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों का दौरा किया। पीआईबी की ओर से जारी एक प्रेस रिलीज के मुताबिक इस दौरे का मकसद ऑपरेशन सिंदूर और सीमापार आतंकवाद के खिलाफ भारत की निरंतर लड़ाई के बारे में सदस्य देशों को अवगत कराना था, जहां एक तरफ भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्यों के समक्ष सीमापार आतंकवाद का मुद्दा उठाकर पाकिस्तान को घेरने की कोशिश में जुटा था, वहीं पाकिस्तान को इस यूएनएससी के आतंकवाद-रोधी समिति का उपाध्यक्ष चुन लिया गया। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के डिप्लोमेटिक एडिटर सुभाजित राय ने लिखा है-शायद इन्हीं कारणों से भारत में एक असहजता की स्थिति नजर आ रही है। राजस्थान के एक पुलिस, सिक्यूरिटी एंड क्रिमिनल जस्टिस के इंटरनेशनल अ़फेयर्स असिस्टेंट प्ऱोफेसर विनय कौड़ा का कहना है कि पाकिस्तान जैसे देश को यूएनएससी जैसी संस्था में कोई भी ज़िम्मेदारी देना केवल कूटनीतिक संवेदनहीनता नहीं बल्कि इस पूरे ढांचे की खामी को उजागर करता है। पाकिस्तान को इन समितियों का हिस्सा बनाना उसी देश को आतंकवाद पर निगरानी की ज़िम्मेदारी सौंपने जैसा है, जिस पर स्वयं आतंकवाद को पनाह देने, जन्म देने और उसे विदेश नीति के औज़ार के रूप में इस्तेमाल करने के गंभीर आरोप हैं। ये भारत के लिए ही नहीं, बल्कि वैश्विक आतंकवाद-रोधी ढांचे की विश्वसनीयता के लिए भी एक चिंता का विषय है। पाकिस्तान की आतंकवाद पर दोहरी नीति कोई नया मुद्दा नहीं है, यह ऐतिहासिक तथ्यों और अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज़ों में स्पष्ट रूप से दर्ज है। चाहे वह संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित आतंकवादियों को शरण देना हो, जैसे ओसामा बिन लादेन या हा]िफज़ सईद या फिर लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों को खुला समर्थन देना हो। पाकिस्तान ने लगातार आतंकवाद को अपनी राजनीति का उपकरण बनाया है, विशेष रूप से भारत के विरुद्ध। जेएनयू में असिस्टेंट प्ऱोफेसर ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि ये खबर भारत के लिए चिंता पैदा करने वाली है। ऐसी नियुक्तियां संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य देशों की तऱफ से हरी झंडी मिलने के बाद ही होती हैं और हरी झंडी देने का मतलब है ये स्वीकारना की पाकिस्तान का आतंकवाद से कोई संबंध नहीं है। हमारी कोशिश रही है कि आतंकवाद फैलाने में पाकिस्तान की भूमिका रही है पर दुर्भाग्य से कहना पड़ता है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य ऐसा शायद नहीं मानते। जहां संयुक्त राष्ट्र द्वारा पाकिस्तान को सर्टिफिकेट देना उसकी बड़ी उपलब्धि रही है, वहीं यह भारत की एक बड़ी विफलता मानी जाएगी। हमारी विदेश नीति एक बार फिर नाकारा साबित होती है। 
-अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 10 June 2025

मस्क बनाम ट्रंप बनाम अडानी

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आजकल प्रमुख उद्योगपतियों के पीछे हाथ धोकर पड़े हुए हैं। पहले बात करते हैं एलन मस्क की। दुनिया के सबसे अमीर शख्स में से एक एलन मस्क और सबसे ताकतवर नेताओं में शुमार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच गहरा टकराव हो गया है। दोनों के बीच की असहमति अब पूरी तरह जुबानी जंग में तब्दील हो चुकी है। इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म पर उनमें तलवारें खींची हुई हैं। मस्क की तरफ से ट्रंप के बार-बार टैक्स बिल के आलोचना किए जाने पर ट्रंप ने बेहद नाराजगी