Saturday, 30 August 2025
टैरिफ ने छीनी हीरे की चमक
भारत पर अतिरिक्त 25 फीसदी अमेरिकी टैरिफ बुधवार को लागू हो गया। इसी के साथ भारतीय वस्तुओं पर अतिरिक्त टैरिफ बढ़कर 50 फीसद हो गया। माना जा रहा है 48 अरब डॉलर से ज्यादा का अमेरिका को दिए जाने वाला भारतीय निर्यात इससे प्रभावित होगा। भारत के वस्त्र, परिधान, रत्न आभूषण, झींगा, चमड़ा, टेक्सटाइल इत्यादि बहुत से उद्योगों पर सीधा असर पड़ेगा। मैंने कुछ दिन पहले हरियाणा के उद्योगों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का वर्णन किया था। आज मैं गुजरात के सूरत हीरा उद्योग के बारे में बताने का प्रयास करूंगा। सूरत दुनिया में हीरा की कटिंग और पालिशिंग के लिए जाना जाता है। लेकिन अब इस उद्योग पर निर्भर रहने वाले लोग मुश्किल में हैं। 50 फीसदी टैरिफ ने इस क्षेत्र के व्यापारियों के साथ-साथ मजदूरों को भी चिंता में डाल दिया है। हीरा उद्योग से जुड़े 25 लाख से ज्यादा कामगार इससे प्रभावित हो सकते हैं। 50 फीसदी टैरिफ लगाने का असर सबसे ज्यादा इस क्षेत्र पर पड़ रहा है क्योंकि सूरत का हीरा उद्योग अमेरिका के किए जाने वाले निर्यात पर ज्यादा निर्भर है। कुछ लोगों का मानना है कि अगर टैरिफ कम नहीं किया गया तो कई व्यापारी हीरा उद्योग से बाहर हो जाएंगे। कई लोगों की नौकरियां चली जाएंगी और भयंकर मंदी आ जाएगी। हालांकि दूसरी ओर हीरा उद्योग से जुड़े संगठन जैसे सूरत डायमंड एसोसिएशन और साउथ गुजरात चेंबर ऑफ कॉमर्स का मानना है कि अमेरिकी टैरिफ से कुछ मंदी आएगी लेकिन समय के साथ स्थिति स्थिर हो जाएगी क्योंकि भारत को हीरा उद्योग की जितनी जरूरत है, अमेरिका में भी हीरों की उतनी ही मांग है। इसलिए वहां के लोग, व्यापारी भी इस समस्या का समाधान चाहते हैं। सूरत की कई छोटी फैक्ट्रियों में 20 से 200 श्रमिक तक काम करते हैं। राज्यों में तो यह संख्या 500 तक होती है और सूरत में ऐसी हजारों फैक्ट्रियां हैं। हाल ही में कई लोगों को नौकरी से निकाल दिया गया है। सूरत में कई छोटी-बड़ी फैक्ट्रियों का यह हाल है कि 20 साल पहले शैलेश मंगुकिया ने सिर्फ एक पॉलिशिंग व्हील (चक्की) से हीरा पालिश करने की एक यूनिट शुरू की थी जो अब इतनी बड़ी हो गई कि यहां कामगारों की संख्या 3 से बढ़कर 300 हो गई, हालांकि अब इस फैक्ट्री में सिर्फ 70 लोग ही बचे हैं। वे कहते हैं कि सारे आर्डर कैंसल कर दिए गए है। मजदूरों को कहना पड़ रहा है कि काम नहीं है। आर्डर नहीं होने की वजह से काम नहीं है और काम न होने की वजह से सैलरी देने के पैसे नहीं हैं। पिछले साल अगस्त में उनकी फैक्ट्री में हर महीने औसतन 2000 हीरें की प्रोसेसिंग हो रही थी। लेकिन इस साल घटकर मात्र 300 रह गई है। श्रमिक सुरेश राठौर ने कहा, आमतौर पर हमें जन्माष्टमी के दौरान सिर्फ 2 दिन की छुट्टी मिलती थी, इस बार हमें 1ˆ दिन की बिना वेतन छुट्टी दी गई। हम ऐसे कैसे रह सकते हैं? सुरेश राठौर जैसे कई कारीगर हैं, जो इस तरह प्रभावित हो रहे हैं। सूरत डायमंड पालिशर्स यूनियन के भावेश टांक कहते हैं कि हमारे पास इस समय बहुत से जौहरी शिकायत लेकर आ रहे हैं कि उनका वेतन कम कर दिया गया या उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। हजारों मजदूरों की आमदनी कम हो रही है। उद्योग जगत के नेताओं ने एक स्पेशल डायमंड टास्क फोर्स बनाई है। जो इस स्थिति का समाधान निकालने की कोशिश करेगी। दक्षिण गुजरात चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष निखिल मद्रासी ने इस बारे में बीबीसी से कहा, अमेरिकी बाजार पर भारी निर्भरता के कारण लंबे समय में बड़ा झटका लगेगा। पुराने आर्डर पूरे हो गए हैं, लेकिन नए आर्डर का भविष्य अस्पष्ट है। सरकार को तुरंत मदद करनी होगी। उन्होंने कहा कि कई व्यापारी मध्य पूर्व और यूरोप जैसे बाजारों में अवसर तलाश रहे हैं और कुछ तो बाईपास मार्गों के जरिए अमेरिका तक माल पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि उनके अनुसार अब अलग-अलग यूरोपीय देशों में नए बाजारों की तलाश करने की जरूरत है। सवाल यह है कि सूरत के हीरा उद्योग को कैसे बचाया जा सकता है? इस उद्योग जगत के कुछ लोगों का कहना है कि आने वाले दिनों में स्थिति और खराब हो सकती है। जेम एंड ज्वैलरी एक्सपर्ट प्रमोशन काउंसिल (जीजेईपीसी) के गुजरात अध्यक्ष जयंति भाई सावलिया का मानना है कि अब समय आ गया है कि अमेरिका पर निर्भरता कम की जाए और अन्य बाजारों की ओर देखा जाए। उन्होंने कहा, अगर आर्डर नहीं मिले तो निश्चित रूप से श्रमिकों के वेतन और रोजगार पर असर पड़ेगा। असली मार आने वाले महीनों में दिखेगी। वे आगे कहते हैं कि वर्तमान में अमेरिका को होने वाला कुल निर्यात लगभग 12 अरब डॉलर का है, अगर हम इसका आधा व्यापार भी अन्य देशों में कर सके, तो सूरत का हीरा उद्योग बच सकता है। उस सूरत में भारत के हीरे की चमक टैरिफ से पड़ने वाले असर को कम कर देगी।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 28 August 2025
वोट चोरी आरोप पर चुनाव आयोग का जवाब
भारत में चुनाव प्रािढया पर जनता का भरोसा डगमगा रहा है तो इसके पीछे क्या राजनीति है? सात अगस्त को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस नेता राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेस के बाद कई लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि कहीं हमारी वोट तो काटी नहीं है? राहुल गांधी ने प्रेस कांफ्रेस में वोट चोरी का आरोप लगाते हुए चुनाव आयोग पर सत्तारुढ़ भाजपा के साथ सांठगांठ की बात कही थी जिसे चुनाव आयोग ने सिरे से खारिज कर दिया है। राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और इंडिया गठबंधन के साथी इसे बिहार में जोरशोर से उठा रहे हैं और इसे भारी जनसमर्थन भी मिलता दिख रहा है। वहीं, भारतीय जनता पार्टी इसे कांग्रेस समेत विपक्षी दलों की हताशा वाली राजनीति कह रहे हैं। बता दें कि जिस दिन बिहार के सासाराम से वोटर अधिकार यात्रा शुरू हुई थी। उसी दिन चुनाव आयोग ने भी प्रेस कांफ्रेंस की थी। लेकिन इस प्रेस कांफ्रेंस के बाद भी चुनाव आयोग आलोचकों के निशाने पर है। सवाल है कि क्या केंद्र सरकार इन आरोपों के बाद किसी तरह बैकफुट पर दिखती है? चुनाव आयोग अगर बचावे करे तो क्या उसे हर बार पक्षपात के तौर पर ही देखा जाएगा? और चुनाव आयोग आखिर राहुल गांधी से शपथ पत्र लेने की मांग पर क्यों अड़ा हुआ है? जबकि राहुल गांधी दावा कर रहे हैं कि जो दस्तावेज उन्होंने सात अगस्त को पेश किए वे सब चुनाव आयोग के ही दिए आंकड़े हैं? इन सवालों पर चर्चा के लिए इंडियन एक्सप्रेस की नेशनल ब्यूरो चीफ रितिका चोपड़ा और भारत के पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा बीबीसी के साप्ताहिक कार्पाम ‘द लेंस' में शामिल हुए। इसी साल जून के महीने में राहुल गांधी ने अखबारों में एक लेख लिखा था। लेख में उन्होंने चुनाव आयोग पर निशाना साधते हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को मैच फिक्सिंग कहा था। अब बिहार में एसआईआर बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। एसआईआर पर अशोक लवासा कहते हैं, सबसे पहले उत्तेजन का कारण बिहार विधानसभा चुनाव है। चुनाव से पहले एसआईआर जैसी बड़ी प्रािढया अपनाने से लोगों में संशय हुआ है। दूसरा कारण है कि 2003 के रिवीजन में प्रिजम्प्शन ऑफ सिटिजनशिप शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया था। सासाराम में राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि बिहार में एसआईआर करके नए वोटरों को जोड़कर और योग्य लोगों के नाम काटकर यह (भाजपा-संघ) बिहार का चुनाव चोरी करना चाहती है। जबकि चुनाव आयोग का तर्क है कि वोटर लिस्ट में गड़बड़ियों के दूर करने के लिए एसआईआर प्रािढया अपनाई जा रही है। अशोक लवासा