Thursday, 14 August 2025
आसिम मुनीर की खुली धमकी
अमेरिका के फ्लोरिडा शहर में पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर ने अमेरिकी धरती से भारत को धमकी भरा बयान दिया है। भारत और पाकिस्तान के बीच मई में हुए संघर्ष के तीन महीने बाद अब पाकिस्तानी सेना प्रमुख का बयान सामने आया है। मुनीर ने दावा किया है कि मई में हुए संघर्ष में पाकिस्तान को कामयाबी मिली थी। साथ ही उन्होंने कहा कि भारत विश्व गुरु बनने का दावा करता है लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। आसिम मुनीर का बयान ऐसे समय पर सामने आया है जब शनिवार और रविवार को ऑपरेशन सिंदूर पर भारतीय थल सेना और वायु सेना प्रमुखों के अलग-अलग बयान सामने आए हैं। पहले बता दें कि भारतीय थल सेना प्रमुख जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने क्या कहा था। उन्होंने कहा था कि पहलगाम हमले के जवाब में चलाया गया ऑपरेशन सिंदूर किसी भी पारपंरिक मिशन से अलग था। शनिवार को भारतीय वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह ने दावा किया था कि मई में हुए संघर्ष के दौरान भारत ने छह पाकिस्तानी विमानों को मार गिराया था। हालांकि उसी रोज पाकिस्तान के रक्षामंत्री ख्वाजा आसिफ ने बयान जारी कर इसका खंडन किया। 10 मई को संघर्ष विराम पर सहमति बनने के बाद गोलीबारी थम गई थी। उस समय पाकिस्तान ने भारत के पांच लड़ाकू विमान गिराने का दावा किया था, जिसे भारत ने सिरे से खारिज कर दिया था। फ्लोरिडा में फील्ड मार्शल आसिम मुनीर ने एक निजी कार्यक्रम में दावा किया था कि पाकिस्तान ने भारत के भेदभाव पूर्ण और दोहरे व्यवहार वाली नीतियों के खिलाफ एक सफल कूटनीतिक युद्ध लड़ा है। उन्होंने आरोप लगाया कि भारत की खुफिया एजेंसी रॉ अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद में शामिल है और इस संबंध में उन्होंने कनाडा में एक सिख नेता की हत्या, कतर में आठ नौसेना अधिकारियों का मामला और कुलभूषण जाधव जैसी घटनाओं का उदाहरण दिया। गौरतलब है कि भारत पहले ही इन सभी आरोपों का खंडन कर चुका है। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का बेहद आभारी है। जिनके राजनीतिक नेतृत्व में न केवल भारत पाक युद्ध को रोका बल्कि दुनिया में कई युद्धों को भी रोका। फील्ड मार्शल मुनीर ने अपने भाषण में कश्मीर को एक अधूरा एजेंडा बताया। आसिम मुनीर यहीं नहीं रूके उन्होंने भारत को खुली धमकी दे डाली। मुनीर ने कहा कि अगर भारत ने सिंधु नदी का पानी रोकने के लिए बांध बनाया तो हम मिसाइल से उसे उड़ा देंगे। मुनीर ने कहा, हम भारत के सिंधु नदी पर डैम बनने का इंतजार करेंगे और जब वे ऐसा करेंगे तो हम मिसाइलों से उसे तबाह कर देंगे। पाकिस्तान के फील्ड मार्शल मुनीर यह गीदड़ भभकी देने से भी नहीं चूके कि अगर भविष्य में भारत के साथ युद्ध में उनके देश के अस्तित्व को खतरा हुआ तो वो इस पूरे क्षेत्र को परमाणु युद्ध में झोंक देंगे। मुनीर ने कहा कि हम एक परमाणु संपन्न राष्ट्र हैं और अगर हमें लगता है कि हम डूब रहे हैं तो हम आधी दुनिया को अपने साथ ले जाएंगे। मुनीर का यह बयान इस लिहाज से सनसनीखेज है कि पहली बार अमेरिकी धरती से किसी तीसरे देश को परमाणु युद्ध की धमकी दी गई है। पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने जिस तरह खुलेआम परमाणु युद्ध की धमकी दी है, उसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। इस पर अपनी-अपनी राय हो सकती है। बहरहाल इससे एक बात तो साबित होती ही है कि पाकिस्तान के पास परमाणु शfिक्त होना केवल