जताई। ट्रंप ने संघीय सरकार के साथ बड़े पैमाने पर होने वाले एलन मस्क के कारोबारी सौदों को लेकर धमकी दी है। ट्रंप ने अपनी सोशल मीडिया वेबसाइट पर धमकी देते हए लिखा, अगर बजट में बात करनी है तो इसका सबसे आसान तरीका है एलन मस्क को मिलने वाली अरबों डालर की सब्सिडी और कांट्रेक्ट खत्म कर दिए जाएं। फिलहाल तो ट्रंप और मस्क के झगड़े के बाद मस्क की कंपनी टेस्ला के शेयर गुरुवार को 14 फीसदी गिर गए। हालांकि यह जंग एकतरफा का नहीं थी। ट्रंप के हमले के बाद मस्क ने ट्रंप के खिलाफ महाभियोग लाने तक की बात की और मांग कर दी। मस्क ने पलटवार करते हुए यहां तक कह दिया कि मैं न होता तो ट्रंप चुनाव हार जाते। उन्होंने ट्रंप पर बेवफाई का आरोप भी लगाया। यही नहीं मस्क ने कहा कि अब नई पार्टी बनाने का समय आ गया है जोकि 80 प्रतिशत लोगों का प्रतिनिधित्व करे। इस टकराव का असर अमेरिका की राजनीति, अंतरिक्ष कार्पामों और वैश्विक टेक जगत पर भी पड़ सकता है। इधर ट्रंप और उनकी एजेसियां भारत के बड़े उद्योगपति गौतम अडानी के पीछे भी हाथ धोकर पड़ी हुई है। अमेरिकी अखबार वाल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी ताजा रिपोर्ट में दावा किया है कि अमेरिकी अभियोजक जांच कर रहा है कि क्या भारतीय कारोबारी गौतम अडानी की कंपनियों ने मुद्रा पोर्ट के रास्ते में ईरानी लिक्विडफाइड पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) का आयात किया था। हालांकि अडानी एंटरप्राइजेस ने एक बयान में इस रिपोर्ट को बेबुनियाद और नुकसान पहुंचाने वाला बताया है। कंपनी के एक प्रवक्ता ने कहा, हमें इस मामले पर अमेरिकी अधिकारियों की ओर से की गई किसी जांच के बारे में जानकारी नहीं है। वाल स्ट्रीट जर्नल ने कहा है कि उसे गुजरात के मुद्रा बंदरगाह और फारस की खाड़ी के बीच चलने वाले टैकरों में कुछ ऐसे संकेत दिखे हैं, जो एक्सपर्ट्स के अनुसार प्रतिबंधों से बचने वाले जहाजों में आम होते हैं। अपनी रिपोर्ट में अखबार ने यह भी कहा कि अमेरिका का न्याय विभाग अडानी समूह की प्रमुख इकाई अडानी एंटरप्राइजेज को माल भेजने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे कई एलपीजी टैकरों की गतिविधियों की समीक्षा कर रहा है। ये जांच ऐसे समय में हो रही है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मई में ईरान से तेल और पेट्रोकेमिकल प्रोडक्ट्स की खरीद पर पूरी तरह रोकने का आदेश दिया था और कहा था कि जो देश या व्यक्ति ईरान से खरीददारी करेगा, उस पर तुरन्त से सेकेंडरी सेक्शंस लगाए जाएंगे। अमेरिका ने अपनी रिपोर्ट की शुरुआत में लिखा कि एशिया के हमारे सबसे बड़े अमीर शख्स गौतम अडानी अपने खिलाफ अतीत में लगे आरोपों को खारिज करवाने की कोशिशों में जुटे हैं। बीते साल नवम्बर में ही गौतम अडानी पर अमेरिका में धोखाधड़ी और रिश्वत का मुकदमा दायर किया गया था। अखबार ने लिखा है कि ब्रकलिन में अमेरिकी अटार्नी कार्यालय की ओर से की जा रही जांच अडानी के लिए समस्या साबित हो सकती है। वाल स्ट्रीट के अनुसार बीते साल की शुरुआत में अमेरिकी एजेंसियों ने मुद्रा पोर्ट से फारस की खाड़ी जाने वाले जहाजों की गतिविधियों को जांचा था। जहाजों को ट्रैक करने वाले एक्सपर्टस का कहना है कि ऐसे जहाजों में देखा गया है जो आवाजाही के दौरान अपनी पहचान स्पष्ट नहीं रखते। वाल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट पर अडानी समूह ने बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज को जानकारी दी है कि अडानी समूह की कंपनियों और ईरान एलपीजी के बीच संबंध का आरोप लगाने वाली वाल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट निराधार और नुकसान पहुंचाने वाली है। अडानी जानबूझकर किसी भी तरह के प्रतिबंधों से बचने का ईरानी एलपीजी से जुड़े व्यापार में संलिप्तता से साफ इंकार करते हैं। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 7 June 2025

