Tuesday, 12 August 2025

वोट चोरी पर आर-पार की लड़ाई

लोकसभा चुनाव के 14 माह बाद एसआईआर और वोट बंदी के मुद्दे पर विपक्ष को एकजुट करने में सफल रहे हैं। भारत में राजनीति इस समय टॉप गीयर पर है। यह सही है कि भारत जैसे विशाल देश में चुनाव करवाना आसान नहीं है। यही नहीं भारत में इतने चुनाव होते हैं जो चुनाव आयोग की योग्यता के लिए चुनौती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत का चुनाव आयोग काफी हद तक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने में सफल रहा है। वोट करना हर वोटर का संवैधानिक और लोकतांत्रिक अधिकार है। यह भी जरूरी है कि उसका वोट उसे ही मिले जिसे उसने वोट दिया है। जब यह आशंका पैदा हो जाए कि उसका वोट दिया किसी को है और गया कहीं ओर तो बड़ा संदेह और निराशा पैदा हो जाती है। किसी भी देश में लोकतंत्र की मजबूती-विश्वसनीयता इस बात पर निर्भर करती है कि उसमें सरकार को चुने जाने की प्रक्रिया कितनी स्वच्छ, स्वतंत्र और पारदर्शी है। इसके लिए चुनाव आयोजित कराने वाली संस्था को यह सुनिश्चित करना होता है कि कोई भी नागरिक वोट देने के अधिकार से वंचित न हो, मतदान की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी तथा चुनाव में हिस्सेदारी करने वाले सभी दलों के लिए भरोसेमंद हो और नतीजों को लेकर सभी पक्ष संतुष्ट हों। कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने हाल ही में कर्नाटक की एक विधानसभा क्षेत्र का डाटा पेश करते हुए आरोप लगाया है कि मतदाता सूची में हेराफेरी हुई है। दस्तावेज का ढेर मीडिया के समक्ष दिखाते हुए राहुल गांधी ने दावा किया कि यह सूची चुनाव आयोग द्वारा उपलब्ध मतदाता सूची के ढेर से निकली है। उनका दावा है कि महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में एक लाख से ज्यादा मतों की चोरी हुर्ह है। संवाददाता सम्मेलन में राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए और दावा किया कि लोकसभा चुनावों, महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनाव में मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर धांधली की गई। तथ्यों के साथ राहुल ने साबित करने की कोशिश की। मतदाता सूची में हेर-फेर, फर्जी मतदाता, गलत पते, एक पते पर कई मतदाता, एक मतदाता का नाम कई जगह की सूची में होने जैसे कुछ खास तरीकों पर आधारित वोट चोरी करने के इस माडल को कई निर्वाचन क्षेत्रों में अमल में लाया गया ताकि भारतीय जनता पार्टी को फायदा मिल सके। हालांकि चुनाव गड़बड़ियां, ईवीएम में छेड़छाड़ की शिकायतें तो पहले भी आती रही हैं, लेकिन आमतौर पर वे किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सकीं या फिर निर्वाचन आयोग की ओर से उन्हें निराधार घोषित किया जाता रहा है। अब इस बार जिस गंभीर स्वरूप में इस मामले को उठाया गया है, उसके बाद देशभर में यह बहस खड़ी हो गई है कि अगर इन आरोपों का मजबूत आधार है तो इससे एक तरह से समूची चुनाव प्रक्रिया की वैधता कठघरे में खड़ी होती है। इस मसले पर चुनाव आयोग ने फिलहाल कोई संतोषजनक जवाब देने के बजाए राहुल गांधी से शपथपत्र पर हस्ताक्षर कर शिकायत देने या फिर देश की जनता को गुमराह न करने को कहा है। मगर राहुल गांधी ने वोट चोरी का दावा करते हुए जिस तरह अपने आरोपों को सुबूतों पर आधारित बताया है। उसके बाद चुनाव आयोग से उम्मीद की जाती है कि वह पूरी समूची प्रक्रिया पर भरोसे को बहाल रखने के लिए पूरी पारदर्शिता के साथ इस संबंध में उठे सवालें का जवाब सामने रखे। बहरहाल इस आरोप की गंभीरता को समझना आवश्यक है कि दो कमरों में क्रमश 80/46 लोग कैसे रह सकते हैं? इनमें तमाम मतदाताओं की तस्वीरें आकार में इतनी छोटी हैं कि पहचान करना मुश्किल है। इन आरोपों की पुष्टि आयोग को बगैर प्रत्यारोपों के करनी चाहिए। मतदाता सूचियों के प्रति आयोग जिम्मेदारी से बच नहीं सकता। जो भी त्रुटियां सामने आती हैं उनके बारे में स्पष्टता से संतोषजनक जवाब देना चाहिए। सवाल आरोपों-प्रतिआरोपों का नहीं है। सवाल देश में संविधान की रक्षा का है जिसकी रक्षा तभी हो सकती है जब हर नागरिक को अपने वोट देने का अधिकार मिले और उसकी वोट उसे ही जाए जिसे वोट दिया गया है। हमारे लोकतंत्र की जड़ है स्वतंत्र, निष्पक्ष, पारदर्शी चुनाव मगर इसमें भी हेराफेरी होती है तो हमारे संविधान व लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होती हैं। उम्मीद है कि चुनाव आयोग प्रश्नों का संतोषजनक जवाब देगा और चुनावी प्रक्रिया को मजबूत और पारदर्शी बनाएगा। -अनिल नरेन्द्र

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