Thursday, 25 September 2025
पाक-सऊदी में सैन्य समझौता
पाकिस्तान और सऊदी अरब में एक अहम और कुछ मायनों में महत्वपूर्ण समझौता हुआ है। पाकिस्तान एक सैन्य परमाणु शक्ति है बेशक वह एक संघर्ष करती अर्थव्यवस्था है। वहीं सऊदी अरब आर्थिक रूप से ताकतवर है लेकिन सैन्य रूप से कमजोर है। सऊदी अरब और पाकिस्तान दोनों ही सुन्नी बहुल देश हैं और दोनों के बीच मजबूत संबंध रहे हैं। सऊदी ने कई बार आर्थिक संकट के समय पाकिस्तान की मदद की है और पाकिस्तान भी बदले में सऊदी को सुरक्षा सहयोग का भरोसा देता रहा है। अब पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच स्ट्रैटिजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट हुआ है। इसके मुताबिक, किसी एक के प्रति दिखाई गई आाढामकता दूसरे के खिलाफ मानी जाएगी। कुछ वैसा ही समझौता जैसा नाटो के सदस्य देशों के बीच है। यह डिफेंस एग्रीमेंट यह भी कहता है कि अगर एक देश पर हमला हुआ तो दूसरा देश उसे खुद पर भी हमला मानेगा। यानि अब अगर पाकिस्तान या सऊदी अरब पर कोई हमला होता है तो इसे दोनों देशों पर हमला माना जाएगा। दोनों देशों की थल, वायु और नौ सेनाएं अब और अधिक सहयोग करेंगी और खुफिया जानकारियां साझा करेंगी। चूंकि पाकिस्तान एक परमाणु संपन्न देश है। ऐसे में इसे खाड़ी में सऊदी अरब के लिए सहयोग का भरोसा भी माना जा सकता है। हाल ही में इजरायल ने कतर की राजधानी दोहा में हमास नेताओं पर हमले किए थे। इससे अरब जगत में उथल-पुथल और बेचैनी बढ़ गई है। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने इस समझौते के बाद कहा, हमारे भाईचारे के रिश्ते ऐतिहासिक मोड़ पर हैं, हम दुश्मनों के खिलाफ एकजुट हैं। पाक के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने कहा, पाकिस्तान सऊदी से मिले पैसे से अमेरिकी हथियार खरीद पाएगा। भले ही यह कहा जा रहा हो कि यह समझौता पाकिस्तान और सऊदी अरब के लंबे ऐतिहासिक रिश्तों का परिणाम है, लेकिन भारत के लिए यह डिवेलपमेंट चिंता बढ़ाने वाला जरूर है। सऊदी अरब खाड़ी में भारत के करीबी सहयोगियों में से एक है। व्यापार, निवेश, ऊर्जा, सुरक्षा सहयोग समेत कई क्षेत्रों में दोनों के बीच पिछले दो दशकों में संबंध गहरे हुए हैं। खासकर ाढाउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के दौर में नई तरह की गर्मजोशी देखने को मिली है। पीएम मोदी इस साल अप्रैल में ही अपने तीसरे सऊदी दौरे पर गए थे। जहां दोनों देशों के बीच कई क्षेत्रों में सहयोग पर सहमति बनी थी। यह समझौता जितना पश्चिम एशिया के लिए, उतना ही भारत समेत समूचे दक्षिण एशिया के लिए भी चिंतनीय है। सर्वाधिक शंकाएं तो समझौते के इस प्रावधान को लेकर है कि दोनों में से किसी भी देश पर कोई हमला दोनों देशों पर हमला माना जाएगा। क्या इसका अर्थ यह है कि अगर भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसी स्थिति पैदा होती है तो सऊदी अरब और पाकिस्तान एक साथ खड़े होंगे? चार महीने पहले ही भारत और पाकिस्तान के बीच एक बड़ा संघर्ष हुआ था। ऑपरेशन सिंदूर को लेकर बार्डर पर अब भी तनाव बना हुआ है। ऐसे में यह आशंका दरकिनार नहीं की जा सकती कि भारत और पाकिस्तान के तनाव में इस समझौते की वजह से सऊदी अरब भी पार्टी बन जाए। हालांकि समझौते का एक और अहम एंगल भी है, हाल में इजरायल ने कतर पर एक एयर स्ट्राइक कर हमास नेताओं को निशाना बनाने का प्रयास किया था। इसे लेकर मुस्लिम वर्ल्ड में काफी गुस्सा है। इस हमले के बाद दोहा में इस्लामिक अरब देशों का एक आपातकालीन शिखर सम्मेलन बुलाया गया था। जहां यह चर्चा भी उठी थी क्या नाटो जैसा कोई संयुक्त सुरक्षा बल बनाया जा सकता है? यह समझौता उसी का नतीजा भी हो सकता है। देखा जाए तो भारत और सऊदी अरब के बीच गहरे सामाजिक सांस्कृतिक संबंध तो हैं ही, यह भी नहीं भूलना चाहिए कि सऊदी अरब भारत का 5वां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। खाड़ी देशों में लाखों भारतीय नौकरियां करते हैं। इस समझौते के बाद भारत की चिंता का जन्म होना स्वाभाविक है। ऐसा समझौता रूस ने उत्तर कोरिया के साथ किया था। हमारे रूस से अच्छे संबंध हैं जबकि नार्थ कोरिया से उतने अच्छे नहीं हैं। क्योंकि वह चीन के नजदीक है। बावजूद इसके रूस से हमारे रिश्तों पर नैगेटिव असर नहीं पड़ा। विशेषज्ञों का मानना है कि हमें सऊदी अरब से कोई खतरा नहीं है, लेकिन इससे पाकिस्तान को जो फायदा और मजबूती मिलेगी उसे वह भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर सकता है। इस रक्षा समझौते से पूरे क्षेत्र में असंतुलन पैदा हो सकता है। भारत ने कहा है कि वह इसके असर को देखेगा। सरकार को अपनी चिंताओं को लेकर सऊदी अरब से खुलकर बात करनी चाहिए। पाकिस्तान के इस्लामिक नाटो सरीखे विचार को खाड़ी देशों ने तवज्जो न भी दी हो, लेकिन उपर्युक्त समझौता भारत से कूटनीतिक सतर्कता बनाए रखते हुए बहुपक्षीय विदेशी नीति को मजबूत करने की मांग तो करता ही है।
-अनिल नरेन्द्र
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