न्यायपालिका में सवाल भ्रष्टाचार का

भारत के सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार और कदाचार की घटनाओं का जनता के विश्वास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे पूरी व्यवस्था की अखंडता में विश्वास कम होता है। ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट में न्यायिक वैधता और सार्वजनिक विश्वास बनाए रखने पर एक गोलमेज सम्मेलन में उन्होंने कहा कि यदि कोई जज सेवानिवृत्ति के तुरन्त बाद सरकार के साथ कोई अन्य नियुक्ति लेता है या चुनाव लड़ने के लिए बेंच से इस्तीफा देता है तो यह महत्वपूर्ण नैतिक चिंताएं पैदा करता है और इसकी सार्वजनिक जांच होनी चाहिए। सीजेआई ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कहा कि जब भी भ्रष्टाचार और कदाचार के ये मामले सामने आए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने लगातार कदाचार को दूर करने के लिए तत्काल और उचित उपाय किए हैं। इसके अलावा हर प्रणाली चाहे वह कितनी भी मजबूत क्यों न हो, पेशेवर कदाचार के मुद्दों के लिए अतिसंवेदनशील होती है। सीजेआई ने कहा न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के मामलों से लोगों के मन में इसके प्रति विश्वास कम होता है। हालांकि, इस विश्वास को इन मुद्दों पर त्वरित निर्णायक और पारदर्शी कार्रवाई से दोबारा कायम किया जा सकता है। भारत में भी ऐसे मामले सामने आए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने लगातार कदाचार को दूर करने के लिए तत्काल और उचित कदम उठाए हैं। सीजेआई की यह टिप्पणी इलाहाबाद के जस्टिस यशवंत वर्मा पर भ्रष्टाचार आरोपों के मुद्दे पर आई। वर्मा के दिल्ली स्थित आधिकारिक आवास से बड़ी मात्रा में नकदी बरामद की गई थी। न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि हर लोकतंत्र में न्यायपालिका को न केवल न्याय प्रदान करना चाहिए बल्कि उसे एक ऐसी संस्था के रूप में भी देखा जाना चाहिए जो सत्ता के सामने सच्चाई को रख सकती है। हम सीजेआई के शब्दों के लिए उनकी सराहना करते हैं। अगर हम पिछले मुख्य न्यायाधीश जस्टिस खन्ना को छोड़ दें तो उससे पहले कई सीजेआई पर सत्ता की तरफ झुकने के आरोप लगते रहे हैं। कुछ को तो सत्ता के हक में फैसले देने के लिए सेवानिवृत्त होने के बाद पुरस्कृत भी किया गया। प्रधान न्यायाधीश गवई ने भारतीय न्यायपालिका के भी जड़े जमा रही या जमा चुकी उन समस्याओं को दबे साफ शब्दों में स्वीकार किया। जिन्हें लेकर उंगुलियां उठती रही हैं। पिछले कुछ वर्षों में उच्चतम न्यायालय और कुछ हाईकोर्टों के जजो के राजनीतिक दबाव में या निजी स्वार्थ साधने के मकसद से फैसले सुनाने को लेकर काफी असंतोष जाहिर किया जाता रहा है। कटु सत्य तो यह है कि राजनीतिक लाभ और सत्तापक्ष के दबाव से मुक्त हुए बिना न्यायपालिका सही अर्थों में अपने दायित्व का सही ढंग से निर्वाह नहीं कर सकती। इसीलिए प्रधान न्यायाधीश का इस दिशा में प्रयास सराहनीय है। लोकतंत्र में न्यायपालिका पर जनता का विश्वास इसलिए भी बने रहना बहुत जरूरी है कि यही एक स्तंभ है जिस पर संविधान की रक्षा का दायित्व और राजनीतिक तथा व्यवस्थागत कदाचार पर नकेल कसने का मजबूत अधिकार है। चीफ जस्टिस गवई ने यह भी साफ कर दिया है कि देश में न तो कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया सबसे ऊपर है, सबसे ऊपर देश का संविधान है और देश संविधान से ही चलेगा। सीजेआई के वक्तव्यों की हम सराहना करते हैं। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 5 June 2025

