केंद्र सरकार के प्रमुख सलाहकार (आर्थिक) अनंता नागेश्वरन ने कहा कि ट्रंप टैरिफ का असर 6 महीने से ज्यादा नहीं रहने वाला है। उन्होंने कहा, लांग टर्म चैलेंज के लिए प्राइवेट सेक्टर को अहम योगदान देना होगा। नागेश्वरन ने चेताया कि छह महीने के दौरान जैम्स एंड जूलरी टेक्सटाइल और फूड इंडस्ट्री को बढ़े हुए टैरिफ का मुकाबला करना होगा। ट्रंप टैरिफ का भारत की अर्थव्यवस्था पर खासकर कुछ क्षेत्रों में तो अभी से बुरा असर पड़ना शुरू हो गया है। दैनिक भास्कर की छपी रिपोर्ट के अनुसार भारतीय उत्पादों पर अमेरिका के भारी भरकम 50 फीसदी टैरिफ ने देश के कई प्रमुख निर्यात उद्योगों के सामने नया संकट खड़ा कर दिया है। इसका असर न सिर्फ भारत के 55 फीसदी निर्यात पर पड़ेगा, बल्कि राज्यों के सामने भी नई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। हालांकि, टैरिफ का असर सभी क्षेत्रों में समान नहीं है। लेकिन कहीं पुराने सौदों पर संकट है तो कहीं भविष्य में आर्डर ठप होने की आशंका बढ़ गई है। चावल निर्यातकों की चिंता! भारत 127 देशों को करीब 60 लाख टन बासमती चावल निर्यात करता है। इसमें से करीब 2.70 लाख टन यानि 4 फीसदी चावल अमेरिका को जाता है। इस निर्यात में करीब 40 फीसदी हिस्सा हरियाणा में तरावड़ी (करनाल) से जाता है। ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्ट अधिकारियों का कहना है कि अगर अमेरिका को बासमती चालव का निर्यात नहीं होता तो भी बड़ा नुकसान नहीं होने वाला है। 2.70 लाख टन अन्य देशों में खपाना मुश्किल नहीं होगा। फिलहाल चावल निर्यातक वेट एंड वॉच की स्थिति में हैं, क्योंकि इस साल का निर्यात लगभग पूरा हो चुका है। पानीपत उत्तर भारत का बड़ा टेक्सटाइल हब है। जहां से हर साल करीब 20,000 करोड़ रुपए का निर्यात होता है। इसमें से 10,000 करोड़ रुपए तक का व्यापार अकेले अमेरिका से जुड़ा है। निर्यातकों का कहना है कि अमेरिका के टैरिफ बढ़ाने से 500 करोड़ रुपए के पुराने ऑर्डर पर संकट आ गया है। नए ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं। कुछ निर्यातक पहले से ही स्थिति को भांप गए थे। ऐसे में उन्होंने अमेरिका से बड़े ऑर्डर लेना बंद कर दिए और उत्पादों में भी कटौती की है। सिंगापुर के जरिए भी अमेरिका से व्यापार की गुंजाइश है। यूके से द्विपक्षीय समझौते से कुछ लाभ मिल सकता है। पानीपत में 35000 करोड़ टेक्सटाइल्स इकाइयां हैं जिसमें 500 एक्सपोर्ट हाउस हैं और इनमें करीब 2.5 लाख लोगों को रोजगार मिला है। नए ऑर्डर नहीं मिलने पर इनकी आजीविका पर असर पड़ेगा। जम्मू-कश्मीर के हैंडलूम और हस्तशिल्प उद्योग (विशेषकर पश्मीना एवं घानी शॉल) ने बीते तीन साल में निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है। टैरिफ के बाद कारोबारी सतर्क हो गए हैं। जम्मू के शॉल निर्यात संगठन ने कहा अमेरिका में माल महंगा होगा पर कोई आर्डर अभी तक रद्द नहीं हुआ है। हमारे लिए दूसरे देशों के बाजार खुले हुए हैं। मगर अमेरिका में मांग घटी तो निर्यात को दूसरे देशों के बाजारों में मोड़ देंगे। वाणिज्यिक खुफिया एवं सांख्यिकी महानिदेशालय और जम्मू-कश्मीर आर्थिक सर्वे से कुल निर्यात तीन साल में बढ़कर 2023-24 में 1,162 करोड़ पहुंच गया। इसमें शॉल का निर्यात 477.24 करोड़ था। रोहतक का नट-बोल्ट उद्योग सालाना 5,000 करोड़ रुपए का कारोबार करता है। इसमें 70 फीसदी निर्यात अमेरिका को होता है। उद्यमियों का कहना है कि नया टैरिफ अगर लागू होता है तो न सिर्फ आपूर्ति प्रभावित होगी बल्कि कारोबार भी मुश्किल में आ जाएगा। चिंता की बात है कि कुछ कंपनियों को दो महीने से अमेरिका से कोई आर्डर नहीं मिला है। बड़ी कंपनियां पुराने आर्डर को पूरा करने में लगी हैं। भविष्य के लिए जो आर्डर मिले हैं। उनकी आपूर्ति पर टैरिफ का असर दिखेगा। अतिरिक्त टैरिफ से जिले की औद्योगिक इकाइयों के लिए दुनिया के बड़े बाजारों में माल बेचना मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि उत्पाद 25 फीसदी तक महंगा हो जाएगा। इसका असर कंपनी पर सीधा न पड़कर ग्राहक पर पड़ेगा। जसमेर लाठा जिसने बताया हम अमेरिका, यूके, यूरोप में नट-बोल्ट की आपूर्ति करते हैं। टैरिफ के कारण यहां से करीब 50 करोड़ रुपए के ही आर्डर बुक हुए हैं। हमारा 70 फीसदी नट-बोल्ट अमेरिका जाता है। पहले कस्टम ड्यूटी तीन फीसदी थी। अब यह बढ़कर 25 फीसदी हो गई है । यह पिछले 40-50 वर्षों में बहुत ज्यादा है। इसके अलावा 25 फीसदी टैरिफ और भी है। इससे हमारा उत्पाद काफी महंगा हो जाएगा ऐसा यहां के उद्योग चलाने वालों का मानना है। मैंने यह तो सिर्फ हरियाणा के कुछ उद्योग और निर्यातकों की बात की है, शेष देश में प्रभावित उद्योगों की बात नहीं की। लाखों कामगार बेरोजगार होने की कगार पर खड़े हैं। पहले से ही बेरोजगारी देश में चरम पर है, इस नए धमाके का क्या असर पड़ेगा जल्द पता चल जाएगा।
-अनिल नरेन्द्र
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