भारत के लिए ही नहीं पूरी दुनिया के लिए खतरा है। यह दुखद है कि मुनीर का यह बयान अमेरिका की धरती से आया है। यह पहली बार है जब किसी ने अमेरिकी धरती से किसी तीसरे देश के लिए इस तरह के धमकी भरे शब्दों का इस्तेमाल किया है। यह भी पहली बार है जब किसी सेना प्रमुख ने कहा कि जरूरत पड़ने पर वह परमाणु हfिथयार भी इस्तेमाल कर सकता है। मुनीर के बयान का भारतीय विदेश मंत्रालय ने सही जवाब दिया है कि जिस देश में सेना आतंकवादी समूहों के साथ मिली हो, वहां परमाणु कमांड और कंट्रोल की विश्वसनीयता पर संदेह होना स्वाभाविक है। विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा कि भारत किसी न्यूfिक्लयर ब्लैकमेल के आगे नहीं झुकेगा। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी सरकार का यही रुख रहा था। मुनीर के बयान का इस्तेमाल भारत को पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ाने और उसके परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने के लिए करना चाहिए। भारत को अमेरिकी सरकार से भी यह पूछना चाहिए कि उन्होंने अपनी धरती से ऐसे बेहूदा, विस्फोटक भड़काऊ बयान देने की इजाजत कैसे दी?
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 12 August 2025
वोट चोरी पर आर-पार की लड़ाई
लोकसभा चुनाव के 14 माह बाद एसआईआर और वोट बंदी के मुद्दे पर विपक्ष को एकजुट करने में सफल रहे हैं। भारत में राजनीति इस समय टॉप गीयर पर है। यह सही है कि भारत जैसे विशाल देश में चुनाव करवाना आसान नहीं है। यही नहीं भारत में इतने चुनाव होते हैं जो चुनाव आयोग की योग्यता के लिए चुनौती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत का चुनाव आयोग काफी हद तक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने में सफल रहा है। वोट करना हर वोटर का संवैधानिक और लोकतांत्रिक अधिकार है। यह भी जरूरी है कि उसका वोट उसे ही मिले जिसे उसने वोट दिया है। जब यह आशंका पैदा हो जाए कि उसका वोट दिया किसी को है और गया कहीं ओर तो बड़ा संदेह और निराशा पैदा हो जाती है। किसी भी देश में लोकतंत्र की मजबूती-विश्वसनीयता इस बात पर निर्भर करती है कि उसमें सरकार को चुने जाने की प्रक्रिया कितनी स्वच्छ, स्वतंत्र और पारदर्शी है। इसके लिए चुनाव आयोजित कराने वाली संस्था को यह सुनिश्चित करना होता है कि कोई भी नागरिक वोट देने के अधिकार से वंचित न हो, मतदान की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी तथा चुनाव में हिस्सेदारी करने वाले सभी दलों के लिए भरोसेमंद हो और नतीजों को लेकर सभी पक्ष संतुष्ट हों। कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने हाल ही में कर्नाटक की एक विधानसभा क्षेत्र का डाटा पेश करते हुए आरोप लगाया है कि मतदाता सूची में हेराफेरी हुई है। दस्तावेज का ढेर मीडिया के समक्ष दिखाते हुए राहुल गांधी ने दावा किया कि यह सूची चुनाव आयोग द्वारा उपलब्ध मतदाता सूची के ढेर से निकली है। उनका दावा है कि महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में एक लाख से ज्यादा मतों की चोरी हुर्ह है। संवाददाता सम्मेलन में राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए और दावा किया कि लोकसभा चुनावों, महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनाव में मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर धांधली की गई। तथ्यों के साथ राहुल ने साबित करने की कोशिश की। मतदाता सूची में हेर-फेर, फर्जी मतदाता, गलत पते, एक पते पर कई मतदाता, एक मतदाता का नाम कई जगह की