का कहना है इस बार प्रािढया काफी जटिल बना दी गई है और इसके लिए लोगों को पर्याप्त समय नहीं दिया गया है। इस बार सवाल मतदाता सूची पर उठाए जा रहे हैं और पिछले दस सालों में ऐसे सवाल नहीं उठाए गए थे। बीते चुनावों में राजनीतिक दल ईवीएम, चुनावी शेड्यूल या मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट से संबंधित शिकायतें करते रहे हैं। सवाल अब भी चुनाव आयोग पर है लेकिन मुद्दा वोटर लिस्ट है इसलिए यह बाकी मामलों से अलग है। राहुल गांधी बार-बार कह रहे हैं कि चुनाव आयोग सिर्फ उनसे शपथ पत्र मांग रहा है जबकि किसी और से नहीं मांगा। अशोक लवासा का कहना है, अगर इतने बड़े पैमाने पर एक विधानसभा क्षेत्र में एक लाख से ज्यादा लोगों के बारे में दावा किया गया है तो किसी भी सार्वजनिक कार्यालय को इसकी जांच करनी चाहिए। मेरे ख्याल से उसके लिए किसी शपथ पत्र की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सियासी दलों से पूछा कि जब इतनी समस्याएं हैं तो सिर्फ आयोग के पास दो ही शिकायतें क्यों आई हैं? हालांकि तेजस्वी यादव ने दावा किया है कि उनकी शिकायतों को स्वीकार नहीं किया गया है। यह भी सच है कि ज्ञानेश कुमार के बोलने के तरीके के कारण लोगों के मन की शिकायतें पूरी तरह से खत्म नहीं हुई हैं। अशोक लवासा ने आगे कहा कि चुनाव आयोग को यह समझना चाहिए कि अगर कोई भ्रांति फैलाई जा रही है तो उसे चुनाव आयोग को ही दूर करना होगा। आयोग को दूध का दूध और पानी का पानी करना चाहिए। सही और गलत का निर्णय लोग स्वयं कर लेंगे। बिहार विधानसभा चुनाव में बहुत कम समय बचा है। समय सिर्फ तीन महीने का है और चुनाव आयोग को दस्तावेज जमा करने के साथ उनकी पुष्टि भी करनी है। कई वोटरों के पास तय दस्तावेज नहीं हैं और कुछ लोगों में भय का माहौल है। इन्हीं सब समस्याओं की वजह से इस मुद्दे की पकड़ ग्राउंड पर बढ़ती जा रही है। कई लोग इसे अपनी नागरिकता के साथ भी जोड़ रहे हैं। हालांकि चुनाव आयोग ने साफ किया है कि एसआईआर का नागरिकता से कोई लेना-देना नहीं है पर बिहार के वोटरों में शंका बनी हुई है। अशोक लवासा बताते हैं प्रिजम्प्शन ऑफ सिटिजनशिप के इस्तेमाल से नागरिकता पर प्रश्न बना हुआ है। चुनाव आयोग बार-बार कह रहा है कि वोटर लिस्ट में नाम न आने से नागरिकता समाप्त नहीं होगी। लेकिन इसमें भी विरोधाभास यह है कि उसी वजह से तो आप उसे मतदाता सूची से बाहर निकाल रहे हैं?
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 26 August 2025
राज्यपाल बिल में देरी करें तो रास्ता क्या है?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर राज्यपाल अनिश्चितकाल तक विधेयकों को पेडिंग रखते हैं तो इससे विधान मंडल निपिय हो जाएगा। ऐसी स्थिति में क्या अदालतें हस्तक्षेप करने में असमर्थ हैं? दरअसल मई 2025 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से यह राय मांगी थी कि क्या न्यायालय आदेशों द्वारा राष्ट्रपति-राज्यपाल को समय-सीमा में बांध सकता है? चीफ जस्टिस आर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस पाम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदूरकर की पीठ इसी प्रेजिटेंशियल रेफरेंस पर सुनवाई कर रही है। सुनवाई के दौरान पावार को भारत सरकार के सॉलिसीटर जनरल ने दलीलें दी कि न्यायपालिका राष्ट्रपति या राज्यपाल को बाध्यकारी निर्देश नहीं दे सकती। तब चीफ जस्टिस ने सवाल किया कि क्या हम यह कहें कि चाहे संवैधानिक पदाधिकारी कितने भी ऊंचे हों, यदि वे कार्य नहीं करते तो अदालत असहाय है? हस्ताक्षर करना है या अस्वीकार करना है, उस कारण पर हम नहीं जा रहे कि उन्होने क्यों किया। परन्तु यदि सक्षम विधान मंडल ने कोई अधिनियम पारित कर दिया है और माननीय राज्यपाल बस उस पर बैठे रहें तो सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि हर समस्या का समाधान कोर्ट में नहीं खोजा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कुछ राज्यपाल विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर बैठे हुए हैं और उन पर निर्णय नहीं ले रहे हैं, ऐसे में राज्यों को न्यायिक समाधान के बजाए राजनीतिक समाधान तलाशने होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि अगर राज्यपाल विधेयकों में देर करते हैं तो रास्ता क्या है? तब सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि व्यावहारिक उत्तर यह है कि यदि कोई राज्यपाल विधेयकों पर बैठे रहते हैं तो राजनीतिक समाधान होते हैं। और ऐसे समाधान हो भी रहे हैं। हर जगह ऐसा नहीं होता कि राज्य को सुप्रीम कोर्ट आने की सलाह दी जाए। मुख्यमंत्री जाते हैं और प्रधानमंत्री से अनुरोध करते हैं। मुख्यमंत्री राष्ट्रपति से मिलते हैं। प्रतिनिधिमंडल जाते हैं और कहते हैं कि ये विधेयक लंबित पड़े हैं, कृपया राज्यपाल से बात करें ताकि वे किसी न किसी रूप में निर्णय लें। कई बार टेलीफोन पर ही मामले को निपटा लिया जाता है। मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और राज्यपाल की संयुक्त बैठकें होती हैं और इस तरह गतिरोध समाप्त होता है। लेकिन इससे ये अधिकार क्षेत्र यानी ज्यूरिएडिक्शन नहीं मिल जाती कि जुडिशियल निर्णय के द्वारा समय-सीमा तय कर दें। सवाल यह है कि जब संविधान में समय-सीमा निर्धारित नहीं है तो क्या अदालत समय-सीमा तय कर सकती हैं? भले ही उसके लिए औचित्य हो? ऐसे मुद्दे कई दशकों से हर राज्य में उठते रहे हैं। लेकिन जब राजनीतिक (स्टेटसमैन शिप) और राजनीतिक परिपक्वता दिखाई जाती है तो वे केंद्र के संवैधानिक कार्यवाहकों से मिलते हैं, चर्चा करते हैं और राजनीतिक समाधान निकाल लेते हैं, यही इन समस्याओं के समाधान हैं। जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा कि अगर राज्यपाल की निपियता के खिलाफ कोई पीड़ित राज्य अदालत के पास आता है तो क्या आपके अनुसार न्यायिक समीक्षा पूरी तरह निषिद्ध है। इन पर तुषार मेहता ने कहा कि वे राज्यपाल की कार्रवाई की न्याय संगलता के प्रश्न पर नहीं है, बल्कि इस प्रश्न पर है कि क्या अदालत राज्यपाल को समय-सीमा के भीतर कार्य करने का निर्देश दे सकती है। इन पर चीफ जस्टिस ने कहा कि अगर कोई गलत है, तो उपाय तो होना चाहिए। मेहता ने उत्तर दिया कि देश की हर समस्या का समाधान इस मंच (सुप्रीम कोर्ट) से नहीं हो सकता। इस पर चीफ जस्टिस ने सवाल किया कि अगर कोई संवैधानिक पदाधिकारी बिना किसी कारण अपना कर्तव्य नहीं निभाता, तो क्या इस न्यायालय के हाथ बंधे हुए हैं? जस्टिस सूर्यकांत ने इस दौरान जोड़ा कि अगर व्याख्या की शक्ति सुप्रीम कोर्ट में निहित है तो कानून की व्याख्या अदालत को ही करनी होगी।
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 23 August 2025
विधेयक पर विपक्ष का हंगामा
गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तार और लगातार 30 दिन हिरासत में रहने पर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्रियों को पद से हटाने वाले बिल बुधवार को पेश हुए। हालांकि इस बिल को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेज दिया गया है जो अगले सत्र के पहले दिन अपनी रिपोर्ट पेश करेगी। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि विपक्ष को जेपीसी के सामने अपनी आपत्ति दर्ज कराने का मौका मिलेगा। अभी जो कानून है, उसके अनुसार जब तक दोष सिद्ध नहीं हो जाए, तब तक ये आला मंत्री इस्तीफा देने के लिए बाध्य नहीं हैं। इस बिल के जरिए संविधान के अनुच्छेद 75 में संशोधन करना होगा, जिसमें प्रधानमंत्री के साथ मंत्रियों की नियुक्ति और जिम्मेदारियों की बातें हैं। ड्राफ्ट बिल के मुताबिक अगर किसी मंत्री के पद पर रहते हुए लगातार 30 दिन के लिए किसी कानून के तहत अपराध करने के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है और हिरासत में लिया जाता है जिसमें पांच साल या उससे ज्यादा सजा का प्रावधान है, उसे राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की सलाह पर पद से हटा दिया जाएगा। ऐसा हिरासत में लिए जाने के 31वें दिन हो जाना चाहिए। सरकार इस विधेयक को भ्रष्टाचार विरोधी बता रही है। गृहमंत्री अमित शाह ने बिल पेश करते समय कहा, राजनीतिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध मोदी सरकार की प्रतिबद्धता और जनता के आक्रोश को देखकर मैंने संविधान संशोधन बिल पेश किया ताकि पीएम, सीएम और मंत्री जेल में रहते हुए सरकार न चला सकें। इसका उद्देश्य राजनीति में शुचिता लाना है। हाल में ऐसी स्थिति बनी कि सीएम या मंत्री बिना इस्तीफा दिए जेल से सरकार चलाते रहे। उधर विपक्ष ने इस विधेयक का जबरदस्त विरोध किया। विपक्ष की ओर से एआईएमआईएम के चीफ व सांसद असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस के मनीष तिवारी, केसी वेणुगोपाल, आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन व समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव ने जमकर विरोध किया। प्रेमचंद्रन ने कहा कि तीनों विधेयकों को सदन में पेश करने की सरकार को इतनी हड़बड़ी क्यों है? इस पर गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि प्रेमचन्द्रन जल्दबाजी की बात कर रहे हैं, लेकिन इनका सवाल इसलिए नहीं उठता क्योंकि मैं इन विधेयकों को जेपीसी को सौंपने का अनुरोध करने वाला हूं। इसके बाद कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने कहा कि भाजपा के लोग कह रहे हैं कि यह विधेयक राजनीति में शुचिता लाने के लिए लाया गया है। उन्होंने कहा कि क्या मैं गृहमंत्री से पूछ सकता हूं कि जब वह गुजरात के गृहमंत्री थे, उन्हें गिरफ्तार किया गया था तब क्या उन्होंने नैतिकता का ध्यान रखा था? गृहमंत्री ने वेणुगोपाल को जवाब देते हुए कहा कि मैं रिकार्ड स्पष्ट करना चाहता हूं। मैंने गिरफ्तार होने से पहले नैतिकता के मूल्यों का हवाला देकर इस्तीफा भी दिया और जब तक अदालत से निर्दोष साबित नहीं हुआ तब तक मैंने कोई संवैधानिक पद स्वीकार नहीं किया। शाह ने कहा कि हमें क्या नैतिकता सिखाएंगे? कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने विधेयक को अलोकतांत्रिक बताया और केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि ऐसे विधेयक लाकर भाजपा सरकार लोगों की आंखें में धूल झोंकने की कोशिश कर रही है। यह पूरी तरह दमनकारी कदम है। यह हर चीज के खिलाफ है और इसे भ्रष्टाचार विरोधी कदम के रूप में पेश करना लोगों की आंख में धूल झोंकना जैसा है। सोशल मीडिया में भी इस विधेयक की जमकर चर्चा हो रही है। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि यह विधेयक ही दो-मूही तलवार है। जहां इस विधेयक से चुनी हुई राज्य की विपक्षी सरकारों के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है, वहीं यह एनडीए सहयोगियों के लिए भी इशारा है कि आप अगर लाइन पर नहीं चले तो आपका भी क्या अंजाम हो सकता है, समझदार को इशारा ही काफी है। वैसे हमें लगता है कि इस संविधान संशोधन विधेयक को पारित करना इतना आसान नहीं होगा। इसके लिए लोकसभा और राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत दोनों सदनों में चाहिए होगा। जो फिलहाल उसके पास नहीं है। वैसे भी मानसून सत्र खत्म हो गया है बिल अब तो विंटर सेशन में ही आएगा। केंद्र सरकार इस विधेयक को भ्रष्टाचार विरोधी बता रही है, जबकि विपक्ष इससे सहमत नहीं है। दोनों पक्षों को समन्वय के मार्ग पर चलना चाहिए। ध्यान रहे, हमारे संविधान सभा में शामिल नेताओं ने सोचा भी नहीं था कि कभी देश की राजनीति का नैतिक स्तर इतना गिर जाएगा। आज तो कोई दागी नेता पद नहीं छोड़ना चाहता है। ऐसे में आज या कल कुछ कानूनी प्रावधान ऐसे करने ही पड़ेंगे, ताकि दागियों के लिए जगह न बचे और इस हमाम में सभी नंगे है।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 21 August 2025
चुनावी सवालों का जवाब नहीं मिला
आखिर भारत के चुनाव आयोग ने चुनावी सवालों के मुद्दे पर प्रेस कांफ्रेंस की। प्रेस कांफ्रेंस तो की पर ज्वलंत सवालों के जवाबों को टालने पर ज्यादा जोर दिया गया। बेहतर होता कि चुनाव आयोग यह प्रेस कांफ्रेंस न करता। प्रेस कांफ्रेंस भी उस दिन की गई जब रविवार था और उसी दिन दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का रोड शो चल रहा था और बिहार के सासाराम में राहुल गांधी की वोट चोरी यात्रा आरंभ हो रही थी। नतीजा यह हुआ कि इस प्रेस कांफ्रेंस ने नए सवालों को जन्म दे दिया। लोकतंत्र में चुनाव केवल सरकार चलाने की वैधता हासिल करना नहीं, बल्कि यह उस चुनाव की बुनियाद का प्रमुख स्तंभ है, जिस पर देश, राज्य व लोकतंत्र का दारोमदार टिका हुआ है। इस प्रक्रिया के स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से पारदर्शिता से संपन्न कराने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर है। रविवार को चुनाव आयोग ने विपक्षी राजनीतिक दलों के वोट चोरी से जुड़े आरोपों के जवाब दिए। प्रेस कांफ्रेंस के बाद कांग्रेस ने कहा कि इस प्रेस कांप्रेंस में विपक्ष के उठाए सवालों का सीधा जवाब नहीं दिया गया। तेजस्वी यादव ने कहा कि बिहार चुनाव से ठीक पहले भाजपा चुनाव आयोग के साथ मिलकर वोट देने का अधिकार छीन रही है। आरजेडी ने यह सवाल उठाया कि एसआईआर ऐसे समय क्यों की जा रही है जब बिहार में बाढ़ आई हुई है। पत्रकारों ने चुनाव आयोग से सवाल पूछा था। इस पर आयोग ने कहा, बिहार में 2003 में भी एसआईआर हुआ था और उसकी तारीख भी 14 जुलाई से 14 अगस्त थी। तब भी यह सफलतापूर्वक हुआ था। राहुल गांधी ने दावा किया था कि 2004 के लोकसभा और महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों के विधानसभा चुनावों में मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर हेरफेर हुआ, जिससे भारतीय जनता पार्टी को फायदा हुआ। विशेष रूप से, उन्होंने बेंगलुरु की महादेवपुरा विधानसभा में एक लाख से ज्यादा फर्जी वोटर और कई अमान्य पतों का आरोप लगाया था। राहुल गांधी ने डुप्लीकेट वोटरों (जैसे एक ही व्यक्ति का कई राज्यों में वोटर के रूप में रजिस्ट्रेशन) और गलत पतों (जैसे एक छोटे से कमरे में सैंकड़ों वोटर) के उदाहरण दिए थे। चुनाव आयोग ने इन आरोपों को निराधार और गैर जिम्मेदाराना बताते हुए खारिज किया और कहा कि वोट चोरी जैसे शब्दों का इस्तेमाल करोड़ों मतदाताओं, लाखों चुनाव कर्मचारियों की ईमानदारी पर हमला है। क्या राहुल गांधी के सवालों का यही जवाब था? राहुल गांधी बार-बार कह रहे हैं कि चुनाव आयोग उनसे शपथ पत्र मांग रहा है, मुझसे एफीडेविट मांगा है जबकि कुछ दिन पहले ही भाजपा के लोग प्रेस कांफ्रेंस करते हैं तो उनसे कोई एफीडेविट नहीं मांगा जा रहा है। ज्ञानेश कुमार ने जवाब दिया, जहां आप गड़बड़ी की बात कर रहे हैं और आप उस विधानसभा क्षेत्र के निर्वाचक नहीं हैं तो कानून के मुताबिक आपको शपथ पत्र देना होगा। आयोग का कहना है कि हलफनामा देना होगा या देश से माफी मांगनी होगी। अगर सात दिनों के अंदर हलफनामा नहीं मिलता है तो इसका मतलब है कि ये सभी आरोप निराधार हैं। पर कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि चुनाव आयोग ने विपक्ष के सवालों का सीधा जवाब नहीं दिया। खेड़ा ने कहा क्या ज्ञानेश कुमार ने उन लाख वोटर्स के बारे में कोई जवाब दिया जिन्हें हमने महादेवापुरा में बेनकाब किया था? नहीं दिया। उन्होंने कहा, हमने उम्मीद की थी कि श्री ज्ञानेश कुमार हमारे प्रश्नों के उत्तर देंगे... ऐसा लग रहा था कि (प्रेस कांप्रेंस में) भाजपा का एक नेता बोल रहा है। वरिष्ठ पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता चुनाव आयोग