यूक्रेन ने रूस में 4000 किमी घुसकर मारा

करीब तीन साल से चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन ने रविवार को रूस पर अब तक का सबसे बड़ा हमला (ड्रोन) किया। इसमें यूक्रेन के अनुसार रूस के सैन्य विमान तबाह करने का दावा किया गया है। हमले से हुए नुकसान की अनुमानित लागत 1.5 अरब पाउंंड (करीब 1.72 लाख करोड़ रुपए) से ज्यादा बताई गई है। यूक्रेन ने इस अभियान को ऑपरेशन स्पाइडर वेब का नाम दिया। उधर रूस पर हुए इस हमले को रूस का पर्ल हार्बट कहा जा रहा है। इस बीच रूस ने भी यूक्रेन पर अब तक का सबसे बड़ा हमला ड्रोन से किया है। 472 ड्रोन और 7 मिसालें दागी गईं। इस हमले में यूक्रेन के 12 सैनिक मारे गए और 60 से ज्यादा घायल हुए। रूसी मीडिया और युद्ध समर्थकों ने इसे रूस के लिए एविएशन का सबसे बड़ा काला दिन बताया और पुतिन से परमाणु हमले की मांग की। ड्रोन को ट्रकों में कंटनेर के जरिए रूस के अंदर ले जाया गया। एक ट्रक मुरमांस्क के ओलेनेर्गस्क में पेट्रोल पंप पर रूका था, जहां से ड्रोन निकालकर एयरबेस की ओर बढ़े। ड्रोन एफपी की तकनीक से लैस थे और सैटेलाइट से नियंत्रित हो रहे थे। बाद में इस कंटेनर को भी उड़ा दिया गया। रूस के बेलाया एयरबेस समेत कई एयरफील्डस को निशाना बनाया गया। हमला रूस के इरकुत्स्क क्षेत्र में हुआ जो यूक्रेन से 4 हजार किलोमीटर दूर है। जिन विमानों पर यूक्रेन ने हमला किया, वे परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम थे। रूस की परमाणु नीति के अनुसार अगर किसी हमले से उसकी परमाणु क्षमता प्रभावित होती है तो वह परमाणु जवाब दे सकता है। इसीलिए पुतिन के समर्थक खुलेआम मांग कर रहे हैं कि रूस यूक्रेन पर परमाणु जवाबी हमला करे। यह हमला ऐसे समय में हुआ है जब इस्तांबुल में रूस और यूक्रेन के बीच शांति वार्ता होनी है। इससे पहले इस तरह का बड़ा हमला रूस पर दबाव बनाने की रणनीति के रूप में देखा जा सकता है। कुछ अपुष्ट रिपोर्ट के अनुसार आर्कटिक में स्थित रूस के परमाणु बेस पर भी हमला हुआ है। यह बेस रूस की उत्तरी पलीर का मुख्यालय है। कोला प्रायद्वीप पर हुए विस्फोटों के बाद काले धुएं का वीडियो भी सामने आया है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं कि वहां क्या निशाना बना। एक यूक्रेनी सैन्य अफसर ने बताया कि यह ऑपरेशन करीब डेढ़ साल की तैयारी के बाद अंजाम दिया गया। इसकी योजना खुद यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की की निगरानी में बनाई गई। इन हमले में इस्तेमाल ड्रोन यूक्रेन में विकसित और निर्मित थे, जो रूस की सीमा पर सटीकता से निशाना बनाने में सफल रहे। यह हमला रूसी डिफेंस को कमजोर करने के लिए था। इसके जरिए रूसी वायुसेना को अब तक का सबसे बड़ा नुकसान होने का भी दावा किया जा रहा है। इस हमले में मिग और सुखोई जैसे आधुनिक लड़ाकू विमान, निगरानी विमान और कुछ परिवहन विमानों को नष्ट करने की बात भी सामने आई है। रूस को जो नुकसान पहुंचा हो शायद विश्लेषक उसका आंकलन कर रहे हों या न कर रहे हों। लेकिन ऑपरेशन स्पाइडर वेब से एक महत्वपूर्ण संदेश सिर्फ न रूस बल्कि यूक्रेन के पश्चिमी सहयोगियों को भी गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का दावा कर रहे थे कि वह यूक्रेन-रूस युद्ध को रूकवाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। यह तो उल्टा बढ़ गया है और निहायत खतरनाक दौर में पहुंच गया है। ऊपर वाला दोनों रूस-यूक्रेन को सद्बुद्धि दे और इस युद्ध को रोकने का हरसंभव प्रयास करें। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 3 June 2025