सूची में होने जैसे कुछ खास तरीकों पर आधारित वोट चोरी करने के इस माडल को कई निर्वाचन क्षेत्रों में अमल में लाया गया ताकि भारतीय जनता पार्टी को फायदा मिल सके। हालांकि चुनाव गड़बड़ियां, ईवीएम में छेड़छाड़ की शिकायतें तो पहले भी आती रही हैं, लेकिन आमतौर पर वे किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सकीं या फिर निर्वाचन आयोग की ओर से उन्हें निराधार घोषित किया जाता रहा है। अब इस बार जिस गंभीर स्वरूप में इस मामले को उठाया गया है, उसके बाद देशभर में यह बहस खड़ी हो गई है कि अगर इन आरोपों का मजबूत आधार है तो इससे एक तरह से समूची चुनाव प्रक्रिया की वैधता कठघरे में खड़ी होती है। इस मसले पर चुनाव आयोग ने फिलहाल कोई संतोषजनक जवाब देने के बजाए राहुल गांधी से शपथपत्र पर हस्ताक्षर कर शिकायत देने या फिर देश की जनता को गुमराह न करने को कहा है। मगर राहुल गांधी ने वोट चोरी का दावा करते हुए जिस तरह अपने आरोपों को सुबूतों पर आधारित बताया है। उसके बाद चुनाव आयोग से उम्मीद की जाती है कि वह पूरी समूची प्रक्रिया पर भरोसे को बहाल रखने के लिए पूरी पारदर्शिता के साथ इस संबंध में उठे सवालें का जवाब सामने रखे। बहरहाल इस आरोप की गंभीरता को समझना आवश्यक है कि दो कमरों में क्रमश 80/46 लोग कैसे रह सकते हैं? इनमें तमाम मतदाताओं की तस्वीरें आकार में इतनी छोटी हैं कि पहचान करना मुश्किल है। इन आरोपों की पुष्टि आयोग को बगैर प्रत्यारोपों के करनी चाहिए। मतदाता सूचियों के प्रति आयोग जिम्मेदारी से बच नहीं सकता। जो भी त्रुटियां सामने आती हैं उनके बारे में स्पष्टता से संतोषजनक जवाब देना चाहिए। सवाल आरोपों-प्रतिआरोपों का नहीं है। सवाल देश में संविधान की रक्षा का है जिसकी रक्षा तभी हो सकती है जब हर नागरिक को अपने वोट देने का अधिकार मिले और उसकी वोट उसे ही जाए जिसे वोट दिया गया है। हमारे लोकतंत्र की जड़ है स्वतंत्र, निष्पक्ष, पारदर्शी चुनाव मगर इसमें भी हेराफेरी होती है तो हमारे संविधान व लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होती हैं। उम्मीद है कि चुनाव आयोग प्रश्नों का संतोषजनक जवाब देगा और चुनावी प्रक्रिया को मजबूत और पारदर्शी बनाएगा।
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 9 August 2025
बिहार वोटर लिस्ट पर टकराव
बिहार मतदाता सूची परीक्षण एसआईआर का मामला संसद से सड़क और सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक स्वाभाविक ही गरमाया हुआ है। विपक्षी दलों ने बिहार में जारी मतदाता सूची में एसआईआर को लेकर संसद में इसे वोटों की डकैती करार दिया और कहा कि इस विषय पर संसद के दोनों सदनों में चर्चा करना देश हित के लिए जरूरी है। यदि सरकार एसआईआर पर चर्चा करने के लिए तैयार नहीं होती तो समझा जाएगा कि वह लोकतंत्र और संविधान में विश्वास नहीं रखती। वहीं संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) का मुद्दा उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है और लोकसभा के कार्य संचालन और प्रक्रियाओं के नियमों एवं परिपाटी के तहत इस मुद्दे पर चर्चा नहीं हो सकती। उधर सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं सूची की जांच के संकेत दिए हैं। बिहार में नई मतदाता सूची में करीब 65 लाख लोगों के नाम हटा दिए गए हैं और सुप्रीम कोर्ट यह परखना चाहता है कि लोगों के नाम सही ढंग से कटे हैं या नहीं? बता दें कि एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआर) की ओर से दायर याचिका में मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण को चुनौती दी गई थी। इसी याचिका के तहत सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को चुनाव आयोग को निर्देश दिए हैं। तीन दिन के अंदर चुनाव आयोग को हटाए गए नामों का विवरण प्रस्तुत करना है। 