की इस प्रेस कांफ्रेंस में मौजूद थे। उनका मानना है कि फिलहाल जो सफाई चुनाव आयोग ने दी है उससे यह मुद्दा खत्म होते नहीं दिखाई दे रहा है। ठाकुरता कहते हैं, प्रेस कांफ्रेंस में कुछ सवालों के स्पष्ट जवाब नहीं मिले है। जैसे मैंने पूछा कि क्या यह सच है कि महाराष्ट्र में आपने 40 लाख नए लोगों को वोटर लिस्ट में शामिल किया? इस पर आयोग ने कहा कि उस समय किसी ने आपत्ति दर्ज नहीं कराई थी। मैंने एक और सवाल पूछा कि क्यों लोगों से ज्यादा नाम मतदाता सूची में थे तो इसका जवाब मुझे नहीं मिला। इस तरह से कई और सवाल हैं जिनके स्पष्ट जवाब नहीं मिले हैं। चुनाव आयोग ने बिहार ड्राफ्ट लिस्ट से करीब 65 लाख मतदाता हटाए हैं। यह एक बड़ी संख्या है, इसका कोई जवाब नहीं मिला। चुनाव आयोग आज से पहले इस तरह कभी प्रेस कांफ्रेंस करने सामने नहीं आया था। विश्लेषकों का मानना है कि चुनाव आयोग के जवाब को राजनीतिक संदर्भ में देखने की जरूरत है। टाइमिंग की बात करें तो निश्चित रूप से चुनाव आयोग का जवाब भी राजनीतिक है। जैसे राहुल गांधी इसे बिहार में राजनीतिक बना रहे है तो ठीक उसी तारीख को सरकार की ओर से चुनाव आयोग ने अपना पक्ष सामने रखा है।
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 19 August 2025
अलास्का में नहीं बनी बात
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की अलास्का की बैठक पर सारी दुनिया की नजरें थीं। पिछले तीन साल से चले आ रहे रूस, यूक्रेन युद्ध की समाप्ति पर उम्मीदें लगाई जा रही थीं। स्थायी शांति न भी होती तो इतना तो हो सकता था कि युद्ध विराम तो हो जाता। पर सारी उम्मीद टूट गई। बेशक कुछ मुद्दों पर जरूर दोनों देशों के राष्ट्रपतियों की सहमति बनी पर कोई स्थायी समाधान नहीं निकला। तीन साल से अलग-थलग किए गए पुतिन का ट्रंप ने न सिर्फ खुले दिल से स्वागत किया, बल्कि लाल कालीन बिछाकर उनका सार्वजनिक रूप से सम्मान भी किया। हालांकि जिस मुद्दे के लिए यह अहम बैठक हुई थी उस पर कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया। ट्रंप-पुतिन मुलाकात से यूक्रेन मुद्दे पर कोई तत्काल हल नहीं निकला, बावजूद यह मुलाकात खास रही। रूस के यूक्रेन पर हमले और युद्ध अपराधों के आरोपों के चलते पुतिन पश्चिमी दुनिया से अलग-थलग पड़ गए थे। इस मुलाकात ने उन्हें अचानक वैश्विक केंद्र में वापस ला दिया। अमेरिका के सैन्य अड्डे पर दोनों नेताओं का बगल-बगल खड़े होकर एक-दूसरे की तारीफ करना, बातचीत करना और यहां तक कि ट्रंप की लियोजीन में साथ बैठना ये सब ऐसे दृश्य थे जो अमेरिका-रूस संबंधों के इतिहास में कम ही देखे गए। दुनिया भर की मीडिया एक प्रेस कांफ्रेंस की उम्मीद कर रही थी, लेकिन दोनों नेताओं ने सिर्फ बयान दिए और किसी सवाल का जवाब नहीं दिया। ट्रंप ने उम्मीद जताई थी और यहां तक दावा किया था कि वह रूस–यूक्रेन युद्ध को रूकवा देंगे। हालांकि पुतिन ने कभी भी इसे स्वीकार नहीं किया था। पुतिन के लिए यह बैठक किसी जीत से कम नहीं थी। बिना कोई रियायत दिए उन्हें दुनिया की सबसे ताकतवर कुर्सी से सम्मान और स्वीकृति मिल गई। इस पूरी कवायद में यूक्रेन की भूमिका हाशिए पर रही। इस बैठक के लिए यूक्रेन के राष्ट्रपति ब्लादिमीर जेलेंस्की को आमंत्रित तक नहीं किया गया। अलास्का में ट्रंप पुतिन बैठक को वैश्विक मीडिया शांति की दिशा में बहुत भरोसे के साथ नहीं देख रहा है। रूसी मीडिया ने पुतिन की कूटनीतिक जीत का सुबूत माना, यूरोपीय मीडिया ने उम्मीद और आशंका दोनों जताई। वहीं अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों और घरेलू अमेरिकी राजनीतिक हल्कों में चर्चा का बड़ा हिस्सा ट्रंप की व्यक्तिगत शैली और उनकी मसखरी नेता जैसी छवि पर केंद्रित रहा। न्यूयार्क टाइम्स ने अपेक्षाकृत संशयपूर्ण रुख अपनाते हुए सवाल उठाया, क्या यह वार्ता सिर्फ फोटोशूट और अल्पकालिक सुर्खियां थीं या वास्तव में संघर्ष विराम की दिशा में ठोस कदम? अमेरिकी खुफिया व रक्षा हल्कों में आशंका है कि पुतिन ने बैठक का इस्तेमाल वैश्विक मंच पर अपनी छवि सुधारने और यह दिखाने के लिए किया कि अमेरिका अंतत रूस से बातचीत करने पर मजबूर हुआ। वाशिंगटन पोस्ट ने राजनीतिक दांव बताते हुए सवाल उठाया कि क्या ट्रंप का मूड आधारित नेतृत्व अमेरिका की दीर्घकालिक रणनीति को कमजोर कर रहा है। दोनों अखबारों ने लिखा कि ट्रंप के फैसले उनके मूड पर निर्भर हैं आज खुश तो शांति की बात करेंगे, पर गुस्से में होंगे तो पलट जाएंगे। एमएसएन ने ट्रंप को रियलिटी शो का होस्ट स्टार करार दिया। नोबेल की चाह में बेकरार राजनेता वैश्विक मंच पर कोई ड्रामा कर सकता है। ट्रंप वैश्विक मंच व वैश्विक राजनीति शो मैनशिप में बदल रहे हैं। सीएनएन ने कहा, ट्रंप शांति की ओर बढ़ रहे हैं पर उनका अप्रत्याशित रुख सब पर भारी है। वहीं ब्रिटिश अखबार व गार्डियन ने वार्ता को राजनीतिक विडम्बना बताया। लिखा ः वार्ता ऐसे समय हुई जब आर्कटिक क्षेत्र में रूस, अमेरिका और चीन के बीच प्रभुत्व की दौड़ तेज है, सुरक्षा विशेषज्ञों को यह कदम अमेरिका की आर्टिक रणनीति में नरमी का संकेत लगता है। गार्डियन ने चेतावनी दी, ट्रंप की अप्रत्याशित कूटनीति से वार्ता के नतीजे भरोसेमंद नहीं माने जा सकते। उधर रूस के अखबार इजवेसित्या ने लिखा ः ट्रंप को मानना पड़ा कि पुतिन के बिना यूक्रेन का भविष्य तय नहीं हो सकता। कोमरूट ने इसे रूस की कूटनीतिक वापसी बताया। टीवी चैनल आरटी ने भी बैठक को पुतिन की मजबूती और धैर्य का परिणाम करार दिया। इतना तो हम भी कह सकते हैं कि इस बैठक ने निसंदेह ब्लादिमीर पुतिन को वैश्विक कटूनीति का अपरिहार्य खिलाड़ी बना दिया है। उम्मीद की जाती है कि रूस-यूक्रेन जंग में जो बर्फ पिघलने का सिलसिला शुरू हुआ है यह आगे बढ़ेगा और अंतत यह जंग बंद होगी।
-अनिल नरेन्द्र
Sunday, 17 August 2025
ट्रंप टैरिफ से निर्यात पर संकट
केंद्र सरकार के प्रमुख सलाहकार (आर्थिक) अनंता नागेश्वरन ने कहा कि ट्रंप टैरिफ का असर 6 महीने से ज्यादा नहीं रहने वाला है। उन्होंने कहा, लांग टर्म चैलेंज के लिए प्राइवेट सेक्टर को अहम योगदान देना होगा। नागेश्वरन ने चेताया कि छह महीने के दौरान जैम्स एंड जूलरी टेक्सटाइल और फूड इंडस्ट्री को बढ़े हुए टैरिफ का मुकाबला करना होगा। ट्रंप टैरिफ का भारत की अर्थव्यवस्था पर खासकर कुछ क्षेत्रों में तो अभी से बुरा असर पड़ना शुरू हो गया है। दैनिक भास्कर की छपी रिपोर्ट के अनुसार भारतीय उत्पादों पर अमेरिका के भारी भरकम 50 फीसदी टैरिफ ने देश के कई प्रमुख निर्यात उद्योगों के सामने नया संकट खड़ा कर दिया है। इसका असर न सिर्फ भारत के 55 फीसदी निर्यात पर पड़ेगा, बल्कि राज्यों के सामने भी नई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। हालांकि, टैरिफ का असर सभी क्षेत्रों में समान नहीं है। लेकिन कहीं पुराने सौदों पर संकट है तो कहीं भविष्य में आर्डर ठप होने की आशंका बढ़ गई है। चावल निर्यातकों की चिंता! भारत 127 देशों को करीब 60 लाख टन बासमती चावल निर्यात करता है। इसमें से करीब 2.70 लाख टन यानि 4 फीसदी चावल अमेरिका को जाता है। इस निर्यात में करीब 40 फीसदी हिस्सा हरियाणा में तरावड़ी (करनाल) से जाता है। ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्ट अधिकारियों का कहना है कि अगर अमेरिका को बासमती चालव का निर्यात नहीं होता तो भी बड़ा नुकसान नहीं होने वाला है। 