Thursday, 21 August 2025

चुनावी सवालों का जवाब नहीं मिला

आखिर भारत के चुनाव आयोग ने चुनावी सवालों के मुद्दे पर प्रेस कांफ्रेंस की। प्रेस कांफ्रेंस तो की पर ज्वलंत सवालों के जवाबों को टालने पर ज्यादा जोर दिया गया। बेहतर होता कि चुनाव आयोग यह प्रेस कांफ्रेंस न करता। प्रेस कांफ्रेंस भी उस दिन की गई जब रविवार था और उसी दिन दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का रोड शो चल रहा था और बिहार के सासाराम में राहुल गांधी की वोट चोरी यात्रा आरंभ हो रही थी। नतीजा यह हुआ कि इस प्रेस कांफ्रेंस ने नए सवालों को जन्म दे दिया। लोकतंत्र में चुनाव केवल सरकार चलाने की वैधता हासिल करना नहीं, बल्कि यह उस चुनाव की बुनियाद का प्रमुख स्तंभ है, जिस पर देश, राज्य व लोकतंत्र का दारोमदार टिका हुआ है। इस प्रक्रिया के स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से पारदर्शिता से संपन्न कराने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर है। रविवार को चुनाव आयोग ने विपक्षी राजनीतिक दलों के वोट चोरी से जुड़े आरोपों के जवाब दिए। प्रेस कांफ्रेंस के बाद कांग्रेस ने कहा कि इस प्रेस कांप्रेंस में विपक्ष के उठाए सवालों का सीधा जवाब नहीं दिया गया। तेजस्वी यादव ने कहा कि बिहार चुनाव से ठीक पहले भाजपा चुनाव आयोग के साथ मिलकर वोट देने का अधिकार छीन रही है। आरजेडी ने यह सवाल उठाया कि एसआईआर ऐसे समय क्यों की जा रही है जब बिहार में बाढ़ आई हुई है। पत्रकारों ने चुनाव आयोग से सवाल पूछा था। इस पर आयोग ने कहा, बिहार में 2003 में भी एसआईआर हुआ था और उसकी तारीख भी 14 जुलाई से 14 अगस्त थी। तब भी यह सफलतापूर्वक हुआ था। राहुल गांधी ने दावा किया था कि 2004 के लोकसभा और महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों के विधानसभा चुनावों में मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर हेरफेर हुआ, जिससे भारतीय जनता पार्टी को फायदा हुआ। विशेष रूप से, उन्होंने बेंगलुरु की महादेवपुरा विधानसभा में एक लाख से ज्यादा फर्जी वोटर और कई अमान्य पतों का आरोप लगाया था। राहुल गांधी ने डुप्लीकेट वोटरों (जैसे एक ही व्यक्ति का कई राज्यों में वोटर के रूप में रजिस्ट्रेशन) और गलत पतों (जैसे एक छोटे से कमरे में सैंकड़ों वोटर) के उदाहरण दिए थे। चुनाव आयोग ने इन आरोपों को निराधार और गैर जिम्मेदाराना बताते हुए खारिज किया और कहा कि वोट चोरी जैसे शब्दों का इस्तेमाल करोड़ों मतदाताओं, लाखों चुनाव कर्मचारियों की ईमानदारी पर हमला है। क्या राहुल गांधी के सवालों का यही जवाब था? राहुल गांधी बार-बार कह रहे हैं कि चुनाव आयोग उनसे शपथ पत्र मांग रहा है, मुझसे एफीडेविट मांगा है जबकि कुछ दिन पहले ही भाजपा के लोग प्रेस कांफ्रेंस करते हैं तो उनसे कोई एफीडेविट नहीं मांगा जा रहा है। ज्ञानेश कुमार ने जवाब दिया, जहां आप गड़बड़ी की बात कर रहे हैं और आप उस विधानसभा क्षेत्र के निर्वाचक नहीं हैं तो कानून के मुताबिक आपको शपथ पत्र देना होगा। आयोग का कहना है कि हलफनामा देना होगा या देश से माफी मांगनी होगी। अगर सात दिनों के अंदर हलफनामा नहीं मिलता है तो इसका मतलब है कि ये सभी आरोप निराधार हैं। पर कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि चुनाव आयोग ने विपक्ष के सवालों का सीधा जवाब नहीं दिया। खेड़ा ने कहा क्या ज्ञानेश कुमार ने उन लाख वोटर्स के बारे में कोई जवाब दिया जिन्हें हमने महादेवापुरा में बेनकाब किया था? नहीं दिया। उन्होंने कहा, हमने उम्मीद की थी कि श्री ज्ञानेश कुमार हमारे प्रश्नों के उत्तर देंगे... ऐसा लग रहा था कि (प्रेस कांप्रेंस में) भाजपा का एक नेता बोल रहा है। वरिष्ठ पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता चुनाव आयोग की इस प्रेस कांफ्रेंस में मौजूद थे। उनका मानना है कि फिलहाल जो सफाई चुनाव आयोग ने दी है उससे यह मुद्दा खत्म होते नहीं दिखाई दे रहा है। ठाकुरता कहते हैं, प्रेस कांफ्रेंस में कुछ सवालों के स्पष्ट जवाब नहीं मिले है। जैसे मैंने पूछा कि क्या यह सच है कि महाराष्ट्र में आपने 40 लाख नए लोगों को वोटर लिस्ट में शामिल किया? इस पर आयोग ने कहा कि उस समय किसी ने आपत्ति दर्ज नहीं कराई थी। मैंने एक और सवाल पूछा कि क्यों लोगों से ज्यादा नाम मतदाता सूची में थे तो इसका जवाब मुझे नहीं मिला। इस तरह से कई और सवाल हैं जिनके स्पष्ट जवाब नहीं मिले हैं। चुनाव आयोग ने बिहार ड्राफ्ट लिस्ट से करीब 65 लाख मतदाता हटाए हैं। यह एक बड़ी संख्या है, इसका कोई जवाब नहीं मिला। चुनाव आयोग आज से पहले इस तरह कभी प्रेस कांफ्रेंस करने सामने नहीं आया था। विश्लेषकों का मानना है कि चुनाव आयोग के जवाब को राजनीतिक संदर्भ में देखने की जरूरत है। टाइमिंग की बात करें तो निश्चित रूप से चुनाव आयोग का जवाब भी राजनीतिक है। जैसे राहुल गांधी इसे बिहार में राजनीतिक बना रहे है तो ठीक उसी तारीख को सरकार की ओर से चुनाव आयोग ने अपना पक्ष सामने रखा है। -अनिल नरेन्द्र

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