9 अगस्त तक यह पेश करने को कहा गया है। जस्टिस सूर्यकांत जस्टिस उज्जवल भूइयां और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की पीठ ने निर्वाचन आयोग से कहा, वोटर लिस्ट में हटाए गए मतदाताओं का विवरण दें और एक कापी गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स को भी दें। बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण के आदेशों को चुनौती देने वाले संगठन एडीआर ने एक नया आवेदन दायर किया है। इसमें आयोग को हटाए गए 65 लाख मतदाताओं के नाम प्रकाशित करने के निर्देश देने की मांग की गई है। एडीआर ने कहा है, विवरण में यह भी आलेख हो कि वह मृत हैं या स्थायी रूप से विस्थापित हैं या किसी अन्य कारण से उनके नाम पर विचार नहीं किया गया है। पीठ ने एनजीओ की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण से कहा नाम हटाने का कारण बाद में पता चलेगा क्योंकि यह अभी सिर्फ मसौदा सूची है। इस पर भूषण ने तर्क दिया, कुछ दलों को हटाए गए मतदाताओं की सूची दी गई है, लेकिन इस पर स्पष्ट नहीं है कि मतदाता की मृत्यु हो गई या वह कहीं और चले गए हैं। चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि यह रिकार्ड पर लाएंगे कि उन्होंने यह जानकारी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ साझा की है। उन्होंने यह भी कहा कि बीएलओ ने जिनके नाम हटाने या न हटाने की सिफारिश की, उसकी सूची केवल दो निर्वाचन क्षेत्रों में जारी हुई है। हम उसमें पारदर्शिता चाहते हैं। इस बार जस्टिस सूर्यकांत ने कहा-आयोग के नियमों के अनुसार हर राजनीतिक दल को यह जानकारी दी जाती है। कोर्ट ने उन राजनीतिक दलों की सूची मांगी जिन्हें लिस्ट दी गई है। भूषण ने कहा जिन लोगों के फार्म मिले, उनमें अधिकांश ने फार्म नहीं भरे हैं। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, हम यह सुनिश्चित करेंगे कि जिन मतदाताओं पर असर पड़ सकता है, उन्हें आवश्यक जानकारी दी जाए। इसके बाद कोर्ट ने आयोग को इस बारे में शनिवार तक जबाव दाखिल करने का निर्देश दिया। साथ ही कहा, भूषण (एडीआर) उसे देखें, फिर हम देखेंगे कि क्या खुलासा किया गया और क्या नहीं किया गया। कोर्ट ने कहा, एडीआर 12 अगस्त से होने वाली सुनवाई में दलीलें दे सकता है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि यदि बड़े पैमाने पर नाम हटाए गए तो वह हस्तक्षेप करेगा। राजनीतिक दलों की चिंता जायज है, पर यह चिंता प्रत्येक दल को होनी चाहिए, केवल विपक्षी दलों को नहीं। इसमें कोई दो राय नहीं कि चुनाव आयोग की जल्दबाजी की वजह से विवाद गहराया है। अगर पर्याप्त समय लेकर पुनरीक्षण का कार्य किया जाता तो संभव है कि विवाद की गुजांइश इतनी न होती। बहरहाल लोकतंत्र का तकाजा है कि चुनाव आयोग सब सच सामने रखे। वोट का अधिकार हर नागरिक का मौलिक संवैधानिक अधिकार है जिसे कोई नहीं छोड़ सकता। इसी अधिकार पर लोकतंत्र टिका हुआ है। अगर कोई राजनीतिक दल किसी भी तरह से बेइमानी करके चुनाव परिणाम को अपने पक्ष में कराता है तो यह देश के लोकतंत्र की जड़े खोद रहा है। हम उम्मीद करते हैं कि माननीय सुप्रीम कोर्ट जो भारत के संविधान की सबसे बड़ी संरक्षक है वह न्याय करेगी और निष्पक्ष होकर तथ्यों के आधार पर अपना फैसला करेगी।
-अनिल नरेन्द्र
Thursday, 7 August 2025
बिछने लगी सियासी बिसात