2.70 लाख टन अन्य देशों में खपाना मुश्किल नहीं होगा। फिलहाल चावल निर्यातक वेट एंड वॉच की स्थिति में हैं, क्योंकि इस साल का निर्यात लगभग पूरा हो चुका है। पानीपत उत्तर भारत का बड़ा टेक्सटाइल हब है। जहां से हर साल करीब 20,000 करोड़ रुपए का निर्यात होता है। इसमें से 10,000 करोड़ रुपए तक का व्यापार अकेले अमेरिका से जुड़ा है। निर्यातकों का कहना है कि अमेरिका के टैरिफ बढ़ाने से 500 करोड़ रुपए के पुराने ऑर्डर पर संकट आ गया है। नए ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं। कुछ निर्यातक पहले से ही स्थिति को भांप गए थे। ऐसे में उन्होंने अमेरिका से बड़े ऑर्डर लेना बंद कर दिए और उत्पादों में भी कटौती की है। सिंगापुर के जरिए भी अमेरिका से व्यापार की गुंजाइश है। यूके से द्विपक्षीय समझौते से कुछ लाभ मिल सकता है। पानीपत में 35000 करोड़ टेक्सटाइल्स इकाइयां हैं जिसमें 500 एक्सपोर्ट हाउस हैं और इनमें करीब 2.5 लाख लोगों को रोजगार मिला है। नए ऑर्डर नहीं मिलने पर इनकी आजीविका पर असर पड़ेगा। जम्मू-कश्मीर के हैंडलूम और हस्तशिल्प उद्योग (विशेषकर पश्मीना एवं घानी शॉल) ने बीते तीन साल में निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है। टैरिफ के बाद कारोबारी सतर्क हो गए हैं। जम्मू के शॉल निर्यात संगठन ने कहा अमेरिका में माल महंगा होगा पर कोई आर्डर अभी तक रद्द नहीं हुआ है। हमारे लिए दूसरे देशों के बाजार खुले हुए हैं। मगर अमेरिका में मांग घटी तो निर्यात को दूसरे देशों के बाजारों में मोड़ देंगे। वाणिज्यिक खुफिया एवं सांख्यिकी महानिदेशालय और जम्मू-कश्मीर आर्थिक सर्वे से कुल निर्यात तीन साल में बढ़कर 2023-24 में 1,162 करोड़ पहुंच गया। इसमें शॉल का निर्यात 477.24 करोड़ था। रोहतक का नट-बोल्ट उद्योग सालाना 5,000 करोड़ रुपए का कारोबार करता है। इसमें 70 फीसदी निर्यात अमेरिका को होता है। उद्यमियों का कहना है कि नया टैरिफ अगर लागू होता है तो न सिर्फ आपूर्ति प्रभावित होगी बल्कि कारोबार भी मुश्किल में आ जाएगा। चिंता की बात है कि कुछ कंपनियों को दो महीने से अमेरिका से कोई आर्डर नहीं मिला है। बड़ी कंपनियां पुराने आर्डर को पूरा करने में लगी हैं। भविष्य के लिए जो आर्डर मिले हैं। उनकी आपूर्ति पर टैरिफ का असर दिखेगा। अतिरिक्त टैरिफ से जिले की औद्योगिक इकाइयों के लिए दुनिया के बड़े बाजारों में माल बेचना मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि उत्पाद 25 फीसदी तक महंगा हो जाएगा। इसका असर कंपनी पर सीधा न पड़कर ग्राहक पर पड़ेगा। जसमेर लाठा जिसने बताया हम अमेरिका, यूके, यूरोप में नट-बोल्ट की आपूर्ति करते हैं। टैरिफ के कारण यहां से करीब 50 करोड़ रुपए के ही आर्डर बुक हुए हैं। हमारा 70 फीसदी नट-बोल्ट अमेरिका जाता है। पहले कस्टम ड्यूटी तीन फीसदी थी। अब यह बढ़कर 25 फीसदी हो गई है । यह पिछले 40-50 वर्षों में बहुत ज्यादा है। इसके अलावा 25 फीसदी टैरिफ और भी है। इससे हमारा उत्पाद काफी महंगा हो जाएगा ऐसा यहां के उद्योग चलाने वालों का मानना है। मैंने यह तो सिर्फ हरियाणा के कुछ उद्योग और निर्यातकों की बात की है, शेष देश में प्रभावित उद्योगों की बात नहीं की। लाखों कामगार बेरोजगार होने की कगार पर खड़े हैं। पहले से ही बेरोजगारी देश में चरम पर है, इस नए धमाके का क्या असर पड़ेगा जल्द पता चल जाएगा।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 14 August 2025
आसिम मुनीर की खुली धमकी
अमेरिका के फ्लोरिडा शहर में पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर ने अमेरिकी धरती से भारत को धमकी भरा बयान दिया है। भारत और पाकिस्तान के बीच मई में हुए संघर्ष के तीन महीने बाद अब पाकिस्तानी सेना प्रमुख का बयान सामने आया है। मुनीर ने दावा किया है कि मई में हुए संघर्ष में पाकिस्तान को कामयाबी मिली थी। साथ ही उन्होंने कहा कि भारत विश्व गुरु बनने का दावा करता है लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। आसिम मुनीर का बयान ऐसे समय पर सामने आया है जब शनिवार और रविवार को ऑपरेशन सिंदूर पर भारतीय थल सेना और वायु सेना प्रमुखों के अलग-अलग बयान सामने आए हैं। पहले बता दें कि भारतीय थल सेना प्रमुख जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने क्या कहा था। उन्होंने कहा था कि पहलगाम हमले के जवाब में चलाया गया ऑपरेशन सिंदूर किसी भी पारपंरिक मिशन से अलग था। शनिवार को भारतीय वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने दावा किया था कि मई में हुए संघर्ष के दौरान भारत ने छह पाकिस्तानी विमानों को मार गिराया था। हालांकि उसी रोज पाकिस्तान के रक्षामंत्री ख्वाजा आसिफ ने बयान जारी कर इसका खंडन किया। 10 मई को संघर्ष विराम पर सहमति बनने के बाद गोलीबारी थम गई थी। उस समय पाकिस्तान ने भारत के पांच लड़ाकू विमान गिराने का दावा किया था, जिसे भारत ने सिरे से खारिज कर दिया था। फ्लोरिडा में फील्ड मार्शल आसिम मुनीर ने एक निजी कार्यक्रम में दावा किया था कि पाकिस्तान ने भारत के भेदभाव पूर्ण और दोहरे व्यवहार वाली नीतियों के खिलाफ एक सफल कूटनीतिक युद्ध लड़ा है। उन्होंने आरोप लगाया कि भारत की खुफिया एजेंसी रॉ अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद में शामिल है और इस संबंध में उन्होंने कनाडा में एक सिख नेता की हत्या, कतर में आठ नौसेना अधिकारियों का मामला और कुलभूषण जाधव जैसी घटनाओं का उदाहरण दिया। गौरतलब है कि भारत पहले ही इन सभी आरोपों का खंडन कर चुका है। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का बेहद आभारी है। जिनके राजनीतिक नेतृत्व में न केवल भारत पाक युद्ध को रोका बल्कि दुनिया में कई युद्धों को भी रोका। फील्ड मार्शल मुनीर ने अपने भाषण में कश्मीर को एक अधूरा एजेंडा बताया। आसिम मुनीर यहीं नहीं रूके उन्होंने भारत को खुली धमकी दे डाली। मुनीर ने कहा कि अगर भारत ने सिंधु नदी का पानी रोकने के लिए बांध बनाया तो हम मिसाइल से उसे उड़ा देंगे। मुनीर ने कहा, हम भारत के सिंधु नदी पर डैम बनने का इंतजार करेंगे और जब वे ऐसा करेंगे तो हम मिसाइलों से उसे तबाह कर देंगे। पाकिस्तान के फील्ड मार्शल मुनीर यह गीदड़ भभकी देने से भी नहीं चूके कि अगर भविष्य में भारत के साथ युद्ध में उनके देश के अस्तित्व को खतरा हुआ तो वो इस पूरे क्षेत्र को परमाणु युद्ध में झोंक देंगे। मुनीर ने कहा कि हम एक परमाणु संपन्न राष्ट्र हैं और अगर हमें लगता है कि हम डूब रहे हैं तो हम आधी दुनिया को अपने साथ ले जाएंगे। मुनीर का यह बयान इस लिहाज से सनसनीखेज है कि पहली बार अमेरिकी धरती से किसी तीसरे देश को परमाणु युद्ध की धमकी दी गई है। पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने जिस तरह खुलेआम परमाणु युद्ध की धमकी दी है, उसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। इस पर अपनी-अपनी राय हो सकती है। बहरहाल इससे एक बात तो साबित होती ही है कि पाकिस्तान के पास परमाणु शfिक्त होना केवल भारत के लिए ही नहीं पूरी दुनिया के लिए खतरा है। यह दुखद है कि मुनीर का यह बयान अमेरिका की धरती से आया है। यह पहली बार है जब किसी ने अमेरिकी धरती से किसी तीसरे देश के लिए इस तरह के धमकी भरे शब्दों का इस्तेमाल किया है। यह भी पहली बार है जब किसी सेना प्रमुख ने कहा कि जरूरत पड़ने पर वह परमाणु हfिथयार भी इस्तेमाल कर सकता है। मुनीर के बयान का भारतीय विदेश मंत्रालय ने सही जवाब दिया है कि जिस देश में सेना आतंकवादी समूहों के साथ मिली हो, वहां परमाणु कमांड और कंट्रोल की विश्वसनीयता पर संदेह होना स्वाभाविक है। विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा कि भारत किसी न्यूfिक्लयर ब्लैकमेल के आगे नहीं झुकेगा। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी सरकार का यही रुख रहा था। मुनीर के बयान का इस्तेमाल भारत को पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ाने और उसके परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने के लिए करना चाहिए। भारत को अमेरिकी सरकार से भी यह पूछना चाहिए कि उन्होंने अपनी धरती से ऐसे बेहूदा, विस्फोटक भड़काऊ बयान देने की इजाजत कैसे दी?