रक्षा सौदों की आपूर्ति में देरी


पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर की सफलता को लेकर तीनों सेनाओं की हो रही सराहना के बीच वायुसेना प्रमुख एयर मार्शल एपी सिंह ने मानो एक बम फोड़ दिया है। वायुसेना प्रमुख ने रक्षा सौदे होने के बावजूद आपूर्ति में देरी पर खुलेतौर पर गंभीर चिंता का इजहार किया। भारतीय वायुसेना को लाइट काम्बेट एयराफ्ट (एलसीए) तेजस की आपूर्ति में हो रही देरी की ओर इशारा करते हुए कहा कि कई बार हम रक्षा अनुबंध पर हस्ताक्षर करते समय जानते हैं कि ये उपकरण सिस्टम में समय पर नहीं आएंगे। वायुसेना प्रमुख ने यह कहने से भी गुरेज नहीं किया कि एक भी परियोजना समय पर पूरी नहीं हुई है। रक्षा क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों और एजेंसियों को बेबाक संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि हम ऐसा वादा ही क्यों करें, जो पूरा नहीं हो सकता। वायुसेना प्रमुख ने पावार को शीर्ष उद्योग संगठन सीआईआई की सालाना बैठक के एक सत्र को संबोधित करते हुए ये बातें कहीं। दुनिया फिलहाल जिस संवेदनशील दौर से गुजर रही है और भारत के सामने अपने कुछ पड़ोसी देशों के अस्थिर रुख की चुनौतियां खड़ी रहती हैं, वैसे में सुरक्षा का हर मोर्चा हर वक्त पूरी तरह चौकन्ना और दूरुस्त रहना एक अनिवार्य तकाजा है। रक्षा परियोजनाओं में देरी पर एयर मार्शल एपी सिंह की चिंता और सवाल वाजिब है। दोतरफा मोर्चे पर जूझ रही भारतीय सेना के आधुनिकता में तेजी लाना अत्यन्त आवश्यक है। इसके लिए केवल विदेशी सौदों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट के तहत भी रक्षा उत्पादन में तेजी लानी होगी। कटु सत्य तो यह है कि पिछले दस-ग्यारह सालों से केंद्र सरकार ने रक्षा उत्पादों की ओर ध्यान नहीं दिया है। हमारी वायुसेना में 200 फाइटर जेट्स की कमी पिछले कई सालों से चली आ रही है। एयर मार्शल एपी सिंह समय-समय पर चेताते भी रहे हैं। पर न तो रक्षा मंत्री ने कोई ध्यान दिया न केंद्र सरकार ने। हम अभी 10 साल पहले के दौर में हैं जहां तक काम्बेट एयराफ्ट का सवाल है और हमारे दुश्मन चीन 5वीं जेनेरेशन के फाइटर एयराफ्ट बना चुका है और पाकिस्तान को देने को तैयार है। भारतीय वायुसेना के पास 42.5 स्क्वाडन लड़ाकू विमान होने चाहिए, लेकिन हैं केवल 301 हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड अभी तक स्वदेशी तैनात मार्क ए की डिलीवरी नहीं कर पाया है। इसकी वजह से वायुसेना की रक्षा तैयारियों पर असर पड़ रहा है। भारत को आने वाले वक्त में अपनी रक्षा जरूरतों के लिए आत्मनिर्भर बनना होगा। साथ ही जिस तरह चीन ने अपनी सेना का आधुनिकीकरण किया है, भारत को भी उस राह पर तेजी से आगे बढ़ना होगा। रक्षा परियोजनाओं के तहत अगर किसी संदर्भ में वादे किए जाते हैं तो उन्हें समय पर पूरा करने को लेकर भी उतनी ही सत्यता होनी चाहिए। रक्षा क्षेत्र में तकनीकी और संसाधनों के विकास के मामले में आत्मनिर्भरता सबसे बेहतर समाधान है, लेकिन तत्कालिक जरूरतों को पूरा करने के मामले में कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिए। एयर मार्शल एपी सिंह की पीड़ा को हम समझ सकते हैं। बावजूद इन कमियों के हमारे जवानों ने दुश्मन को मुंह तोड़ जवाब दिया है और इसमें सबसे बड़ी भूमिका भारतीय वायुसेना की है। 
-अनिल नरेन्द्र