उपराष्ट्रपति चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही राजनीतिक गहमागहमी शुरू हो गई है। संसद के हालांकि दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा के दलीय समीकरण में सत्तारूढ़ राजग के पास अपने उम्मीदवार को जीताने के लिए पर्याप्त संख्या तो है पर फिर भी लगता है कि इस बार यह चुनाव आसान नहीं होगा। विपक्ष चुनौती देने की तैयारी में लगा हुआ है। बेशक, विपक्ष चुनौती तो दे सकता है पर बिना बड़ी सेंध के उलटफेर करने की स्थिति में नहीं लगता। पर राजनीति अनिश्चिताओं का खेल है कुछ भी हो सकता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उपराष्ट्रपति के चुनाव में पार्टी लाइन पर कोई व्हिप जारी नहीं होगा। सांसदों को अपनी आत्मा के अनुसार वोट करने का अधिकार होता है। इसीलिए ऐसे चुनावों में क्रास वोटिंग का बड़ा खतरा रहता है। पहले बात करते हैं सत्ता पक्ष की। भाजपा और उनके सहयोगी दलों की। भाजपा चाहेगी कि उपराष्ट्रपति पद के लिए ऐसा उम्मीदवार चुना जाए जो उनका समर्थक हो और सरकार की लाइन पर चले। यह काम श्री जगदीश धनखड़ ने शुरू-शुरू में बाखूबी किया था। यह और बात है कि उनका अंत अच्छा नहीं हुआ। उधर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चाहती है कि जो भी उम्मीदवार हो वो संघ की पसंद व समर्थक हो। वह सरकार की लाइन पर चलने वाला नहीं हो। एक नेता ने कहा कि पिछली बार जब धनखड़ को उपराष्ट्रपति बनाया गया था उस वक्त भी संघ परिवार में इसे लेकर चर्चा थी। इस बार लगभग सभी मान रहे हैं कि संघ अपनी विचारधारा को समझने वाला उम्मीदवार ही चाहता है। दक्षिण भारत की सियासी पार्टियां चाहती हैं कि जब राष्ट्रपति उत्तर से है तो कम से कम उपराष्ट्रपति तो दक्षिण भारत का हो। इससे देश में एकता आएगी। वहीं यह जानते हुए कि भाजपा का पलड़ा भारी है फिर भी कांग्रेस और इंडिया गठबंधन एक साझा उम्मीदवार उतारने की रणनीति पर काम कर रहा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी 7 अगस्त को डिनर पर विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक के नेताओं के साथ मंथन करेंगे। सूत्रों का कहना है कि योजना बिहार या आंध्र प्रदेश के किसी नेता को उम्मीदवार बनाने की है जिससे भाजपा के दो सबसे बड़े सहयोगियों टीडीपी और जदयू को असमंजस में डाला जा सके। चुनाव के बहाने कांग्रेस की नजर विपक्षी एकता कायम कर शक्ति प्रदर्शन करने की और एनडीए को असमंजस में डालने पर है। दरअसल, भाजपा अपने दम पर चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं है। उसे हर हाल में अपने सबसे बड़े सहयोगियों जदयू-टीडीपी का समर्थन चाहिए। कांग्रेस के रणनीतिकार मानते हैं कि अगर विपक्ष का उम्मीदवार आंध्र प्रदेश या बिहार से हुआ तो क्षेत्रीय भावानाओं के साथ संतुलन बैठाने के लिए नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू उलझन में पड़ जाएंगे। आंध्र प्रदेश के ही वाईएसआरसीपी जिनके राज्यसभा में 7 सदस्य हैं, विपक्ष के साथ आ सकते हैं। अगर ंइस चुनाव में एक भी सहयोगी दल टूटता है तो राजग में फूट का संदेश जाएगा। कहा तो यह भी जा रहा है कि भाजपा में भी इस मुद्दे पर एका नहीं है। संघ से जुड़े विचारधारा वाले भाजपा सांसद संघ के कहने पर अगर उम्मीदवार उन पर भाजपा हाई कमान द्वारा थोपा गया तो वह क्रास वोटिंग भी कर सकते हैं। हालांकि मेरी राय में यह मुश्किल होगा पर राजनीति में कुछ भी दावे से नहीं कहा जा सकता? ये किसी से छिपा नहीं कि भाजपा के अंदर एक तबका ऐसा भी है जो जिस तरह से जगदीप धनखड़ को अपमानित