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 12 August 2025
वोट चोरी पर आर-पार की लड़ाई
लोकसभा चुनाव के 14 माह बाद एसआईआर और वोट बंदी के मुद्दे पर विपक्ष को एकजुट करने में सफल रहे हैं। भारत में राजनीति इस समय टॉप गीयर पर है। यह सही है कि भारत जैसे विशाल देश में चुनाव करवाना आसान नहीं है। यही नहीं भारत में इतने चुनाव होते हैं जो चुनाव आयोग की योग्यता के लिए चुनौती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत का चुनाव आयोग काफी हद तक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने में सफल रहा है। वोट करना हर वोटर का संवैधानिक और लोकतांत्रिक अधिकार है। यह भी जरूरी है कि उसका वोट उसे ही मिले जिसे उसने वोट दिया है। जब यह आशंका पैदा हो जाए कि उसका वोट दिया किसी को है और गया कहीं ओर तो बड़ा संदेह और निराशा पैदा हो जाती है। किसी भी देश में लोकतंत्र की मजबूती-विश्वसनीयता इस बात पर निर्भर करती है कि उसमें सरकार को चुने जाने की प्रक्रिया कितनी स्वच्छ, स्वतंत्र और पारदर्शी है। इसके लिए चुनाव आयोजित कराने वाली संस्था को यह सुनिश्चित करना होता है कि कोई भी नागरिक वोट देने के अधिकार से वंचित न हो, मतदान की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी तथा चुनाव में हिस्सेदारी करने वाले सभी दलों के लिए भरोसेमंद हो और नतीजों को लेकर सभी पक्ष संतुष्ट हों। कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने हाल ही में कर्नाटक की एक विधानसभा क्षेत्र का डाटा पेश करते हुए आरोप लगाया है कि मतदाता सूची में हेराफेरी हुई है। दस्तावेज का ढेर मीडिया के समक्ष दिखाते हुए राहुल गांधी ने दावा किया कि यह सूची चुनाव आयोग द्वारा उपलब्ध मतदाता सूची के ढेर से निकली है। उनका दावा है कि महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में एक लाख से ज्यादा मतों की चोरी हुर्ह है। संवाददाता सम्मेलन में राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए और दावा किया कि लोकसभा चुनावों, महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनाव में मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर धांधली की गई। तथ्यों के साथ राहुल ने साबित करने की कोशिश की। मतदाता सूची में हेर-फेर, फर्जी मतदाता, गलत पते, एक पते पर कई मतदाता, एक मतदाता का नाम कई जगह की सूची में होने जैसे कुछ खास तरीकों पर आधारित वोट चोरी करने के इस माडल को कई निर्वाचन क्षेत्रों में अमल में लाया गया ताकि भारतीय जनता पार्टी को फायदा मिल सके। हालांकि चुनाव गड़बड़ियां, ईवीएम में छेड़छाड़ की शिकायतें तो पहले भी आती रही हैं, लेकिन आमतौर पर वे किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सकीं या फिर निर्वाचन आयोग की ओर से उन्हें निराधार घोषित किया जाता रहा है। अब इस बार जिस गंभीर स्वरूप में इस मामले को उठाया गया है, उसके बाद देशभर में यह बहस खड़ी हो गई है कि अगर इन आरोपों का मजबूत आधार है तो इससे एक तरह से समूची चुनाव प्रक्रिया की वैधता कठघरे में खड़ी होती है। इस मसले पर चुनाव आयोग ने फिलहाल कोई संतोषजनक जवाब देने के बजाए राहुल गांधी से शपथपत्र पर हस्ताक्षर कर शिकायत देने या फिर देश की जनता को गुमराह न करने को कहा है। मगर राहुल गांधी ने वोट चोरी का दावा करते हुए जिस तरह अपने आरोपों को सुबूतों पर आधारित बताया है। उसके बाद चुनाव आयोग से उम्मीद की जाती है कि वह पूरी समूची प्रक्रिया पर भरोसे को बहाल रखने के लिए पूरी पारदर्शिता के साथ इस संबंध में उठे सवालें का जवाब सामने रखे। बहरहाल इस आरोप की गंभीरता को समझना आवश्यक है कि दो कमरों में क्रमश 80/46 लोग कैसे रह सकते हैं? इनमें तमाम मतदाताओं की तस्वीरें आकार में इतनी छोटी हैं कि पहचान करना मुश्किल है। इन आरोपों की पुष्टि आयोग को बगैर प्रत्यारोपों के करनी चाहिए। मतदाता सूचियों के प्रति आयोग जिम्मेदारी से बच नहीं सकता। जो भी त्रुटियां सामने आती हैं उनके बारे में स्पष्टता से संतोषजनक जवाब देना चाहिए। सवाल आरोपों-प्रतिआरोपों का नहीं है। सवाल देश में संविधान की रक्षा का है जिसकी रक्षा तभी हो सकती है जब हर नागरिक को अपने वोट देने का अधिकार मिले और उसकी वोट उसे ही जाए जिसे वोट दिया गया है। हमारे लोकतंत्र की जड़ है स्वतंत्र, निष्पक्ष, पारदर्शी चुनाव मगर इसमें भी हेराफेरी होती है तो हमारे संविधान व लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होती हैं। उम्मीद है कि चुनाव आयोग प्रश्नों का संतोषजनक जवाब देगा और चुनावी प्रक्रिया को मजबूत और पारदर्शी बनाएगा।
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 9 August 2025
बिहार वोटर लिस्ट पर टकराव
बिहार मतदाता सूची परीक्षण एसआईआर का मामला संसद से सड़क और सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक स्वाभाविक ही गरमाया हुआ है। विपक्षी दलों ने बिहार में जारी मतदाता सूची में एसआईआर को लेकर संसद में इसे वोटों की डकैती करार दिया और कहा कि इस विषय पर संसद के दोनों सदनों में चर्चा करना देश हित के लिए जरूरी है। यदि सरकार एसआईआर पर चर्चा करने के लिए तैयार नहीं होती तो समझा जाएगा कि वह लोकतंत्र और संविधान में विश्वास नहीं रखती। वहीं संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) का मुद्दा उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है और लोकसभा के कार्य संचालन और प्रक्रियाओं के नियमों एवं परिपाटी के तहत इस मुद्दे पर चर्चा नहीं हो सकती। उधर सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं सूची की जांच के संकेत दिए हैं। बिहार में नई मतदाता सूची में करीब 65 लाख लोगों के नाम हटा दिए गए हैं और सुप्रीम कोर्ट यह परखना चाहता है कि लोगों के नाम सही ढंग से कटे हैं या नहीं? बता दें कि एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआर) की ओर से दायर याचिका में मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण को चुनौती दी गई थी। इसी याचिका के तहत सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को चुनाव आयोग को निर्देश दिए हैं। तीन दिन के अंदर चुनाव आयोग को हटाए गए नामों का विवरण प्रस्तुत करना है। 9 अगस्त तक यह पेश करने को कहा गया है। जस्टिस सूर्यकांत जस्टिस उज्जवल भूइयां और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की पीठ ने निर्वाचन आयोग से कहा, वोटर लिस्ट में हटाए गए मतदाताओं का विवरण दें और एक कापी गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स को भी दें। बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण के आदेशों को चुनौती देने वाले संगठन एडीआर ने एक नया आवेदन दायर किया है। इसमें आयोग को हटाए गए 65 लाख मतदाताओं के नाम प्रकाशित करने के निर्देश देने की मांग की गई है। एडीआर ने कहा है, विवरण में यह भी आलेख हो कि वह मृत हैं या स्थायी रूप से विस्थापित हैं या किसी अन्य कारण से उनके नाम पर विचार नहीं किया गया है। पीठ ने एनजीओ की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण से कहा नाम हटाने का कारण बाद में पता चलेगा क्योंकि यह अभी सिर्फ मसौदा सूची है। इस पर भूषण ने तर्क दिया, कुछ दलों को हटाए गए मतदाताओं की सूची दी गई है, लेकिन इस पर स्पष्ट नहीं है कि मतदाता की मृत्यु हो गई या वह कहीं और चले गए हैं। चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि यह रिकार्ड पर लाएंगे कि उन्होंने यह जानकारी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ साझा की है। उन्होंने यह भी कहा कि बीएलओ ने जिनके नाम हटाने या न हटाने की सिफारिश की, उसकी सूची केवल दो निर्वाचन क्षेत्रों में जारी हुई है। हम उसमें पारदर्शिता चाहते हैं। इस बार जस्टिस सूर्यकांत ने कहा-आयोग के नियमों के अनुसार हर राजनीतिक दल को यह जानकारी दी जाती है। कोर्ट ने उन राजनीतिक दलों की सूची मांगी जिन्हें लिस्ट दी गई है। भूषण ने कहा जिन लोगों के फार्म मिले, उनमें अधिकांश ने फार्म नहीं भरे हैं। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, हम यह सुनिश्चित करेंगे कि जिन मतदाताओं पर असर पड़ सकता है, उन्हें आवश्यक जानकारी दी जाए। इसके बाद कोर्ट ने आयोग को इस बारे में शनिवार तक जबाव दाखिल करने का निर्देश दिया। साथ ही कहा, भूषण (एडीआर) उसे देखें, फिर हम देखेंगे कि क्या खुलासा किया गया और क्या नहीं किया गया। कोर्ट ने कहा, एडीआर 12 अगस्त से होने वाली सुनवाई में दलीलें दे सकता है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि यदि बड़े पैमाने पर नाम हटाए गए तो वह हस्तक्षेप करेगा। राजनीतिक दलों की चिंता जायज है, पर यह चिंता प्रत्येक दल को होनी चाहिए, केवल विपक्षी दलों को नहीं। इसमें कोई दो राय नहीं कि चुनाव आयोग की जल्दबाजी की वजह से विवाद गहराया है। अगर पर्याप्त समय लेकर पुनरीक्षण का कार्य किया जाता तो संभव है कि विवाद की गुजांइश इतनी न होती। बहरहाल लोकतंत्र का तकाजा है कि चुनाव आयोग सब सच सामने रखे। वोट का अधिकार हर नागरिक का मौलिक संवैधानिक अधिकार है जिसे कोई नहीं छोड़ सकता। इसी अधिकार पर लोकतंत्र टिका हुआ है। अगर कोई राजनीतिक दल किसी भी तरह से बेइमानी करके चुनाव परिणाम को अपने पक्ष में कराता है तो यह देश के लोकतंत्र की जड़े खोद रहा है। हम उम्मीद करते हैं कि माननीय सुप्रीम कोर्ट जो भारत के संविधान की सबसे बड़ी संरक्षक है वह न्याय करेगी और निष्पक्ष होकर तथ्यों के आधार पर अपना फैसला करेगी।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 7 August 2025
बिछने लगी सियासी बिसात
उपराष्ट्रपति चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही राजनीतिक गहमागहमी शुरू हो गई है। संसद के हालांकि दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा के दलीय समीकरण में सत्तारूढ़ राजग के पास अपने उम्मीदवार को जीताने के लिए पर्याप्त संख्या तो है पर फिर भी लगता है कि इस बार यह चुनाव आसान नहीं होगा। विपक्ष चुनौती देने की तैयारी में लगा हुआ है। बेशक, विपक्ष चुनौती तो दे सकता है पर बिना बड़ी सेंध के उलटफेर करने की स्थिति में नहीं लगता। पर राजनीति अनिश्चिताओं का खेल है कुछ भी हो सकता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उपराष्ट्रपति के चुनाव में पार्टी लाइन पर कोई व्हिप जारी नहीं होगा। सांसदों को अपनी आत्मा के अनुसार वोट करने का अधिकार होता है। इसीलिए ऐसे चुनावों में क्रास वोटिंग का बड़ा खतरा रहता है। पहले बात करते हैं सत्ता पक्ष की। भाजपा और उनके सहयोगी दलों की। भाजपा चाहेगी कि उपराष्ट्रपति पद के लिए ऐसा उम्मीदवार चुना जाए जो उनका समर्थक हो और सरकार की लाइन पर चले। यह काम श्री जगदीश धनखड़ ने शुरू-शुरू में बाखूबी किया था। यह और बात है कि उनका अंत अच्छा नहीं हुआ। उधर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चाहती है कि जो भी उम्मीदवार हो वो संघ की पसंद व समर्थक हो। वह सरकार की लाइन पर चलने वाला नहीं हो। एक नेता ने कहा कि पिछली बार जब धनखड़ को उपराष्ट्रपति बनाया गया था उस वक्त भी संघ परिवार में इसे लेकर चर्चा थी। इस बार लगभग सभी मान रहे हैं कि संघ अपनी विचारधारा को समझने वाला उम्मीदवार ही चाहता है। दक्षिण भारत की सियासी पार्टियां चाहती हैं कि जब राष्ट्रपति उत्तर से है तो कम से कम उपराष्ट्रपति तो दक्षिण भारत का हो। इससे देश में एकता आएगी। वहीं यह जानते हुए कि भाजपा का पलड़ा भारी है फिर भी कांग्रेस और इंडिया गठबंधन एक साझा उम्मीदवार उतारने की रणनीति पर काम कर रहा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी 7 अगस्त को डिनर पर विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक के नेताओं के साथ मंथन करेंगे। सूत्रों का कहना है कि योजना बिहार या आंध्र प्रदेश के किसी नेता को उम्मीदवार बनाने की है जिससे भाजपा के दो सबसे बड़े सहयोगियों टीडीपी और जदयू को असमंजस में डाला जा सके। चुनाव के बहाने कांग्रेस की नजर विपक्षी एकता कायम कर शक्ति प्रदर्शन करने की और एनडीए को असमंजस में डालने पर है। दरअसल, भाजपा अपने दम पर चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं है। उसे हर हाल में अपने सबसे बड़े सहयोगियों जदयू-टीडीपी का समर्थन चाहिए। कांग्रेस के रणनीतिकार मानते हैं कि अगर विपक्ष का उम्मीदवार आंध्र प्रदेश या बिहार से हुआ तो क्षेत्रीय भावानाओं के साथ संतुलन बैठाने के लिए नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू उलझन में पड़ जाएंगे। आंध्र प्रदेश के ही वाईएसआरसीपी जिनके राज्यसभा में 7 सदस्य हैं, विपक्ष के साथ आ सकते हैं। अगर ंइस चुनाव में एक भी सहयोगी दल टूटता है तो राजग में फूट का संदेश जाएगा। कहा तो यह भी जा रहा है कि भाजपा में भी इस मुद्दे पर एका नहीं है। संघ से जुड़े विचारधारा वाले भाजपा सांसद संघ के कहने पर अगर उम्मीदवार उन पर भाजपा हाई कमान द्वारा थोपा गया तो वह क्रास वोटिंग भी कर सकते हैं। हालांकि मेरी राय में यह मुश्किल होगा पर राजनीति में कुछ भी दावे से नहीं कहा जा सकता? ये किसी से छिपा नहीं कि भाजपा के अंदर एक तबका ऐसा भी है जो जिस तरह से जगदीप धनखड़ को अपमानित करके हटाया गया उससे वे खुश नहीं हैं। सरकार से इस समय कांग्रेस के जिस तरह के रिश्ते हैं उसे देखकर लगता नहीं कि विपक्ष सरकार के उम्मीदवार का समर्थन करेगा। कांग्रेस के साथ सरकार के वरिष्ठ मंत्रियें के रिश्ते बहुत बिगड़े हुए हैं। पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीश धनखड़ से कांग्रेस की कथित नजदीकियों को लेकर जिस तरह की कहानियां बनाई गई उससे भी भाजपा खुश नहीं है। सूत्रों का कहना है कि विपक्ष (इंडिया गठबंधन) उपराष्ट्रपति पद के लिए किसी ओबीसी या मुस्लिम नाम पर भी विचार कर रहा है। इंडिया गठबंधन के कुछ नेताओं का सुझाव है कि विपक्ष को उपराष्ट्रपति का चुनाव लोकतंत्र बचाने की लड़ाई के रूप में लड़ना चाहिए।
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 5 August 2025
एक और फ्रंट खुलता नजर आ रहा है
अमेरिका और रूस के बीच तनातनी बढ़ती जा रही है। लगता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अब रूस के खिलाफ एक नया मोर्चा खोलने की ठान ली है। पिछले कई दिनों से रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के खिलाफ ट्रंप जहर उगल रहे हैं और युक्रेन के साथ युद्ध को समाप्त करने के लिए दबाव डाल रहे हैं। पर पुतिन उनकी एक नहीं सुन रहे हैं। ट्रंप ने इस बार पूर्व रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव पर निशाना साधते हुए पुतिन और रूस को धमकाया है। ट्रंप ने कहा है कि उन्होंने पूर्व रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव की ओर से बेहद उकसाने वाली टिप्पणियों के बाद दो परमाणु पनडुब्बियों को सही जगह पर तैनात करने का आदेश दिया है। बता दें कि मेदवेदेव ने हाल ही में अमेरिका के खिलाफ टिप्पणी की थी। ये ट्रंप के उस अल्टीमेटम के जवाब में था जिसमें उन्हेंने रूस से युक्रेन युद्ध विराम की मांग की थी। ट्रंप ने कहा मैंने यह कदम इसलिए उठाया है क्योंकि हो सकता है कि ये (मेदवेदेव की टिप्पणी) मूर्खतापूर्ण और भड़काऊ बयान सिर्फ बातें भर न हो। शब्दों की एहमियत होती है और कई बार इनके अंजाम अनचाहे हो सकते हैं। मैं उम्मीद करता हूं कि इस बार ऐसा नहीं होगा। उन्होंने यह नहीं बताया कि अमेरिकी नौसेना की ये पनडुब्बियां कहां भेजी गई हैं। ट्रंप ने कहा कि यह मामला उन परिस्थितियों में शामिल नहीं होगा। उन्होंने कहा कि यह फाइनल अल्टीमेटम है। रूस और अमेरिका दुनिया के दो सबसे बड़े परमाणु हथियार संपन्न देश हैं और दोनों के पास परमाणु पनडुब्बियों का विशाल बेड़ा है। बता दें कि 29 जुलाई को ट्रंप ने कहा था कि यदि रूस 10-12 दिनों के अंदर यूक्रेन युद्ध समाप्त नहीं करता तो उस पर गंभीर आर्थिक प्रतिबंध और टैरिफ लगाए जाएंगे। अमेरिका शांति चाहता है लेकिन वह कमजोर नहीं है। इस पर 29 जुलाई को रूस के पूर्व राष्ट्रपति मेदवेदेव ने लिखा ः हर नई डेडलाइन एक धमकी है और युद्ध की ओर एक कदम है। अमेरिका को अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए। मगर वह रूस को इस तरह धमकाता रहा। 