करके हटाया गया उससे वे खुश नहीं हैं। सरकार से इस समय कांग्रेस के जिस तरह के रिश्ते हैं उसे देखकर लगता नहीं कि विपक्ष सरकार के उम्मीदवार का समर्थन करेगा। कांग्रेस के साथ सरकार के वरिष्ठ मंत्रियें के रिश्ते बहुत बिगड़े हुए हैं। पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीश धनखड़ से कांग्रेस की कथित नजदीकियों को लेकर जिस तरह की कहानियां बनाई गई उससे भी भाजपा खुश नहीं है। सूत्रों का कहना है कि विपक्ष (इंडिया गठबंधन) उपराष्ट्रपति पद के लिए किसी ओबीसी या मुस्लिम नाम पर भी विचार कर रहा है। इंडिया गठबंधन के कुछ नेताओं का सुझाव है कि विपक्ष को उपराष्ट्रपति का चुनाव लोकतंत्र बचाने की लड़ाई के रूप में लड़ना चाहिए।
-अनिल नरेन्द्र
Tuesday, 5 August 2025
एक और फ्रंट खुलता नजर आ रहा है
अमेरिका और रूस के बीच तनातनी बढ़ती जा रही है। लगता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अब रूस के खिलाफ एक नया मोर्चा खोलने की ठान ली है। पिछले कई दिनों से रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के खिलाफ ट्रंप जहर उगल रहे हैं और युक्रेन के साथ युद्ध को समाप्त करने के लिए दबाव डाल रहे हैं। पर पुतिन उनकी एक नहीं सुन रहे हैं। ट्रंप ने इस बार पूर्व रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव पर निशाना साधते हुए पुतिन और रूस को धमकाया है। ट्रंप ने कहा है कि उन्होंने पूर्व रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव की ओर से बेहद उकसाने वाली टिप्पणियों के बाद दो परमाणु पनडुब्बियों को सही जगह पर तैनात करने का आदेश दिया है। बता दें कि मेदवेदेव ने हाल ही में अमेरिका के खिलाफ टिप्पणी की थी। ये ट्रंप के उस अल्टीमेटम के जवाब में था जिसमें उन्हेंने रूस से युक्रेन युद्ध विराम की मांग की थी। ट्रंप ने कहा मैंने यह कदम इसलिए उठाया है क्योंकि हो सकता है कि ये (मेदवेदेव की टिप्पणी) मूर्खतापूर्ण और भड़काऊ बयान सिर्फ बातें भर न हो। शब्दों की एहमियत होती है और कई बार इनके अंजाम अनचाहे हो सकते हैं। मैं उम्मीद करता हूं कि इस बार ऐसा नहीं होगा। उन्होंने यह नहीं बताया कि अमेरिकी नौसेना की ये पनडुब्बियां कहां भेजी गई हैं। ट्रंप ने कहा कि यह मामला उन परिस्थितियों में शामिल नहीं होगा। उन्होंने कहा कि यह फाइनल अल्टीमेटम है। रूस और अमेरिका दुनिया के दो सबसे बड़े परमाणु हथियार संपन्न देश हैं और दोनों के पास परमाणु पनडुब्बियों का विशाल बेड़ा है। बता दें कि 29 जुलाई को ट्रंप ने कहा था कि यदि रूस 10-12 दिनों के अंदर यूक्रेन युद्ध समाप्त नहीं करता तो उस पर गंभीर आर्थिक प्रतिबंध और टैरिफ लगाए जाएंगे। अमेरिका शांति चाहता है लेकिन वह कमजोर नहीं है। इस पर 29 जुलाई को रूस के पूर्व राष्ट्रपति मेदवेदेव ने लिखा ः हर नई डेडलाइन एक धमकी है और युद्ध की ओर एक कदम है। अमेरिका को अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए। मगर वह रूस को इस तरह धमकाता रहा। 30 जुलाई को ट्रंप ने मेदवेदेव को फेल पूर्व राष्ट्रपति कहते हुए कहा- उन्हें अपने शब्दों पर ध्यान देना चाहिए। वे अब बहुत खतरनाक क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं। अगले दिन ही मेदवेदेव ने फिर धमकी दी, कहाö सोवियत युग का डेड हैंड प्रणाली आज भी पीय है। यदि अमेरिका सोचता है कि वह एकतरफा आदेश दे सकता है तो वह गलतफहमी है। इसके बाद ही पावार को ट्रंप ने एटमी पनडुब्बियों की तैनाती का आदेश दिया। पिछले कुछ दिनों से जैसे मैने बताया ट्रंप और मेदवेदेव सोशल मीडिया पर एक-दूसरे के खिलाफ व्यक्तिगत हमले कर रहे हैं। यह सब तब हो रहा है जब ट्रंप ने पुतिन को युद्ध खत्म करने के लिए 8 अगस्त की नई समय सीमा दी है। लेकिन पुतिन ने इसका कोई संकेत नहीं दिया कि वह ऐसा करने वाले हैं। बता दें कि मेदवेदेव 2022 में पोन पर रूस के हमले के प्रबल समर्थक रहे हैं। वह पश्चिमी देशों के कड़े आलोचक भी हैं। केवल छह देशों के पास ही परमाणु ताकत से लैस पनडुब्बियां हैं। ये देश हैं चीन, भारत, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका। उम्मीद करते हैं कि अमेरिका-रूस में बढ़ती तनातनी जरूर रूक जाएगी और कोई समझौता हो जाएगा। रूस भी बहुत ताकतवर देश है। वह आसानी से झुकने वाला नहीं। रूस–यूक्रेन से समझौता तो कर सकता है पर यह तभी हो सकता है जब उसकी शर्तें युक्रेन माने जो बहुत मुश्किल लगता है। अमेरिका का यहां भी दोहरा चरित्र नजर आता है। एक तरफ तो ट्रंप युक्रेन को हथियार, पैसा दे रहे हैं। यूरोप के देशों से युक्रेन की मदद करवा रहे हैं और दूसरी तरफ युद्ध विराम की बात करते हैं। अगर दुनिया में कोई आदमी बेनकाब हुआ है, एक्सपोज हुआ है तो वह अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हैं। नोबेल पुरस्कार लेने की इतनी जल्दी है कि अनाप-शनाप बाते करते हैं। धमकियों पर उतर आए हैं पर अब दुनिया उन्हें समझ चुकी है। वह जानती है कि अंदर से वह कितने खोखले हैं और शायद ही अब इसे कोई गंभीरता से लेता हो। पर रूस-युक्रेन का युद्ध रूकना चाहिए। दोनों पुतिन और जेलेंस्की को गंभीरता से बैठ कर हल निकालना चाहिए। हजारों जाने व्यर्थ में जा रही हैं। रूस-युक्रेन युद्ध रूकना चाहिए। अगर ट्रंप रूकवा सकते हैं तो भी कोई हर्ज नहीं है।
-अनिल नरेन्द्र
Saturday, 2 August 2025
बहस दो घंटे चली मगर सवालों का उत्तर नहीं मिला
संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर कई घंटे की लंबी बहस हुई। बहस न केवल स्वस्थ सार्थक और जीवंत रही बल्कि इसने सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनें को उसके बेहतर ढंग में देश के सामने रखा। खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान सीजफायर को लेकर मध्यस्थता वाले दावों को सिरे से खारिज कर दिया। पीएम मोदी ने कहा कि भारत ने किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं की और न ही करेगा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हालांकि 30 बार से ज्यादा दोहरा चुके हैं कि उन्होंने सीजफायर कराया। पीएम ने ट्रंप का नाम लिए बिना इन दावों को निराधार बताया था। पीएम मोदी के भाषण में बहुत सारे सवालों के जवाब तो मिले पर बहुत सारे सवालों के जवाब नहीं मिले। सरकार ने इसका संतोषजनक जवाब नहीं दिया कि सीजफायर क्यों रोका गया? सवाल है कि जब पाकिस्तान घुटनों पर था, तब सीजफायर किन शर्तों पर और किसके कहने पर किया गया? देश तो चाहता था कि जब भारत का पलड़ा भारी था तो हमें रुकना नहीं चाहिए था और पीओके पर कब्जा कर लेना चाहिए था पर हम अचानक रुक गए। वहीं हमने पाकिस्तान को यह भी बता दिया कि हमने केवल आतंकी ठिकानें पर हमला किया है हमने पाकिस्तानी सेना और डिफेंस सिस्टम पर हमला नहीं किया। इसका नतीजा यह हुआ कि हमारी ही जमीन पर हमारे ही विमान गिराने में पाकिस्तान सफल रहा। राज्यसभा में नेता विपक्ष और कांग्रेस अध्यक्ष ने पहलगाम हमले में सुरक्षा चूक पर सवाल उठाया जिसका कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। खरगे ने जम्मू-कश्मीर पर उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के बयान का हवाला देते हुए सरकार पर हमला बोला। मनोज