30 जुलाई को ट्रंप ने मेदवेदेव को फेल पूर्व राष्ट्रपति कहते हुए कहा- उन्हें अपने शब्दों पर ध्यान देना चाहिए। वे अब बहुत खतरनाक क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं। अगले दिन ही मेदवेदेव ने फिर धमकी दी, कहाö सोवियत युग का डेड हैंड प्रणाली आज भी पीय है। यदि अमेरिका सोचता है कि वह एकतरफा आदेश दे सकता है तो वह गलतफहमी है। इसके बाद ही पावार को ट्रंप ने एटमी पनडुब्बियों की तैनाती का आदेश दिया। पिछले कुछ दिनों से जैसे मैने बताया ट्रंप और मेदवेदेव सोशल मीडिया पर एक-दूसरे के खिलाफ व्यक्तिगत हमले कर रहे हैं। यह सब तब हो रहा है जब ट्रंप ने पुतिन को युद्ध खत्म करने के लिए 8 अगस्त की नई समय सीमा दी है। लेकिन पुतिन ने इसका कोई संकेत नहीं दिया कि वह ऐसा करने वाले हैं। बता दें कि मेदवेदेव 2022 में पोन पर रूस के हमले के प्रबल समर्थक रहे हैं। वह पश्चिमी देशों के कड़े आलोचक भी हैं। केवल छह देशों के पास ही परमाणु ताकत से लैस पनडुब्बियां हैं। ये देश हैं चीन, भारत, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका। उम्मीद करते हैं कि अमेरिका-रूस में बढ़ती तनातनी जरूर रूक जाएगी और कोई समझौता हो जाएगा। रूस भी बहुत ताकतवर देश है। वह आसानी से झुकने वाला नहीं। रूस–यूक्रेन से समझौता तो कर सकता है पर यह तभी हो सकता है जब उसकी शर्तें युक्रेन माने जो बहुत मुश्किल लगता है। अमेरिका का यहां भी दोहरा चरित्र नजर आता है। एक तरफ तो ट्रंप युक्रेन को हथियार, पैसा दे रहे हैं। यूरोप के देशों से युक्रेन की मदद करवा रहे हैं और दूसरी तरफ युद्ध विराम की बात करते हैं। अगर दुनिया में कोई आदमी बेनकाब हुआ है, एक्सपोज हुआ है तो वह अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हैं। नोबेल पुरस्कार लेने की इतनी जल्दी है कि अनाप-शनाप बाते करते हैं। धमकियों पर उतर आए हैं पर अब दुनिया उन्हें समझ चुकी है। वह जानती है कि अंदर से वह कितने खोखले हैं और शायद ही अब इसे कोई गंभीरता से लेता हो। पर रूस-युक्रेन का युद्ध रूकना चाहिए। दोनों पुतिन और जेलेंस्की को गंभीरता से बैठ कर हल निकालना चाहिए। हजारों जाने व्यर्थ में जा रही हैं। रूस-युक्रेन युद्ध रूकना चाहिए। अगर ट्रंप रूकवा सकते हैं तो भी कोई हर्ज नहीं है।
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 2 August 2025
बहस दो घंटे चली मगर सवालों का उत्तर नहीं मिला
संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर कई घंटे की लंबी बहस हुई। बहस न केवल स्वस्थ सार्थक और जीवंत रही बल्कि इसने सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनें को उसके बेहतर ढंग में देश के सामने रखा। खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान सीजफायर को लेकर मध्यस्थता वाले दावों को सिरे से खारिज कर दिया। पीएम मोदी ने कहा कि भारत ने किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं की और न ही करेगा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हालांकि 30 बार से ज्यादा दोहरा चुके हैं कि उन्होंने सीजफायर कराया। पीएम ने ट्रंप का नाम लिए बिना इन दावों को निराधार बताया था। पीएम मोदी के भाषण में बहुत सारे सवालों के जवाब तो मिले पर बहुत सारे सवालों के जवाब नहीं मिले। सरकार ने इसका संतोषजनक जवाब नहीं दिया कि सीजफायर क्यों रोका गया? सवाल है कि जब पाकिस्तान घुटनों पर था, तब सीजफायर किन शर्तों पर और किसके कहने पर किया गया? देश तो चाहता था कि जब भारत का पलड़ा भारी था तो हमें रुकना नहीं चाहिए था और पीओके पर कब्जा कर लेना चाहिए था पर हम अचानक रुक गए। वहीं हमने पाकिस्तान को यह भी बता दिया कि हमने केवल आतंकी ठिकानें पर हमला किया है हमने पाकिस्तानी सेना और डिफेंस सिस्टम पर हमला नहीं किया। इसका नतीजा यह हुआ कि हमारी ही जमीन पर हमारे ही विमान गिराने में पाकिस्तान सफल रहा। राज्यसभा में नेता विपक्ष और कांग्रेस अध्यक्ष ने पहलगाम हमले में सुरक्षा चूक पर सवाल उठाया जिसका कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। खरगे ने जम्मू-कश्मीर पर उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के बयान का हवाला देते हुए सरकार पर हमला बोला। मनोज सिन्हा ने स्वीकार किया कि आतंकी हमले की वजह हमारी चूक थी। उन्होंने सवाल किया कि क्या सिन्हा का बयान किसी को बचाने के लिए था? हमले की किस-किस ने जिम्मेदारी ली? किसने इस्तीफा दिया? प्रियंका गांधी ने कहा कि पहलगाम हमले के बाद किसी देश ने पाकिस्तान की निंदा नहीं की यानि पूरी दुनिया ने भारत को पाकिस्तान की बराबरी पर रखा। सरकार ने जवाब में कहा कि पाकिस्तान के साथ सिर्फ तीन देश खड़े थे और दुनिया के कई देशों ने आतंकी हमले की निंदा की। बेशक, इस पर किसी ने भी पाकिस्तान को पहलगाम हमले का दोषी नहीं माना। क्या यह हमारी विदेश नीति का पर्दाफाश नहीं करती? सारी दुनिया जानती है कि भारत-पाक संघर्ष में पाकिस्तान तो महज मखौटा था। असल ताकत तो चीन की थी। हम पाकिस्तान से अकेले नहीं लड़ रहे थे, बल्कि पाक-चीन गठजोड़ से लड़ रहे थे। तमाम बहस में सरकार ने एक बार भी चीन का नाम नहीं लिया जबकि हमारी सेना ने साफ कहा कि चीन-पाकिस्तान को हथियार दे रहा है और चीन सैन्य उपकरणों के कारण ही भारत के विमान गिरे। इन पर सरकार ने एक शब्द नहीं कहा और न ही एक शब्द चीन द्वारा पाकिस्तान को दी जा रही मदद पर कहा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूं ही नहीं दावा किया था कि भारत-पाक संघर्ष के दौरान 5 लड़ाकू विमान मार गिराए गए थे, हालांकि ट्रंप ने यह स्पष्ट नहीं किया कि किस देश के कितने विमान गिराए गए। इससे पहले पाकिस्तानी भी भारत के 5 लड़ाकू विमान मार गिराने का दावा कर चुके हैं। हालांकि भारत ने इसे खारिज किया है। भारत की तुलना में पाकिस्तान के साथ ज्यादा देश क्यों? भारत-पाक संघर्ष के दौरान तुर्किए, अजरबैजान और चीन ने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया था, जबकि भारत के पक्ष में केवल इजरायल स्पष्ट रूप से नजर आया। यहां तक कि रूस ने भी भारत को खुलकर समर्थन नहीं किया। इस मुद्दे पर बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, दुनिया में किसी भी देश ने भारत को अपनी सुरक्षा में कार्रवाई करने से रोका नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र में 193 देश हैं और सिर्फ तीन देशों ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के समर्थन में बयान दिया था। ब्रिक्स फ्रांस, रूस और जर्मनी... कोई भी देश का नाम ले लीजिए, दुनिया भर से भारत को समर्थन मिला। पूरी बहस में एक महत्वपूर्ण मुद्दा कपिल सिब्बल ने भी उठाया। पूर्व केंद्रीय मंत्री व राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने देश की रक्षा तैयारियों पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि भारत के पास पाकिस्तान से युद्ध लड़ने और उसे बर्बाद करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं है। जब हम पाक से युद्ध की बात करते हैं तो चीन को भी जोड़ें, क्योंकि दोनों अलग-अलग नहीं हैं। पाकिस्तान के पास चीन के उन्नत विमान, सैन्य प्रणाली है जबकि भारत का राफेल आधी क्षमता वाला विमान है। पाक के पास 25 स्क्वाड्रन है जबकि चीन के पास 138 स्क्वाड्रन है। वहीं भारतीय वायुसेना के वैसे कुल 32 स्क्वाड्रन है, जो किसी भी भारत-पाक युद्ध के दौरान सबसे कम संख्या है। हाल ही में एयरफोर्स चीफ और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने इस कमी को उजाकर किया है। पिछले 11 सालों में सैन्य तैयारी में भारी कमी आई है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता और न ही इस बहस में इसका कोई जवाब मिला।
-अनिल नरेन्द्र
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