सिन्हा ने स्वीकार किया कि आतंकी हमले की वजह हमारी चूक थी। उन्होंने सवाल किया कि क्या सिन्हा का बयान किसी को बचाने के लिए था? हमले की किस-किस ने जिम्मेदारी ली? किसने इस्तीफा दिया? प्रियंका गांधी ने कहा कि पहलगाम हमले के बाद किसी देश ने पाकिस्तान की निंदा नहीं की यानि पूरी दुनिया ने भारत को पाकिस्तान की बराबरी पर रखा। सरकार ने जवाब में कहा कि पाकिस्तान के साथ सिर्फ तीन देश खड़े थे और दुनिया के कई देशों ने आतंकी हमले की निंदा की। बेशक, इस पर किसी ने भी पाकिस्तान को पहलगाम हमले का दोषी नहीं माना। क्या यह हमारी विदेश नीति का पर्दाफाश नहीं करती? सारी दुनिया जानती है कि भारत-पाक संघर्ष में पाकिस्तान तो महज मखौटा था। असल ताकत तो चीन की थी। हम पाकिस्तान से अकेले नहीं लड़ रहे थे, बल्कि पाक-चीन गठजोड़ से लड़ रहे थे। तमाम बहस में सरकार ने एक बार भी चीन का नाम नहीं लिया जबकि हमारी सेना ने साफ कहा कि चीन-पाकिस्तान को हथियार दे रहा है और चीन सैन्य उपकरणों के कारण ही भारत के विमान गिरे। इन पर सरकार ने एक शब्द नहीं कहा और न ही एक शब्द चीन द्वारा पाकिस्तान को दी जा रही मदद पर कहा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूं ही नहीं दावा किया था कि भारत-पाक संघर्ष के दौरान 5 लड़ाकू विमान मार गिराए गए थे, हालांकि ट्रंप ने यह स्पष्ट नहीं किया कि किस देश के कितने विमान गिराए गए। इससे पहले पाकिस्तानी भी भारत के 5 लड़ाकू विमान मार गिराने का दावा कर चुके हैं। हालांकि भारत ने इसे खारिज किया है। भारत की तुलना में पाकिस्तान के साथ ज्यादा देश क्यों? भारत-पाक संघर्ष के दौरान तुर्किए, अजरबैजान और चीन ने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया था, जबकि भारत के पक्ष में केवल इजरायल स्पष्ट रूप से नजर आया। यहां तक कि रूस ने भी भारत को खुलकर समर्थन नहीं किया। इस मुद्दे पर बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, दुनिया में किसी भी देश ने भारत को अपनी सुरक्षा में कार्रवाई करने से रोका नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र में 193 देश हैं और सिर्फ तीन देशों ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के समर्थन में बयान दिया था। ब्रिक्स फ्रांस, रूस और जर्मनी... कोई भी देश का नाम ले लीजिए, दुनिया भर से भारत को समर्थन मिला। पूरी बहस में एक महत्वपूर्ण मुद्दा कपिल सिब्बल ने भी उठाया। पूर्व केंद्रीय मंत्री व राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने देश की रक्षा तैयारियों पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि भारत के पास पाकिस्तान से युद्ध लड़ने और उसे बर्बाद करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं है। जब हम पाक से युद्ध की बात करते हैं तो चीन को भी जोड़ें, क्योंकि दोनों अलग-अलग नहीं हैं। पाकिस्तान के पास चीन के उन्नत विमान, सैन्य प्रणाली है जबकि भारत का राफेल आधी क्षमता वाला विमान है। पाक के पास 25 स्क्वाड्रन है जबकि चीन के पास 138 स्क्वाड्रन है। वहीं भारतीय वायुसेना के वैसे कुल 32 स्क्वाड्रन है, जो किसी भी भारत-पाक युद्ध के दौरान सबसे कम संख्या है। हाल ही में एयरफोर्स चीफ और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने इस कमी को उजाकर किया है। पिछले 11 सालों में सैन्य तैयारी में भारी कमी आई है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता और न ही इस बहस में इसका कोई जवाब मिला।
-अनिल नरेन्द्र
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